आंधा जुग रा, आंधा आदमी!

थूं आंखियां थकांई आंधौ है

सै जाणै-बूझै है थूं

पण थूं मीच राखी है

काठी आंखियां!

थारा स्वारथ में

थारी इज निबळाई

थनै अंधार धकेल न्हांखियौ

थूं हांमी भरतोड़ौ-ई आंधौ दिखै

नै, ना देवै तद ई, आंधौ रेवै

रोवतौ आंधौ रैवै

नै

थारी हांसी पण आंधी है

म्हनै ठा नीं पड़ी

थंनै क्यूं मोद है

थारा आंधापणा रौ?

अळगौ बगाय दै इण मोद पोतिया नै

भांग राळ....भांग राळ

इण जुग नै पाछी आंखियां दै दे!

स्रोत
  • पोथी : डीगरां-डीगरां ,
  • सिरजक : शंभुदान मेहड़ू ,
  • संपादक : धनंजया अमरावत ,
  • प्रकाशक : रॉयल पब्लिकेशन, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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