अंधारा रो रंग
फकत काल्ड़ो ही नीं व्है
म्हारा भाई!
वो कदी लीलो
कदी पीलो
कदी बैंगणी
अर कद'ई केसरिया सूं
गुलाबी भी व्है जावै
म्है तो जादातर
देख्यौ क़ै
अंधारो तो जाण'र
उजळो-उजळो
बण‘र घूमै
जिणसूं उणरी असलियत रो
पतो नीं व्है सक़ै
अर डर रै बारे में
कोई सांची नीं कै सकै
इण खातर
म्है कैऊं रै म्हारा भाई!
धोखे खायोड़ी आख्यां ने
फैरु नूवे धौखे सूं बचावौ
अंधारे ने सावळ देखण-परखण ने
उण रै नैड़ा जावौ!
फैरु घणा नैड़ा जावौ।