मूंन थे तोड़ो, हां रे अण बोलो छोड़ा।
होंठा प लगी क्यूं पहरेदारी जी।
नैणा थे खोलो, हां रे... थोड़ा तो बोलो।
होठां क्यूं बैठी चौकीदारी जी॥
रूण झूण पायल बाजती, आंगणिये आता जातां।
मन ही मन थे काम करो ना करो कोई सूं बातां।
दो बेण सुणबा की मनमें घणां दनां सू आरी जी।
मूंन...॥
रूप देख रति काम थारे आगे पाणी भरता।
लाल गुलाबी गालां प दो नैणा नरत करता।
लाज भार सूं दबी हुई छ पळकां गहरी भारी जी।
मूंन...॥
ढोल नगारां ऊंमग का मनड़ा में गहरा बाजे
बाट न देखे वे असाड़ की जद चावे जद गाजे।
बरसण आई बादळियां क्यूं बिन बरसी ही जारी जी॥
मूंन थे तोड़ो, होंठा प लगी क्यूं पहरेदारी जी॥