आंख्यां बीरा लाल राखजै।

गरबीली सी चाल राखजै।

नींतर मार न्हाख सी थानै

रगत रै मायं उबाळ राखजै।

लालच दैयनै परचाय लेव'ला

थारी अणख संभाळ राखजै।

भुखा तिरस्या रैवणो आच्छो

खैरात रा टुकड़ा टाळ राखजै

पढ्यां बिना नीं टूटै बेड़ी

सुपना सुरंगा पाळ राखजै।

स्रोत
  • सिरजक : लालचन्द मानव ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोडी़
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