रस्ते मां हार’र पाछा वलग्यां

जिका पग

हमे वौ

कांई मंजिल पावै लां?

म्हारे ख्याल सूं तो

जिते तक वां बैठ’र

सोच्चो लां,

टैम और धकेल

निकल जावै ला

ने वो

मंजिलां सूं

और घणा

लारै रै जावै ला।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अक्टूबर 1981 ,
  • सिरजक : बाबूलाल संखलेचा ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर
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