आज रो मिनख

अमरबेल री दांई

दूजै रो आसरो ले

उण रै माथै

छा जाणै री नीत राखै।

जिणसूं

निजरां उधार लेवै

आपरो मारग चीन्है

उणरै

मारग बिचाळै

कांटा बिछाणै री नीत राखै।

जिणरै

हाथां आपरा काम साधै

उण हाथां नैं खोस

उणरा पग काढ

बैसाखी झलाणै री नीत राखै।

आपरै नैणां मांय

दूजां री निजरां रा उजाळा

गळबै ताणी भराणै री नीत राखै।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : सुधीन्द्र कुमार ‘सुधि’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी संस्कृति पीठ, राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति
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