जिणनै कोई नीं जाणै, उणनै भूलण सारू म्हनै दारू पीवणी चाईजै
उठै गोदाम में लुक्योड़ौ, कीं नीं बोलतौ म्हैं बैठूंला
तमाखू पीवूंला अर खुदोखुद सूं ई अळगौ व्हे जावूंला
स्यात इण दुनियां सूं बचण रौ और कोई रस्तौ कोनी
जिनगानी नै करण दौ सड़कां माथै रौळा अर मौत नै
पटर्यां पटर्यां चालण दौ, सीयाळै में बीखै नै अेकलौ रैवण दौ
खनै सूं निसरता धाया-सोरा कवियां सारू मरसिया लिखण नै
जाणूं...
कोरी सपनै री भूख सूं ई पूरी कोनी पड़ै
सपनै री रचणा
म्हारै माथली बिरखा तूफांन अर ओळा
म्हारै बगत रै इतिहास रौ खातमौ व्हैला
लोग कैवै दुनिया म्हनै उडीक रयी है
हेत करण नै...पण म्हनै सक है
हेत दोयां खानीं सूं व्है, आ म्हैं जांण सक्यौ
वांरी जीयांई कैय’र आ म्हारा रूड़ा लूंठा आगोतर
म्हारै खनै आ!
पण म्हैं, जिणनै कोई नीं जांणै, उणनै भूलण री छुट्टी चावूंला
खुद रा गुनां री माफ़ी मांगतौ अर वांरी भी
जिका म्हनै सड़क रै दूजै पासै सूं देखै है: वांरा होठां सूं
भूंडण रौ कोई सबद नीं निसरै। वै मौळाई सूं मुळकै
स्यात दुनियां सूं बचण रौ और कोई रस्तौ कोनी?