मरवण! मजलाँ—मजलाँ बीत्यां जावै रातड़ली।

आज्या हिलमिल करल्यां मनडां री दो बातड़ली॥

रातां में छातां पर बातां बैठ रसीली करल्यां

सौरम रैयी बिखेर चादणी थोड़ो मन भरल्यां

चुड़लो खणकै तो खणकण दे

पायल छमकै तो छमकण दे

बिछिया बाजै तो बाजण दे

ढोलो घमकै तो घमकण दे

कद स्यूं मन रो मनमोर उडीकै बाटड़ली।

आज्या हिलमिल करल्यां मनडाँ री दो बातड़ली॥

चितवन डोर बंध्यो चित चकवो नींदड़ली नहिं आवै

काजळ करै कुचरणी सैणां—सैणां में समझावै

लड़ियां लूमै तो लुमण दे

घूमर घूमै तो घूमण दे

प्या’कीं प्रीत भर्‌यो मद प्यालो

साकी झूमै तो झूमण दे

मन री मैफिल में मनवार करां धण पातड़ली।

आज्या हिलमिल करल्यां मनडां री दो बातड़ली॥

थाम लाज रो लसकर थोड़ो मौसम महकावण दे

अधरां—अधरां अधरां नै अधरां स्यूं बतलांवण दे

बिजळी पळकै तो पळकण दे

जोबण छळकै तो छळकण दे

चंदो मुळकै तो मुळकण दे

किरत्यां ढळकै तो ढळकण दे

ऊभी पळकां पंथ बुहार रयी परभातड़ली।

आज्या हिलमिल करल्यां मनड़ां री दो बातड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत फरवरी-मार्च ,
  • सिरजक : ताऊ शेखावटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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