काग उड़ायनै साजन बुलाऊं
नीं आवै तो मन नै समझाऊं
मन री बाता मन मांय धरी
नीं मेहंदी नीं सिणगार करी
प्रियतम रौ संदेसौ नित उडीकूं
बाटां जोवती विरह मांय मरी
थां बिन क्यूं म्है बाती बुझाऊं
नीं आवै तो मन नै समझाऊं
म्हारौ तन म्हासूं रूठौ जाणै
बातां उणरी तो झूठी जाणै
थांको विसवास अबै कयां करूं
ओ प्रीत रौ घड़ौ फूटौ जाणै
बैठ मैडी पे तारा गिनाऊं
नीं आवै तो मन नै समझाऊं
काग उड़ायनै साजन बुलाऊं
नीं आवै तो मन नै समझाऊं ।