बिणजारो अबै लूण नी लावै

नी लावै हिंगळू, गेरू अर धोळौ

अब बाणियां बेचे है लूण, रंग अर चिरमट

बिणजारा मरया कोनी

उणरो वोपार मरगो

एक व्यवस्था दूजी ने मार दी

यूं ही मर जावेला और व्यवस्था

अर् एक दिन मर जावालां आपां सब

अेड़ी व्यवस्था रे कारणै।

स्रोत
  • सिरजक : दिनेश चारण ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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