हा रूप रूपळा रूंख रूंख री, डाळी डाळी हेत भरी
हो हरियो भरियो बाग बाग में बेल लतावां ही पसरी
खिलता हा जिणमें फूल, फूल वै रंग रंग रा रळियाणां
पानां पानां पर पंछीड़ा, मंडराता रहता मन भाणां
बो बाग दिनो दिन उजड़े है, सो कहो कठै फरियाद करां
(म्हे) लिखा ओळभा अड़वाँ नैं या खुद माळी सूं बात करां?
वो माळी जिणनै उपवन री, रखवाळी सौंपी ही आपां
वो माळी जिणनै पान फूल, हर डाळी सौंपी ही आपां
रे भाँत भाँत रै रंगा रो, वरदाई वैभव सौंप्यो हो
सौंपी ही थाती सोरम री, पंछ्यां रो कलरव सौंप्यो हो
आयो अब संकट सोरम पर कद ताणी धीरज मौन धरां
(म्हे) लिखा ओळभा अड़वाँ नैं, या खुद माळी सूं बात करां?
वो बाग जठै हर मौसम में, अणथाग बहारां रहती ही
कण कण में सौरभ सरसाती, नित प्रीत बयारां बहती ही
मन - मोर नाचता रहता हा, कंठां में कोयल गाती ही
हंसां री हेत - हथायां पर आ धरती मोद मनाती ही
वो बाग बिलखतो देखां जद, संग्राम करां या सोच करां
(म्हे) लिखां ओळभा अड़वाँ नैं, या खुद माळी सूं बात करां?
इण बाग जळजळा झेल्या हा, अनगिणत आँधियाँ देखी ही
इरै साहस सूं भिड़तां ही, भूचाळां गोड्यां टेकी ही
पैली तो लुच्चा आया हा, लूटण नैं दिसा - दिसावां सूं
पण आज बाग ओ जख्मी है, खुद रखवाळां रै घावां सूं
है बेल बेल पर बांदरिया, तो सोट धरां या सार करां
(म्हे) लिखा ओळभा अड़वाँ नैं, या खुद माळी सूं बात करां?
तन स्याह ऊजळै अंतस रा, बहुतेरा भँवरा आता हा
फूलां सूं करता बै रळियाँ, कळियाँ सूं हँस बतळाता हा
पण आज मनां रा हद काळा, मिजळा मधुकरिया मंडरावै
वांरी लख काळी करतूतां, नित बेलां आँसू ढळकावै
रखवाळां आँख्यां बंद करी, तो किणरै काँधे माथ धरां
(म्हे) लिखां ओळभा अड़वाँ नैं, या खुद माळी सूं बात करां?
कागां रा सांगा करबाळां रै, काँव काँव ही काफी है
पण हूण आयगी हंसां री, कोयल रै कंठां डाफी है
ओ उपवन हेला पाड़े है, हर रूख बेल अर झाड़ी नैं
कोई तो उठो बचावण हित, सोरम- द्रोपद री साड़ी नैं
ओ हेलो हिवड़ै खटकै है, भरणो इणरो किण भाँत भरा
(म्हे) लिखा ओळभा अड़वाँ नैं, या खुद माळी सूं बात करां?
गहरै गट हरियै कुंजां में, बुलबुलां नाचती गाती ही
हरियाळी डाळी फुदक फुदक, ऊँडै अंतस इठलाती ही
मिट गयो हेत व हिवड़ै रो, अब बाग सूखतो जावै है
फँसियोड़ी तीखै काँटा में, वै गीत विरह रा गावै है
कैवो तो न्हाखां कलमां नैं, थे कैवो तो तकरार करां
(म्हे) लिखां ओळभा अड़वाँ नैं, या खुद माळी सूं बात करां?