आप रै नांव पाती में

सनेशौ भेजूं हूं’ के—

देस पधारौ,

आप री अडीक करूं।

बरसात री रूत

आयगी है,

अम्बर में

भुर-भुरा’ काळा-पीळा

बादळ छा रिया है

आभै बीजळ्यां चिमकै

अर् बादळा

ऊंडा—ऊंडा—सा गाजै,

म्हारौ काळजो कांपे’र

आप री याद आवै

कांई आप पधार’र

धीरज बंधावोला?

आप री अडीक करूं।

धरती

हर् ‌यो पोमचो ओढ़’र

बिणाव कर् ‌यां झूमै,

बादळ आवे’र

बोछाड़ दे’र भेज्यावै,

धरती रौ पोमचौ’

म्हारौ अंग-अंग।

लोग केवै—

‘सावणं घणौं सुहावणौं व्है’

कांई बात सांची है?

आप पधार’ साख दिरावो,

आप री अडीक करूं।

आडंग मार् ‌या मोर

रात्यूं कुरळावै,

पीऊ-पीऊ री बाणो सुण’र

म्हारी नींद उचट ज्यावै,

काळजा में साँप ज्यूं लौटे’

आग-सी लाग ज्यावै

बिरखा आव’र

अर् शीतल कर ज्यावं

धरती रौ तपतो हियो।

आप भी पधारौ

म्हारौ काळजो ठंडो करो

आप री अडीक करूं।

ताळ-तळायां भरो है

च्यारूं-मेर हरियाळी है

प्रीत बावळी बेलां

दरखतां सूं लिपट-लिपट

झूमै,

मौसम सुहावणौं’र

मनभावणौं है

पण आप बिनां

सो क्यूं ही सूनो

और फीको-फीको है

कांई आप पधार’र

मिठास घोळोला?

आप री अडीक करूं।

सावणं नितका नीं आवै

आवै,

नितका आवै

पण, जोबन रो सावणं

‌अेकर बीत्या पाछै

बावड़े कोनी,

सावण रीयो है

कांई आप भी

बगत माथै पधारौला?

आप री अडीक करूं।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत फरवरी 1981 ,
  • सिरजक : गिरधारीसिंह राजावत ,
  • संपादक : महावीर प्रसाद शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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