मैं नित निरखूं —
नीमड़ा माथै गुमसुम हुयोड़ो
तोर्यूं फूलौ तावड़ो
म्हारी निजरां टंग्योड़ी है
दाझ्योड़ै अकास री अलख उदासी में
थळी पर ऊभो म्हैं देखतो जाऊं
पण कीं नै पूछूं वा ठौड़
जठै धोबां-धोबां म्हारै मन री
हरख उछाळ सकूं
लागै अेक गळी असेंधी है दूजी गळी सूं
लागै, अेक गळी फसियोड़ी है दूजी गळी में
कींनै पूछूं गळी रो नांव।
म्हैं नित निरखूं—
अंधारा में चिराळी भरता
जूनी सिलाड़ियां माथै कोद्योड़ा केई नांव
फूट्योड़ी तासळियां में
जिंदगाणी सूं रामत करती कुंठा री छब
बीच बजारां सांस रा सौदा करती
जवान रात।
म्हैं सोचूं, काचा खंरूट सी जिंदगी सूं
ठिसकळी करता लोगां रा लाल-लाल मूंडां पर
ठोक दूं तांबा री बळती मेख
पण म्हारी आवाज सरणाटो भरै
म्हारै ई कानां में
(मैं खुद सूं लड़ूं अर घणों लड़ूं)
मैं निरखूं—
गलीचां पर बिखर्योड़ो लोई
धरती री हरी-हरी में लाग्योड़ी लाय
कदै लागै
म्हारै सरीर री कपळी-कपळी करनै
गुफा रै मांय नांख दियो
म्हैं साव अेकलो हूं
(साव अेकलो तन रै साथ )
अब म्हनै नीं नांव याद रैवै नीं सूरत
म्हैं अेकलो खडयो हूं
कूवा रै कादै मांय।
आथमतो मांदो सूरज
सो ज्यावै डूंगर रै पसवाड़ै
खीझ्योड़ी सांझ ऊभ ज्यावै
म्हारी खिड़की रो स्यारौ लेय
पण म्हारी जबान उपड़ै नीं
म्हैं निरखूं अर निरखूं।