रेत
थारो अर म्हारो
बैर है किण भौ रो
कै थारै आयां रै खुड़कै सूं भी
डरूं म्हैं
भाजती फिरूं सारै घर में
ढक लूं बारणा-बारियां
पण तूं नीं मानै
आय जावै
म्हारै नीं चायां भी
घर रै खूणै-खूणै
कूंट-कूंट पसर जावै
घर-धणियाणी हूं म्हैं
घर री धिराणी
पण थारै साम्हीं म्हारी
अेक नीं चालै
बता तो सरी
किण भौ रो है ओ बैर
इस्यो कांई खोस लियो थारो
कै म्हनै अदावण में तूं
नीं छोडै कोई कोर-कसर
काढती रैवूं झाडूं
करूं आखै दिन बुहारी
तूं रेत
म्हैं नारी
दोनूं री जात अेक
फेर क्यांरो बैर
ओ कद तांई रैवैलो जारी?
फेर सोचूं
अेकती तूं कठै
म्हनै दुख देवणी
कुण नीं राखै म्हारै सागै अदावत
सगळां रै साम्हीं
परबस तो म्हैं हूं
किणी नै नीं बरज सकूं
रोक सकूं नीं किणी नै
म्हैं घर-धणियाणी
म्हैं घर-धिराणी
तूं तो फेर भी इत्ती माड़ी नीं है
मंडै तो नीं है साम्हीं।