थांरै खातर
सुरजी रो ऊगणो
के आंथणो
कोई अरथ नीं राखै
अर, नीं राखै
रुत री फोर-उथल
कोई अबखायां रो आंकस
सुरजी चावै—
चौमासै री पळ पळाट लियाँ हुवो
सर्दी री गिरमास लियाँ हुवो
कै उन्हाळै री उसांस लियाँ
थांरी तिरसायी आंख्यां में
नितनेम सूं सुरजी नीं उगै
उगै तो फगत
कडूंबै री भूख
भूख रा अे डूंगर छैकण में
थांरी अणंत आंणद री आसावां
टंगगी किणी
डंडा थौहर रै कांटा में
सिंझ्या!
दिन बदीत हुवो
भलांई जिंदगाणी
संतोख दोवां में है
क्यूं कै—
रात कालै री दौड़ रै
संकळपां में बीतैला।