घणकरी बार

म्हैं सोच्या करूं

लिख्यो जावै सगळो-कीं

जरूरी तो नीं है।

अधूरा सबद

बिखरयोड़ा सुपना

अणकही बातां

कीं तो म्हारै कनै

रैवणो चाईजै!

पण अचूंभो है, कै

इण नीं लिखण री बात नै

लिखण सूं नीं रोक सकी

म्हैं खुद नै।

स्रोत
  • सिरजक : सोनाली सुथार ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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