“डाकण है डाकण

म्हारै पानै पड़गी, डाकण,

थन्नै स्हूर को है नी

कांई बैठी थारी मां थन्नै जामण,

च्यार बरतण ल्यायी

भिखार्‌यां री लाडली,

ऊपर सूं अे काम थारा

म्हारी तो ज्यान काडली,

म्हैं पाळ्यौ घणो ओखौ

थूं नितगीड़ा सूण काढैं

किण बीजै सूं हेत लाग्यो

तद इण नै बधार्‌यां राखैं,”

सासू घणा भूंडा बोलै

वी नै कांई, बास नै सुणावै

आंख्यां मांय आंसूड़ा लैवनै

बहु नीची देख्यां जावै,

चौथा रै बरत,

घर रै खोरसे मुजब

वी नै चक्कर

आयौ अेक गजब,

हाथ रो चूड़ो

छण मांय झड़ग्यो सारो

इण बिध घर मांय

माच ग्यौ कारो,

स्सै लुगायां नै

भळै सांप डसै है कांई?

चुड़लै मांय

भरतार री ज्यान बसै है कांई?

स्रोत
  • पोथी : साहित्य बीकानेर ,
  • सिरजक : विवेकदीप बौद्ध ,
  • संपादक : देवीलाल महिया ,
  • प्रकाशक : महाप्राण प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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