धरा!

म्हैं म्हारी जीयाजूण

थारै आसै-पासै

धान निपजावतो

पूरी करूं

म्हैं करसाण

जलमती थारै साथै

अबोल भाव सूं

जुड़ जावूं हूं

हळ नै हळोतियै सागै

सगळो जीवण म्हारो

थारी आस-निरास सूं बंध्योड़ो

म्हैं म्हारी जीयाजूण

पूरी करूं हूं

थारो दरद

थारो मरम

म्हैं जाणूं हूं

म्हैं उण दरद सूं

अछूतो कोनी

तरसती थारी

आंख्यां जळजळा

म्हारा नैंण

बादळी री बाट जोवती

तपती अगन में।

धरा!

थूं कितरो धीरज धरै है

म्हैं कोसिस करूं हूं

धीरज धरण री

पण

बीं बगत म्हारो

घर-परिवार

म्हारा टाबरिया

चितकबरी घोनी

उण रा धोळिया बकरिया

गोरकी गाय

काळकी मिनड़ी

म्हारै धीरज नै

हिला देवै

म्हैं बीं बगत

हार’र बैठ जावूं

म्हैं थारै आंचळ में

दहाड़ा मार’र रोवूं हूं

म्हैं हारूं हूं

पण थारो सोचनै

मावड़ी!

म्हैं खुद नै

थ्यावस बंधावूं हूं।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : सुमन पड़िहार ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी समिति
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