थारी ओळयूं रै ओळै-दोळै

उचटै म्हारी नींद

पण म्हैं

बिछाऊं नीं थांरी उडीक मांय आंख्यां

राखूं खुली-

पोऊं

सुमंद रो सुमंद तारा-मंडळ

निजरां रै काचै सूत,

माळा रै उनमान।

परसूं मन री कंवळी आंगळ्यां।

अनै ऊठूं फेर

चिड़िया रै चैचाट-

उगेरूं

थोरै नांव री आरती।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : सन्तोष मायामोहन ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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