आओ! हेलो मारां!
घरां बुलावां!
धोरां ऊपर उतर चानणी,
रेत में खेलै।
लुका छिपी में फोग बोरटी,
पकड़ बिठावै काँधै।
कदे झाकड़ी आँख्यां आगै,
कस’र ओढ़णी बाँधै।
कदे खेजड़ी चढ़णै तांई,
होळै सी पग मे’लै।
पग दाब्यां चोरी-चोरी,
आ रोज रात नै आवै।
माँ रो जायो अँधारो पण,
कदे घरां नीं थ्यावै।
आखी रात सोधती रैवै,
घर-घर, गेलै-गेलै।
चन्द्रलोक सूं ले नींदड़ली,
सब नै बांट’र आवै।
सुख सपनां में रची-बसी आ,
दूर-दूर फिरियावै।
जद भी धरा बुलावै इण नै,
आज्यै पै’लै हेलै।