आजकाल 'वीगन'

हुवण रौ नवो

चाळौ चाल्यो है

मिनखां उंदो

केड़ो झाल्यो है..

बडेरा घी-दूध दही

छाछ जीमतां आपरा

सौ बरस ले लीना

पण 'वीगन' हूणो

धार्‌यौ है

सगळा नै परभात

पैली चाय खातर

दूध री उडीक

पछै कलेवा में

दही री बाट

रोटी वैळा रा

सोगरा में, रोटी में

घी गुड़ रौ आनंद

'वीगन' हुयां

कियां मिलसी

सिंज्या री चाय

ब्याळु वैळा रा

राब छाछ अर दूध

'वीगन'

हुयां सरसी कांई

बिना घी भगवान रै

परसाद रौ

सीरो लापसी

बणसी कांई?

बिलौणे बिना

नी तो माखण

मिसरी रो भोग

अर नी रसोड़ै री ओप!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : प्रमिला चारण ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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