मन काचौ क्यूं करै बावळी

अळघा हुयां ठा पड़े

आपां कित्ता सागै हां

तूं किसी जांणै कोनी

सागै रैवै लोग

तो कित्ता अळघा हुवै

अेक दूजै री सांस सूं

गळगळी हुयोड़ी है तो कांई

अेकर मुळक परी

मुळक थारी : उजास म्हारै मारग रौ

मोड़ै ऊभ विदा करते

डाबर-नैणां री कोरा ठैरयोड़े

पांणी री सौगन

म्हैं कठै रैवूं

तूं हरदम सागै हुवै म्हारै

सागै सांस जियां!

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : सांवर दइया ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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