दिन आथमियां पछै जिण भांत नगर, गांव अर रोही में सगळी ठौड़ अेक सरीखो अंधारो पसरण लागै, अजमेर नगर रा इण नैना-सीक मोहल्ला में उणीज भांत तर-तर अंधारो गेहरीजण लाग्यो हो। सूरजियो आपरै भाड़ै री कोठड़ी में—जिको अेक गैरेज हो-आपरी नुंवी आणै आयोड़ी बीनणी सागै बातां में लाग्योड़ो हो। आपरै सासरै रा समाचार पूछती दाण उणरै मन में तेवड़्योड़ी बातां रह-रह उणरै जबान माथै आवै ही अर बो बार-बार आपरा मन नै समझावण में लाग्योड़ो हो—

नुंवा-नुंवा मिळ्या हो, गांगरत गावण नै तो आखी ऊमर पड़ी है। फेर घरविद री बातां कैवण में किस्यो बगत लागै? यूं घरवाळी समझदार हुवै तो बात नै होठां माथै लावण री कांई जरूरत। म्हारी माली हालत तो बा मतै समझ लेसी। घर रो थाकैलो कंबळै मंड्योड़ो हुया करै अर सुभट दीसै। बूढ़ा माईतां नै बेआसरै छोड परदेस में आवण रो कारण तो पेट भराई सिवाय दूजो कांई हुय सकै? इण बात नै मूंढै सूं दरसावण रो कांई अरथ? बो होठां आयोड़ी बात नै गिटग्यो।

बो माडाणी मुळकतो घरवाळी रै मूंढै कानी देखण लाग्यो। गोरो रंग, लांबो नाक, मोटी-मोटी काळी आंख्यां, गदराईज्योड़ो डील, गूंथायोड़ो माथो अर नुंवै गाभा में बा उणनै आभै री अपसरा रै उनमान लागी। थोड़ीताळ तो बो सै बातां भूलग्यो। फगत आपरी लुगाई रै मूंढै कानी देखतो रहग्यो। कीं खिण बीतां समाधि टूटी। बो बोल्यो-साथै ल्यायोड़ो भातो तो हुवैला ई। हाथ-पग धोयलै तो खाय-पी नै बेगासर निवड़ जावां। इण कोठड़ी में बिजळी कोनी सो पछै अंधारो हुय जासी।

रोटी जीमती बगत सूरज आपरी लुगाई सागै थोड़ी-घणी बंतळ करी ही पण मन परबारी। उणनै बगत अणूतो निसरड़ो लखायो। ब्याळू सूं निवड़्यां उणरै मन में कीं शांति-सी बापरी। बो अंधारो पड़ण री बाट जोवण लाग्यो। अंधारो यूं अण-खावणो भलांई लागो पण इणरै ओळावै कई काम मतै सरल हुय जावै। घरविद री बात बर उणमें कोई गुप्तावू कै टोरै री बात कैवणी हुवै तो अंधारै रो जबरो आसरो। आमी-सामी अेक-दूजै रो उणियारो नीं दीसै। मूंढै माथै आयोड़ा भाव निजर नीं आवै अर बात रो मठ नीं मरै। सूरज नै इण बात रो घणो अचूंभो हुयो कै हाकमलोग दिन रै चानणै में कोई नै फांसी री सजा किण विध मूंढोमूंढ सुणाय देवै? उणनै तो आपरी लुगाई नै फगत इतरो कैवणो हो कै बो अणूतो गरीब है। पण उणनै मनांग्यानां अैड़ो लखायो जाणै फगत तीन आंकड़ां री बात नीं हुय’र घरवाळी नै जीवण भर री सजा सुणावणी है।.... पण फेर उण सोच्यो-नीं-नीं, इसी कांई बात है। बो मैणत-मजूरी करसी अर रामजी री कृपा हुई तो दिन लागां स्सै ठीक हुय जासी।

लुगाई उणरै विचारां रो तांतो तोड़तां पूछ्यो-बिछावणा कठै?

टांड माथै दरी पड़ी है नीं। उण होळै-सीक पड़ूत्तर दियो।

आधी दरी माथै सूवती बगत उणरै मन में कई बातां रो आंधण उकळतो रह्यो पण घरवाळी रै डील रो परस पायां उणरै विचारां माथै खाम लागगी। अंधारै अर सुहावतै परस रै बिचाळै बो खुद नै पांतरग्यो। बातां री तो बात न्यारी उणनै खुद रै डील री सुध-बुध नीं रही। उणनै लखायो जाणै बो आभै में उड रह्यो है...साव हळको-भार बिहूणो।

उणनै आपरै कानां में लुगाई री धीमी-सीक आवाज आवती लखाई। सुगंधित तेल री शीशी लावण री फरमाइश ही कदास। सूरज रै इचरज रो पार नीं रह्यो जद उणरा खुद रा होठ उणरी आंकस परबारा बध-बध’र कैवै हा-म्हारी मूमल! ले, शीशी कालै ले-सुगंधित तेल री।

-साची! तो सांतरी खुशबूवाळो लाईजो। सूरज नै सुणीज्यो तो उणनै लखायो कै कोठड़ी में सोरम री घमरोळ छुटगी है। आंगणै सूं लगाय’र छात तांई जाणै सोरम-ई-सोरम। पण सुपनो कित्तीक ताळ रो? उणनै आपरी औकात रो ध्यान आयो तो जाणै फींफरां में काळो धुंवो भरीजग्यो। कोठड़ी में उणरो जीव अमूंझण लाग्यो। मन में दब्योड़ी बात गोगाजी रै ज्यूं पाछी थूंडी उठावण लागी। बो सोचण लाग्यो कै बात कठै सूं अर कियां शुरू करां जितरै तो उणरी लुगाई बोली—रात मोकळी बीतगी, अबै सूय जावां।

प्रभात हुयां तो सूरज रै जीवण में बै सड़कां, बै आफिस अर बो मिनखां रो रेलो। नौकरी खातर भटकतो फिरणो भर निरास हुय’र सिंझ्या रा कोठड़ी भेळो हुवणो। सूरज आपरी डिग्री अेक कानी ऊंची मेल’र कई ठौड़ तो फगत चौकीदारी मांगी पण सगळा हरामी जाणै मांय-रा-मांय आपसरी में समझ्योड़ा हा। सो जावै जठैई ‘ना’। कोई भला मिनख री ‘हां’ सारू घांटकी नीं हाली। किणी माई रै लाल नै उणरै पेट में लागती भूख रो बेरो नीं हो। कोई सुजाण नै ठा नीं पड़ी कै सुगंधित तेल रो कांई म्यानो हुवै। इण पीड़ नै साव अेकलो झेलतां सूरज नै लखायो कै इण संसार में प्राणी भलांई मोकळा हुवो पण मिनख तो कोनी। मन री बात तो आगड़ी गई पण अठै तो होठां सूं दरसायोड़ी बात माथै कोई ध्यान देवण नै तैयार नीं हो। समझ में नीं आवै कै प्राणी मिनख रै खोळियै क्यूं जलमै? कीड़ा-मकोड़ां री दांई जीवणो है तो पछै मिनखादेही धारण करण रो कांई म्यानो? अैड़ा अलेखूं विचार उणरै मगज में कलबलीजण लाग्या। बो मौत सूं अंगांई नीं डरै पण अठै मरण खातर जलमणो अर पछै मरण री उडीक में जीवणो उणनै घणो आंहजो लाग्यो।

हांकरतां आखो दिन बीतग्यो अर सिंझ्या रा भारी मन सागै बो पाछो आपरी कोठड़ी कानी वहीर हुयो। बजरंगगढ रै चौराहा माथै दस-बारै मजूरां री भीड़ लाग्योड़ी ही। बां सूं अेक आदमी मजूरी करावण खातर भाव-ताव करै हो। पांच-पांच रिपियां में गैस बत्तियां उठा’र चालण रो काम हो। कदास कोई ब्याह-शादी रो मौको दीसै। सूरज उण भीड़ में ऊभग्यो। बो आदमी सगळां नै टोळ’र गैस बत्ती री दुकान माथै लेयग्यो अर बोल्यो—आप आपरी बत्ती उठाय लो। हां, जिको फानूस उठासी उणानै आठ रिपिया मिळसी।

सूरज फानूस उठाय लियो। पण इण काम रो अनुभव नीं हो सो सावचेती सूं चालण लाग्यो। गीतेरणा सूं आगै घोड़े माथै बींद राजा, बीं सूं आगै बैंड अर बैंड सूं आगै बत्तियांवाला। सूरज रै माथै पांच बत्तियां वाळो फानूस हो। होळै-होळै भीड़ रो रेलो आगै बघण लाग्यो। माथै परली बत्ती नै इण भांत तोकणी जाणै डालड़ी में नैनो टाबर सूतो है। इण वास्तै हिलको नीं आवण देवणो। सूरज नै लाग्यो कै तो अणूतो बांझो काम है। उणनै आपरै गांववाळी दाखी राईकाणी याद आयगी जिकी माथै बेवड़ो ऊंचायां साथणियां सूं बंतळ करती चालै अर मारग में पड़्यो पोठो भेळो कर’र लेय लै अर ठेट घर री उखरड़ी माथै लाय’र नाखै।

चालतां-चालतां उणनै गळै में थोड़ी खरास लखाई। उण सोच्यो कै जे खांसण लाग्यो तो माथलो फानूस किरची-किरची हुय’र बिखर जासी। उणरी आंख्यां में गैस बत्ती रै पळकै सागै ठेकेदार रो उणियारो पळक्यो। कानां में उणरा बोल रळक्या-देख मोट्यार, तूं हाल नुं॑वो-नुंवो है। थनै हाल तजुरबो कोनी, सो फानूस सावळ ले जाइजै नीं तो इणरै पेटै आठ महीना हाळीपो कियां पार नीं पड़सी। सूरज खांसी रोकण रो जतन कर्‌यो पण खांसी रोकणी कोई सहज बात कोनी। उण घांटकी नै करड़ी राख’र खैंखारै री दांई खांसी करी। भाग चोखा सो खांसी री गरज सजगी।

बारात ढबगी दीसै। बैंड रै आगै छोरा नाचै है शायद। कड़पदार रोसनी रंग री उड़दी ठसायां बैंड मास्टर दम लगाय’र पींपाड़ी बजावै हो। इनाम रो लोभ खरो। सूरज री निजर घोड़ै माथै पड़ी। बींद राजा रा तुर्रा-कलंगी अर घोड़ै रा गहणा-गांठा गैस रै चानणै में झबाझब झबूकै हा। उणरै लिलाड़ में सळ भरीजग्या। उणनै लाग्यो कै जाणै घोड़ो बांरी मंडळी भेळो मिळग्यो है। जाणै बो कोई मूंघो फानूस ऊंचाया ऊभो है। घोड़ो क्यूं, उणनै आपरा सगळा साथीड़ां माथै गैस बत्तियां री ठौड़ मिनख दीखण लाग्या। कोई रै माथै उणरा माईत हा तो कोई रै माथै उणरी लुगाई, कोई रै माथै औलाद सवार ही। बत्तियां रा बोझ करतां जमारै रो बोझ वत्तो हो। अबै रोयबो करो आपरा माईतां नै। जंगळी जिनावर किसा फानूस ऊंचावै, तो बे जीवै है।

पण बात सोच’र उणनै घोड़ै सूं ईसको हुवण लाग्यो कै जे बो बींद राजा नै नीचै पटक देवै तो उणनै हरजानो नीं देवणो पड़ै। घणो जोर तो तीन-च्यार चाबकां रा सटीड़। पण जे बो गैस पटक देवै तो... आक् थू! उण गळै में भेळो हुयोड़ो थूक नीचै थूक्यो। उणरी निजर आपरै पाखती वाळै जोड़ीदार माथै पड़ी। वो आपरी तहमद री अंटी सूं बीडी-माचिस काढ’र मजै सूं पीवै हो। उणनै लाग्यो कै कोई पण धंधै री हथोटी आयां बो धंधो करण रो मजो आवै।

चालतां-चालतां उणनै आपरी पीठ माथै कोई मकोड़ो-सो चालतो लाग्यो। उण होळै-सीक तरकीब सूं पीठ माथै हाथ फेर्‌यो तो पीठ उणनै आली हुयोड़ी लखाई। उणरै सागै कमीज भीज्योड़ी लागी। उणनै घासलेट री बास आई। उणरै माथै में तब्बीड़-सो उठ्यो। कठैई गैस री टंकी तो नीं फूटगी? ठेकेदार रो ध्यान आवतां उणनै लाग्यो जाणै डील रै लकवो-सो हुयग्यो है। होठ भींच पग उपाड़णा शुरू कर्‌या तो मांडैवाळै घर तांई पूगणो कठण हुयग्यो। अबै जावतां उणनै महसूस हुयो कै घासलेट रो रींगो उणरै डील माथै तर-तर बध रह्यो है। कमीज-पायजामो तरबंब कर’र पगरखी तांई पूगग्यो है। उण सोच्यो कै पिंड रो तो कीं कोनी पण फानूस बुझणो नीं चाइजै। उणरा होठ मतै भगवान से सुमरण करण लाग्या। टाबरपणै में रट्योड़ी आंकड़ियां- हरहू नाथ मम संकट भारी— चेतै आयगी। पण इण सूं कांई कारी लागै। द्रोपदी रो चीर हुवै तो भगवान बधाय देवै पण घासलेट सूं भगवान रो कांई काम पड़ै? बो धीरै-धीरै आगै चालण लाग्यो अर छेवट मांडैवाळो घर आयग्यो। जाणै प्रहलाद रै हेला माथै भगवान सांपरतीक पधार्‌या।

सगळा मजूरी लेय’र आपरै घर कानी वहीर हुया। सूरज रो फानूस बत्तियां भेळो जमा हुयां मजूरी मिळगी। उण तो उठै सूं सोकड़-सी मनाई। बाजार सूं निकळती बगत उणरा पग मतै अेक जनरल स्टोर माथै ढबग्या। उण तुरंत सुगंधित तेल री अेक शीशी मोल लीवी।

कोठड़ी में बैठी उणरी घरवाळी उडीकै ही। सूरज रै हाथ में शीशी देख’र उणरी कळी-कळी खिलगी। उणरी फरमाइश पूरी हुयां बा अणूती राजी ही। उण अपणायत रा सुर में पूछ्यो-रोटी तैयार है। लेय आवूं? सागै जीमलां।

-भूख आथ कोनी! सूरज होळै-सीक बोल्यो।

रात खासी बीतगी ही। मोहल्ला में सोपो पड़ग्यो हो। सूरज री बहू अंधारै में शीशी रो ढकणो खोल’र माथै में अर मूंढै पर तेल लगाय लियो अर राजी-राजी सूबण नै गई। पण दरी माथै आडी हुवतां बोली-थे म्हारो कित्तो ध्यान राखो अर अंधारै रै घरधणी सूं व्हालो दिरावण सारू आपरो मूंढो आगै कर्‌यो.... पण दूजै खिण बड़बड़ाई-अरे घासलेट कठै बासै? उणरै मन में अणूती तळतळावण-सी लागगी। बा घासलेट री बदबू नै पांतरण री कोशिश करण लागी पण घासलेटी बास उणरै हेज माथै कब्जो करती-सी लखाई। उणनै बात घणी आंझी लागी। उण सूरज रै गिलगिली करतां पूछ्यो-यूं गूंगा-मूंगा कांई सूता हो। म्हैं पूछूं, घासलेट री बदबू कठै सूं आवै?

सूरज रै मूंढै सूं ऊंडा सुर में पड़ूत्तर सुणीज्यो जाणै कोई कूवै सूं बोलतो हुबै—आ घासलेट री बदबू नीं, खुशबू है जिकी म्हारी नाड़ां मांय सूं आय रही है।

स्रोत
  • पोथी : उकरास ,
  • सिरजक : चंद्रप्रकाश देवळ ,
  • संपादक : सांवर दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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