कोई आठ-साढी आठ बजी होसी। म्हैं म्हारै कमरै मांय बैठ्यौ विनय री दियोड़ी बाइस्कोप ध्यांन सूं देखै हौ। पूजाघर मांय सूं आवती टाली री ‘टण-टण’ री टणकार कांनी म्हारौ ध्यांन नीं गयौ। बठै भगवांन बदरीनाथ री लीला रा गुणगांन करती मां, वां रै ध्यांन में मगन ही।

अचांणचक आंगणै सूं मां रा बोल सुणीज्या, “अरे बदरू, अेकलौ भगवांन रा दरसण कर रैयौ है कांई? ल्या, म्हनैं तौ दरसण करवा भगवांन बदरीनाथ रा...!” कैवती-कैवती मां म्हारै कमरै कांनी आवण लागी।

म्हारै हाथां में थाम्योड़ी ढोलकी जैड़ी बाइस्कोप सूं सैंग सौवणा सीन अदीठ होयग्या। काळजौ धक-धक करै लाग्यौ। मूंढै सूं बोल नीं फूट्या। जीभ जांणै ताळवै चिपगी होवै। पण बाइस्कोप नैं म्हैं म्हारी हथेळियां मांय काठी भींच राखी ही। अेकदम काठी।

मां नैं म्हारी इण दुरगत रौ दर लखाव नीं होयौ। नेड़ै आयनै कैवण लागी, “कित्ता वरस हुया भगवांन बदरीनाथ रा दरसण कर्‌यां नैं। ... थारै जलम सूं पैलां, पैली बार ‘वां’ रै सागै बदरीनाथजी री जातरा अर दरसण कर’र बेटै रै जलम री मनौती मांगी ही, उणीं मनौती रै परताप सूं थारौ जलम होयौ, जद तौ थारौ नांव बदरी राख्यौ है।”

मां री आंख्यां मांय विगत, चितरांम री दांई पड़बिंब होवतौ जाय रैयौ हौ अर म्हारी दीठ सूं आगत-विगत सैंग अदीठ होयग्या हा!

थोड़ौ सांस लेयनै मां फेरूं बोली, “जद तूं छोटौ-सो हो-औ कोई सात-आठ साल रौ, तद थनैं धोक दिरावण सारू बदरीनाथ गया हा, उण टेम ढोलकीवाळी बाइस्कोप म्हैं थनैं दिराई ही। कित्ता दिनां पछै थूं इणरी चाबी घुमा-घुमा’र भगवांन रा दरसण करतौ रैयौ अर म्हैं दरसणां सूं दूर नीं रैयी, पण थारै ब्यांव रै बाद नीं तो ढोलकी थनैं चेतै रैयी अर नीं म्हनैं ई। आज अचांणचकै थारै हाथां में इणनैं देख’र लारली सैंग बातां अेक-अेक करनै याद आवती जाय रैयी है। भगवांन बदरीनाथ री अखूट किरपा है आपां पर, ल्या थोड़ा दरसण म्हैं करल्यूं भगवांन रा!” कैय’र मां म्हारै कांनी हाथ बधायौ।

“नीं-नीं, म्हैं कोनी दिखावूं...इणमें कीं कोनी... रील कोनी...आ तौ अेकदम खाली है।” म्हैं अटक-अटक’र मां साम्हीं पैली बार झूठ बोल्यौ अर मां रौ कैयौ अणसुण्यौ कर्‌यौ। इणरै अलावा म्हैं करतौ कांई? कोई बीजौ मारग तौ नीं हौ। म्हैं मां नैं किंयां कैवतौ, जिणनैं बा भगवांन बदरीनाथ री ढोलकी समझ रैयी है, बठै सूं ल्यायोड़ी बा ढोलकी नीं है, जिणमें बदरीनाथ री लीला रा दरसण हा। तो गोआ सूं म्हारै खातर खासतौर सूं विनय री ल्यायोड़ी बा ढोलकी है, जिणमें गोआ री लीला रा दरसण करायोड़ा है। आं लीलावां नैं देख’र मां री आस्था नैं आघात पूग सकै। कठै भगवांन री लीला अर कठै गोआ-लीला! साफ-सुथरी, निरमळ पांणी सूं छल्योड़ी गोआ री नीली-नीली झीलां जैड़ी ‘न्हावण-तळायां’ मांय उघाड़ी न्हावती नवयुवतियां रा मादक दरसाव मां रै मनसूबां माथै पांणी फेरण रै अलावा और कांई कर सकैला? नीं, नीं, मां नैं बरज’र म्हैं कोई गळती नीं करी है... जे मां आं दरसावां नैं देख लेवती तौ अनरथ होय जावतौ। मां रै मन रूपी मिंदर में बिराज्योड़ी म्हारी निकळंक नै सौवणी छिब कळंकित अर विडरूप होय जावती, जिकी म्हारै खातर बरदास्त सूं बारै री बात होवती।

थोड़ी ताळ तांई तो मां मूरत बण्योड़ी ऊभी रैयी। म्हारी बात माथै मां नैं पतियारौ नीं हुयौ। बोली, “ल्या, देखूं तो सरी, सांचाणी खाली है नीं?”

“हां खाली है, इण में कोई रील नीं है, आज सिंझ्या तांई बजार सूं रील ल्याय’र इण में लगाय देस्यूं, पछै मोकळा दरसण कर्‌या।”

“तौ इणनैं दिखावण में कांई हरज है?”

“हरज है?” म्हैं कीं तेज सुर में बोल्यौ।

मां म्हारै इण रूप माथै हाक-बाक होयगी। उणनैं अैड़ी तौ सुपनै में आस नीं ही कै उण रौ प्राणां सूं इधकौ अेकाकी बेटौ बदरी, कदैई आपरा मां रौ निरादर इण भांत कर सकै? पण सांच आपरी सगळी कड़वाहट लियां साम्हीं ऊभौ हौ। छेवट मां कद तांई उण माथै पतियारौ नीं करती? अर जियां मां नैं पतियारौ होयौ, बा सिंग्याबायरी-सी सीधी पूजाघर मांय जाय’र भगवांन बदरीनाथजी रै आगै बिछायोड़ै आसण माथै बिछगी। उणरी आंख्यां सूं चौसारा चालै हा, पण म्हारौ ध्यांन तौ और किनै हौ।

थोड़ी ताळ तांई म्हैं गतागम मांय उळझ्योड़ौ रैयौ। अचांणचक दीवारघड़ी रौ पैंडुलम टणकारा देवणा सरू कर्‌या। म्हैं घड़ी कांनी जोयौ। दिनूगै रा दस बजग्या हा। आज दफतर जावण रौ मन नीं हौ, इण खातर बाइस्कोप नैं भगवांन रै लारै लुकाय’र छुट्टी री अरजी लिखी अर उणनैं दफतर मांय दियां पछै सीधौ खिलौणा-बजार जाय पूग्यौ। बठै री अेक-अेक दूकांन खंगोळ नांखी, पण बदरीनाथ रै दरसणां वाळी ढोलकी रा दरसण कठैई नीं होया। हां, अेक-दो दूकांनां में उण भांत रा अस्लील दरसावां वाळी ढोलकियां जरूर निगै आई, जिण भांत रा दरसाव गोआ सूं ल्यायोड़ी विनय री ढोलकीनुमा बाइस्कोप में हा। भगवांन बदरीनाथ री लीलावाळी ढोलकी रौ बजार में कांई कांम? नीं मिळणी ही अर नीं मिळी।

दिन-भर डबक’र आथण घर कांनी टुरती वेळा म्हारै माथै में बटीड़ा लाग रैया हा। अैड़ी उदासी म्हैं आज सूं पैली कदैई नीं भुगती ही। मारग मांय मां रौ उदास चैरौ उपारी आंख्यां में बार-बार उभरतौ जाय रैयौ हो, पतौ नीं दिन-भर में मां कीं खायौ-पीयौ है कै भूखी-तिसी बैठी है? घरवाळी नैं इण बाबत कीं बताय-समझाय आवतौ तौ बा आप सैंग संभाल लेवती, पण उण बगत बा घर सूं बारै ही। इणी सोच-विचार साथै हूं घर में बड़्यौ। पूजाघर कांनी निजर जावतां म्हारौ सांस जांणै ऊंचौ चढग्यौ होवै। म्हैं डाफाचूक होयग्यौ। जिण बात रौ डर हौ, बा होयी। मां रै हाथ में वो इज बाइस्कोप हौ, जिकै री चाबी घुमा-घुमा’र उणरै मांयलै दरसावां नैं मां टोर बांध्यां देख्यां जावै ही। म्हारी उण गत नैं म्हारौ जीव जांणै। मां रै साम्हीं म्हारी पोल उघड़गी ही।

मां कांई सोचसी? इणीं विचार सूं म्हारौ माथौ भंवै लाग्यौ। कमरै में बड़तां म्हैं माथौ पकड़’र मांथै माथै बैठग्यौ। घरवाळी सूं म्हारी गत छांनी नीं रैयी। रसोईघर सूं चाय बणायनै ल्याय’र म्हारै हाथां में थमांवती थकी बा दिन-भर रौ लेखौ-जोखौ लेवण लागी, “सारै दिन कठै गयोड़ा हा? मुन्नै नैं दफतर भेज्यौ, बठै आपरी छुट्टी री अरजी दियोड़ी ही। दिनूगै मां नैं कांई कैयग्या हा? अै दिन-भर रोवता रैया।” घरआळी रै ओळमैं में खीज’र धिकार रा भाव हा, पण म्हैं उणरी बातां नैं अणसुणी करतौ-सो सवाल कर्‌यौ, “मां जीम तो लीनी होसी?”

“हां, जीम तौ लिया, पण अबार थोड़ी ताळ पैलां ई-जद तीरथांवाळी ढोलकी मिळी तद इण रा दरसण कर्‌यां पछै...”

“तीरथांवाळी ढोलकी?” म्हनैं अचूंभौ होयौ, “तौ कांई मां नैं बा पुरांणी बदरीनाथ दरसणवाळी ढोलकी मिळगी?”

म्हारी जिग्यासा माथै घरवाळी ध्यांन नीं दियौ। बा आपरी कैयां जावै ही, “थांरै गयां पछै म्हैं बारै सूं आई तौ पूजाघर सूं मां री हिचक्यां सुण’र म्हैं मां कनैं गई। मां रोवै हा। बूझ्यौ तौ बोल्या, “जकै भगवांन रा दरसण म्हैं बदरी नैं ठेठ वां रै धांम ले जाय’र करवाया, आज बां रा दरसण वो अेकलौ करतौ रैयौ अर म्हनैं दरसण करवाणै सूं मना कर दियौ... इणीं दिन खातर म्हैं इणनैं जलम दियौ हौ कांई? अब म्हारै जीवण में कांई भदरक! म्हारौ तौ इण घर सूं अबै अन्न-जळ रौ सीर-संस्कार चूकग्यौ।”

“मां नैं किणी भांत मना’र म्हैं वां रै ढोलकी वाळै भगवांन नैं सोझ्या, पण वै कठैई निगै नीं आया। तद म्हैं सोच्यौ, थोड़ी ताळ भागवत सुणाय देवूं, तौ मां रौ मन कीं हळकौ होवै।”

“अरे! भागवत लारै तौ म्हैं उणनैं लुकोई ही।” म्हारै मूंढै सूं बोल निकळ्या। काळजौ फेरूं धक-धक करै लाग्यौ।

“हां, भागवत उठावतां म्हनैं ढोलकी निगै आई अर तद भागवत नैं पाछी उणीं ठौड़ मेल’र बा ढोलकी म्हैं मां नैं ले जाय’र देय दी। इणरा दरसण कर’र मां जीम्या है अर इणरै पछै ओजूं तांई लगोलग दरसण करता जाय रैया है।”

म्हारै माथै में वळै बटीड़ा ऊपड़्या। अणहोणी होणी ही। उणीं बगत कमरै रै बारणै आगै ऊभी मां रै गळगळै कंठां सनेव सूं छल्योड़ा बोल इमरत री बिरखा करता-सा लखाया... “थूं आयग्यौ बदरी, थूं तो भगवांन री लीला रा दरसण कोनी करवाया, पण बीनणी करवाय दिया... कित्ती सौवणी लीला है भगवांन री— सांत-निरमळ जमना-जळ मांय गोपियां सिनांन कर रैयी है अर वां रै गाभां साथै गोप-बालकां मांय इण भांत भगवांन अदीठ होयग्या है कै कठै निगै नीं आवै। म्हैं सारै दिन सूं वां नैं सोध रैयी हूं, छेवट जासी कठै? कठै तो निगै आवैला ई? आखर गोप्यां नैं कद तांई छकांवता रैवैला?”

मां रा बोल सुण’र म्हारै जीव में जीव आयौ।

“ठा नीं गोपियां नैं भगवांन कद तांई छकांवता रैवैला, पण म्हनैं तौ आज दिन-भर खूब छकांवता रैया...।” म्हैं बोल्यौ।

“सैंग भगवांन री लीला है, वो भोत किरपाळू है।” कैय’र मां आपरा दोनूं हाथ सरधा सूं जोड़’र माथौ निवाय दियौ।

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : मदन सैनी ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै