रूपां नैं आदमी री तो रत्ती-भर भी ल्होड़ कोनी ही। बा जिकै दिन सूं हुसैनी रै धकै चढी, तिकै दिन सूं ईज उण रै कनैं दिनभर में छप्पन जणा आवता अर छप्पन जावता! पण आज भोजै नैं देखतां जाणै उण रो मन क्यूं बिलखो-बिलखो हुयग्यो अर हुसैनी आळो कोठियो—जिकै में बा दस बरसां सूं आपरो जमारो गाळती आई ही, अधावणो लागण लागग्यो।

रूपां ओबरियै रै कूणै में बैठी-बैठी आापरै मन में नरक अर हुसैनी आळै कोठियै री तुलना करी। उण नैं कोठियो घोर नरक रै तपतकुंड सो लखायो, हुसैनी रो बणाव साख्यात जमराजजी री दूती सो दीस्यो अर उठै आवणिया-जावणिया आदमी इण नरककुंड रा कीड़ा! अै कीड़ा नित-हमेस किलबिलावता-किलबिलावता आवै अर रूपां रै डील नैं चूसै। रूपां भी आप रै भाग रो लेख जाण’र बां कीड़ां नैं राजी-रजा आपरो डील सूंपती रैवै।

भोजो भी बां किलबिलावणियां कीड़ां आळै दाईं जुळबुळतो उठै आयो हो, पण रूपां नैं कीड़ो, बीजोड़ै कीड़ां री पंगत सूं कईं न्यारो-जुदो लाग्यो। इण ओबरियै में बड़तां बैं नईं तो खाऊं खाऊं कर्‌यो अर नीं खावण खातर रूपां रै ओळा-दोळा गिड़का काढ्या। बो आवतो ओबरियै आळै कूणै में ढाळ्योड़ै माचै ऊपर बैठग्यो। माचै रै सिरांथियै कानलै आळै में एक फूट्योड़ी सीसी में बाट घाल’र बणायोड़ी चिमनी जगती ही, जिकी में चादणो तो कम अर धूंवो ज्यादा निकळतो हो। भोजो कई ताळ तो बैठ्‌यो-बैठ्‌यो चिमनी कानी देखतो रैयो अर पछै आपरै खूंजै मांय सूं तीळ्यां आळी डिब्बी काढ’र कान मांयलै बीड़ी रै टुकड़ै नैं सिलगायो। बीड़ी रै टोटै नैं सिलगायां उपरांत बो तीळी नै फैंकी कोनी, हाथ सूं मसळ’र बुझायली अर उणसूं चिमनी री बाट मंदी करण लाग्यो! वृत्तांत देख’र रूपां रै मन में आपरै मोट्यार री याद जागगी अर बा कुणै में बैठी-बैठी डुसकै चढगी।

रूपां नैं इण तरै डुसकै चठी देख’र एक बार तो भोजो मन में डर्‌यो अर पीसा मुफ्त में जावण री चिंता करण लाग्यो, पण दूजै खिण बो माचै सूं उत्तर’र रूपां रै कनैं गयो। बोल्यो— “गैली हुयगी काईं! जे नीचै बैठी हुसैनी सुण लियो तो...!’

रूपां आापरो माथो भोजै री छाती ऊपर राख अर डुसका खावती बोली—

“गैली हुती तो कोनी जवान! पण लोगां गैली सूं भी आगै बणाय न्हाखी, जिकै रै प्रताप आज दस बरसां सूं हूं नरक भोगूं हूं!”

“पण, हूं इण में थारी काईं मदद...?”

“मदद जरूर कर सकै है, जवान! जे तूं म्हारी नारकी छुडाय देवै तो... तो...!”

“पण, हूं जात रो भी तो ऊजलो कोनी अर म्हारै कोई बिजनेस-ब्योपार, दिन भर रिक्सो...।”

“म्हनैं-सब मंजूर है! रोजीनै-रोजीनै रै किलबिलावतोड़ां कीड़ां सूं तो गैल छूट जासी! कोई एकरी बज’र रैवण रो...!”

“एक री बजर रैवण रो नीं, हूं तनैं म्हारै काळजै री कोर बणाय’र राखसूं, पण...?”

“पण-वण काईं कोनी! हूं आज च्यारेक बज्यां रै टांकड़ै अठै सूं निकळ’र चोराहै आळै पुळ रै नीचै आय जासूं...।”

“अर, हूं तनैं आगै रिक्सो लियां त्यार मिलसूं”

“बात पक्की...?”

“हां, हां लालचुट्ट पक्की? मरद रो जाब अर बाप कदेई दोय हुवता सुण्या है?”

“रूपां भोजै रै साथै रिक्सै में बैठ’र खांडकी बस्ती ढूकी, जितरै घंटाघर आळी घड़ी टाणण... टणण... करती च्यार ठरका बजाया। पोहर-ड्योढ-पोहर रो झुटपुटो। भोजै रिक्सै नैं एक टूट्योड़ै सै फळसै रै आगै लाय’र ऊभो राख्यो। दोनूं जणां फळसो खोल’र घर में बड़्या। भोजै आपरी कंदोड़ी सूं बांध्योड़ी झूंपड़की आळी कूंची खोल’र रूपां नैं झलाय दी अर आप रिक्सै नैं लारली गडाळ में घालण नैं चल्यो गयो। रूपां कूंची सूं झूंपड़की री ताळकी खोलण नैं खसी, पण अंधारै रै कारण कूंची ताळकी में लागी कोनी। जितरै भोजो रिक्सै नैं गडाळ में घाळ’र आयग्यो। बो तीळी जगाय’र चांदणो कर्‌यो। चांदणै सूं ताळकी में कूंची सोरी-सोरी लागगी। दोनूं जणा साथ झूंपड़की में बड़या। बड़तां भोजै एक तूळी भळै सिलगाई। झूंपड़की रै डावै पासी एक माचो अर उण रै ऊपर पांच-च्यार फाट्योड़ा गूदड़ा रूपां नै दीस्या। बा उण गूदड़ां मांय सूं एक गूदड़ो उठाय’र आपरै हेटै बिछा लियो अर उणरै ऊपर आडी हुयगी। भोजो भी फळसो ढक’र माचलियै ऊपर आय’र पड़ग्यो। रात तो सगळी बीत ईज चुकी ही, नींद तो कांयरी आवै पण दोनूं जणा कमर पाधरी करणनैं आप-आपरी जगां बोला बोला सूता रैया।

भाख धमी। मुंह सोजळो हुयो। चिड़ियां रा चैकारा अर कागलां री कांव... कांव... सुण’र रूपां उठ बैठी। उठतां बैं अठीनैं-उठीनैं पाणी रै ठांव री निगै करी—माचै रै पगांथियै कानी एक खांडी सी चुकलड़ी अर कनैं एक मुच्योड़ो सो लोह रो डबलियो पड़्या। बैं उठ’र चुकलड़ी नैं खांगी कर’र लोह आळो डबलो भर्‌यो अर कुरळो करणै सारू झूंपड़की रै कंवळै आय बैठी। कुरळां रै खुळखुळाट सूं भोजै री भी आंख खुलगी अर बो माचै रै ऊपर उठ’र बैठग्यो। रूपां आप कुरळो कर’र पाणी आळो डबलो भोजै नै झला दियो।

सूरज भगवान री किरणां धरती ऊपर सोनो बिखेरती अरस सूं उतरी। भोजो कुरळो दांतण कर परो’र चाय रो सामान लावण खातर दूकानां कानी बूहो गयो। रूपां आंगणै मैं ऊभ’र एक मींट बस्ती ऊपर फैंकी—बस्ती में मींट पूगै जितरी भुंय में झूंपड़क्यां झूंपड़क्यां। बस्ती रै आथूणै कानी नेड़ो एक गंदो नाळो हो, जिकै री बदबू रूपां रो भेजो चीरण लागी। बा पाछी झूंपड़की में बड़गी अर अठी नैं उठीनैं झांक्यो—माचै रै च्यारूंमेर बीड़्यां अर सिगरेटां रां लारला अधबळ्‌या टुंडिया बिखर्‌योड़ा पड़्या, डावै पासै चूल्हो राख सूं थड्डा-थड्ड भर्‌येड़ो, सामलै पासी एक छोटो सो कोठलियो जिकै रै ताळछी मार्‌योड़ी अर कनैं दोय-च्यार टूट्या-फूट्या पींपा अर माटी रा बरतण पड़्या। रूपां बुहारी लेय’र झूंपड़की नैं बुहारण नैं ढूकी। बुहारै में कूंडो खंड कचरो अर कूंड़ो खंड चूल्है री राख भेळी हुयगी, जिकै नैं बा एक अधफूटै पींपै में घाल’र मेलदी।

भोजो दूकान सूं चाय खातर-चाय, चीणी अर दूध लेय’र पग रो पग पाछो आयग्यो। आवतै पाण बैं चूल्हो जगाय’र चाय चाढी। चाय तैयार हुई जितरै रूपां झूंपड़की रै आगलो आंगणो भी झाड़-बुहार’र साफ कर दियो। दोनूं जणां निरवाळा बैठ’र चाय पी। रूपां नैं आज री चाय रो स्वाद अलग लाग्यो।

चाय पीयां पछै भोजो तो चुकलड़ी लेय’र टूंट्यां कानी बुहो गयो अर रूपां झूंपड़की रै आगलै आंगणै में कार्‌यां जमावणी सरू करी। भोजै रै आंगणै में ओपरी लुगाई नैं ऊभी देख’र दोय-च्यार पाड़ोसण्यां कान काढ्या अर मुंहडा मचकोड़ मचकोड़’र पाछी आप-आपरी झूंपड़क्यां में बड़गी। रूपां आपरी धुन में मुरड़ घाल घाल’र कार्‌यां जमावती रैयी। उण रै खुड़कै सूं एक-एक कर’र बस्ती री आठ-दसेक छोर्‌यां भेळी हुयगी। छोर्‌यां रूपां नैं मींट गडाय-गडाय’र इयां देखै, जियां चिड़ियाघर में लोग अजूबै जिनावर नैं देख्या करै है। छोर्‌यां रो ढूळ देख’र रूपां नैं आपरै मुकलावै आळो दिन याद आयग्यो। उण दिन भी सगळै बास री लुगायां अर छोर्‌यां रो ढूळ रो ढूळ उण नैं देखण सारू आयो हो— “अरे! मामी थारै को लागै है नीं, थारै तो काकी लागै है। म्हारै काईं लागै है, अे? थारै लागै है माथो! तनैं इतरो ठा कोनी कै बड़ै भाई री बहू काईं लाग्या करै है?”— आवाजां रूपां रै कांनां में गूंजण लागी, पण आज... आज आई जिकी छोर्‌यां कै तो गूंगी है अर कै गैली...! रूपां आपरै बिचारां में मगन हुयोड़ी कार्‌या कूटती जावै—थप... थप... थप...!

छोर्‌यां भोजै नैं आवतो देख लियो अर सिखरै नै देख’र ज्यूं चिड़कल्यां पट्टी हुया करै है, ज्यूं बै सगळी री सगळी पट्टी हुयगी।

भोजै चुकलड़ी उतारतै रूपां नैं पूछ्यो—“अै छोर्‌यां क्यूं कर भेळी करी ही, अे...?”

“भेळी करण नैं कुण म्हारो बाप तेड़ै गयो हो, आपै आय-आय’र ऊभगी जद हूं किसी धक्का देय’र काढती!”

“धक्कै धुक्कैरो तो मनैं ठा को है नीं, पण राखीजै निगै, इण बस्ती रा लोग....।”

“म्हारै लोगां सूं काईं लेवणो-देवणो है, म्हारै तो थे...!”

“अरे भाई! म्हें तो हां जिका हां ईज, पण अठै रा लोग बडा बिकट है। मिनख रै जायोड़ां नैं भी चिड़ी बणाय’र फुर्र....।”

“बै चिड़्यां बणण आळी दूजी, देवी तो कई भोपा तार’र आई है।”

“आ तो तूं जाणै, भाई! म्हैं तो तनैं अठै री राय-रीत बताय दी है।”

रूपां उडीकती-उडीकती कायी हुयगी, पण भोजो तो कठै नेड़ो-नेड़ो नईं बावड़्यो। सदा तो बो च्यार बजतां आपरै रिक्सै नैं लेय’र घर ढूक जाया करतो, पण आज तो साढी च्यार-पांच रै अड़ै-गड़ै बजण लागग्या, बो नईं आयो जिको ईंज आयो। रूपां आंगणै में ऊभ’र अठीनैं-उठीनैं सगळै मारगां कानी जोयो। रिक्सै री नैडी-निड़ास छींया भी नईं दीसी जद बा खुदा खुद चुकलड़ी उठाय’र टूंट्यां कानी टुरी। टूंट्यां किसी भोजै नैं उडीकती? बै तो आपरी टेम खुलै अर आपरी टेम बंद हुवै।

टूंट्यां रै मारग में एक चाय रो होटल हो। उण होटल में च्यार-पांच छोरा बैठ्या खिलबत करता हा। रूपां नैं टूंट्यां कानी जावती देख’र होटल मांयलै एक छोरै आपरै मुंहड़ै आंगळ्यां घाल’र सीटी मारी। अचाचूक री सीटी सुण’र रूपां पाछल फोरी। इतरै में बीजोड़ो छोरो थुथको न्हांखतो बोल्यो—“वाह भाई, वाह! माल तो हजारां मांय सूं टाळै जिसो है।”

रूपां आपरी चाल में चालती रैई। बैवती-बैवती मन में विचार्‌यो—“हे राम! म्हैं तो जाण्बो हो कै अै नरक आळा कीड़ा तपतकुंड में किलबिलावता हुसी? पण अै तो जगां-जगां पड़्या किलबिलै है। इणां कीड़ोलियां नैं हरेक लुगाई में लुगाई रै सिवाय बीजा सैंकडूं गना—मा, बैन, मासी, भूवा, दादी, काकी, मामी, नानी इत्याद मांय सूं एक भी को सूझै नीं।” विचार विचार में टूंट्यां आयगी।

टूंट्यां ऊपर अणमेधा री भीड़ लाग्योड़ी ही। आदमी, लुगायां, छोरा अर छोर्‌यां चोमासै री रुत में खेतां रै बाहर कर फाको किलबिलै ज्यूं किलबिलै। रूपां भी टूंटी री लाइन में लाग’र ऊभगी। रूपां नैं लाइन में लागी देख’र टूंट्यां ऊपरली सगळी लुगायां पाणी भरणो तो भूलगी अर रूपां रै कानी जोवण लागी। जोवतां-जोवतां उणां मांय सूं एक जणी मुंडो मचकोड़’र बोली—“हां, तो लायो है भोजियै रो बच्चो...।”

बीजोड़ी, जिकी रूपां रै आगलै पासी ऊभी ही, रूपां नैं आपरै कनैं ऊभी देख’र कैयो— “थोड़ी अळगी सिरक’र ऊभ, नखरो तो म्हानैं दीसै है।”

तीजोड़ी नाक रै आंगळी देय’र बोली— “पातर जात नखरो नईं करसी तो बीजो काईं...?”

चोथोड़ी— “हैं! पातर!”

पैलड़ी—“लो अे बाई? थांनैं अजै ताईं पतो कोनी, रातै कोयली रो बाबो कैवता हा कै भोजियो कोई पातर नैं बहकाय’र लायो है जिको टाबरां-टूबरां री निगै ईज राख्या।”

बीजोड़ी—“हां बाई! बात तो कोयलड़ी रै बाबै कैयी जिकी सोळै आना खरी है, अैड़ी रांडां रै किसा गना....!”

तीजोड़ी बिचाळै बात काट’र बोली— “अैड़ी रांडां किसा घर बसाय’र निहाल करै है, जणै-जणै रो चाटो चाट्योड़ो...”

रूपां सगळियां री बातां सुणती रैयी अर महादेव जी काळकूट नैं पीयो ज्यूं अपमान री घूंट नैं गिटती रैयी। मन में सोच्यो— “काईं अकै री बण’र रैवण आळियां रो सोचणो-विचारणो अैड़ो हुवै है? इणां सूं तो म्हां हजारां री बण’र गुजारो करण आळियां रो मन लाख दरजा ऊंचो है। अै सतियां? जिकां मांय सूं आधी सूं घणी नैं हुसैनी आळै कोठै ऊपर गिड़का काढ़तियां नैं खुद देख चुकी हूं, जिकी आपरै मोट्यारां नैं धत्तो बताय’र मजदूरी करती फिरै! इणां सतियां रा भरतार सारै दिन धूड़ खावता फिरै, जिकां नैं म्हे पातर कैयीजण आळियां आपरै हिवड़ै में जगां देवां, नईं तो कमसूं कम राजी तो कर’र ईज काढां! भगवान री बणायोड़ी सिस्टी, भगवान री मरजी सूं हालै, पण भगवान री सगळां सूं बड़ी संतान, जे आपरै अंवळै मारग नैं छोड़’र सही मारग ऊपर हालणो चावै तो उण नैं सहारो देवण लारै तो धूड़, पण बळ्योड़ै ऊपर लूण भळै छिड़कै।”

दिनूगै रै पोहर रा लोग सूत्या उठ्या नीं हा, जितरै कोई भोजै री झूंपड़की रो आडो खड़खड़ायो। रूपां अर भोजो अजै ताईं सूत्या ईज हा। आडै री कड़ी बाजती सुण’र रूपां री आंख खुलगी। बा भोजै नैं झंझोड़’र जगायो। भोजो उठ’र बैठ्यो हुयो। रूपां उण नैं बतायो कै बारलो आडो कोई भचीड़ै है। भोजै आपरो तहमद सावळ बांधतै, आडो खोल्यो। आगै देखै तो पुलिस रा च्यार जवान बारणै आगै ऊभा! भोजै बां नैं देख’र रामा-स्यामा कर्‌या अर मांयलै पासी बैठण रो कैयो। पुलसिया मांय बड़तां माचै ऊपर टंग’र बैठग्या। भोजो भी माचै रै कनैं बैठग्यो। रूपां कोठलियै आळै कुणै में भेळी हुयोड़ी बैठी।

पुलसियां एक बिदामी रंग रो कागज काढ़’र भोजै नैं बांच’र सुणायो कै—

“थारै ऊपर ३७६ (चोरी) रो एक मुकदमो थारौ नं० में कालै दर्ज हुयो है।”

मुकदमै रो नांव सुणतां भोजै रो मुंडो धोळो-फट हुयग्यो। बो अटकतो-अटकतो बोल्यो— “बापजी! कालै दिन रा तो म्हैं सहर कानी मुंडो को कर्‌यो नीं!”

“आ बात तो तूं थाणैदारजी नैं कैयोजै। म्हांरै कनैं तो देख, वारंट है अर वारंट री तामील करणी...।”

“पण, जद हूं सहर गयो कोनी तो मुकदमो दर्ज हुयो क्यूं कर?

कोई न्याव!”

“देख भई! न्याय-तपावस री बात तो अदालत में हुसी। म्हारै कनैं तो जिको हुकम है, उण री तामील करणी पड़सी। उठ, चाल, देरी हुवै! अरे हां, तो रिक्सो है नीं, काढ लाव, खुरड़िया खोतरता क्यूं हालां!

भोजो रिक्सो लावण खातर झूंपड़की मांय सूं बारै निकळ्यो। लारै रा लारै बै च्यारूं जणां भी उठ’र बारै निकळण लाग्या, जितरै बां मांय सूं अकै जणै री मींट, कोठलियै रै कनैं भेळी हुयोड़ी रूपां ऊपर जाय पड़ी। बैंरै कदे पैलां रूपां नैं देख्योड़ी हुसी, पाछो घिर’र बोल्यो— “अच्छा! आज-काल अठै ठाठियो जमा राख्यो है? ठीक है—ठीक है, कोई घाटै रो सौदो कोनी! गाजर आळी पूंगी है, बाजै जितरैं तो बजावणी अर नईं बाजै तो तोड़ खावणी। पण म्हां गरीबां रो भी कोई ख्याल रखावो। कैवो तो आज सिंझ्या ई...।”

जितरै भोजो रिक्सै नैं गडाळ मांय सूं काढ लायो। पुलिस आळा च्यारूं जणा ऊपरोथळी चिणीज'र रिक्सै ऊपर टंगग्या। भोजो रिक्सै नैं खींच’र बारै निकळग्यो।

रूपां इण घटना सूं सैंगी-बैंगी हुयगी। रोटी री बेळा टळती जावै, पण रूपां तो अजै ताईं चूल्हो तक नईं सिलगायो। सिलगावती भी किण रै खातर? जीमण आळै नैं तो लोग फांद’र लेयग्या अर मरजी में आसी जद छोडसी। पण... पण सिंझ्या हुवतां, बै कीड़ोलिया तो उण नैं चूंटण सारू जरूर आसी। पण अकै री बण’र रैवण आळी हूं रूपां भलै किसै मुंडै अकै री बाजसूं! हे भगवान! काईं थारी सिस्टी में कठै अैड़ी जगां कोनीं जठै इण कीड़ोलियां री पूंच नईं हुय सकै।” रूपां री आंख्यां मांय सूं आंसुवां री चौसरी लड़ियां छूटण लागी। बैं आंसुवां रै समंदर में झूलती निस्चै कर्‌यो कै— “सिंझ्या रै पोहर रो बो कीड़ोलियो तो जरूर आसी, इण में रत्ती भर भी फेर-सार नईं है, आवतां उण पापी रो नाक किरड़...। पण नईं, नईं, बात भी फकत सोचण री है, करण री नईं! कियां, रांड-रंडवा मूंडा मचकोड़-मचकोड़’र बातां बणासी— पातर ठहरी ओ! पातर आपरो लखण कद छोड़ै? पैलां तो बाप नैं बुलाय लियो हुसी पछै सत्ती बणण रै खातर बापड़ै रो नाक। नकटो तो बापड़ो बज जासी अर हूं, म्हारी तिरी-तिरावण आळी गरीबणी, पातर गिणीजसूं पातर! जिकी नैं इण धरती ऊपर कठै दोय-पगां नैं ठोड़ कोनी।”

रूपां उठै सूं उठी अर लोह आळो डबलियो पाणी सूं भर’र झूंपड़की सूं बारै आई। झूंपड़की रो आडो ढक’र ताळकी मारी अर झूंपड़की रै छज्जै में खसोल दी! डबलियो उठा’र गंदोड़ै नाळै कानी टुरबहीर हुई। नाळै रै कनैं पूंचतां बैं एक’र पाछल फोर’र खांडकी बस्ती कानी जोयो। सूरज मेर बैसण दी बैळा। बधतै सूरज री किरणां बस्ती री झूंपड़क्यां ऊपर पड़ै। बै किरणां रूपां नैं लाय री लपटां सी दीखी। बा गंदोड़ै नाळै आळो पुळ पार कर सहर कानी टुरगी।

स्रोत
  • पोथी : आज रा कहाणीकार ,
  • सिरजक : मूळचन्द्र ‘प्राणेश’ ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थान भासा प्रचार सभा ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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