अेक बांणियौ मूंजी इसौ हौ के नीं उणरै मूंजीपणा री किणी सूं मिसाल दी जा सकै अर नीं उणरै मूंजीपणा रा बयांन किया जा सकै। आपरै ढाळा रौ सगळा चौखळा में वौ अेक बंदौ हौ। सैंग दिन जागतौ रैवतौ जित्तै पूंजी रै लारै बावळौ रैवतौ हौ, पण वौ रात रा नींद में ईं धन-धन बरड़ावतौ। सोनौ-सोनौ वेलतौ। सपना में उणनै सोना-चांदी रा भाखर निगै आवता। नदियां, झरणा, नाडी-नाडिया अर वाळा-खाळा उणनै चांदी रै राळा ज्यूं रळकता निजर आवता।

अेकर उणनै सोना रौ लांठौ भाखर दीसियौ। वौ बस्ती रै लोगां सूं छांनै गेंती अर पावड़ौ लेयनै सोनौ खोदण सारू वहीर व्हियौ। वौ साचांणी नींद में आपरी साळ रै मांय गियौ। ठिकांणै पड़िया जठां सूं राच उठाया, अेक गेंती अर अेक पावड़ौ। नींद में ईं सोनौ वेलतौ खांधा माथै गेंती धरनै वौ होळै सूं सिरै आडौ खोलियौ। खुड़का सूं कोई जाग नीं जावै इण सूं वौ साव धीमै-धीमै उरबांणै पगां सावचेती सूं चालण लागौ। सिरै आडौ खोलनै वौ पगोतिया टाळनै डावौ मुड़ग्यौ अर नींद में साचांणी धकै चालतौ रह्यौ। डीगी चौकी सूं गेंती-पावड़ा समेत धड़ांम हेटै पड़ग्यौ। पड़ती वगत जीमणौ हाथ नीचै दबग्यौ। भारी डील रै कारण तटाक तूटग्यौ। पड़तां ईं जोर सूं अरड़ाटौ करियौ, आंख्यां खोली— कठै भाखर अर कठै सोनौ? आपरा घर सांम्ही वौ चौकी हेटै पड़ियौ हौ। गेंती अर पावड़ौ, उणरै माथै पड़िया हा। गेंती री तीखी नोक थोड़ी लिलाड़ में बैठगी ही। धकळ-धकळ लोही छूटण लागौ। हाथ तूटनै टिरग्यौ।

हाकौ सुणनै घरवाळा हड़बड़ता जागिया। सेठां नै संभाळिया। जाब्ता सूं उठायनै मांय पिलंग माथै सुवांणिया। पाटा-पीड़ सारू नायता नै बुलावौ मेलियौ। इण पीड़ रै उपरांत सेठ तौ घड़ी-घड़ी अेक वांणी काढ़तौ— सपनौ आधौ साचौ नै आधौ कूड़ौ व्हैगौ।

सोना रा लोभ में हाथ अर लिलाड़ भंगायौ, चौकी सूं हेटै पड़ियौ, बात साची अर बाकी सोना रौ भाखर हाथै नीं आयौ, बात कूड़ी!

सेठजी टसकता जावता, किरावता जावता अर पिछतावौ करता जावता के सपनौ आधौ कूड़ौ अर आधौ साचौ व्हैगौ। जे हेटै नीं थरकीजतौ, अवस करनै ओडियां रै मूंडै खोद-खोदनै सोना रौ ढिग लगाय देवतौ। अणहूंती तेजी आयां बेचतौ, नींतर भंवारा तालकै पड़्यौ रैवतौ। पचास पीढ़ियां तांईं खायौ नीं खूटतौ!

स्रोत
  • पोथी : बातां री फुलवाड़ी (भाग-1) ,
  • सिरजक : विजयदान देथा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार प्रकाशक एवं वितरक
जुड़्योड़ा विसै