ऊमर परवाण जूण रो खरड़ो छिण, पल, घड़ी, दिन, मास अर बरसां तळै ओटीजतो जावै। पण कदैई—कदैई ठेठ बाळपणा री कोई बात आखी ऊमर नीं कझलाईजै। भोभर तळै यूं—री—यूं जगामग करती लाधै। आज तो म्हैं अेक लेखक री मरजाद निभावूं, पण वां दिनां तो फगत कोरो—मोरो पाठक हो। बांचण जोग कोई पोथी हाथै लागी नीं अर डकळ—डकळ आंख्यां सूं पी जावतो। कदास नवीं क्लास में भणतो, वां दिनां री बात है। म्हैं खुद तो घरै ई रैवतो पण बाळगोठियां सूं मिळण रो उमायो दूजै—तीजै दिन चारण—बोरडिंग रो भळाको अवस दे आवतो। सुभाव तो सगळा ई टाबरां रा न्यारा—न्यारा हुवै पण रणसीगांव रो आसकरण अेक अजब ई ओपरा सुभाव अर ओपरी बणगट रो हो। मतीरा ज्यूं गोळ सफीट माथो। लांबी चोटी। धुगधुगो डील। खीलां—ई—खीलां रुधोड़ो गोळ मूंढो। मीचरी—मीचरी आंख्यां। जाण पाचणा रो चीरो देय मांय बैठाणी हुवै। किणी सूं ई अणूती ओळखाण नीं। अेकलखोरो। बतळायां जरूर—परवाण नीठ बोलतो। आपरै ई दंद—फंद में अळूझ्योड़ो। मन करतो जणाई अेक भळभळातो काच मूंढागै धर लेवतो अर हाथां रा लटका करनै आपरै प्रतम सूं ई निरी ताळ वंतळ करतो। साथी—साईना बख लागतां ई चिड़ावता पण वो किणी री कीं गिनार ई नीं करतो। जाणै भाटा नै बतळायो हुवै। मन—मतै ई सिण—फिण मुळकतो रैवतो।
कमरां में माहोमाह घणकरी उणरी ई गांगरत चालती। सुणतां सुणतां म्हारै पाखती खासी—भली चरपरी ख्यात जुड़ती गी। वो काच में टग—टग भाळतो इण भांत आपरो उणियारो निरखतो जाणै कोई दूजो ई माणस हुवै। अर इण भांत निसंक बंतळ करतो जाणै किणी गाढा मित सूं सुरपुर करै।
अेकर फाटोड़ी चूंदड़ी रै घड़चै रंजी झाड़, काच टेबल माथै धर्यो। सांम्ही कुरसी माथै बैठ, थोड़ी ताळ तांई आपरो प्रतम निहारतो रह्यो, जाणै ओळख में आंटी पजगी हुवै। पछै होठ मुळमुळाय पूछ्यो—अबकी तिमाई में फेल कीकर हुयो?
मूंढो उतार होळै—सीक पड़ूत्तर दियो—म्हैं अेकलो ई तो फेल नीं हुयो। क्लास में आधा सूं बेसी लड़का फेल हुया।
वो आंख्यां फाड़ आकरा सुर में फटकार बताई—दूजा पड़्या धेड़ में। थनै वांरा सूं कांई वास्तो! कांई तल्लो मल्लो! घर री वळी परवाण बैवणो चाइजै। थनै ठाह कोनीं, घर में कित्ती नेन पड़्योड़ी। धापनै रोटी नीं खाय माईत थनै भणावै अर पिंडां रै कीं परवा ई नीं!
—परचा अणूता दोरा आया।
—थारै अेकला सारू ई दोरा आया? दूजा लड़का पास कीकर हुया?
—माथाफोड़ी तो घणी ई करूं। पण इम्तियान रै नांव अैड़ी धड़धड़ी छूटै कै आवै जको ई भूल जावूं।
—जोधांणै आय बातां तो खासी सीखग्यो। सावळ मन लगाय भणैला तो थूं ई सुख पावैला। कान खोल सुभट सुणलै, अबै कोई चूक करी तो थूं थारी जाणै।
—म्हैं म्हारी ई नीं जाणू तो दूजो कुण जाणैला?
—ओळ्याकड़ा री जीभ घणी बधगी दीसै?
—वैम हुवै तो नापलो। आ ई मन में क्यूं राखो?
—लपका करतो ढबै कै जमावूं दो—च्यार झापा में।
पछै वो काठी मून धारली। घड़ी-घड़ी बतळायो तो ई नीं बोल्यो। अेकर वो दो—तीन घड़ी दिन चढ्यां मोड़ो उठ्यो तो उणनै जाणै जित्ती खारी लागी। आंचा—आंच में उजाळिया घाट ई काच मूंढागै धरनै दांत पीसतै बुझ्यो—
रातै इत्तो मोड़ो क्यूं आयो? अवस सिनेमा में उखलियो दीसै।
—थोड़ो-सो मोड़ो आवूं अर थांनै तो झट सिनेमा रो वैम हुवै।
—तो साच बता गियो कठै?
लिलाड़ में सळ घाल थोड़ी ताळ उपरांत सोच-विचार नै बोल्यो—घोड़ों रै चौक मासीजी सूं सिंझ्या रा मिळण नै गियो। म्हैं तो घणो ई नट्यो पण वै ब्याळू कर्यां टाळ आवण ई नीं दियो। पछै आडो हुवतां ई ऊंघ आयगी। जागतां ई सीधो बोरडिंग कानी न्हाटो। विसवास नीं हुवै तो...।
—थारै माथै नै वळै विसवास! म्हैं सै बावड़ कर लिया। करणीदान अर रामबगस रै साथै पिंडां चार भुजा टाकीज पधार्या। थानै कित्ती वळा समझायो कै आं लफंगा रो सांढो मत कर। पण यारै करै जद! अर वळै म्हारै सांम्ही झूठ केवटणी चावै। थूं कैवै तो वांनै रूबरू बुलाय पूछूं?
आ बात सुणतां ई काच मांयली छिब रो लप मूंढो उतरग्यो। आंख्यां चुरावतो अठी-उठी ताखा-माला करण लागो। पछै दोनूं हाथां कान झालतो गिरणायो—कालै धूड़-साणी हुयगी। अबै कदैई भूल नीं करूं। आज-आज माफी बगसाय दो।
—माफी बगसायां थूं सांम्ही वत्तो इतरैला। अेकर सावळ भारणी उतर जावै तो पछै केई दिनां तांई निरांत। निसड़ा रै लाज-सरम रो वास्तो ई नीं। गांव रो भाईपो दोखियां सूं ई भूंडो। वांरो बस लागै तो चोखळो छुडाय दै। घरवाळां री सै आस थारै माथै अटक्योड़ी। ज्यूं—त्यूं उकीलात पास करलै तो घरवाळां रा फोड़ा भरै पड़ै। नींतर घरवाळां री आस माथै बीजळी पड़ैला जको तो पड़ैला ई, पण थारी गत ई भूंडी बिगड़ैला। वा ई कस्सी, वो ई सूड। वा ई झाड़बड़, वा ई कूतर। वो ई हळ, वै ई ऊमरा वो ई तावड़ो, वो ई परसेवो। वै ई लूवां अर वा ई छान! सावळ मन लगाय नीं भण्यो तो थारा कांटा थारै ई भागैला।
—म्हारा कांटा म्हारै नीं भागै तो कांई थारै भागैला?
—म्हारै! वो इचरज अर गताघम में अळूझ संका कीवी। पछै मोचरी आंख्यां काढ काच रै सांम्है जोयो। भलां इणमें थोबड़ो सुजावण री कांई बात! भलाई री बात ई खारी लागै! अै दिन तो कुदड़का मारता खिसक जावैला अर पछै पिछतायां की सांघो नीं लागै।
अरे! काच में औ गधा रो मूंढो कीकर परगट हुयो? लारै कोई गधो तो नीं ऊभो! वो झिझक नै पाछल फोरी—कीं न कांई। पछै सांम्हो—सांम्ह मूंढो कर्यां आपरो इज उणियारो सुभट दीस्यो। ठौड़-ठौड़ खीलां-ई-खोलां।
कुत्ता री गळाई अै कान इत्ता लांबा कीकर हुयग्या? आंख्यां मींच पाछी खोलतो तो कान पाछा छोटा हुय जाता। कानां री लोळां घड़ी-घड़ी ताण खींचतो। चिट्टू ड़ी आंगळी सूं ठेठी काढतो।
अेकर देसी छातो पीयां मीचरी आंख्यों में ई रंग आयग्यो। काच भाळ्यो तो उणियारो असैंधो लखायो! मीट गडाय बुझ्यो—थूं कुण है भाया?
—म्हनै ई नीं ओळख्यो?
—कदैई देख्यो होवूं तो ओळखूं!
—थारी अैड़ी मत कीकर बिगड़ी कै आपोआप नै ई नीं ओळखै। आ तो मौत सूं ई माड़ी बात है।
—माड़ी हुवो भलांई सिरै, पैला थारी पिछाण तो बता, थूं है कुण? म्हारा दरपण में डेरो क्यूं जमायो? थारो काळो मूंढो कर अठा सूं।
—म्हारो मूंढो काळो हुयां थारो कीकर बचैला। आछो हुयो रे बावळा, थनै इत्तो ई बेरो कोनीं कै थूं है जको ई म्हैं हूं।
—म्हैं हूं जको ई थूं है?
—हां!
—पछै म्हैं ओळख्यो क्यूं नी?
—वा तो थूं जाणै। कदास दारू पीयां आंख्यां री तासीर बदळगी दीसै।
—कांई थूं वळै दारू पीयो?
—म्हैं नीं पीयो, थूं पीयो।
तठा उपरांत दोनूं हाथां माथो झाल वो थोड़ी ताळ गिड़ा री गळाई अवचळ बैठो रह्यो। पछै नीठ हीमत करनै टमकारती आंख्यां काच सांम्ही जोयो। माथै अै दो सींगड़ा हुवै ज्यूं कांई ऊगोड़ा? देखणी चावै तो ई नीं देखीजी। कुरसी छिटकाय भचकै ऊभो हुयो। हाथां लुकायोड़ो बंडळ अर आगपेटी लेय पाछो उणी भांत कुरसी माथै बैठग्यो। ऊंधी बोड़ी लगाय, लगता ई तीन-च्यारेक कस खींच्या। धूंआ रा गोट सूं काच रो पाणी धूंधळो पड़ग्यो। अबकी काच में बकरा रो मूंढो निगै आयो। लटकता कान। माथै दो तीखा-तच्च सींगड़ा। कठैई काच री रंगत तो नीं बदळगी! वो जूंझळ खाय मांचा माथै आडो हुयग्यो।
पछै खासा दिनां लग वो काच में आपरो मूंढो नीं जोयो। तो ई हवा अर तावड़ै रै झीणै पड़दै उणनै आपरो प्रतम दीखण रो भरम हुवतो। वो आपरी काळूंटी छींया सूं ई आंतरै... आंतरै भाजणी चावतो। पण छींया ही कै उणरो सांढो ई नीं छोडती। उणनै आपरी छींया सूं ई डर लागण लागो। जबर भूंडी गत बिगड़ी।
अेकर रीस में भळभट्ट हुय वो कमरा रो ताळो खोल्यो। ठोकर सूं फड़को उघाड़, बस्तो मांचा माथै पटक दियो। काच सूधो करन सांम्हो-सांम्ह कुरसी माथै जमग्यो। काच माथै रंजी-ई-रंजी झिल्योड़ी ही। रंजी मांय सूं अणछक अेक उणियारो उघड़्यो। उण माथै मीट पड्तां ई वो कैवण लागो-आज कालै पिंडा छोर्यां लारै रांचण लागा? अबै तो साव पाखी परवारगी! हुवै जकी बात म्हनै सुभट बता, नींतर आज थारी बातां है।
— थारी-म्हारी बातां तो भेळीज है।
— आं थोथी आडियां सूं अबै नीं भरमीजूं। ओटाळ, थारा अै लखण तो नीं जाण्या हा! सुभट पड़ूत्तर दे कै थूं सड़कां चालती छोर्यां रै लारै चोड़ै—धाड़ै रांचै कै नीं?
— राज री सड़क म्हारै अेकला रै ई पट्टै कोनी। घणा ई मिनख अठी-उठी चालता रैवै। म्हैं किण-किण रो ध्यान राखूं।
— थूं खास ध्यान राखनै लारो कर्यो, जद इज तो म्हनै थारै माथै इत्ती चंडाळी छूटी। पैला तो म्हैं कदैई थनै अैड़ो ओळबो नीं दियो। लाज-बायरा, थूं आ नवी विद्या कद सीखी? घरवाळा कांई भरोसो करनै थनै भणावण खातर भेज्यो अर थूं अै छापा उघाड़्या! अधवेरड़ा, थूं वळै म्हनै मूंढो बतावै?
— जे म्हारा मूंढा में थांनै अैड़ी ई ओक्या है तो थें मूंढो जोवो ई क्यूं? म्हैं डरतो सांम्ही ई नीं धकणी चावूं। पण थे नीं मानो जिणरो तो म्हैं कांई करूं?
— वळै लपर-चपर करै! अबैई लखण पाछा नीं सांवट्या तो जीभ खांच लूं ला।
आ फटकार सुणाय वो रीस में होठ चावण लागो। पछै दो-तीन वळा जोर सूं झाटकनै आखी रंजी झाड़ी। काच मांयलो उणियारो तो सांम्ही उण माथै ई आंख्यां काढण लागो। चोरी अर सीनाजोरी आज ई परतख आंख्यां दीठी।
— थोड़ी घणी ई लाज हुवै तो ढकणी में नाक डुबाय मरजा। घरवाळा तो राबड़ी खाय टंक टाळै। पेट रै गांठां देय थारै घी भेजै। पड़ू दी रा लाडू सांधै। वांरै सपनां सागै विसवास-घात कर, थूं छोर्यां लारै रांचतो फिर। बोल, पछै लाज-सरम किण दिन सारू हुवै?
— म्हारा ई तो कीं सपना हुवैला। सपना किणी री लाज-सरम नीं पाळै!
— थारै वळै कैड़ा-कांई सपना है?
— सपना जैड़ा सपना। म्हारी ऊमर अर जमाना परवाण सपना!
— पछै घरवाळां रै सपना रो कांई दीन हुवैला?
— घरवाळा जाणै।
—थूं कीं नीं जाणै?
—आं हां, म्हैं तो आपरै सपनां टाळ दूजी कीं बात नीं जाणू।
— चंडाळ, थूं इत्ती बातां कद सीखग्यो?
— अै बातां तो आपै ई सीखीजै।
आ बात सुणतां ई उणनै तरणाटी आयगी। तड़ातड़ पांच-सातेक लपड़ां मेली। गाल राता-लाल हुयग्या। आंख्यां जळजळी हुयगी। धकै उणियारो निरखण री हीमत नीं हुई। थोड़ी ताळ मूंढो ढेर्यां बैठो रह्यो। पछै घांटी पाघरी करनै मीचरी आंख्यां मन-माडै काच सांम्ही जोयो। गालां री रातोड़ हाल मिटी नीं ही। तीन-च्यारेक खीलां फूटगी ही। सेवट हीमत हारतो चेहली धमकी दीवी-अबै कदैई छोर्यां लारै रांचतो निगै आयो तो घांटी मरोड़ नाखूंला।
कीं पड़ूत्तर नीं मिळ्यो।
आंख्यां गडाय वो अेकटक आपरै प्रतम सांम्ही तठा लग देखतो रह्यो कै जठा लग दरपण मांयली छिब होळै-होळै लोप नीं हुयगी।
कै अचाणचक वो झिझकनै ऊभो हुयो। बकाई खावतो बरकण ठूको-आ कैड़ी अजोगती बात हुई? काच रै मांय म्हनै आपरो उणियारो ई नीं दीसै।
पछै वो सितंगिया रै उनमान दौड़तो-दौड़तो बोरडिंग रै बारै गियो। कंदोई री दुकान सूं अेक दई-थड़ी अर अेक लाडू लायो।
पाछो कुरसी माथै बैठ काच में देख्यो तो उणियारो सुभट निगै आयो। गालां री रातोड़ खासी कम पड़गी ही।
—अबै रूसणो फिटो कर। ले आ मिठाई खायलै। थारै खातर ई लायो।
— नीं खावूं। म्हनै कूट्यो क्यूं?
—हाल कांई हुयो, बोछरड़ायां करेला तो वलै कूटूंला। घणो-घणो जंतरावूंला।
—पछै ओ थोथो लाड क्यूं? हाथ नीं थाकै जित्तै कूट्यां जावो।
—ले खायलै। घणो वाद मत कर। नींतर वळै भांगूंला।
काच मांयलो प्रतम थोबड़ो सुजाय बोल्यो—मर्यां ई नीं खावूं। थारी इंछा हुवै ज्यूं कर।
— अरे, मूरखां रा पातसा, म्हैं तो थारी भलाई खातर इत्तो धयो करूं।
— थारो-म्हारो भलो किसो न्यारो है?
— कांई थूं म्हारा सूं न्यारो कोनी?
— आं हां, अपां दोनूं तो अेक ई हां। फगत औ दरपण रांझा रो मूळ है।
— म्हारो कह्यो मान। थनै राजी करण सारू आ मिठाई लायो। खायलै।
— पैला इण काच री किळी-किळी बिखेर बारै वगावै तो म्हनै पतियारो हुवै। पछै थारो कह्यो कदैई नीं टाळूं।
— वचन देवै?
— हां, वचन देवूं।
तठा उपरांत राम जाणै उणरै कांई जची कै गाभा धोवण री मोगरी सूं वो उण काच रा टुकड़ा-टुकड़ा कर नांख्या। गलियारै रा बगदा में फेंक्यां टाळ नेहचो नीं हुयो। पछै कोड सूं मिठाई खाई तो दूणी सस्वादी लागी। अर वो दिन अर वा घड़ी कै जद-कद मिठाई खावण रो तंत सजतो वो कदैई आळिया-टोळिया नीं कर्या। उण दिन सूं ई माहोमाह दोनां रै बिचाळै अेक अैड़ो ई नेगम राजीनांवो हुयग्यो। अर आज उण राजीनांवा रै परताप अेक ना कुछ थाणैदार हुवता थकांई लोग-बाग उणरै पाखती पांच लाख रिपियां रो नकदी कूंतै!