माळा रा फिरता मिणियां आंगळ्यां बिचै कद ठैरग्या वीं नै ठा नीं पड़्यौ। सांमै रमता टाबरां रा झूमका, बायरिया रा झोलां रै समचै कड़्यां लुळाता फूलां रा बूंटा अदीठ व्हैग्या, बरामदै में बोरी बिछायां बैठी री निजरां धोळा धप्प मोगरा रा फूलां माथै थिर व्हैगी। वा अडोल अबोल व्हेगी। हळवां-हळवां फड़कता होठ खुल्ला रा खुल्ला रेवग्या। मोगरा रा महकता धोळा फूल वीं नै धोली धोती री याद दिरायग्या।

धोळौ कपड़ौ सादौ बूदो ठिमरपणै में ठरकीज्योड़ौ लागै पण वीं रै अंतस में पीड़ जगायग्यो। दिनूंगै कपड़ा धोंवती नै बहू अणखै लागी—“मांजी! आप सारै कपड़ै सफेद रखती है, ये मैलै ज्यादा होते है।” पछै बात परोटती कैवै लागी—“आपको धोने में तकलीफ होती है इसलिये कह रही हूं, वर्‌ना मेरी बला से रक्खो, मुझे क्या दिक्कत?”

वीं रै काळजै करोत बैयगी। कड़कस्या म्हारी तकलीफ कांईं देखै है? साबण रा बगता झाग देख’र जी बळ्यौ व्हैला! म्हारै बेटा रो कमायोड़ौ खाऊ। थारै पीर रौ कीं हुवै जणां नाक चढा, सोच’र मन नै धीजो बंध्यौ। बावड़ नै बेटा सांमै देख्यौ—वौ अखबार में माथौ दियां अजाण हुयौ बैठ्यो।

अरे। ई...छोरा री सै मिलियौड़ी दीखी। नीं जणां इण, काल री आयौड़ी बहू री कांईं मजाल जकौ म्हनै टोक देवै। टोकणौ कांईं हुयौ सैनरूप हाथ ही पकड़’र बरजणौ व्हैग्यो। मूंडौ पकड़णौ व्हैग्यौ। आं सवालां में उळझी आपरा रुमाल नै बिना साबण लगांया निचोय आंगणै में आयगी।

तणी माथै कपड़ा छितरावतां लारला बरस अेक-अेक कर नै वीं रै साथै पसरै लाग्या। परभू रै डाडी मूछ्यां चिलकै लागी ही वीं रै मनड़ा मैं सासू बणबा री कूंपल फूट्याई—हांसती-हांसती पूछ्यौ हौ—“परभू रा बापू अेक बात कैऊ, थे मनै गैली बतावौला। परभू रौ ब्याव कर काढ़ो।...सगळां रै आंगणै बहूवां री रिमभोळ माची रैवै म्हैं अेकली कांम में खटूं।

“अर् र्...भली आदमण कळजुग में कुण सै सुखां रा सपनां संजोवै है? आजकाल री बहूवां सेवा करबा नीं आवै। आपरौ हक लेबा आवै। मांगत उगावै।”

“थे हरघड़ी ईयां कांईं ऊदी पादरी सुणावौ। हर बगत मोसा बोलौ। म्हारै पछै-पछै ब्याव हूय’र आई वां रै दो-दो बहूवां हाजरी भरै। आपां रै हाल छोरा री सगाई रौ सतूनौ कोयनीं।” बात पूरी करतां-करतां गळगळी व्हैगी ही।

“थूं घणी ऊतावळ करै है गैली बहू रोजीनां गोधम राखसी जणां ठा पड़ ज्यावैला। परभू रा बापू दफ्तर री उतावळ में हा इत्ती बात अटकाय रवानै व्हैग्या। सफा चुप। रीसला आदमी रौ कांईं पतियारौ? घणी बातां खोदणी ठीक नीं।

वीं रै मन में अेक भैम जाग्यौ-बहू साच-मांच में खोड़ली आयगी तौ? इण सवाल सूं मन रा मोद फीका पड़ता लखाया। मन ने धीजौ बधता पड़ूतर वा खुद सोचै लागी—आपां रै किस्या पांच-च्यार बेटा है?

अेकाअेक परभू है। बहू रौ मन म्हारै बिना कीकर लागसी? दो बात धीमी रैया सुण लेस्यूं पछै कांईं झोड़? घालमेल वीं रा काळजै में उथेलौ खावती। बहू नै आँगणै ठुमकती देखबा रा सपना संजोय राख्या हा। अै सपना कणां हरख री नगरी बसाय देता कणां मन काठौ उणमणौ कर काढता।

बेटा री पढाई पूरी व्हैतां-व्हैतां दो बरस ओर सिरकग्या। आंगळ्यां री रेखावां गिण-गिण वा निठ अै दो बरस सिरकाया।

छोटा सा गांव में पैलीवार पढी-लिखी बहू आवण वाळी ही। गांव में सगळां री जबान ही अेक चरचा। वीं रै मन में दब्या थका कोड उफणै लाग्या। अेकूं-अेक काम खुद रै हाथां करणौ चावै ही। कांम करती रै मन में चितराम उघड़ता कै आंगणै में बहू ओपती-ओपती सरुफ पगल्या धरती कंवळी काया री आया बैठ ज्यासी। बहू वीं नै काम करती देख’र ना देय काम करण री कैवण लाग सी जद वा हांसती-हांसती बरज सी—बेटा। थारी अै काची-काची पतळी आंगळ्यां अर केळ री कामड़ी व्है जिसी कड़्यां, थूं इत्तौ काम कद रौ करियोड़ौ? आपां रै काम वास्तै म्हैं सारै कोय नीं। कर काढूं। पछै सासू बहूवां बैठी हांसस्यां।

सपनां सूं लड़ालूंब हुयौड़ा वै ब्याव रा दिन झटोझट फुर्‌र...र् व्हैग्या। परभू री नोकरी लागी। बहू साथ चलगी। बहू रै भेळै गुरबत करबा री मन में रैयगी। पछै सासू बहू रौ हांसणौ वीं रौ राजस करणौ कियां हुवै हो? धणी रा तीर जिस्या ताना सुण-सुण मन चालणी ज्यूं व्हैग्यौ। अेकाअेक बेटौ। वौ सारतार नीं राख सी जणां बुढापौ कियां पार लंघसी—आ सोच-सोच वीं रौ मन आकळ-बाकळ व्है ज्यातौ। दूजौ विचार आतौ खनै रियां बहू हाथहीड़ौ करसी। पछै मेळ-मिळाप मतैई बध ज्यासी।

बेटा-बहू रै खनै जावण री सोचतां-सोचतां दिन ऊगै आंथै हा। अेक दिन परभू रा बापू खबर ल्याया-ले भई तूं अत्ता दिनां सूं लारौ कर राख्यौ हौ, अब आगैलै महिनै पछै रिटायर हूय चालौ परभू रै खनै। धणी रौ मूंडौ खबर देतां रै साथ काठौ उदासी सूं भरग्यौ हौ। मन मुरझायग्यो हो, पण वी नैं खबर सांतरी लागी ही। आखी उमर घणी रै चिड़चिड़ै सभाव री झपटां झेली। अब आरांम सूं दिन कट सी। परभू रा बापू रौ कांई बाळनंजोगौ सभाव हौ-कांम बगत रै पैली कर दियौ तौ क्यूं कर दियौ? नीं कर नै राख्यौ तौ क्यूं नीं कर्‌यो ईण दोलड़ी मार नै मन झेलतौ आयौ हौ। घर छोड़ लुगाई कठै जावै? बेटा-बहू, पोती-पोतां सूं भर्‌या घर में मौजां करणैं री साध अब पूरी व्हैसी सोच’र वीं रौ मन चीलां री गळांई आकास में भुवैं लाग्यौ।

बेटा-बहू रै भेळै रैवतां अेक बरस पूरौ हुयां पैली लखावै लाग्यो कै कांम कालौ व्हैग्यौ। परभू नैनी-नैनी बातां खातर बहू री राय लेवै। बहू रै मूंडै री हां-नां वास्तै बाट जोवै। परभू रा बापू न्यारी-निरवाळी खिमता रा धणी। सगळी ऊमर ठरका सूं रह्या। अठै बात-बात में बहू रै मूंडै सामौ देखणौ पड़ै। वा जाणौ मालकण हुवै, सगळा वीं रा चाकर। आपरै पइसा वाळा पीहर री धाक जमावती दीसै। गैली म्हारा खांनदांन अर सरूफ बेटा नै देख इसा खानदान नै दोय घड़ी आदमी देखतौ रैय ज्यावै।

घर में कोई नुंवौ मिनख आयां सूं पैली बहू रौ हुकम त्यार—“माजी आप पिछला कमरा में बैठौ। अठै कोई मिलबा आरियौ छै।”

अरे भली आदमण। आबाळा रै में दोळ्यू थोड़ी ही फिरूं, नै वीं रौ की खोसूं, जे थनै म्हारा कपड़ा बोदा लखावै जणां थूं नवा लाय दे। वै पैहर-ओढ बैठ ज्याऊ।

कुण ईं रै मूडै लागै। बेटौ इसारा में चाल्यौ हुवै जणां दो मिनट लगाऊ...गज व्है ज्यूं सीधी कर काढू। पण वौ आप ईं रै खनै पूंछ दबाय ऊभौ व्है ज्यावै। करूं कांईं?

लारलै बरस परभू रा बापू गोलोकवासी व्हैग्या। अब वीं रा दिन भरूंट व्है ज्यूं गडै लाग्या। अेकली बैठी आरी मौत रा मनसोबा करती। दुख दरद कैवण सूं जीव हळकौ व्है ज्यावै। वा किण नै आपरै मन री कैवै? कुण सुणै?— “रामजी वां री ठोड़ म्हनै मोत देय री हुवै।”

फिरघिर बात वीं रै ओळ्यू-दोळ्यू चक्कर काटती रैवै।

कदै-कदास बहू बाथरुम में हुयां बेटौ खनै आय नै पूछै... “माजी पग रौ दरद अब किंयां?” वीं रौ मन करै कैय देवै—दरद ठीक ठाक है। थूं थोड़ो आंतरों चल्यो जा। थारी बोली बाथरूम में पूग्यां पछै गोदम व्हैतां जेज नीं लागैली। छोरौ अत्तौ क्यूं दबै? कठै इण रा बापू। आखी ऊमर बात-बात में म्हनै पीस न्हांकी। वो बगत दूजौ हो? लुगाई नै पग री मोचड़ी बणाय राखीजतौ। लुगाई में किस्यौ जीव कोनीं हुवै? इसी दाबी राखणी ठीक नीं। अब बेटा री हालत देख’र वीं नै आज सफा लखावै लाग्यौ—लुगाई नै दाबी राखै जद ही काम देवै।

म्हारा रोटी कपड़ा सूं अै तंग नीं आयग्या आंख्यां री तणियां लाल करती खुद ही दूजै छिण सोचती-आं नै कांईं जोर पड़सी? म्हारौ धणी पांच-दस हजार छोड नै गयौ है। कोई करजा भेळै थोड़ोई छोडी है।

आज कपड़ा सुकाय वा रोजीनां रा बगत सूं पैली माळा फेरबा बैठगी ही। वीं रौ जीव में औचाटी व्हैरी ही, माळा मन नीं लागै हौ। ध्यान देय माळा फेरै जिसेक पुराणी बातां आय अटकै। परभू रा बापू री याद घड़ी-घड़ी घिरौळा देवै लागी। वीं नै स्याफ लगावै लाग्यौ—बुढापा में कोई रौ जोड़ौ नीं बिछड़ै जणां ठीक रैवै। अेक दूजा रा दुख दरद सुण’र जी सोरो कर लेवै। आपसरी में कणां हांसी लेवै। आजकाल रा टाबर तौ छूत री बेमारी सूं आंतरा रैवै ज्यूं मा-बाप सूं अळगा रैवै।

बहू राजी मन सूं नीं बोलै कोई बात नीं पण टाबरां नै आंतरा राखै, वा किंयां सहन करै? टाबरां रो मोह वीं नै अठै खींच ल्यायौ हौ अर वै ही अळगा घणा अळगा राख्या जावै। अेक दिन वा मिंदर सूं बेगी बावड़्याई ही। बात जद-जद याद आवै रीस में वीं रा दांत भिंच ज्यावै। वीं दिन पाछी आय थळी माथै पग दियौ कै बहू टाबरां नै भोळावण देवती सुणीजी— “दादीजी के पास मत रहा करो, गंदी बातें सीखोगे। बोलने का ढंग बदल जायेगा।” टाबर वीं दिन सूं संकता-संकता आंतरै फिरै लाग्या। घर रा ऊपर-सूपर का कांम वास्तै अेक कांमवाळी लगाय राखी ही। अब वा आखै दिन कांईं करै? जका कांम नैं हाथ लगाव वीं में रोक-टोक त्यार।

वीं नै झुंझळ आती—पढाई-लिखाई रौ मतळब नीं है, कै आपरा मायतां नै हीण समझै। खुद रा खांण-पांण, पैरांण अर बोली मिनख नै हरगिज नीं भूलणी जोइजै। इण बहू बातां करणी बिरथा। खुद में गैली हुयौड़ी रैवै।

बूढळी अेकाअेक ठोला री जात। अब जावै कठै? जिण गांव नै छोड्यां चाळीस बरस व्हैग्या बठै जाय बसणौ सोरौ कोनीं। बुढापा री ऊमर अेक जणौ खनै हीड़ौ करै जिस्यौ जोइजै। गांव में कीं तकलीफां है दूजी बात गांव अब पैलड़ां गांव नीं रह्या। वठै छळ-कपट आपरी चादर पसार दी। वा ईंया सोच-सोच काठी कायी व्है ज्याती। मन बिलमावण मिंदर जाय पुगती। म्हाराज रामायण बांचता। बूढळ्यां अेकानी बैठी मोकौ मिळतां पांण हळवां-हळवां आप-आप रै बेटा-बहूवां री खुसर-पुसर अेक दूजै रै कांनां में ढोळ्यां जाती। वा म्हाराज सांमै देख्या जाती। मन में परभू री बहू री बातां उथळौ दियौ जाती।

कदै वीं रौ मन करतौ अेक छोरी व्हैती तौ ठीक ही। वीं रै खनै चली जाती। हां। बेटी रौ दांणौ पापी खावै। वा आपरा पईसां रौ खायपीय मिल्याती। दुख दरद री बात कर लेती। अठै मन कदै रोवण नै करतौ। वा सावळ रोय नीं सकै ही। बहु ओझाड़ नीं दे? बात-बात में बड़-बड़् तड़-तड़्। राजस करती बूढळी नै रामजी कांईं दिन दिया।

आज आपरा कपड़ा तणी माथै सुकाय उणमणी हुयोड़ी आय बैठगी। घणी बेगार कर नै रात नै मोगरा रा फूलां री माळा वा बणाई। अड़ौ कर्‌यौड़ा पोता री जिद पूरी कर नै वा माळा वीं पोता नै पैरायदी। भाजतौ-भाजतौ वौ टाबर माळा बांरै बगाय आयौ। वौ हांसती बणावटी रोब ल्याय पूछ्यौ— “अरै गैला बारै माळा क्यूं न्हांकी?”

इण सवाल रौ पड़्तर सवाल सूं बहू दियौ—“आपने बना दी कल खेल लिया, और इस कूड़े का क्या करता।”

बहू रै लिलाड़ रा सळ देख’र वीं नै लखायौ, कै इण माळा जिसी आपांरी हालत व्है चुकी है। सगळां रौ स्वारथ पूरौ व्है चुक्यौ अब कुण कदर करै? सांस निकळ्यां पछै इण मुड़ी तुड़ी माळा री जिंया ल्हास आंगणै पड़ी रैय ज्यासी। लोका लाज सूं ल्हास ठिकाणै लाग ज्याई नीं जणां बहू खरचौ कोनीं करणौ चावै। वीं री आंख्यां री पाळां बारै आंसू आवण ढूकग्या। परभू रा बापू जींवता है जद पाड़ौसण्यां बखत-बेबखत राय लेबा आती। अब दूध री माखी व्है ज्यूं आंतरै छिटकाइजगी।

वा इण बात नै भूलणी चावै। अै काळजै रा घाव किंयां भूलीजै। माळा रा सुमेरु री जिंया फिरुघिर चेतै आयां जावै। ध्यांन ईं चिंता सूं आंतरौ राखबा वा माळा रा मिणिया उतावळा-उतावळा फिरागा सरु करै। आंख्यां डबडबाइजज्या। आंख्यां सांमै मोगरा रा फूलां रौ बोलौ धप्प ढिगलौ लाग्यां जावै। ढिगलौ वीं नै खुद री ल्हास माथै लागतौ दीसै। आंगणै में ल्हास पड़ी है। माथै मोगरा रा फूल आय-आय पड़्यां जावै। फूल घणांई पड़ै पण ल्हास समूदी नीं ढकीजै। अब कांईं व्हैला? ईयां सोच्यां जावै ही। बहू चुपचाप आय चाय रौ गिलास आगणै मेलती जोर सूं ठरकायौ।

गिलास री आवाज सूं ध्यान टूट्यौ। निजर उठाय देख्यौ। बहू रा आजकाल री छंटाई रा छांती चढिया ब्लाउज हेटला मंगर दीख्या मगरां सूं अेक चेहरौ आंख्यां काढ-काढ देख्यां जावै हौ। वै धिरकारती आंख्यां खैरी-खैरी देखै ही अर वौ मूंडौ बूढळी सांमौ थूख्यां जावै हौ। आंगणै सांमलौ फूलां रौ ढिगलौ गायब व्हैग्यौ। वीं री ल्हास पड़ी रैयगी। जिण नै वा आंख्यां फाड़-फाड़ देख्यां जावै ही। माळा रा मिणियां पड़ता आंसूवां नीचै कणां सिरकै हा, कणां अटकै हा।

स्रोत
  • पोथी : सूरज उगाळी ,
  • सिरजक : मनोहर सिंघ राठौड़ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी विभाग राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूंगरगढ़ (राजस्थान)
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