अणचां हाथ में गूणियों लियां गाय नैं बुचकारी, पण वा लात फड़ाका करै। तो टोगड़ियो झाल्यो अर न्याणों ही दिरायो। टोगड़ियो बापड़ो उछळतो कूदतो थणां पड़ै अर गावड़ी ढूंढ मार’र परै फींकदे। कई ताळ तो अणचां उडीकी भळै छोरी मेवली नैं हेलो दे’र बोली-बाई! तूं इण गावड़ी रा कानड़ा पकड़। मेवली टोगड़ियै नैं खूंटै रै बांध’र गाय रा दोनूं कान जरू कर लिया। लात सूं डरती अणचां धीरै धीरै न्याणों दियो। थण धो’र हठै बैठी, पण गाय नीं पावसी सो नीं पावसी। बाटको हाथ में लियां खनैं ऊभो छोरो सुखलो दूध री म्हारणीं ले राखी— मां! हूं बोळो दूध पीवूंला। कै’र बो ठणकण लागियो। गाय रै न्याणों देवणों तो मां बेटी रै सारै हो पण पावसणो तो उणां रै बस री बात नीं। गाय डरती थणां में एक छांट घालीनीं। वा डरती कूकड़ियो सी भेळी हुयगी। अणचां उण नैं घणीं डराई, धमकाई, बुचकारी, हाथ फेर्‌यो, पंपोळिया कर्‌या चाटो दियो, टोगड़ियो आगै कीन्यों, पण गाय तो एक’र मोड हला’र हां करी ईज नीं। टुगर टुगर धिराणीं कानी देखती रै ई। उगाळी सा’रै अर पूंछ रै झबरकै सूं माछर उडावै। छेकड़ धाप’र अणचां न्याणों खोल्यो। रीसां में आ’र सड़ासड़ गावड़ी नै सूंतण लागी। मारतां-मारतां गाय रा छोतरा उडा दिया। अर आपरो चूड़ो बधा लियो। मेवली गाय कानड़ा छोड’र परै जा ऊभी होई। माँ रो रंग ढंग बदळतां काई ताळ? ठा नीं गाय नैं छोड’र न्यौणैं रा सरड़का अठीनै लगावणां सरू कर देवै तो कुण छुडावै? मां रा राता नैंण देख’र छोरो सुखलो भी बाटको हाथ में लियां धीरै सी आंगण कानीं सिरकग्यो।

मारतां मारतां जद आखती हुयी तो गाय ने छोड’र अणचां दो घड़िया उठा’र कूवै चाली। मेवली नै गोबर पोठा उठावण रो कै’र वा बड़बड़ांवती घर सूं निकळी।

घर सूं चालतां ई’ पाडोसण साथै हुगी। पूछणै कै जिठाणीं जौ आण कांई बड़बड़ाटा करो हो?

“क्यांरा बड़बड़टा है बाई? गावड़ी जुवाब दे दियो। दो सेर धार सूं कीं दाणां बापरै हा, घर रो आगो चालै हो। टाबरां रै च्यानणों हूर्‌यो हो, पण रामजी रूठग्यो। आज गावड़ी धार देई नीं। बठीनैं ऊंटयो अर बळदिया बैसक्यां पड्या है। काळ में इणां नै कांईं घालां? अर वो बैरीड़ो बरसण रो नाम नीं लेवै। तळब रो पाणीं सूखग्यो। कुइयां में खारो बळै। जे भूल चूक’र डांगर पी लेवै तो बिराईजतां कित्ती ताळ लागै? मीठै पाणीं रो एक कूओ। गांव सूं कित्तो अळणो। टाट सा घसगी। जठै पाणीं खातर इण तरै जूझणों पड़ै उण गावां में बसणों धिरकार है।”

“बात तो साची है, जिठाणींजी! पण कांई जोर? अब कठै जावां? गांव छू णां दो’रा घणां।” सुगणीं बोली। गावड़ी आज तिसाई है— बापड़ी क्यांरो दूध देवै? ख्याल आंवतां दोनूं खाथा-खाथा पग उठा’र कुवै पूगी। देखतां छाती बैठगी। कूवै पर मिनखां री कच्ची जुप रैयी। सै लोग-लुगाई पैली आप आपरा घड़ा भरण सारू उतावळ करै। काळ रो थाकेड़ो ऊंटियो मर पच’र पाणीं रो एक चड़स निठसेक ल्यावै जिण में पांच छः घड़िया भरै। कूवै में जाबक थोड़ो सो पाणीं। चड़स पूरो भरै नहीं, गिदळेड़ो कादो सो पाणीं आवै। बो भी पूरो हाथ नीं आवै। खेळ्यां भी जाबक सूकी पड़ी। जद घड़ा पूरा नीं भरै तद खेळ्यां अर कोठां री कांई बूझो? तिरसी भूखी गायां डिडांवती फिरै। डांगर खेळ्यां सूं भचभेड़ी लेवै। कूवै पर भीड़-भाड़ अर धक्का-मुक्की में कोई एक घड़ियो भर लेवै तो उणरी खुसी रो थाग नीं। जुन जीतियोड़ो सो हु ज्यावै। सहरां में रासन री दुकानां में दाणां अर ठेसणां में टिगत लेवणियां में कांई बीतै? सनेमां री खिड़क्यां में टिगत लेवणियां रै कपड़ां रा छोतरा ज्यावै—कंठाँ रो मैल उतर ज्यावै लैंण में ऊभा ऊभा पगां रै थड़ा बन्ध ज्यावै अठै कूवै पर पूर नीं फाटै तो भी भीड़-भाड़ अर धक्का-मुक्की में घड़ा फूट’र गळबा जरूर हाथ में आज्यावै। अठैरो बारियो अपणैं आपनैं डी० एस० ओ० हूं कम नीं समझै। बो तो चीणी अर धान रा परमिट देवै, पण बारियो तो मिनख नैं पाणीं पा’र जिनगानी बगसै। जे बारियो पाणीं नीं देवै तो जीवणों घणो ओखो हुजावै।

कूवै पर इत्ती भीड़ देख’र अणचां निरास हो’र बोली, “अठै कद बारी आवै? कद घड़िया भरीजै? कद घरै पाणी पूगै? टाबरिया तिसाया बैठ्या आंख्यां फाड़ै। खेत में मेवली रो बाबो भातो उडीकै। हूं कद जा’र रोट्या करूंली? कद घरां रा बीजा धंधा हुवैला? इण छोरी मेवली में रेवती रो बीज कोनीं। इडैं मान री हुगी, पण कीं सहूर कोनीं। जाबक बचकूकर है। इर री सायनीं दूजी छोरियां घर को सारो घन्धो बूटै। मां नै सा’रो लाग जावै पण करमां री बात है। मेरा इस्या कठै भाग? जे छोरै रा फेरा हुज्याँवता बीनणती की सा’रो लगांवती। पण फेरा कठै सूं हुज्यांवता? काळां में घर रो आगो चालणो ओखो। भळै ब्याव कीकर हुवै?”

सुगनी बोली - “जिठाणीजी! हमकै भी मनैं तो सीवो काढतो दीखै ऊपर सूं आसोज बीतग्यो। जेठ में एकर छाँटा छिड़को कर’र बादळिया इसी पूठ दीनीं जिण तरियां नेता लोग चुनाव में जीतणै रै बाद बोटराँ नै भूल ज्यावै जे एक’र छांट छिड़को नीं हुँवतो तो हळां अर बीज रो खरचो तो को लागतोनी आस अर भरोसे में मर पच’र कित्ता दो’रा ऊमरा काढ्‌या? कीकर उधारो पायो कर’र बीज अर फूसपानड़ो कबाड्यो हो? कीकर भूखा तिरसा रै’र दिन धिकाया हा? जीवड़ो जाणै है।” कै’र सुगनां अर अणचां दोनूं औसरो उडीकण बैठगी।

बीजी लुगायाँ भी आपरी बारी उडीकै। कई घर विद री बातां करै। गावां में कूवो इसी जगां हुवै जठै लुगायां आपरै मन री घुण्डी खोले। अठै बहुवां सासुवां री चुगली करै, सासू बहुवां रा बखाण करैं। मिनख धीणै अर खेती री बातां करै। काळ जमानै रा रूपक बांधै। आखा लोग लुगाई जिका कूवै पर ऊभा— काळ रा सतायोड़ा जाबक थाकेड़ा। कीं रै मूंडै पर पाणीं नीं, कीं री आंख्यां में उजास नीं, काळा भूत सा काळूंठेड़ा निरा कंकाळ। कीं रै डील पर साबत पूर नीं— किण रै मन में कीं कोड नीं। चालती फिरती लासां, आखो दिन रात पाणीं पाणीं करतां बीतै। सोवै तो पाणीं री चिन्ता-जागै तो पाणीं रो फिकर। मिनखां री सारी सगती समै अर सारो जेस पाणीं खातर ठण्डो हू जावै। काळै कोसां सूं पाणीं ला’र डांगरां नै पाळणां घर कडूबै नै पोखणों भोत जीवट रो काम है। पाणीं रै सिवाय किणनै दूजी बात सूझै नीं, बीजो काम आवड़ै नीं।

नाळी पर पैली घड़ा भरणै सारू लुगयां में धक्का मुक्की हुवै। गाळ-भेळ अर राफड़ झगड़ा हुवै। कुत्ता घर गिरज ज्यूं मुड़दै डांगर पर लड़ै, उण तरियां लोग पाणी री एक-एक घूंट खातर भचभेड़ी लेबै। चुनावां में टिगसां खातर ज्यूं भला अर सीधा मिनख सीनियरटी सूं बारी उडीकै पण लूंठा अर नागा बीच में रोळो मचा’र टिगत ले’र चुनाव जीत ज्यावै, उण तरियां बापड़ी केई मांगेड़ै मूंडै री लुगायां बारी उडीकै अर केई फागड़दी बीच में रोळा मचा’र आपरा घड़ा भर लेवै।

अणचां भी तावड़ै बळती-बळती सिरकती-सिरकती निठनेक नाळै सारै पूगी। उणरै आगै अब बस दो लुगायां बाकी ही। देख’र मन में कीं सतोष हुयो। धीरज बन्ध्यो। अब तो दिल्ली दूर कोनीं। बारी आई समझो। इत्तै में बारियो कूवो ठाम दियो। कीलियो ऊंट खोल’र आग्यो। बारियो बोल्यो कै कूवै में पाणी खूटग्यो घड़ी एक मुड़को देवण दो। सुणतांई सैं को सिसकारो निकळग्यो। जिकी दो लुगायां अणचां सूं आगै ही वै बिरगिरा’र बारियै नैं बोली, “बालू! इयां कांईं करो हो स्यांणां! दो बारा तो और लावोनीं। पांच चार घड़िया तो भरो नीं।”

“कूवै में जद पाणी खुटग्यो तो घड़िया कीकर भरीजै?” कै’र बालू चिलमड़ी चूंचावण नै लाग्यो। इत्ती जोर सूं सट सा’री कै एक’र में तमाखू नैं बाळ’र राख कर दीनीं। कीलियो मरवै री छियां में गमछियो सिराणै दे’र गुड़ग्यो। बारियो बालाजी री बुंगली में बड़’र सोयग्यो। बापड़ा आखी रान रा जागियोड़ा। आयो हो! आयो हो!! करतां कण्ठ बैठग्या। नींद में ऊंघै हा। पड़ताईं आंख लागगी अर नाक बाजै लागी। ऊंटियो भी सोवै रो जुतेड़ो खुलतां ईं धूड़ में दो चार लोट लगाई अर उगाळी सा’रै लागो।

दिन सिखर आयग्यो-करड़ो भातो हुग्यो। पण कूवै पर आधा सूं घणां घड़ा रीता पड्या। जिणां रा खाली घड़ा हा वै घर रा रह्या नीं घाट रा। जे घरे पूठा चल्या जावै तो भळै बारी आवणी ओखी हु जावै। जे कूवै पर बारी उडीकै तो घर वाळा तिरसाँ मरै। कूवै पर सागीड़ो तावड़ो। लूवां चालै। कठै ऊभा हुवण नैं छियां नीं। लाठी अर भींत बिचाळै आयग्या। मोटरां में जियां लोग तिरसां मरता रहवै पण आपरी सीट को छोडैनीं। सीट छोड’र बारै पाणीं पीवण नै जे जावै तो पूठी सीट तो कांई मिलै-मोटर में बड़णों भळै ओखो हु ज्यावै। इण तरै री दोगाचिन्ती में लोग तावड़ै वळै, पण कूवो को छोडैनीं। जिण लोगों कनै ऊंट हा, वै तो आपरा घड़िया उठा’र चोखड़ में घाल्या अर बीजै गावां में जठै पाणीं मीठो हो भीर ड्या, पण बापड़ा बिनां ऊंटां रा मिनख अर लुगायां पांच सात कोसां सूं कद पाणीं ले’र बावड़ै?

कोई दो घड़ी उडीकतां-उडीकतां कूवै में कीं पाणीं सांचर्‌यो। बालू ‘जय बजरंग बली री’ कै’र चड़स कूवै में उतार्‌यो। लुगायाँ भळै आप आपरा घड़ा साम’र नाळै ढूकी। अगली लुगायां रा जद घड़ा भरग्या तो अणचाँ भी आपरो घड़ियो नाळै पर मांड्यो। एक घड़ियो निठनीक भर्‌यो हो—इत्तै में लव टूटगी। अरड़ धम्म करतो चड़स लाव समेत कूवै रै मांय। लुगाई रै चुडलै रै भग सूं बालू मरवे रै बांथ घालली। खाली भूंण गड़कां चढग्यो। आखा लोग भुंचक्का सा हुग्या। अब? अब कांईं हुवै?? कद लाव कूवै सूं निकळै? कद चड़स ठीक हुवै? कद घरे पाणीं पूगै? सोच’र लोग आप रा खाली घड़िया चक’र घरां कानीं टुरग्या। बालूजी हेलो देवता रैया कै भाइयो मेरो चड़स तो कूवै सूं कढावो। पण कुण सुणै?

अणचां भी एक भरेड़ो घड़ियो सिर पर चक’र दूजो खाली हाथ में ले’र कूवै सूं ऊतरी। मन में सोचती जावै कै दो दिन तो सा’रै कोनीं। खारै पाणीं रै चार घड़ियाँ में मीठै पाणीं रो एक घड़ियो मिला’र दो दिन तो धिका देस्यां इत्तै भळै कूवो जुत्तै जुतै।

पण भरोसै री भैंस पाडो ल्यावै। मन रा चितियोड़ा किण रा पूरा हुवै? ‘तेरे मन कछू और है— मेरे मन कछु और।’ अणचां थोड़ी दूर चाली ही कै सामीं गळी सूं एक टोरडियो ताफड़ा काढ्‌यां आवै। गळी सांकड़ी। अणचां बापड़ी बाड़ रै चिपगी। पण टोरडियरी फेंट सूं घड़ियो पड़’र फूटग्यो। पाणीं पड़तां ईं बालू रेत सोखगी। अणचां बळभूंज’र-रीसां में आयोड़ी दूजो घड़ियो भी पटक’र घरै पूगी। दिगगै रो आखती हुयोड़ी। धापेड़ी अणचां थक’र साँकळ हुगी। घर रो सांसो खायग्यो। खोरसो करतां-करतां जाबक नाकै लागगी। तीन-तीन काळ धिकाया। अब हिम्मत टूटगी। घरै आ’र धम्म देसरी मांचलिये में पड़गी। छोरी छोरा बोल्या,— मां पाणीं। घणीं बार लगाई। कंठ सूखग्या-तिस मरग्या। अणचां रो हिवड़ो भर्‌भयो। पण आंख्यां में आंसू कठै? नैणां खुट्‌यो नीर।

स्रोत
  • पोथी : नैणां खूट्यो नीर ,
  • सिरजक : बैजनाथ पँवार ,
  • प्रकाशक : श्री शिवदानराम प्रह्लादराय बोहरा पूलासर (चूरू)
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