खेजड़ी रै च्यारुं मेर फैरी दियां पछै लुगायां अेकर भळै अगूण मुंहडो कर’र सुरजी नै हाथ जोड़्या अर पछै आप-आपरी जूत्यां कानी लंघण लागगी।

“पाणी रा गड्डिया कांअी भर्‌यायोड़ा पाछा थोड़ा ले जावणा है।” अेक अधबिचैरी सी बीनणी आप सूं कीं बड़ी बीनणी नै मुळकतां थकां केयो।

बड़ी बीनणी झेंपगी। हाथ में भरियोड़ो गड्डियो झट देणी खेजड़ै री जड़ां में उंघा दियो।

“ले देखोक हूं किसीक भूलोकड़ हूं, अरध रो गड्डियो हाथ में लियां उभी हूँ”।

पंथवारी रै इण खेजड़ै हेटै, आसचौथ रै बरत री कथा सुणन आई पांच-छवू लुगायां में दोय अधखड़सी ही अर तीन नैनी बीनण्या। उणरी गड्डियो नीं उंधावण री भूल माथै सगळी अेकै सागै हेंसी अर केयो—

“आ बाळनजोगी है भूलोकड़।”

“जणै तो आई साल आस माता आंनै भूल जावै।”

बिनण्यां मांय सूं जकी भरियोड़ो गड्डियो अखरावणवाळी ही उण केयो अर केय’र आपरी जीभ नै बोचली। जीभ बळै हाड मांस बायरी हुवै नीं जचै ज्यां बोलज्यावै। आगलै माथै दावै जियां बीतो। पछै तो उणनै घणो पछतावो हुयो-उणनै अैड़ी अकरी बात नीं कैवणी चाहिजै। पण अबै तो केयीजगी जकी केयीजगी। तरकस सूं छूट्योड़ो तीर पाछो कीकर आवै।

भूलोकड़ बीनणी रै मुंहडै रो पाणी स्सो उतरग्यो।

“भाग-आप आप रो, बापड़ी आस माता माथै किस्सो जोर थोड़ो है।”

बात केवंता बा रोवणवाळी सी हुयगी।

अेक बीनणी जकी अबार तांई बोलबाली ही। उण सूं भीं अैड़ी अणखावणी बात सैंयीजी नीं।

“थांनैं जिठाणीसा कोई सूं कदै सूं वो बोलणो आवै है कांअी” बोलाळ बीनणी रै चेहरै माथै अपराध बोध भळकै हो। गेलै में तीनूं बीनण्यां घरै आई जठै चुपचाप आई, अर कनै-कनै रा आप-आप रा फळसां में बड़गी।

फूलां जड़ियो औरणो उतारती बगत उणनै घणो दरद हुयो। उणरो मन तो करै वा उण औरणै नै उतारै नीं पण उण कनै अेडै-टांकलै ओढण खातर एक हीज औरणो है अर एक हीज पूणी दो भरी रो हारियो। बरत री कहाणी सुणन नै जांवती वैळा उण आं दोवां चीजा नै घणै भाव सूं पैरी ओढ़ी ही।

हारियो खोल’र उण देख्यो-डावै कानलै फूल रो अेक नाको तो सफां धसीज चुक्यो हो। झलवाणो पड़सी। लारै आंने केयो हो, झळवाय’र लाय दैया। इतो धिनक नांव है, अेडै-मेढ़ै पैरण जिस्सो रैय जावै ज्यूं। पण म्हारी रांड री कुण सुणै है। केवै-कोई ढंग रो सुनार मिलै तो झळवाऊं नीं। अठै तो सगळा नकां जोगा है। झलाई-झलाई में साम्है बैठ्यां री आंख्यां में धूड़ नाख देवै। अेकर डोरै सूं बांध लै। कणै बख पड़सी जण झळवाय देसूं। आंनै अबै कुण समझावै, नाकै री भळाई-भळाई में आगलो खा’र कोई सगळो हारियो तो खावै कोनी। तुण खण राखसी जको तो सोनार री जात सूं रैयीजै कोनी, मर्‌या छोडै नीं।

उण नै अेक बात चेतै आय’र हेंसी आयगी।

आप काल रै दिन अडाणै मेल्यो हो जणा जात रो तो घणाई बांमण हा पण पाछो छुडवाय’र लाया जणा बिचलै फूल हेटला तीन घूघरिया कोनी हा। अे तो ग्यालै दांई लियाया, हूँ केयो इण में तो नीचली फांकड़ी सूं घूघरिया निकळ्योड़ा है। नीची ढूंढ घातली। फगत इतो केयो-करसी जका मरसी-म्हारै सूं तो अबै जाय’र इयां को कैयीजै नीं कै थे इयै मांय सूं घूघरिया काढ़ लिया। आगलो सीधी नाक माथै खळकावै—हां म्है काढ़ लिया घूघरिया-ई बापड़ै सहूकार कानी देखो रै-अठै सोनो नांव रा दरसण आज अिण कराया है। हूवा तोड़ लिया तो फूटा बांरा। हूं तो बुहार बिगाड़न नै जाय’र कोनी कैवूं कै थे पिंडतां हारियै रा घुघरिया तोड़ लिया। बळो आगा-भोगो। ब्याज भोग्यो है नीं महीना बा रो। आगलै तरनाट करतो तीन रिपिया सैंकड़ै सूं लियो है नीं। हाथी तुलै बठै गधेड़ा काण में जावै। मिनखा सरीर रै काम पड़तो रेवै। आं रो कांअी-ज घसकायोड़ा हुवै जणा काल पाछा किसै मुंहडै सूं जावां। चीज मैल’र भी पईसा देवण नै त्यार कोनी हुवै—नां भाया म्हांरो तो घणो सोनो देख्योड़ो है। भळै थारै काल नै घूघरिया तूट जावै। इसी जगां मुंहडो फलको सौ कर’र रैवणो पड़ै। गरीब रो घोरको कर्‌यां जोर कोनी चालै, पेट मोटो करणो पड़ै। गरज आपरी हुवै। अेडा-मेडा तो चावै गरीव हुवो चावै अमीर सगळां रै पड़ता रेवै, अर अेडे-मेढै में आंनै सिंवणा पड़ै ले बीरा हूं कांअी कांअीं सोचण लागगी काम नै तो मोड़ो हुय रैयो है पड़ी हारियै रै सोच में दूबळी हुवण लाग रैयी हूं...गड़को लैय’र आवण वाळा व्हैला अजूं-रोटी टुकड़ै री कोई तजबीज नीं है...

उण हारियै नै अक डब्बी में धर’र काटीज्योड़ी सिंदूक में कपड़ां रै हेटै धर दियो।

बा साळ सूं बारै आई जितै में छोटोड़ी छोरी जागगी ही। गूदड़ां में बैठी छोरी ठिठकण लाग रयी ही। बडी बड़ी छोरी सायर उण नै भुळावण में लाग रैयी ही, पण मां नै देख’र अर कीं दिनुगै-दिनुगै उठतां आपरी बाण रै मुताबिक सायर री भुळाई रैयी कोनी तो उण केयो— “मां बैन नै ले, म्हारै सूं रेवै कोनी”।

“आवूं बेटा आवूं, आज तो कहाणी सुण नै जावण सूं सगळा काम रैयग्या...फूस बारी कढ़ी नै की बंटो भंटो चढ्यो, पाणी वाळो तो अबार कूवो बंद कर देसी, पाणी नै न्यारो मोड़ो हुयग्यो, थांनै स्कूल खातर न्यारी त्यार करणी है... बा संतूड़ी कठीनै गयी?”

“बा तो उठतां बारै गई मां खेलण नै...”

“हुवा गई तो बा किस्सो काम करै है केयोड़ो। अळबादण है बाळण-जोगी, कुदड़कां रै सिवाय कीं चोखो कोनी लागै बींनै तो। घड़ी स्यात ईं टींगरी नै राख लेवै तो तूं तो कीं स्सारो देवैं नीं...”

“बुलाय’र लावूं कांअी मां?”

“नहीं रैवण दे...बा पड़ी बुहारी तूं थोड़ो आगणै रो छींछो काढ़ दै...बितै हूं इनै बोबो दे देवूं...”

छोरी मां री गोद्यां में आंवतां दापळगी।

सायर आंगणै री बुहारी काढ़ती जावै ही। आंगणै रै बिचाळै राती अर धोळी माटी सूं बणायोड़ै चौक माथै उण अधर-अधर बुहारी फेरी। चौक अबार होळी माथै उण री मां बणायो हो, अर उण नै वो आंगणै रै बिचाळै भोत चोखो लागै। छोरी हाळ नवू साल री नीं हुयी ही पण समझणी किती। सगळै घर रा कंवळा बण्गया तो मां रै सागै आफळी। किस्सो काम हुवो, बख नीं पड़ो पण लटूमण नै त्यार रेवै।

मां सायर नै फूस काढ़तां हिंवळास सूं देखण लाग रैयी ही सागै बोबो लेंवती छोटोड़ी छोरी रै कंवळा भूरा बाला में हाथ फैर रैयी ही।

सायर आंगणै रै दिखणादै पासै बणायोड़ै झूंपड़ै रा खिर्‌योड़ा डोकां नै बुहारी छेड़ै मैल’र भैळा करण लाग रैयी ही। उण झूंपड़े कानी गेहरी दीठ सूं जोय’र आपरी मां नै केयो—

“मां झूंपड़ै री छावण अबै नूंवी करावां जद हुवै, अे डोका तो भुरण लागग्या।

“थारै जीसा नै केयी कै सरकंडा मंगवावो झूंपड़ो छवावां ज्यूं”। कनै कीं गड्डा-तुळवा री खाली पेट्यां जिणां में थोड़ाक-थोड़ाक गुवार रा दाणा घात’र मै’ल दी। धाप’र दड़ादौर हुयोड़ी छोरी रमण लागगी।

“सांयर हूं पाणी लियावूं, फूस तो कढ़ग्यो। छोटोड़ी बाल्टी सूं पाणी काढ़’र बंटैड़्यां में घाल दैयी अर बंटो ऊर दैयी। पाणी घणी नां घाली, पड़्यो इयां ऊफणैला। खात आली हुयगी तो बंटो सिंझ्या तांई को सिजैला।

छोरी हां रै लटकार में नस हलादी तो वा इढूणी सिर माथैं धर, घड़ियो मोड़ै सूं बारै निकळतां सिर माथैं आडो धर लियो अर बहीर हुयगी।

गेलै में वो सोचण लागगी

लुगायां किती मटबोली हुवै...छोरो-छोरी किस्सो मिनख रै सारै हुवै...काल म्हारै साम्है परणीज’र आई। भिड़तां एक टिंगर कै हुयग्यो फुलीज छिंट्याळ हुगी...आस माता भूल जावै...और कोई माता भूल जावै, बातां किती आवै नादीद्यां नै...

पिंरूं दिस्सां जांवती कैवण लागगी...म्है तो एक टाबर और हुंवतां अपरेसन करवाय लेस्यां घणै की खादै में कांअीं पड़यो है। अबै करवावै नीं कुण पालै है तनै...शरम बायर्‌यां हर कोई नै चोबको देवण ने त्यार रेवै...

कुवै माथै छीड़ ही, उण बेगी सी घड़ो भर्‌यो अर बहीर हुयगी। लुगायां छीड़ हुवो चावै भीड़ सागै नै उडीक बो करै, पण बा तो को रावकी में नीं कोई देवकी में। सरड़ सरड़ गई अर आई। दूजी लुगायां जिती हलर-फलर बीं नै आवै कोनी।

घड़ो लैय’र घरै आई तो उणरो मोट्यार गाडां सूं नारो खोल रैयो हो अर सायर-संतूड़ी नै सिनान करावण लाग रैयी ही।

‘मोड़ो हुयग्यो अबार एक घड़ियो ही ल्याईज सी बाकी सिंझ्या ल्या सूं, अै गड़को लैय’र आयग्या, अठीनै छोर्‌यां नै जीमाय’र स्कूल भेजणी हैं।”

वा रोट्यां पोवण लाग रैयी ही। मघाराम हाथ मुंहडो छोय’र रसोई में आयग्यो। रोटी री सुगंध सूं उणरी भूख ही जकै सूं घणी बधगी उण सूं कैयां बिना नीं रैयीज्यो।

“रोटी बेगी सी घाल...आज तो भूख अकरी करड़ी लागी है।”

“आज इत्ती अकरी कियां लागी?” वा मुळकतां साम्ही झाकी।

“कांअीं ठा।” केवंता, उण थाळी गमछै सूं पूंछ’र साम्ही धरदी।

“किता गड़का नांख आया?”

“दोय गड़का”

वो जीमण नै रोटी लैय’र बैठ्यो हुवेला कै बास में जोरदार रोळो माच्य। सागै लुगायां रो कूकणो अर सागै मोट्यारां रो हाको। पल भर में हाय तौबा सी मचगी। वो उठ खड्यो हुवण नै हुयो तो उण पाछो बैठाय दियो—

“बळनद्यो नीं थांरो कांअीं लेवै, थे थांरी रोटी जीमोनीं।”

“ठा तो करूं कुण लड़ै है?”

“ठा हुयोड़ो है रामकिसन बाबोजी रा बेटा लड़ै।”

कालै तो बिचेटिया छोरां मां नै धक्को दैय’र पटक नांखी, बापड़ी घणी किराई...रोवण जोगां थां पांचां नैं अे दिन देखण खात’र मोटा कर्‌या हा कांअी...पण बाजां में पूंपाटी रा कठे नाका लागे...

बाप तो बापड़ो आं री कळै देख’र पांच दिन हुयग्या-बेटी रै सासरै गयौ परो आं खरसंडां सूं माथो कुण लगावै, मां हाड खोळा करवाय लिया...बडियाजी बात बात सटै बेटां रै गुमान में अरगीजता न्यारा फिरै...परसूं कोई गळी खड़ी पूछै जण केवा हा...पांच हैं रामजी महाराज रा...

लुगाई रै कैवण रै अंदाज माथै मघाराम नै जीमतां-जीमतां हेंसी आयगी।

“हां इमें हेंसणरी कांअी बात है...लुगायां मटबोली घणी हुवै, फट मुंहडो मचकोड़ देवै...ओय तीन छोर्‌यां है कांअी?...जाणै छौर्‌यां कोई उपर सूं पड़ै...

मघाराम नै और जोर सूं हेंसी आयगी। उणरी हेंसी में संतोख रो घणो सारो सुवाद हो।

स्रोत
  • पोथी : सूरज उगाळी ,
  • सिरजक : चेतन स्वामी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी विभाग राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूंगरगढ़ (राजस्थान)
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