सपनो तो आयो अर परो गियो पण मारवण री आंख्यां में पाछी नींद नीं आई। आंख्यां खोलै तो बारै अंधारो-अंधारो लागै अर मींचै तो अन्तस में घोर अंधारो। उठै, बैठै अर पाछी सोवै पण जीव ने जक नीं। गांव रै बारै ताल में कुरजां कुरळायी।
घर में सूती कुरजां रा बच्चा री सी लांबी गाबड़ वाळी मारवण रो हिवड़ो ही वां कुरजां रे लारै कुरळायो।
सपना में दीख्योड़ो ढोलो अणसैंधो व्हेतां ही मारूणी ने लाग्यो जांणै भव भव रो सैंधो वींरो ढोलो है।
बाळपणां में व्हीयोड़ा ब्याव ने तो वा सपना री नाईं भूलगी ही पण आज सपनो आयनै परतख ढोला ने आंख्यां आगै ऊभो कर दीधो। वींने चींतां आयो वींरो ही कोई है पण वा वींने नीं जांणै, वो वीने नीं जांणै। सपनो कांईं आयो, वींरा तन ने मन ने झंझेड़नै जगाय दीधो। कालै सांझ तांईं साथण्यां रे लारै दोड़ दोड़'र दड़ी रमती टाबरी यां चार पांच घड़ी में ही भावना रो भार उठायां जोध जुवान लुगाई व्हेगी। हिड़दै री वीणां माथै सपना री आंगळ्यां फिरतां ही सनेह रा सुर बाजण लाग्या। जठीने झांकै वठीने ढोलो ही ढोलो दीखै।
ताल में कुरजां यूं ही कुरळाय री ही, मारवण ने लाग्यो जांणै वांरी जोड़ी बिछड़गी जदी तो म्हारी नांईं कुरळाय री है। नीं तो वांरी आंख्यां में नींद है, नीं म्हारी आंख्यां में ही। यांरी अर म्हारी अेक सी गत है पण यांरे तो पांखड़ा है, मन करतां ही उड़ जावै, म्हारे पांख कठै जो उड़नै मिल आवूं।
मां देख्यो मारवणी अणमणी रैवै। साथण्यां सागै ढूल्यां खेलणों आछो नीं लागै, काम करवा रो जीव नीं करै। पै'लां ज्यूं दोड़, मां रै गळां में बांहां घाल लटकै नीं। हंसणी आंख्यां री कोर में टावस री रेखा साफ साफ दीखै। मां थोड़ा में ही घणो समझगी। चिन्ता व्ही। बेटी मोटी व्हेगी,
सासरा सूं कोई समाचार नीं। मौको देख राजा पिंगळ ने कह्यो, मारवण ने सासरै भेजणै री त्यारी करणी चावै।
“हां अतरा बरस व्हेग्या। नरवर सूं कोई समाचार लेर ही नीं आयो।
“वठा सूं नी आयो तो कांईं, आपां ही भेजां। ढोला ने बुलावो भेजो। डेढ बरस री ने परणांई जद ढोलाजी तीन बरस रा हा, बाई मोटी व्ही, वे ही जुवान व्हीया। या ढील कांईं काम री ?
“सांची बात तो या है, देवड़ी, म्हूं कतरा ही मिनखां ने कागद दे दे ढोला ने बुलावा भेज्या, जो गियो वो पाछो आयो ही नीं, म्हारा समाचार ढोलाजी तांईं पूगै ही नीं। ढोला रो ब्याव माळवणी रे साथै व्हीयोड़ो है, जो माणस पूगळ रा मारग सूं जावे जीने माळवण मराय दे।” पिंगळ घणां उदास व्हे बोल्या।
देवड़ी सलाह दीधी, “अबकाळै कोई जाचक ने भेजो जो वींरे माथै कोई वैम नीं करै। मांगतो खावतो नरवरगढ़ जाय ढोलाजी ने बातां सूं, गीतां सूं रिझाय अठै राजी कर ले आवै।
पिंगळ रे सलाह जंचगी।
राग रा जाणकार, बातां रा बणावण्या ढाढ़ी ने ढोला कनें जावा रो हुकम दीधो। मारवण दासी ने भेज, ढाढ़ी ने ड्योढी पै बुलाय, ढोलाजी कनें कैवा ने सनेसो समझाण लागी,
“थूं जाय ढोलाजी ने कीजे, थांरी मारवण बळ'र कोयला व्हेगी है, जायर वीं री भसमी तो भेळी करो। वीं रा पींजर में प्राण कोयनीं। थांरा साम्हा वीं री लौ बळ री है। वीं भला आदमी ने जायनै यूं कीजै, आतमा थारै कनें है सरीर ने भलां ही दूरो राख। ढाढ़ी, थनें ढोलो मिलै तो थूं जरूर कीजै मारुणी री आंख्यां थांरी बांट देखतां, सीपां री नांईं खुल री है, थां स्वाती री बूंद ज्यूं आय वरसो। योवन चंपा रे मोड़ आवा लाग गिया है, आय कळियां तो चूंटो। थांरी याद कर कर मारुणी कणेर री कांबड़ी ज्यूं सूखगी है।
पंथी ! ढोलाजी ने यूं कैवणों मत भूल जाजे के विरह री लाय लाग री है, आय ईं दावानळ ने बुझावो। थांरी धण कंवळ ज्यूं कुम्हलायगी है थां सूरज बण उगो। योवन क्षीर समंदर व्हेय रियो है, थां आय रतन क्यूं नीं काढ़ रिया हो ?
मारवण री आंख्यां में आंसू भर रिया, सांस नीं माय रियो, पग
रा अंगूठा सूं लींगरी काढ़ती, रूध्यां गळा सूं ढाढ़ी ने समझावा लागी, “ढोलाजी ने म्हारा नाम सूं हाथ जोड़ कीजे, आप म्हांने भूलग्या, कोई सनेसो तक नीं भेज्यो। बतावो जीवूं तो कीं रा आधार पै जीवूं। जो थां फागण में नीं आया तो होळी री झाळ में कूद पङूं ला।”
मारू राग में दूहा बणाय ढाढ़ी ने दीधा, “ये ढोलाजी रे मूंडागे गाय सुणाजे।”
ढाढ़ी मुजरो कर सीख लीधी, “जींवतो रियो तो ढोलाजी ने लेर आंवूंला, मर गियो तो वीं देस में रैय जावूंला”
वादळा छाय रिया, अंधारी रात में बीजळ्यां ओळां खैंचती, आंटा खाती, चारू कानी चमक री, जांणै इन्दराणी रा काळा घाघरा में सुनैरी जरी रो काम व्हे रियो व्है। माळिया में ढोलो सूतो बीजळ्यां खिंवतो देखै, माळिया रे नींचला घर सूं गाणै री तान ऊंची ऊठी। सीळी रात में मलार राग, झींणीं झींणीं पड़ती मेंह री बूंदां रे सागै, मधरा मधरा चालता पवन में भरगी। ढोलो, फण ऊंचा कीधो नाग ज्यूं राग पै झूमवा लाग्यो। गावा वाळा मीठा गळा सूं साफ साफ सबदां में कह्यो,
“ढोलो नरवर सेरियां, धण पूंगळ गळियांह।”
ढोलो चमक्यो, वीं रो अर वीं री बाळपणां में परणी मारूणी रो नाम ? सारो ध्यान अेक जगां कर सुणवा लाग्यो। बाळपणा रो ब्याव ! ढोला रो भूल जावणो !! मारूणी रा रूप रो बखाण !!! जांणै पोथी खोल आगै राख दीधी।
ओछा पाणी री माछळी ज्यूं ढोलो तड़फै।
बरखा बरसती री, ढाढ़ी गातो रियो, ढोलो सुणे।
आंखड़ियां डंबर हुई, नयण गमाया रोय।
के साजण परदेस में, रह्या बिड़ाणां होय॥
आंख्यां लाल व्हेगी, रोय रोय नैण गंवाय दीधा। साजन तो परदेस में पराया व्हे रिया है।
बहु धंधाळू आव घर, कांसूं करै विदेस।
संपत सगळी संपजै, आ दिन कदी लहेस॥
सारी रात ढाढ़ी गातो रियो, ढोलो सुणतो रियो। आंगणों, पोळ, ओबरा सारो घर जांणै मारूणी रा संदेस सूं भरग्यो। ढोलो सुणतो रियो, ढोल्या पै सूतो पण जांणै ताती खेह पै लोट रियो व्है। दिन ऊगतां ही गावा वाळा ने बुलायो।
“थां कठा सू आय रिया हो ?”
“पूंगळ सूं, मारवण रो सनेसो लेर। ढोलाजी री बाट देखतां देखतां, मारुणी कुंझ रा बच्चा री नांईं लांबी गरदन री व्हेगी है। वीं कंचनवरणो कामणी सूं झट जाय मिलो।”
दुज्जण वयण न सांभरी, मनां न वीसारेह।
कूंझां लाल बचांह ज्यूं, खिण खिण चीतारेह॥
खोटा मिनखां री वातां में आय वींने मन सूं मत उत्तारो। कूंजा रा लाल बच्चां ज्यूं पल पल थांने याद करती रैवै वा मारूणी।
आंसू सूं आला व्हीयोड़ा चीर नै निचोवतां निचोवतां वींरी हथेळ्यां में छाला पड़ग्या है।
जै थूं साहिब ना आवियो, सावण पहली तीज।
बीज तणै झबूकड़ै, मूंघ मरेसी खीज॥
जो थां सावण री तीज पे'लां कोनी गिया तो बीजळी खींवती देख वा मुगधा खीजनै मर जावैला। थांरी मारुणी रा रूप नै गुण रो बखाण नीं व्है। घणां पूरब रा पुन्न कर्योड़ा व्है जींने असी अस्तरी मिलै।
नमणी, खमणी, बहुगणी, सुकोमल सुकच्छ।
गोरी गंगा नीर ज्यूं, मन गरवी तन अच्छ॥
घणां गुण वाळो, खमणी, नमणी नै कोमल है। गंगा रा पाणी सरीखी गोरी, आछा तन अर मन री।
गति गयंद, जंघ केळ ग्रभ, केहर जिमी करि लंक।
हीर डसण विप्रभ अधर, मारण भृकुटि मयंक॥
हाथी जसी चाल, होरा जस्या दांत, मूंगा सरीखा होठ है। थांरी मांरवण के सिंघ सरीखी कमर, चन्दरमा जस्या भूंबारा है।
आदीता हूं ऊजळो, मारुणी मुख व्रण।
झींणां कपड़ा पैरणों, जांणै झांकेई सोव्रण॥
मारवाणी रो मूंडो सूरज सूं ही ऊजळो है। झींणां कपड़ा में सूं सरीर चमकै जांणै सोनो झांक रियो है।
ढोला रो काळजो उछाळा खावा लाग्यो। मन पंछी व्हे अर प्राणां रे पांखां व्हे तो ईं वन ने उलांघ वठै जाय पूगै। मन, मारवणी कनें जाय पूगो जांणै बाज पंछी ने मूंठ में भरनै उड़ाय दीधो व्है।
आंख्यां में हंसती, छाती पै मोत्यां रो हार हलावती माळवण, मुळकती ढोला कनै आई। ढोला रा डोळ देख, उठ्योड़ा पग थमग्या। “यूं क्यूं ? काले हा जो आज नीं। ललाट माथै त्रिसूळ, नाक में सळ घाल राख्या है। कांईं बात है ? कठै हो मारवण री बात तो याद नी आयगी।”
कनें बैठ पूछण लागी “आज हंसो नीं, बोलो नीं, कांई म्हारा सूं रूसाया हो ? चिन्ता कीं री ? बतावो तो।”
“थूं स्याणी है। सब समझै। हिरणाक्षी, राजी व्हे सीख दे तो दिसावर जावूं। देस देसान्तर देखूं।” ढोले भोळावो दीधो।
तंती नाद तंबोळ रस, सुरही सुगंध ज्यांह।
आसण तुरी पर गौरड़ी, तिको दिसावर क्यांह॥
“जींरा घर में मीठा सुर रा बाजा वाजता व्है, तांबूळ रस नै सुगंधी व्है। चढवा ने आछा घोड़ा, घर में रूपाळी स्त्री व्है, वींने दिसावर जाणै री जरूरत कांई ?” माळवण उत्तर दीधो।
“ईडर जावूं तो थारै गैणां घड़ाय लावूं।”
“घर बैठ्यां ही गैणां मंगाय लेवांला।”
“मुलतान सूं घोड़ा खरीद लाणा है।”
“सौदागर अपणै आप अठै लेय आवैगा। थां छांट छांट नै बांका मूंडा रा घोड़ा खरीदजो।”
ढोला घणां आळखा लीधा, कच्छ में यो काम, गुजरात में वो काम। गैणां लावूं, चीर लावूं, मोती लेर आवूंगा।
“ढोलाजी, थां अणमणां व्हे रिया हो, नखां सूं भींत खुरच रिह्या हो। सांच सांच बतावो मन में कांईं है ?” माळवण रो वैम बढ़तोग्यो। “मारूणी सूं मिलणै री इच्छा व्हेय री है” धीरै सूं ढोलो बोल्यो।
माळवण तो सुणतां ही धड़ाक आंगणै जाय पड़ी जांणै सांप खायग्यो है। वींझणी कर, पाणी रो छांटो दे चेतो करायो। ढोलो जाणै री त्यारी कीधी। जद माळवण बोली,
“अबार चोमासा में कदे ही कोई घर सूं वारै नीसरै ? ईं रुत में तो बुगला ही धरती माथै पग कोनी देवै। पपीया बोल रिया है, कोयलां सुरंगा सबद कर री है, डूंगर हर्या व्हे रिया है। इसी रुत में बारै कुण जावै ? कै मांगवा वाळा, कै चोर अर कै चाकर घर छोड़'र नीसरै। नदियां
चढ री है, बादळा झर रिया है, यां सुवांवणां दिनां में महूं थां बिना किस्या
रैवूंगा। धरती तो लीली लीली दीखैला अर थांरी माळवण थांरे गयां सूं पीळी पड़ जावैला। म्हंने यां बादळयां री नांई रोवती छोड़ कठै जावो। चोमासै चोमासै ठैर जावो।”
“दसरावा तांईं और रुक जावूंला” ढोलो निसासो न्हांकतो बोल्यो।
आज धरा दस ऊनम्यो, काळी धड़ सखरांह।
वा धण देसी ओळंबा, कर कर लांबी बांह॥
इन्दर धरती साम्हो उलळ रियो है, मगरा रा टूंचकां ने वादळ्यां छाती सूं लगाय राखी है। वठै बैठी वा मारुणी बांहा आघी कर कर म्हंने ओळंबा देय री व्हेली।
दिन रातां कांई देर लागै ? चोमासो निकळयो, दसरावो ही निकळ्यो। अबै ढोले पूंगळ जाणै री त्यारी कीधी,
“अबै पूंगळ जावा दो, थांरे कैवा सूं चोमासो रुकग्यो, सियाळो आयग्यो अबै जावूं। हंस'र विदा करदो।”
ये सियाळै रा दिन ही कोई जांणे रा व्है ? पाळो पड़ै, घोड़ा ने ही टापर ओढाणी पड़ै। जीं रुत में सीपां में मोती नीपजै, हिरण्यां ग्याभणी व्है, उत्तराध रो तीखो पवन चालै अस्या दिनां में ही कोई घर छोड़'र जावै ? यां दिनां में तो सांप ही बिल नीं छोड़ै।
उत्तर आज स उत्तर ही, बाजै लहर असाधि।
संजोगणी सोहावणी, विजोगण अंग दाधि॥
उत्तर रो पवन बाज रियो है, पाळा री लै'रां चाल री है। संजोगणियां ने तो सुख देवै पण विजागणियं नै बाळनै राख कर देवै।
माळवण कैतो री। ढोलो सवार व्हेग्यो। माळवण डब डब आंख्यां करती, झब झब करती पागड़ा रे झूंबगी।
ढोलो बोल्यो, म्हूं जावूंला जरूर। थांने नींद आय जावैला, सूता ने छोड़ विदा व्हेय जावूं ला।
अबै माळवण सोवै हीज नीं, अेक पल ढोला ने अेकलो नीं छोड़ै। ढोलै आछा तेज चालण्यां ऊंट ने जो अेक दिन में सो कोस रो गैलो काटै, पलाण त्यार कर राख्यो।
माळवण ने जक नीं। यूं करतां करतां पनरा दिन बीतग्या। माळवण री आंख्यां सूजगी, अेक दिन नींद री हारी री पलकां जपगी। ढोलै तो
ऊंट ने पागड़ै लगाणै रो हेलो मार्यो। चट ऊंट पै सवार व्हे अेड़ मारी। ऊंट 'बळ बळ' बोलतो उठ्यो। ऊंट री बोली सुणतां ही तो माळवण चमकी, देखै तो कनें ढोलो नीं। गोखड़ा में जाय नीचै झांकै तो ऊंट पै सवार ढोलो जावतो दीख्यो। ढोलै गोखड़ा में ऊभी माळवण ने देखी जांणे बीजळी तड़फी व्है। ऊंट री मोरी खैंची जो अेक पल में गाम रे बारै जातां ऊंट रो पळको माळवण ने पड़्यो।
माळवण हाका करती रैयगी, “कोई ढोलाजी ने रोको कोई ढोलाजी ने रोको।”
ढोलो ऊंट ने दोड़ायो जांणै उड़ रियो व्है। माळवण, कळपवा लागी। कदे ही विलाप करै, कदे ही ओळंबा देवै, ऊंट ने सराप देवै, कदे ही याद कर झूरै। वींरी चूंदड़ी रा चार पल्ला आंसूड़ां सूं भीजग्या, आंख्यां रो सारो काजळ बैयग्यो। कांचळी निचोवै जसी आली व्हेयगी। ढोला रा जाती वेळा आंगणां में पग मंड्या वीं धूळा री मुठ्यां भर भर छाती रे लगावै। ढोलो उमंग भर्यो, पूंगळ रो मारग पकड़्यो। घणां घणां कोड करतो मोटा मोटा मनसूबा बांधतो काळा ऊंट रे कामड़ी मारतो “सांतरो चाल, सांतरो चाल” करतो, घाटी, वन डूंगर पार करतो बढ्यो। गैला में
टीबां रे माथै अेक गुवाळिये देख्यो, ऊंट रा गळा में झींणां-झींणां घूघरा बाज रिया है दोई आड़ी ने जीण रे लाम्बा-लाम्बा फूंदा लटक रिया है, ऊंट अस्यो चाल रियो है जांणै पाणी रो रेलो बैवतो आय रियो व्है। सवार रो मूंडो कोड सूं चमक रियो है।
गुवाळियो बोल्यो, “घर कोई गोरी बाट नाळ री है जींरै खातर अस्या सी पाळा में भाग्यो जाय रियो है ?”
“चांद जसी मारुणी सूं मिलबा जाय रियो हूं।”
“वा तो म्हारी साथण है म्हूं मारवण रो मिंतर हूं।” गुवाळियो मन में हंसतो बोल्यो।
ढोला रा हाथ सूं ऊंट री मोरी छूटगी। कनें ही ऊमरा रो चारण आाय रियो। ढोला ने पूंगळ जातां देख वीरे लाय लागगी झट साम्हो झांक निसासो भरतो बोल्यो, “ढोलाजी, जी मारवाण रे खातर उमग्या जाय रिया हो वा तो बूढी व्हेगी सारो माथो धोळो व्हेग्यो। अबै जाय कांईं करोला ? घणा मोड़ा चेत्या।”
ढोला रो मन पींपळी रा पत्ता री नाईं कांपग्यो। आगै पग पड़ै न पाछा। बठै हीज ऊंट री मोरी थाम ऊभो व्हेग्यो। कांई करूं कांईं नी ? अबे घरै जाय गाम रा मिनखां ने कस्यो मूंडो बताऊं।
साम्हो अेक आदमी आतो दीख्यो। उदास व्हीया ढोलै पूछ्यो “पूंगळ री मारवणी कांईं बूढी व्हेगी है ? जाणता व्हो तो सांच-सांच बताओ।”
“थांरी अकल कठै गी ? बांरो ब्याव हुयो जद थां तीन बरस रा हा, मारवणी डोढ बरस री ही, थां तो जोध जवान हो अर वा बूढी कियां व्हेगी ?” बटाऊ सवाल कीधो।
अेक पल रुकनै कह्यो, “मारू जिसी अस्त्री आज तांई नीं देखी अर नीं सुणी। मे'लां में जद वा बोलती व्है जद यूं जाण पड़ै कठै ही वीणा बाज री है। गळा में चांदी रो गेणौ पैर ले तो मारूणी रा बदन री छाया पड़णै सूं वो ही सोना रो सो दीखवा लाग जावै।”
ढोलै झट मुट्ठी भर मोहरां वीं ने देय ऊंट हकाळ्यो। पागड़ी नै कस'र बांध लीधी, मोरी ढीली मेली।
ऊंट तो बायरा सूं वातां करवा लाग्यो। सांझ पड़तां-पड़तां पूंगळ जाय पूग्यो। ढोलो मारवाणी सूं मिल्यो, मारवणी ढोला सूं मिली। जांणै उनाळा में जेठ रो लू सूं बळी बेलड़ी पै सावण री झड़ी लागी।
ढोलो चार दिन रैय, सीख मांग मारुणी ने लारै ले घरै विदा व्हीयो। ऊंट ने संणगार्यो। आगै ढोलाजी अर पाछै मारुणी ऊंट पै चढ्या। घर रो आसूधो ऊंट, उम्हाया ढोलाजी, वे ही आगता नै ऊंट ही आगतो।
ऊमरै सूमरै सुणी ढोलो अेकलो मारुणी ने लीधां जाय रियो है। वीं देख्यो मारुणी ने लेवा रो घणो आछो मोको। गैला रे बीचै जाजम ढाळनै बैठग्यो। ज्यूं ही ढोला रो ऊंट आयो रोकनै मनवार कीधी,
“आओ ! आओ ! मनवार लो। घणां मूंघा पांवणा पधार्या।” ढोलो, मारूणी ने ऊंट पै बैठी छोड़, आप जाजम पै बैठ मनवार लेवा लाग्यो। ऊमरा सुमरा रा मन में तो पाप, मोको देखनै ढोला ने मारवा री घात घाल राखी। मारुणी ने कांई वैम नीं। ढाढ़ी दूहा देय रियो, ढोलाजी अमल री मनवार लेय रिया।
ढाढ़ी री लुगाई पूंगल री। वा ऊमरा सूमरा रा मन रो पाप जांणै। छानैं सूं मारूणी रा कान में जाय कह्यो, “थांने लेवा री घोत है। ढोला ने ले भागो नीं तो मार्यो जावैला।”
मारुणी तो झट ऊंट रै कामड़ी री दीधी। ऊंट तो कामड़ी री लागतां ही उठ बैठ्यो, चालवा लाग्यो। ढोलै देख्यो ऊंट भाग रियो। झट ऊंट लारै भाग्यो पकड़वा ने।
मारूणी बोली, “धोखो, झट ऊंट पै चढो।”
ढोलो तो देतां ही पगड़ा पै पग नै ऊंट पै चढनै मारी कामड़ी री, ऊंट भाग्यो। ऊमरो “अरे अरे” करतो रैयग्यो। झट घोड़ा पे चढनै लारै व्हीयो पण वो काळौ टोरड़ो ! घोड़ा ने पूगवा कद देतो। घोड़ा पाछै रैग्या। ढोला मारूणी घर आया।
ढोलाजी मारूणी रे अर माळवणी रे साथै घणा आणंद सूं रैवा लाग्या।