चंदा नांव। जात री मालण। ब्याव छोटी थकी रो होयग्यो अर जद ब्याव सार कीं समझण जोग होई, विधवा होयगी। सासरै में एक देवर एकलो अर चंदा। सासू-सुसरा ठंडा दिनां सुरगां सिधार्‌या। पीवर में बड़ो भाई अर भाभी। मां-बाप बापड़ा कदास रा परलोक पधार्‌या। देवर कुंवारो, चांद-सी भाभी विधवा होयगी, उण नैं फेरूं के चायै। चंदा नै घर में घाल लीनी। जात-बिरादरी हाळां रो मुण्डो होयग्यो मीठो। भळै बोलण नै जगां रैयी कठै!

चंदा रा कीं दिन तो सुख सूं निकळग्या। पण, घणा दिन उण रै भाग में सुख कठै? उण री मामी रै एक कुंवारी बै’न। बा अबै ब्यावण सावै होयगी। चंदा रै नाते रै धणी नै मामी बरगळा लीन्यो। उण रै मन में ब्याव करनै नुंवी बीनणी ल्यावण रो लालच आयग्यो। वो बेगो चंदा सूं जियां-तियां लड़ाई-झगड़ो कर लीन्यो अर देय तड़ा री नै घरां सूं काढ़ दीनी। बापड़ी दुख्यारण चंदा रो जोर तो कीं चाल्यो कोनी अर आपरै करमां नै रोय-धोय नै, भाई-भोजाई खनै पीवर आयगी। न्यात हाळा मीठो मुण्डो होवण रै लालच में कीं-नीं बोल्या।

चंदा पीवर में रैवण लागगी। भाई-भोजाई बापड़ा घणा भला। घर में उणनै कीं-ई तकलीफ नीं। होवतो जिस्यो भाभी रै काम-काज में सारो लगाय देवती।

चंदा री भाभी नै जापै रा दिन नेड़ा आयग्या। घर रा काम-काज करण में उण नै तकलीफ होवण लागी। होळै-होळै घर रा सैंग काम-काज चंदा रै सिर ऊपर आय पड्या। घर रो बोझ बा संभाळ भी लीन्यो। तड़कावू उठ नै कूवै सूं पाणी ल्यावणो, भुवारी भूगरो करणो, टाटां दू’णी, रसोई करणी अर दूजा सैंग काज भी उणनैं एकली नैई करणा पड़ता।

चंदा री घर सूं पांवड़ा पचासेक परै धरमे रो कूवो। उणरो काको सुखो’र बो दोनूं कूवो बांवता। घर में इण दोनां सिवा ओर तीजो कोई नीं। काको-भतीजो दोन्यूं कुंवारा। धरमे रो बाप एक कुम्हारी नै घर मांय घाल लीनी। न्यात हाळां रो मीठो मुण्डो करवाणै रो जुगाड़ हो कोनी, जणा बै उण नै जात बारै कर दीन्यो। इणी’ज कारण सुखै रो ब्याव नीं होयो, बापड़ै री पचासी ढळगी। धरमो लाई कुंवारो तप रैयो।

रात रै एक पौ’र तड़कै दोनूं काको-भतीजो कूवो जोड़ देवता, अर एक हाथ सूरज चढ्यां खोल देवता, सुखो बळदां नै चरावण-प्यावण में लाग जावतो अर धरमो बाड़ी मांय सूं गाजर-मूळी रो खारियो भरनै बजार आय जावतो। लारै सूं रांड्या रोट सुखो बणा लेवतो।

बजार में साग मंडी मांय मालणां मालणां बैठ्या करती। उण मांय एक साग बेचणियो मरद—धरमो। धरमे नै बै सैंग मोल्यो कैया करती अर तरै-तरै सूं बापड़े री हंसी उड़ाया करती। धरमे ने झाळ तो घणी आवती, पण बापड़ै रो जोर के?

एक दिन चंदा कूवै पाणी नै आई। गैल सूं दूजी पणियार्‌यां उणरी तरै-तरै री बातां बणाई। धरमो बारा लेवतों बातां ध्यान सूं सुण रैयो।

एक जणी बोली “ए, स्यान-सकल री इसी सोवणी छोरी म्हे तो कदेई देखी नीं।”

‘आंख्यां कोड-कोड है बाळण जोगती।’

‘रंग पड्यो है गोरो, धोळो-धप्पळ।’

‘पण तकदीर में तो सुख को आथ नीं’

‘ना रामारी, तकदीर होवतो तो कठै-ई राणी को बणती नीं।’

‘हैं ए, बो देवर मरज्याने छोड़ कियां दीनी?’

‘बाई, मिलै कोनी जितरै मिलै कोनी, मिल्यां पछै मुण्डै आय जावै।’

‘बापड़ी बास री छोरी है, आपणै तो धीरज बंधाओ।’

‘धीरज बंधायां रैया करै के?’

कंई भद्रक है तो? घणो गांव नै खराब करैली।’

चंदा रो मैल धोय नै लुगायां आप-आप रै घरां चली गई। धरमो कूवो छोड़’र बजार आय नै दुकनदारी जचाई। पण, चंदा री बात भूल्यो नीं। बो चंदा रै रूप, आंख्यां रै कटाव, हाथ-पगां री बणगट अर कड़तू री लोळ, मांयली आंख्यां सूं देख रैयो।

इतरै में कोई ठाली बैठी मालण ठोल मार्‌यो, ‘आज तो रांडियां रै मुण्डै चिन्त्या?’

धरमे सुणी। झाळ घणी-ई आई। पण बोलै के? बो ओजूं चंदा रै बारै में सोचण लागग्यो। उणरै मन में आई, जै चंदा आपणो घर बासले तो किसी’क? अर बात उण है माथै काठी ढूकगी।

टाबरपण में चंदा धरमे सागै घणाई घर-कुंडिया खेल्योड़ी। पण, उणनै के ठा’क धरमो उणरै सागै सांचला घर-कुंडिया मांडण’र खेलण री सोच रैयो है।

दूजै दिन चंदा लुगायां सूं पैली कूवै आयगी। उणनै लुगायां री इत्तर-बित्तर बातां सुवाई कोनीं अर बा सुण्यो चावती।

कूवै माथै छोड़। धरमो बारा लेय रैयो। सुखो किल्ली संभाळ राखी। कूवै रै भूण री चरक-चरक, सारण में बैवते सुखै री बळदां नै टिचकारी, धरमे। बारिया बोलणा। वातावरण री साँयत में एक अजब सुवाणोपण लाग रैयो। बारो आयो जाण, धरमो चड़स नै चाठ मांय ओज्यो। चंदा आयनै ऊभी होयी। झट चाठ रै नाळै सूं बैंवतै खळळ-खळळ पाणी सामैं मूंणियों मांड दीन्यो। धरमो चड़स कूवै में झाल नै देख्यो, चंदा मूंणियो ऊचण ताणी ऊभी। दोन्यां री निजरां मिली। धरमे रै हाथ री लाभ कूवै में सरणाट करती बग रैयी अर मन सरणाट करतो चंदा खानी। सुखैनै किल्ली झलायनै बो मूंणियो उठावण ताणी चंदा खनै आय ऊभ्यो। एकर दोनूं आपसरी में एक-दूजै खानी जोयो। मूंणियो उंचावती बखत धरमे री छाती चंदा री छाती रै नेड़ै पूगी अर होलैसीक दोन्य’ रै आपसरी में सरड़को लागग्यो। दोनां रा सरीरां मांय बीजळी-सी पळका मारगी। बारै नै आवतां देख धरमो चाठ मांय आयग्यो। पण उण नै बारो झलणो दो’रो होयग्यो। उणरा हाथ-पगां मांय धूजणी-सी छूट रैयी अर मन में मोकळो उमावो लाग रैयो।

चंदा दोरी-सोरी कुंवै सूं तो उतरगी, पण पगां में उणरै सांच नी रैयी। छाती सरण-सरण कर रैयी, जाणै बिना सियाळै पाळो जमग्यो होवै। मूंणियो गेलै मांय पटक फोड़्यो। घरां रीतै हाथां पूगी। मुण्डो सिन्दूररळी छाय सो होय रैयो।

आखै दिन चंदा रो जीव उडूं-उडूं रैयो। घर रै काम-काज मांय मन नीं लाग्यो। रैय-रैय नै छाती में ठंडी झुरझुरी छूट रैई। उण नै ठा’तो हो’क कंई होय रैयो है। पण, बा जाण’र नीं जाण सकी क्यूं होय रैयो है?

एक दिन धरमो मालणा रो मुण्डो सीम दीन्यो। बजार री मालणा उण खानी ईरखा सूं देख रैई अर बो उणा खानी जोवतो मुधरो-मुधरो मुळक रैयो। आखै गांव में होयगी’क चंदा धरमे रो चूड़ो पै’र लीन्यो।

धरमो न्यात बारै। चंदा उणरो चूड़ो पै’र लीन्यो। बात न्यात हाळां रै मुण्डै आई अटकै। न्यात रा पंचा चंदा रै भाई नै बुलाय नै तोड़्यो। मोको आयां मा-जाया भाई पळट जावै। चंदा रो भाई साव कैय दीनी’क ‘थै जाणो’र बा रांड जाणै। थारै जचै जियां करो।’ न्यात हाळा देख्यो, उणरो दोस कोनीं। पण बै चंदा नै धरमे रै घरां नीं देखणो चावता।

धरमे री एक लाई-लागती दूर री मांवसी। भाटा भिड़ावण’र काटां बाळावण में हुस्यार। न्यात हाळा उण नै पाटी पढ़ाय नै त्यार कर लीनी।

एक दिन, जद सैंग मालणा बैठी, धरमे री मांवसी सैंगा नै सुणावंती धरमे सूं बोली—‘अरै धरमां। बेटी रा बाप, अबे तूं क्यूं म्हारै में बैठ‘र लुगायां रो पाद सूंघै रै? तेरै घरां घोड़ो-सी लुगाई! खारियो लेय नै आवतां उणरो काठियो फाटै?’

सुण’र सैंग मालणा जोर सूं खळळ-खळळ हंस पड़ी। धरमो लज खाणो होयग्यो।

दूजै दिन सूं चंदा साग बेचण बजार जावै लागी। पण, घणां दिन उणरी पग्गी लागी कोनी। मालणा उणनै टिकण थोड़ो देवती। आतो रांड छाकटी है, ‘मालजादी रांडां रो कंई भरोसो एक बरस खसम नै मर्‌या को होयोनी’र नुवों चूड़ो पैर लीन्यो, ‘देवर सूं धाप को आई नीं तो धरमो लाधग्यो!’ सैंग बातां सुण-सुण चंदा रो जीव घणोई बळतो’र छेंवट नीं सैंई गई तो धरमे सामैं रोय दीन्यो।

धरमो ओजूं बजारां बैठण लाग्यो। मांवसी कठैंई नीं मरी, आगै त्यार लाधी। एक दिन बा फेरूं सैंग मालणा नैं सुणाय नै धरमे नै कैयो—‘वा’! बेटा धरमां, चोखी रांड घरमें घाली। लाज, सरम। ओर मालणा कंई बाजार में को बैठे नीं। थारली रांड तो तेरी रैई-सैई स्यान धूळ मांय रळा दीनी।”

धरमे ने घणी झाळ आई। बोल्यो—‘क्यूं हाय-हाय करै। बात के होई जिकी बताय आधी?’ मांवसी बोली, ‘लाडेसर, तेरी मा जीवंती कोनी जणा तूं आज कैवै’क क्यूं हाय-हाय करै!’

‘अरै तो बात तो बतावैली’क?’

‘ऽऽएऽऽ, बा तेरी रांड उण राज हालै सिरदारजी सूं सैंगा आगै हंस-हंस आंख्यां लड़ावै अर उणनै नितरा सींत रा साग जिमावै। गोपीनाथ बाबै हाळै मिन्दर रै पुजारीजी हाळो छोरो रोजी नै एकानै रै साग रो रिपियो-रिपियो देवै। क्यूं रै बेटा, उणाने घरां बैठी तेरी चंदा री सोरम को आवैनीं।’

धरमे री बोलती बंद होयगी। सैंग मालणा हंस रैई खळळ-खळळ। धरमे री झाळ मांवसी खानी सूं चंदा खानी मुड़गी। चंदा रा किरतब सुण नै धरमे रै तन-मन में आग लागगी।

मांवसी किसी बात खतम कर दीनी। बा कैवती जाय रैई, ‘जिण मरदां में कीं ऊरमां नीं होवै, उणरी लुगायां बिगड़ै। बो क्यां रो मरद जिको आपरी रांड नै बस में नीं राख सकै।’

मांवसी एकर चुप रैयगी। धरमो रीसां भरग्यो। उणरी आंख्यां किरोध सूं लाल-लाल होय रैई।

मांवसी भळै बोलणो सरू कर दीन्यो, ‘बेटा, मेरै तो कैयोड़ै रो दोरो मतना मानी। मेरै तो तूं कीं लागै अर जीव दोरो होवै जणां कैवूं। लुगाई रो कैयो-कैयो करै जणा तूं जाण तेरी। पण मेरी बात चेतै राखी, बा तैरै घरांई सोरै सांस नीं रैवैली। तनै बीनणी चायै तो मनै क्यूं कैय नै! सो छोर्‌या कुंवारी भेळी कर देवूं। नातै आई रांड’र गोद रो बेटो कदै निहाल करै नीं।’ मांवसी आपरी बात खतम कर दीनी।

धरमे सूं घणी ताळ नीं बैठ्यो रैयो गयो। उठ’र चाल्यो तो सैंग मालणा हंसी। धरमैं री बळती में पूळा पड़ाया।

चंदा धरमे सूं घणो हेत राखती। उणनै देवता कर मानती। उणरी कैयोड़ी बात कदै नीं टाळती। वा हर बखत धरमे नै राजी राखती। पण इणरै उपरांत भी धरमो उणनै बिना मुतलब मार-मार नै झेझर कूटो कर नाख्यो। चंदा अधमरी होयगी!

आप-आप रो स्वाभिमान तो सैंगां में होवै अर सेंगां नै प्यारो लागै। चंदा दुख्यारण तो ही पण स्वाभिमान उणरो नी मर्‌यो। बा घणी मानेतण, आपरो इतरो बड़ो अपमान नीं सै सकी। चे’ना रो पेट लेयनै घर सूं, गांव सूं निकळगी।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कहानीकार ,
  • सिरजक : रामप्रसाद चाकलान ,
  • संपादक : दीनदयाल ओझा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्थान, जोधपुर ,
  • संस्करण : 2010
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