आबू देस रै पसवाड़े आड़ावळा री सांकळ माथै लोहियांणा रो दुरग हुतो। तठै राव नरपालजी राज करता। लोहियांणौ देवळ राजपूतां रो ठिकाणो। सिरोही नै मारवाड़ रै सीमाड़े रो ठिकाणो। आडावळा रै सबाब सूं इण जगै री घणी मोटी बडाई। लड़ाई-बेध रै आछै मोकै री जगै। ठौड़-ठौड़ पाणी रा झरणा। धोक, गंगैरण, बेरड़्यां, कैर नै बीजा अणपार जात वृछां सूं भाखरमाळ लहरकै। पाणी री सजळाई सूं आछो नीपाळौ परगनो गिणीजै। बचाव नै निपज दोन्यूं कांनी सूं लोहियांणौ चढ़ती रो ठिकाणो। तिठा सूं मारवाड़ रो आबू कहीजै।
एक समै री बात, राव नरपालजी गादी मोड़ा लगा नै बिराजिया। भाई बेटा, चाकर-चूनपायंदा कनै जाजम पर बैसा। सांझ री बेळा। तठै जालौर सूं चाल नै मारवाड़ रा एक बारठजी आया। ‘काछ वाच निकळंक’— ‘सरणायां साधार’ रा विड़दाव साथै रावजी सूं मुजरो कीधो। रावजी बारठजी नै बैसण रो कहयौ। जालोर, नागौर, सेरगढ़ नै भाटीपै री चोख-तीख री बातां पूछी। तद बारठजी जालौर रै एक जोरजी रजपूत री सूरापण री बारता कही। कहियौ- ‘राज। जोरजी धाड़व्यां सूं खेटौ करै नै इण भांत सांथ रै पौढ़िया, जिण भांत कोई करामातिक पुरस पौढ़ै। च्यार धाड़व्यां नै एक बाण्या-बीरांणी री रिच्छा रै खातर मार नै मरिया। धाड़व्या रै वार सूं माथौ कटै पछै तरवार पछांट नै उणां नै बाढ़िया अर पछै तरवार मांज अर पल्लै कीधी। घणौ उजागर काम कीधो। इण कळु रै धोरम्धार हळाबौळ मांय सतजुगी काम कीधो।’
रावजी सुण नै घणी वाह-वाही दीधी। पछै कहियौ- ‘बारठजी! राजपूत हुवै तो इस्या हीज हुवै। कांई सबळो सूरमो हो। वाह, राजपूत वाह! उणरा मायतां नै लाख-लाख धन है। मोटी रजपूताणी सबळो ना’र जणियौ। रजपूतण री कूख उजाळी। प्रिथी मां सफला व्ही। वाह! रजपूत वाह! इयां तो इण सैंसार मांय लाखां मिनख नितरा जळमै। हजारां मरै। धरती माता नै बोझ मारै। खुरड्या घिस नै माचा री मौत मरै। साथरा री मौत मौटा हीज बड़भागी पावै। मिनखां जूंण पाय परकाज मरै जिका महाभागी हुवै। वाह! जोरजी, कांई टणकापण रौ काम कीधो। तरवार मंजाड़ नै पल्ले कीधी। करामातिक प्रवाड़ौ कीधो।
उण वेळां रावजी रो कंवर भड़े बैठो हो। उण आ वारता सांभळी। पछै पूछियो— ‘बारठजी बा। जोरजी सा, तरवार मांयले पल्लै मांजी कै बा’रलै’ मांज नै म्यान कीधी?
रावजी नै कंवर रो ओ पूछणो घणो अणखावणो लागियौ। रोसाणां व्है नै कहियौ- ‘अब रावळै’ मांयले पल्ले मांजनै बताड़ ज्यो?’
इण पर कंवरजी बोलिया- ‘हूं ही राजपूत रो डीकर हूं। मरणो-मारणो म्हांरो जात धरम छै। इब सूं पाचमें बरस बाबोसा राज नै हूं म्हांरी रजपूती दिखाड़स्यूं। ओ म्हारों पण छै। वचन छै सो परमाणीक है।’
रावजी रै एकहीज कंवर। बीस बरस रो। दोलड़ां हाडां जवान। होठां माथै चिन्नी-चिन्नी मूंछां मुळमुळावै। सिकार, घोड़ा, नै सस्तरां रो पारखी। बळधारी। इणी देवठणी नै ब्याव की थो हो। कंवर ओ पण झालियो-आ बात रावळा मांय पूगी। जदे सगळां सोच कीधो। आखा मिनखां मांय उदासी आई। थोड़ा सा दिनां मांय बात ये हाको फूटो। सगळां सगा गिनांयतां नै खबर पूगी। लोहियांणै कंवर ओ पण व्रत लीधो है। हैंग मिनख अचंभ्रम हुआ।
कंवरजी रै एक बड़ा भांण। उणां नै आपरै सासरै कंवरजी है इण पण रो ठांणो हुवो। जदै मोटो विचार हुवो। जीव धापै नहीं। तिण सूं आपरै सासरै सूं रथ जुताड़ नै पीहर आविया। इणां दोऊ भांण-भायां रै आछो जीव-जोग। बड़ौ नेह। कंवरजी बाईसा रौ घणौ मान करै। मन राखै। भाण री बात नै उथलै न। कहणौ लोपै न। जदै आखा हेताळू मिनखां बाईसा नखै जाय नै अरज कीधी। ‘बाईजीराज! कंवरजी ठाढ़ौ कवळ झालियौ। आज सूं पचीसवें बरस मांय परा काम आसी। रावजी विध है। पछै इण राज रौ घणी-धौरी कुण? हंस-केळ मांय बात उळझगी सो किणी भांत बात चांकै बैठांणौ। आपरी बात कंवरजी कदै नी टाळै। तिण सूं पांच बरस पण पूरो करण रौ कवळ है, नै पांच बरस आप और आगै आपरी कांचळी रा नांव रा मांग नै आ रे कराड़ौ। जिण सूं तीस बरस जातां बात पड़ै। नातर कंवर हठीलो छै। थ्यावस राखै नहीं। जदै बाईजी डावड़ी बड़ारण नै दरीखानै मोकळ नै कंवरजी नै राजलोक मांय बुलाड़िया। कंवरजी आया। भाई-भैण घणा हेत-मनेह सूं मिलिया। कंवरजी रै पण व्रत री बारता चाली। तिण पर कंवरजी रो अटल हठ जांणियौ।
जदै बाईजी कहियो—‘वीर। बाकी री बात तो घणी चौखी पण एक म्हांरी अरज है। जिण नै आरे करै तद तो कहूं। वाचा करै तो मांगूं। हूं थांहरी भांण छूं।’
जद कंवर कहियो। ‘आप री बात आगै कदी टाळी? जिण सूं आप अणविसास कराड़ो। आप तो कहो-पतियारो राखो। वचन छै। भांण रै आगै भाई वाचा दे छै। मांगौ से हाजर छै।’ तद वाचा ले बाईजी कहियौ— ‘बीरा! आज थां बीस बरसां छो। पांच बरसां पछै पचीसां मांय पण पाळवो ठांणियो छै। पछै पांच बरस रावळी भांण चावै छै। तिण नै देणो आरै कहौ। ऐ म्हांरी कांचळी रा छै।
कंवरजी कहियौ- ‘आरे छै। जीजाबाई, कबूल छै। आप पांच बरस मांग नै सखरो काम कीधो। कुंण जाणे- पांच बरस उपराड़ै कांई व्है तो कांई हुवै। मिनखा-जूण छै। राजपूत रो पण छै। ऐ पांच बरस आपरी नजर छै। आपने दीधा छै। हमैं काले परसो हीज पण पाळस्यां। दई जांणै पांच बरस केडै कीं खड़ बैठे। राजपूत रौ जमारो छै। पण लै अर मर्यां रजपूती लाजै। पण उजाळ्या रजपूत ऊजळै। जदी विचार कर सायरां कथ्यो छै—
‘जणणी जणै न वार वार, थिर रहै न कायाह।
राजपूत रा जीवणां, थोड़ा ही फुरमायाह॥’
बाईजी चावे हा सुलटी पण बात उलटी पड़गी। मामलो गूथळगो। क्यूं की क्यूं हीज व्हेगी। कंवर परभात हीज मरण नै त्यार हुवौ। राजलोक मांय मंजीरा मूंघा पड़ग्या। कंवर घणो पालियौ। रावजी रोकियौ। उणां री भाभा बरजियौ पण टस सूं मस न हुवो। कंवराणी आ सुण नै कायर मोरड़ी ज्यूं विलख उठी। अचेत धरती माथै तड़ाछ खाय नै पड़गी। पण पणधारी कंवर रौ बजरहिरदौ न हाल्यो।
पूनम रौ चांद गिगन मांय मुळक रियौ। घड़ी रात एक रही कंवर ऊठियौ आपरा बाल गोठिया अठारह साथीड़ां नै जगाड़िया। सगळां कुरळा फाकरलां कीधा। सिनान संपाड़ौ कीधौ। माता सूंधाजी री जोत लीधी नै आप आपरां घोड़लां नै पलाणिया। हथियार कसिया, राव नरपालजी री हजूर जाय मुजरो कीधौ। विदा मांगी नै भीर पड़ा। उण साथियां मांय एक खवास हुतो। तिण ने भोळावण दीधी कहियौ— ‘खवास, तू लड़ै मती। आंतरे भाखर सिखर पर वेस जाज्ये। म्हां लोगां रा तरवारां रा रटाका देखज्ये। अर जद सिर कट पड़ै ने पछै पांच चोटी कटां रा माथा बाढ़ै, तरवार मांयलै पल्ले मांजै अर म्यान घालूं। तरां तू कटार सूं पल्लो फाड़ नै लोहियांणे जाज्ये। पल्ला रो बटको रावजीसा ने नजर करज्ये। ओ सगळो काम थारै आसरै छै। इण भांत भोळावण देता थका वुवै।
दिल्ली रै मांय मुगलाई राज। माळवौ, बंगालौ, कामऊं, पंजाब, नै गुजरात आखा दिल्ली रा सूबा इण रै मांय पातसाही सूबादार रहै। सूबा रौ माल ऊगाय नै रोकड़ खजानौ दिल्ली मेल्है, सो गुजरात सूं खजानौ दिल्ली जाय रियौ। गुजरात मारग गोड़वाड़ सूं पाधरो दिल्ली जाय। अे घोड़ा पर चढियोड़ा अमलां मांय छाकियोड़ा। झळमळांता नूर, पौरस मांय भरपूर। घड़ी-पलक रा मिहमान बणियोड़ा गौडवाड़ रै घाटे आया। फौज सूं पसवाड़े आगै बध ने नाकौ रोकियौ। खजानौ लूटणो ठांणियौ। घोड़ां नै ठांमिया। जितराक मांय बादस्याही फौज नोबतां रै डंका गड़गड़ाती, फीलां माथै नीलां निसांण फहराती बळ मांय बावळी हुई थकी आय पूगी। इनै अे सतरा जोध जवान। एकण सांचे ढाळियौड़ा। केसरियां पाघां कियौड़ा। अतर सूंघां मांय गरकाब हुइयोड़ा। रणलाडा बणिया थका आगै बढ़नै सूबेदार रै हाथी आडा फिरिया। नै कहियौ, ‘नगारा ठांमौ ओ मारग बन्ध छै। आ हिन्दू भौम छै। औ नगारा बाजतां नी जाबा देवां। जावणौ व्है तो इकडंकियों बंध करो नै मारग रौ डांण भर पछै आगै पग मेलो।’ तिण पर सूबादार इणां नै समझावण कीधी। पण अै तो रणलाडा, मारण-मरण नै उमायोड़ा सो किण री सीख सुणै। आडा बोलै नै आपरी भुजावां अर तरवारां नै सतोलै। जदी फेर राटक माचियौ, लोही रो कीच मचियौ। मूंडक्या मतीरां ज्यूं गुड़बा लागी। आकास मांय चील-कांवलां री छपत व्हैगी।
पातस्याही फौज रा पांच बीसी सिफाई फौत हुवा। तरवार रा झाटका सूं कंवर रो माथो कट नै टप्पा सूं मोटा दड़ा की नांई उछळ एकानै पड़ियौ। आखा साथी सिरोहियां री धारा रै लाग नै किरची किरची व्हैगा। पण कंवर रो धड़ लड़ै नै पग आघा हीज खड़ै। पछै पांच आदमियां नै ओर बाढ़ नै कंवर आपरौ खांडो मांजियौ। अंगरखा री भीतरली चोळ मांजियौ। म्यान कीधौ नै भोम पौढ़ियौ। खवास गिरमाळ सूं नीचै आयौ। कंवर रौ अंगरखो नै कमळ लीधो। सम्राट घोड़ा नै लोहियाणां कानी पाधरो कीधो। लोहियांण पूग नै अंगरखो अर कमळ रावजी नै नजर कीजै। वीरता री सगळी वारता अन्त तांई अरज गुदराई। पछै कंवराणी रै सत चढ़ियौ। कंवर रै सीस नै गोद झाल नै सती हुई। अमर जोत मांय मिळिया।
बठा सूं पछै नाई पाछो नांठौ सो तीसरै दिन तीस कोस री छेटी माथै पातस्याही फौज नूं नांवड़ियौ। फौज नै दाकळी। लोह बजायौ नै पांच सिपायां नै मार नै आप मुवौ। इण भांत अठोत्तर सौ चोटी कटां री मूंड्या काट नै लोहियाणां रौ कंवर पण पाळियौ। राजपूत मरण नै मंगल गिणै आ बारता सांची कीधी-जाहर कीधी। राजपूत नै कहै- “थारो बाप मुवौ तो हाथी चाढ़ै। दूजां नै कहै-थारो बाप मूवौ तो गाळ काढ़ै।