बारलो गांव। फूस रा टापरा। टाळवां टोड चवड़ा खेतां खड़ा है। गाया-भैस्यां रा धीणा। अेवड़ रा छेड़ अर बाछड़ां रा वगेला चरै। कुमटा’र कैर खेजड़ां-रोहिड़ां रै बिचाळै छाकोटां अेक ढाणी बसै। तळै में कूइयां, पळै में पाणी। डब्बी सी तळाई भरी हिलोरा खावै। बरसाळो बभकै, लोक-परलोक री छियां पळकै। आपरी रंगीली दुनियां में डबकतो फिरै, मन छाकै नहीं, पण आज वो उन्नैं-बुन्नैं झांकै नहीं। दिल रो दरियाव छोळां चढ़ै। मनड़ो गरूर रा गिरंथ पढ़ रयो है। नूंवै गाणां रो गायबी तथा राग-रागणी रो रायबी!

धान सूं भरियो खेत, मतीरां रा मावा, साग-तरकारी री क्यारी जीमणवारां सूं सरीर सिबै। रागळी करै अर तानां छेड़ै! आपरै कंठ री किलकारी में तरास भरै। डील टूटै अर गरब फूटै। गैंगद बण्यो बैठो है। मुळक मावै नहीं। रूप रो म्हैंदरी बरसै। वो सदीव सोचै के कोई तरसै। पण आज जी जजमै नहीं। सुधियां सासरियै सिधावैलो!

खेत में लारै सोनो चमकै, वैं रो गात घणो गमकै। चालतो छियां देखै, जकी सिनेमा रील री सीबी-सी सरकै! मोवण धारै नूंवै, घरू चाल सुंवारै तथा आपरै ऊपर सागीड़ो रीझै! जाणै “म्हनैं घड़गी, बा बाड़ में बड़गी।” जांगळू धोरां में अेकलै बगतै रै जी में जाणै कठै सूं फूटरापै रो घमंड घेरा घालै? ऊगती जुवानी रो साचैलो धणी है। इसी ऊजळी अडूड़ आभा कुदरत कैयां कोरी? वो धोरी सैंग जगती नैं आप सूं फोरी जाणै। मन-मन में ही हंसै “म्हैं तो म्हैं ही हूं।”

बीच रास्तै खेत में खड़्यै साळै ‘जीजाजी’ कैय’र कनैं बुलायो। बोल्यो “ओ खेत आपणो है, थां जाणो नीं! घरां संझ्या चालस्यां। तावड़ो टाळल्यो अर जीमा-जूठो करल्यो। दफारो हूग्यो, आडटेड लगायल्यो। पड़ोसी अड़ीकै, थारै गावणै रा कोड करै। हणै काम छोड’र ढूकसी!”

कनलै खेतां सूं सैंघ साईना आया अर कोई पनजी, जीजोजी, कोई बहनोईजी कैंवता घणा हरखाया। कैण ही गजरी री मांग राखी, कैण गोपीचंद चायो। कोई आरसी अर इढूंणी री फरमायस ल्यायो। पण पनजी सगळां नै बड़ै गरब सूं पाछो अेक ही उथळो दियो के “आथण घरां चाल’र साज-बाज सूं सैंग भजन थानैं सुणाय’र सागीड़ा छका देस्यां! रोही में कांई फोई दांई बोक’र बाको फाड़ां?”

साळी-साळेली अडीकती रयी। रामी रूस’र जा सूती। आधी ढळगी, पण पनजी कीं नैं ही बातां नैं पांती नीं आयो। बेली अनजी आपरा सैंग भजनी बुला ल्यायो। ढोलक अर जींझां री जोड़्यां झणझणायगी। पनजी पारवा बोलै। ऊभा होय’र गावै। अेक हाथ में खड़ताल है अर दूजै में गमछो। पसेव नैं गमछै सूं पूंछै अर हवा लेवै। बीड़ियां रा बंडळ सभा रै सामणै घड़ी-घड़ी फैंकै अर खोपरां री चिटक्यां चलावै। गांवतो ही हुकम करै तथा सामां फरणावै। चौकी माथै मिनखा री चैळ-पैळ लैग रयी है। घर में लुगायां री गैगट्ट माचरी है। पण पनजी रै सासरियो सोखीं अनजी सैंसूं आघूंतो है। तीन दिन राख्या, जका गावण में बीत्या। चोथै दिन सागी मारग चाल भीर हुया। पण फूटरापै री बडाई सारी पनजी नहीं, प्यारी रामी भळै करती वगै। वा इण गाभरू रूप रा वारणा लेवै अर वारी जावै। गळै री सरावण में तो डाढ़ी गैली बणगी है। पारवी भजनां री पीठ थापै।

दूजी दुनियां में आवसी वा। अठै कोई सागी अर सैंधो-मैंधो ही नहीं लाधै। खेत आपरा सा ला’गै। जकां में आंवती बखत आखा पाड़ोसी सुणनै आया। वै नैं आपरै धणी रा गुण चेतै आया अर हिड़दै में ग्यान रो पारस लुकायो। अन्तरपट खुल्या, दे’ धूजी! पूरी रीझी ही नहीं के बालम री बोली आई

“कांई जोवो? फुटरापो या गोरो बणाव! इसी कळा अर बोवार कठै पड़‌यो है। म्हैं जित्तो रूप अर गुणां रो डळो हूं। थारै बाप-मा री सूझ, जको म्हानैं परणाई। टाबरां रो माइत बाजूं, पण ओजूं ही सुरग री अपसरावां-सी घणी हेला मारती फिरै। रीस अर ढाब ही म्हारी मोकळी है। सै लेवणै सूं घर-काज बणै तो बणै, नहीं तो चाल घोड़ी पावलो ही सही। नित नूवां साख जुड़ै-सांपजै। चुड़लाळी नैं घर-घर नूंतो है।”

बोल्या’र बोया, रामी जाण्यो पल्लै बंधगी। बेमाता काईं ठा’ काईं लिख भाजी? लारलो गम्यो, अगलो जम्यो नहीं! आज रो वरतारो भूंडो है तथा आउखो उळझ्योड़ो ऊंडो लखावै। आपरै गांव रा झुरावा आया। पण हम्मैं पीरै पाछी कैयां जावै! कंवळा दस्तूर मुड़्या, छेकड़ खूंटै सूं आय’र जुड़ग्या। मोकळा बरसां सूं माईतां री ओळूं आई। “वां फूटरापै में फंस नै लाडेसर बेटी नैं अठै परणाई।” भाई अन्नू री रीझ ही चेतै आई। पण कनैं बैठे पनजी पैल्यां ही कह नाख्यो के “थारै तो भगवान रा बेटा-बेटी है, म्हारै भरोसै किसी पार पड़ै? म्हे तो फक्कड़ हां, घरवेगी सूका लक्कड़ हां।”

काळां रा पो’रा, कुसमा वग्या! पांच बरसां सूं घरां दाणो नीपज्योड़ो आंखे नीं देख्यो। “जळो ही जथा” टाबरां रो जंजाळ बारकर फिरग्यो। अेक दिन लुक’र भाज भीर हुयी। रामी नावड़ी अर गांव सूं परियां कढतै रा जा पग पकड़्या “पांच बरस पीरै रयी, थारो काईं धरायो? आपरी रीत गड़का काटता। पइसो तो जापै-सुवाड़ ही अेक दियो नहीं।”

बोली “न्हाना टाबर, लुगाई रो जमारो। सूनै गांव में अेकली री बगबो कैयां होसी? गांव रा आखा लोग आप-आपरा बच्या-खुच्या धन-पसु अर टाबर-टींगर साथै लेय’र खावण-कमावण नैं मऊ गया। थे ही म्हानैं साथै ले जावो। दो दिनां सूं पाणी माथै परचा राख्या है। अेकला सूता आंख काढ़ै। अन्न तो बाळकां जोगो ही नी जुटै। हांचळ खालड़ै री कारी बण रया है। म्हारो कुण धणी है..!” पण पनजी बोलोबालो पाछो मुड़’र घरां सोवै। साल भर रो बाळक कनै ऊभै अर सूतै बाप रा बोबा पंपोळै। मंहगी अर मुसकल इसी के धान रा तो दरसण ही दोरा हो रया है। मिलगत टक्कै री नहीं, काठ तो भाठै सूं ही करड़ी वगै! पनजी सोचै जीवड़ा रात रै पल्लै सही, जाणो तो है ही।”

सातवों साल है अर पाळणा हुवै। इसी कैबत सांची है “जकै मामले में बाप कीं हिम्मत नीं कर सकै, मा वैं नैं आछी तरां पार घालै।” नागा उघाड़ा भाजता-फिरता भरचंड बण रया है। दो बेटा अर अेक बेटी! जकां वास्तै मावड़ी रात-दिन फंफती फिरै। जीवण रै नांवै डील री मरी ल्हास ढोवै। घणी बिरियां घर रो धणी चेतै आवै। पण आज ताणी कीं नै ही बतायो नहीं। आज भींयै दादै नै कैवण वाळी बात ऊकळी है। सुणी है जिसी बता बेसी। बेटी नै साथै लेय’र दादै रै घरां पोंचै। बेटी पूछै, “दादा! मा कैवै हिम्मटसर वाळा रामेसरजी लखोटिया आसाम सूं आया है। बै बठै टाबरां रै बाप नैं बतावै। थे आसाम जाय’र पत्तो लगावो। बाळकां रै हियाहोट जा रयी; म्हारै सूं देख्या नीं जावै।”

भींयो दादो बिरादरी रो चौधरी, गांव रो सिरैपंच! मोकळो परकाजू पण मालां रो ठोकाकड़! पइसां बिनां पांवडो धरै नहीं; मोटो तोगड़, फिरतड़ आदमी! डाढा झोड़-झंटा मिटावै अर साख-संबंध करावै। खरचै-पाणी रो टक्को ही घर सूं लगावै नहीं, पैलां धराय लेवै। पनजी रै कड़ूम्बै में सागी काको लागै। बोल्यो “छोरी, तेरी मा नैं कैय दे, लोग पड़्या फड़ी उडावै। हम्मैं पन्नो कठै? हुवै तो जरूर घरां आवै। हिया पछाड़ी लेल्यो बेटा! थोड़ा दिन भळे धाको धिकावो अर भीखो बुळावो। टाबर मोटा हूज्यासी, आखा फोड़ा भांग देसी।”

मा रोई, लारै-लारै बसबसाट करती छोरी गरळा उठी। लारनैं सूं दादै री आंख्यां भीज गई। रोटी भाई नींद आई। भूखो धायो पत्तीजै। पण दूजै दिन पुखता समंचार पूछ’र दादै कनैं दोनूं भळै गई। छोरी बोली, “दादा, मा हिम्मटसर जाय’र समंचार पूछ आई। बाबै नै ऊपरली आसाम में बतावै। दो बरसां पैल्यां मिल्या अर साधु बण्या फिर हा। थे जाय’र ल्यायसो जद ही घरां बड़सी। नहीं तो वां भेख बदळ राख्यो है। बेगा जावो, भळै कठै ही रम जासी।” मा-बेटी दोनूं बोलती-बोलती फीस पड़ी, दादै री छाती नीं रयी कड़ी, बाप-बारा टाबरां रो दुख देख्यो नीं गयो। बोल्यो “बेटा कैयदे तेरी मा नैं, आजकल में कोई चोखो बार देख’र बूवो जासूं। नासेट नैं कूड़ प्यारो! लाधणो तो म्हारै सारै है नहीं, पण बीस-तीस दिन गोता तथा गबका तो मोकळा खा आसूं। कालै सो-पचास रिपियां रो बन्दोबस्त करूं, थारै आघो दियो पाछो आवै धन, जद दे दिया। नहीं तो किसो बैसकै पड़ूं। अेक दादै रा पोता हां।”

दादो गुहाटी टप्यो अर पूछणो सरू कर्‌यो “अेक बिरामण, नांव पन्नाराम, पैंतीस-चाळीस रै मांय-मांय! गांव रिड़ी सूं रुळतो निकळग्यो। पांच-सात साल सूं आसाम में बोलै, साधू हुयोड़ो बतावै। कैण ही देख्यो-सुण्यो हुवै तो बतावो।” दादो डाबां-डाबां डोलै अर छन्याती बिरादरी रै लोगां सूं घणी पूछताछ करतो फंफै! पण, टीगरां रा भाग जागै नहीं, पन्नै रो पतो लागै नहीं! छेकड़ अेक दिन थोड़ी सुराख लागी। पनजी रै अैनांणां सिवसागर में अेक साधू ऊघड़्यो। दादो रातो-रात जा पूग्यो। हटवाड़ी में सुरगै करणै सूं सिवजी रै मिंदर में ठिकाणो पायो। दादै जाय’र मठ रा किंवाड़ खड़खड़ाया। अगड़ी अवधूत मांय बैठो मस्त माळा फेरै। जटाजूट, काळकूट किंवाड़ां री भचाभच बाजै। पण मोडो भोगळ खोलै नहीं। बैठ्यो ही बूझै “कूण है? मेरी भगती में भिजोक पड़ता है। मंदिर खुलेगा नहीं।”

दादो “म्हाराज जरूरी कारज है, अेकरसै खोलद्‌यो।”

साधू “बच्चा अब मंदिर नहीं खुलेगा, कल आणा!”

दादो “बाबा म्हैं ही सिवजी रो भगत हूं, साधू म्हाराज री क्रिपा हो जावै तो दरसण करल्यूं। बंधो है।”

साधू “अरे बाबा! तुम घरबारी लोग कैसे होते हो? फक्कड़ों के भजन में बाधा डालते फिरते हो। तुम तो कुछ करते-धरते नहीं; हमारी कमज्या को उजाड़णै आते हो।”

दादो “साधू म्हाराज रो सही फरमाणों है। पण म्हैं घणी दूर से चलाय’र आयो हूं। दरसण दिरावो बाप सा!”

साधू अच्छा बाबा! फक़त पांच मिनट के लिए मंदिर खोल देता हूं। मैं हारा तुम जीते!”

भरड़ भट्ट!! भोगळ खिंची खट्ट।”

मोडो धोळो हूग्यो, दादो भोळो बणग्यो। चुपाचुपी बात चोड़ै आयगी। जद दादो बोल्यो “पन्ना, के सांग है? लुगाई रो-रोय’र डीया फोड़ लिया। टाबर अडीकता-झींकता आंधा हूग्या। बेटी रा बाप, साधू ही जे होवणो हो तो ब्याव क्यूं कर्‌यो! देस चाल अर अबै तेरी गुवाड़ी संभाळ।”

सफा नटग्यो। बोल्यो “भेख नैं बट्टो लगावूं नहीं। तपस्या नैं धूवों चढ़ावूं कैयां? थे जाणो थारा टाबर जाणै! पन्नै रो तो संसारी नातो जाबक जातो रयो।”

दादो बोल्यो “भेख तो साधू रो चोखो पण साधू कींनैं ही दुख देवै, बात कठै लिखी है? भेख भगवों राख; पण नातेलां रो जमारो ही थारै दरसण सूं सुधार! भरथरी तो सातूं पीढ़्यां तारी! मा, भैण अर लुगाई नै बरोबर बतळाय’र भिख्या मांगी। अेक, दो पीढ़ी रो उद्धार तो आज रै साधू म्हाराज रो ही फरज है। घर रा ही नहीं, आखै गांव रा माणस सेवा करसी; जोगिया, डंड-कमंडळ उठावो अर गांव चाल’र धूणी धुखावो म्हाराज! देस में पूजीजो परदेस अर परभोम में अठै कुण जाणै?”

बाबै उठायो चिमटो अर झोळो, चढ़ग्यो रेल; दादो रच ल्यायो गांव रिड़ी में खेल! छेकड़ तो परचाय’र पन्नाराम कैवा देणो है। घर में बाड़ लियो, तेज काढ़ दियो, दरसणां वेगी भीड़ लाग रयी है। बाबो फीको, मोयो-मून्यो बैठो है; दादो इयां कामों में सदा सूं सैंठो है। सतवाड़ै पाछो बतळावै-के “पनिया, गाभा बदळ’र झींटा उतराय ले। कीं मिनखां रै डोळ हूज्या। बैरीड़ा म्हानै, भाई परसंग्यां में हेठा मत दिखाळ। घणा ही ठिठ कर दिया। मिनख अर मिनखां रो जायोड़ो है तो मिनख बणज्या। मिनखां री कैयी मान अर भेख अळगो बाळ।” फक्कड़ री आखी छिंयां-अक्कड़ उतरणी अर घरबारी बणग्यो।

सरजाम जुटायो, सत-संगत राखी। रामी रै जी री कमोदणी खिली। गाणै-बजाणै रै कोड में पग नीं टिकै। पनजी रा पारवा काळजै मंड्या है। चोराणै सूं पाछो आयोड़ो धन सो संभाळण-सुणन री घुखण धुखै। आसोज री सुवायली बरसां सूं सूकी खेती पांगरी। जमानै री पूरी आस बंधी। समैं री टूटी लड़ी पाछी संधी। आप असायदै सूता है, बारी आयां सूं गावैला। पैली कनला गांवड़ां सूं आयोड़ा सतसंगी-लोग बाणी बोलै। अनजी, पनजी सूं मिलणो चावै। पण बठै तो भजन पूगै ना कोई बाणी, हंसलै नै घोड़ी नैं घोड़ी ले उडी पलाणी। अलख नांव सत है।

रात भर जागरण अर दिनूगै दे’रा पा’लागणा। घणै भजन-कीरतण रै उछाव में अरथी उठाई अर भजनीक जुलस टुर्‌यो। टाबरां रै फरज अदा हुयो। पण रामी रै लामी ढक बाळ आगी। समो-कुसमी हुग्यो।

स्रोत
  • पोथी : आज री राजस्थानी कहाणियां ,
  • सिरजक : नानूराम संस्कर्ता ,
  • संपादक : रावत सारस्वत, प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै