गवरली जियां आभै कानी जोयो बियां बींरी दीठ अेक गिरज माथै पड़ी। गिरज खासा टणको हो। देखतै पाण गवरली रै डील मांय सी कंपा-सी बडगी। अेक सून बापरगी। बा बेगो-सीक उठी अर डागळै रै माथै लकड़ी री बणी मैड़ी रै मांय बड़गी।

काच री खिड़की सूं जोवण लागी। गिरज अेक झपाटो मारतो हेटै आयो अर भींत माथै सूं अेक मर्‌योड़ो ऊंदरो लेय’र पाछो आभै में गमग्यो। गवरली नै काठ मारग्यो। ऊंदरो कठै सूं आयो? अचाणचक बींनै याद आयो कै ऊंदरो बींरी गळी मांय सूं कागलो उठाय’र लायो हो।

बा ऊंदरै बाबत फेरूं’ सोचण लागी। बो ऊंदरो बींरै घर आगै रमझोळ मचावतो हो। कदैई गोखै में आवतो अर कदैई चौकी माथै। आपरी मस्ती में रैवतो।

अचाचूक अेक गंडक ताक लगावतो बीं माथै झपट्यो। पंजै री अेक चोट में ऊंदरो राम नाम सत हुयग्यो। बीं बगत अेक छोरै उठाय भाटो गंडक रै मूंढै माथै मार्‌यो। गंडक रोवतो नाठ्यो। इणगी गंडक नाठ्यो अर उणगी कागलो ऊंदरै नै आपरी चूंच में झाल’र उड्यो।

बो डागळै री भींत माथै बैठ’र चूंच सूं बींरो डील चूंटण लाग्यो कै गिरज झपाटै में खोस लेयग्यो।

कित्तो डरावणो गिरज हो!

पतो नीं, बींनै गिरज री ओळूं आवतै पाण आपरो धणी, सासू अर देवर क्यूं याद आय जावै। बींनै लाग्यो कै गंडक बींरो देवर है, कागलो बींरो धणी अर गिरज बींरी करकसा जामण।

ऊंदरो? ऊंदरो कुण?...बा खुद!

गवरली मैड़ी सूं बारै आय’र तावड़ै बैठगी। तावड़ो सुहावणो लाग्यो। माघ रो महीनो हो। च्यारूंमेर धोरां सूं घिर्‌योड़ै चूरू में हाडां नै धूजावण वाळी डांफर बाजै।

गवरली नै लखावै कै अै घरवाळा बींरै लारै पड़्योड़ा है, ठीक बियांई जियां कै ऊंदरै रै लारै पड़्योड़ा है गंडक, कागलो अर गिरज!

गवरली अेक फूटरीफरी छोरी ही। घणी सुहावणी अर सुभाव री चोखी। बाळपणै सूं बा भावुक ही। जिदगी रा मोह भर्‌या सुपना देखती। आपरै घर अर धणी नै लेय’र बीं कित्ताई गढ-कंगूरा बणाय लीना। जैसाणै री बा छोरी आपरी भोम री मूमल जैड़ी प्रेम-दीवानी री भावुकता लियोड़ी ही। केई बरस उज्जैन में गाळ्या। शहरी सभ्यता अर परिवेश नै अपणायो। पण बाप धणो गरीब बापड़ो मामूली चाकरी करै। च्यार सौ रिपिया कमावै। इण सूं घर रो खरचो सावळ नीं धिकै। तीज-टांकड़ै रो खरचो अखरै। मांदगी में तो हाथ साव तंग हुय जावै।

बाप मांदो-मांदो-सो रैवै। मां सूख’र कांटो बणगी। ऊपर सूं गवरली रो मोट्यार हुवणो रातां री नींद खोस ली।

अेक दिन गवरली रै बाप आपरी घरवाळी नै कह्यो—सुण गवरली री मां, छोरी तो अेकदम स्याणी दीसण लागगी।

—छोरी चंद्रमा ज्यूं बधै...।

पण?

इणरा हाथ तो पीळा करणा पड़ैला।

—तूं सही कैवै। पण छोरी नै परणावण सूं पैली कीं टका-पइसां रो भी तो बंदोबस्त करणो पड़ैला। बातां सूं तो छोरी फेरा नीं खावैली। खाली नाक-कान ढकण वास्तै दो-च्यार हजार रिपिया चाइजै।

तो म्हैं जाणू। मां बोली पण बेटी तो राजा रावण रै घर में नीं खटाई, जद कै बींरै कनै सोनै री लंका ही।

जिको करमां में लिख्योड़ो है बो इज हुवैलो। बापू बोल्यो। थोड़ा-सीक दिनां में गवरली आपरै माईतां री चिंता समझगी। स्याणी अर समझणी छोरी इण जथार्थ नै जाण लियो कै बाणियां रै लोभी समाज में गरीब छोरी रा हाथ पीळा हुवणा घणाई दोरा है। धन सूं धायोड़ो भूखो समाज है। दायजै में अणूतै नकद नारायण री बातां करै। फेर?

बा मोकळा दिनां तांई सोचती रही अर सेवट उण निश्चय कर्‌यो कै बींनै आपरै मां-बाप अर छोटा-छोटा भाई-बैनां खातर अेक नुंवै जीवण री शुरूआत करणी चाइजै। कमर कस’र कमावणो चाइजै। छोरी हुवतां थकांई छोरै री गरज पूरी करणी चाइजै। उण आपरा विचार मां-बाप सांम्है भाख्या। मां-बाप री आंख्यां फाटगी। इण छोरी रो माथो तो नीं खराब हुयग्यो? फूटरीफरी छोरी जलम भर कंवारी रैवैली? छोरै ज्यूं कमावैली? बाप कड़क’र बोल्यो—छोरी! अणूती बात मूंढै सूं निसारतै सोच्या कर।

मां मैणा देवती बोली—आ छोरी कदै-न-कदै धोळां में धूड़ घलावैली। गवरली नै लाग्यो कै उणरा मां-बाप साव जूनै खयालां रा है। उणा में सांच रो सामनो करण रो काळजो कोनी।... फेर तो रात-दिन गवरली माथै टुणका नांखणा शुरू हुयग्या। सेवट गवरली आपरै होठां रै टांका लगाय लीना। संजोग सूं अेक छोरो मिलग्यो। चट मंगनी पट ब्याह कर काढ्यो। गवरली नै सासरो चोखो नीं मिल्यो। धणी जुवारी। विधवा सासू भाटैं ज्यूं करड़ी। बात-बात माथै अेक मैणो देवै-थारै आवतां घर रा तीन डांडा हुवण लाग्या।

देवर बींरै फुटरापै माथै कोजी दीठ राखै। अेक दिन गवरली आपरै देवर छगन नै कूट काढ्यो। बीं हांचळ में हाथ घाल्या। गवरली आखै घर में ऊधम मचा काढी। दारू पीयोड़ो धणी आयो तो सगळा जणा मिल परा बापड़ी गवरली नै जंतराई। गवरली आपरै बाप नै उज्जैन कागद नांख्यो। कोई पड़ूतर नीं आयो। फेरूं कागद...। दो-च्यार कागद फेरूं पण कोई पड़ूतर नीं आयो जणा गवरली जाणगी कै बै सैंग बीं खातर मरग्या। फेर तो गवरली रा दिन घणाई खोटा हुया। तीनां रो जुलम सहतां-सहतां बापड़ी पीळी पड़गी।...

आज ऊंदरै री दशा देख परी बा ऊंडै विचारां में डूबगी। बा भी तो उण ऊंदरै जियां है। अेक दिन तो बींनै मरणो इज पड़सी। इण जूण सूं छुटकारो पावणो इज पड़सी। तीखी डांफर उणरै डील सूं आथड़ी। बा चिमकगी। पगोथियां पासी जोयो तो उणरो देवर होळै-होळै मुळकतो दीस्यो। बींरै उणियारै माथै नाग घूमै हा।

बा उणरी नीयत पिछाणगी। देवर अगाड़ी आय’र कह्यो—तूं म्हारो कह्यो मान लै तो म्हैं थारी जिंदगी बणा देसूं। थारै च्यारूंमेर सुखां रा डेरा लगा देसूं।

—म्हनै सुख नीं चाइजै। तूं थारो रस्तो लै!

—मान जा, नीं तो थारै हाडां रो आज चूरमो करा देवूंलो। देवर धमकी दीवी अर थोड़ोक नेड़ो आय’र बींरो हाथ झाल्यो। गवरली फड़ाक सूं अेक थप्पड़ मार्‌यो। देवर दांत पीसतो गयो परो। बीं बगत अेक घायल कबूतर बींरै खोळै में आय’र पड़्यो। उण देख्यो— अेक बाज हो। तूफानी गति सूं मंडरावतो बाज! गवरली घड़ी-घड़ी कदैई बाज नै अर कदैई कबूतर नै जोवै। फेरूं बींरै हिवड़ै में उथळ-पुथळ मचै। मुगती रा हेला असवाड़ै-पसवाड़ै गूंजै। बा घड़ी-घड़ी सोचै कै बाज रै पंजा मांय सूं कबूतर छूट सकै... मौत रै मूंढै सूं नीसर’र जीवण पा सकै... फेर बा क्यू नीं?

गवरली रो उणियारो गहर-गंभीर हुयग्यो। उण बठै नीं रैवण रो निश्चय कर्‌यो। बा अठै सूं जासी। बंधण मुगत हुसी। आपरी नुंवी जिंदगी सोधसी। आपरै ढंग सूं जीसी।

गवरली ऊभी हुई। उण इणगी-बिणगी जोयो। गहरो सरणाटो हो। बा हेटै उतर परी धुरी मोड़ै सूं बारै निसरगी। बींरै मूंढै माथै काच रो चिलको पळकै हो।

स्रोत
  • पोथी : उकरास ,
  • सिरजक : यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ ,
  • संपादक : सांवर दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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