फाग वाळै दिन सूरज उगाळी सूं पैलां राजियौ मैतर होळी रै नेग सारू धमक्यौ। म्हैं उठ्यौ हौ, अजै चाय कोनी पीयी ही। म्हनैं झूंझळ-सी आई। अैड़ी कांई भाजण होय रैयी है। झांझरकै आयगी मांगत। इत्ती थ्यावस कोनी। दिन कोनी ऊगण दियौ। गांव कांई भाजै कठैई। माची रै उठांण भाज छूट्यौ कमीण!

म्हारी झूंझळ गेड़ चढै ही कै राजियौ पगां लागतौ बोल्यौ, “राम-राम मायतां। सोच्यौ, भलै घर सूं बोवणी ठीक रैसी।”

म्हैं ऊपर सूं तळै तांई सीतळ होयग्यौ। उण रौ सिर पळूंसतौ थकौ पूछ्यौ, “होळी किंयां रैयी?”

“ठीक रैयी मायतां। पण म्हारै तौ बारणौ आवै जद खाज आय जावै। खाज तौ भौत बार आय जावै, पण अबकाळै खाज मांय कोढ और होयग्यौ।”

उलटै मुहावरै पर हांसी नैं दाबतै थकां म्हैं बोल्यौ, “किंयां? म्हैं समझ्यौ कोनी।”

“थे कांई समझौ मायतां, म्हांरी गरीबां री विडम्बणा थे कोनी समझ सकौ।”

“फेर ई... बता तौ सरी।”

“कांई बतावूं। म्हैं भौत दुबध्या में हूं। तावळ कर’र नेग द्यौ थे। छिप्यै सूं पैलां-पैलां गांव में हर घर रा दो गेड़ा काटणा चावूं म्हैं।”

“दो गेड़ा?”

“हां, तौ कांस है। रात चांद रौ घैण हौ। होळी अर घैण भेळा हा। म्हारै देखण में पैलौ कांड है। होळी अर घैण कदैई भेळा नीं आया।” उण अफसोस साथै माथै में ताळी मार’र कैयौ अर उण रौ कांपतौ हाथ म्हारै साम्हीं पसरग्यौ, “तावळ करौ मांयतां। जिकौ पूंण-पावलौ देणौ है, तावळा-सा ल्या द्यौ। म्हनैं हर घर रा दो गेड़ा काटणा है।”

म्हैं उळझण में पड़ग्यौ। म्हारै कीं समझ में नीं आयौ। हर घर रा दो गेड़ा? होळी अर घैण भेळा होवणौ अेक कांड? म्हैं राजियै री आंख्यां में देख्यौ। थोड़ी-थोड़ी लाल ही। स्यात रात री बच्योड़ी गळ में गेर’र चाल्यौ हौ। म्हैं उण नैं नीचै सूं ऊपर तांई जोयौ। डील में कंपकंपी। चै’रै पर बेताबी। लाग्यौ, वो भौत बे-औसांण है। उण रै भीतर अेक ऊंतावळ रौ तूफांन है।

वो धूजतै होठां भळै बोल्यौ, “इंयां कांई देखौ हौ म्हारै कांनी। रात डफ पर भौत नाच्यौ हौ। दिनगै भौत ओखौ उठीज्यौ। इण सारू दो पैक मार राख्या है।... ल्यावौ थे नेग ल्यावौ। दूसरौ गेड़ौ और मारणौ है।”

“पूरी बात तौ बता। म्हैं तौ कीं कोनी समझ्यौ।”

“थे कोनी समझौ काका, म्हां गरीबां री बात।”

“समझूं कांई डांग? यार थूं समझावण वाळै तरीकै सूं बतावै कोनी। आडी-सी आडै। सावळ बता।...पैलां तौ थूं बैठ। ले मूढौ।”

“ना-ना-ना-ना! बैठूं कोनी। कैय दियौ नीं, मरण नैं बिरियां कोनी। खड़्यौ-खड़्यौ बता देस्यूं।...हां कांई पूछै हा थे?”

“थारै बाप रौ पग पूछै हो।... कांई पूछै हा थे! थनैं ठाह कोनी म्हैं कांई पूछूं!... हां, पैलां तौ बता कै थूं इंयां भूताड़ीजेड़ौ-सो किंयां होय रैयौ है? बिचळाइजेड़ौ-सो। बिदकोर ढांढौ-सो।”

उण माथै में भळै ताळी मारी, “सारी रात रोयौ अर अेक मर्यौ...अर वो पड़ौसी रौ। वा रै वा काका! पूछै, बिचळाइजेड़ौ-सो किंयां होय रैयौ है। तौ और रांडी-रोणौ कांई है। तौ कजियौ है। होळी अर घैण भेळा। अर ऊपर सूं रंडारू नैं चढगी ताव। होगी नीं कोढ में खाज।”

“थारी भासा बडी पेचीदी है। अब तांई तौ कैवै हौ कै खाज में कोढ होयग्यौ अर अब कैवै कोढ में खाज।” म्हैं मुक्कौ बा’यौ। वो टेढौ होय’र टाळग्यौ। अर हांसतै थकां बोल्यौ, “अेक बात है काका! खाज में कोढ कैयद्यौ भावूं कोढ में खाज। दोनूं रळ्यां पछै ईसां रै बटका भरवा द्यै।”

“हां तौ तेरै अै दोनूं रळ्या किंयां?” म्हैं मुळकतै पूछ्यौ।

“सुणौ काका, गांव रा कारू हां। कार करां। गांव नैं मिंदर बरगौ राखां। पण समाज री रिवाज है कै म्हांनैं पगार कोनी मिळै। कांम रै बदळै नेग मिळै। अेडै-टेडै, वार-त्यूंहार अर मरणै-परणै मिळै म्हांनैं नेग। इण रै अलावा दो टेम रौ आटौ नित मांग’र ल्यावां। म्हे म्हांरी भोळप रै कारण म्हांरी मजूरी मंगतां री भांत घर-घर मांग’र ल्यावां। अेक गुमेजी मजूर री भांत ठरकै सूं नीं लेय सकां म्हे म्हारी पगार। बडेरां री जड़्योड़ी इण भोळप री बेड़ी नैं म्हैं तोडूलां, क्यूंकै लोग म्हांनैं मंगता समझण...।”

“अरै तोड़ देई यार। म्हैं थारै सागै हूं। विसै भौत लांबौ अर गै’रौ है। इण पर कदै फेर बतळास्यां। पैलां तौ बता कै थारै कोढ में खाज किंयां होई?” म्हैं राजियै री बात रै बिचाळै पूछ्यौ।

“अरै म्हैं बावळौ हूं। फालतू बकग्यौ। टेम कठै है आं बातां नैं। अब म्हैं मेन मुद्दै पर आवूं। बात इंयां है काका, म्हे मांगां हां। होळी नैं मांगां अर घैण नैं ई। फरक कै होळी नैं पीसा अर घैण नैं दांणा। थांनैं कांई ठाह कोनी कै घैण री करड़ाई उतारण सारू थे हमेस सरधा सारू दांणा म्हारै खातर टाळ’र छोडौ हौ। घर रौ आर-बार होवै, जिकै नैं करड़ौ दांणौ कैवां। करड़ौ दांणौ म्हे खींचां। इंयां कै थांरै घरां री करड़ाई खींचां म्हे। खैर जाण द्यौ। म्हैं भळै विसै सूं हटग्यौ।... हां, अब थे सोचौ, थांरी बीनणी नैं ताव चढगी। नीं तौ घैण रा दांणा बा मांग ले जावती अर म्हैं होळी रौ नेग। अब अै दोनूं कांम म्हनैं करणा पड़सी अर म्हनैं ठा है कै तड़कै म्हनैं कोई बाळ फाड़’र कोनी देवै, क्यूंकै मैतरां रा घर पच्चीस है। भाज्या फिरै सगळा। लुगाई-टाबरां समेत ढांण हो रैया है। ऊपर सूं गांव में भांड न्यारा रैया है। गळ में ढोल घाल’र ठुरियां हो रैया है। सगळै गांव नैं छांण’र छोडसी भैण रा भाई। तड़कै म्हनैं कुण बड़ण देवै घरै। म्हैं अेकली ज्यांन कठै-कठै हौ ल्यूं काका। म्हारी आंख्यां साम्हीं म्हारौ लाटौ लुटीजण लाग रैयौ है। म्हारौ गांव गैरां रै हाथां दुहिजण लाग रैयौ है।... ऊंतावळ करौ, होळी रौ नेग द्यौ अर घैण रा दांणा टाळ’र छोड द्यौ। दांणां सारू आथण तांई दूजौ गेड़ौ करसूं। अब तौ समझ में आयगी होसी कोढ में खाज वाळी बात। म्हारी चांदी तौ तद बणती जद होळी अर घैण न्यारा-न्यारा आवता, कै फेर लुगाई बीमार नीं पड़ती। पण कांई सा’रौ पड़ै। तकदीर रौ पतळौ भौत हूं। करम में कांकरौ है। टीकाळी बगत माथौ सदां टळै।”

राजियै रौ डील थर-थर कांपै हौ। उण रै धीजै रौ बांध टूटै हौ। भीतर री गति भूचाळ रौ रूप लेय राख्यौ हौ। वो आखै गांव नैं अेक झटकै में दूहणौ चावै हौ। हालत ही कै उण कनै चमत्कार होवै तौ अेक राजियै रा हजार राजिया बण’र पूरै गांव नैं छिनेक में चूंट’र सरीकियां रौ मूंढौ फूंक-सो कर देवै। पण कांई सा’रौ पड़ै। काळजै में पगबळणी रै सिवा उण कनै कीं कोनी हौ। फगत डर हौ। नेग री कुड़्योड़ी खेती पर सरीकियां रै झंखेड़ै अर ओळां रौ डर। इत्ती बडी खेती अेकली ज्यांन किंयां लूंणै। वो चेताचूक-सो होयोड़ौ म्हारै साम्हीं खड़्यौ हौ। म्हैं उण रै पसर्योड़ै हाथ पर भावुकता में पचास रौ नोट धर दियौ, जकौ सामान्य नेग सूं दस गुणौ हौ।

वो ऊंतावळ में माथै रै लगावणौ भूलग्यौ अर बिना समट्यौ जेब में दाब’र बारणै सूं निकळतौ दीख्यौ।

दूजै पल म्हैं सोच्यौ, पचास रौ नोट देय’र भोत गळती करी। इण नैं पचास रौ नोट नीं देवणौ चाईजै हौ। जे इणीं भांत लगातार पांच-सात घरां में पचास-पचास रा नोट मिलता रैया, तौ राजियौ पागल हो सकै, क्यूंकै इण हिसाब सूं गांव रै दो हजार घरां में नेग री खेती अेक लाख बैठै। जे कूंत राजियै रै खांनै बैठगी, तौ उण री ऊंतावळ रौ तूफांन इत्तौ बध सकै इत्तौ, कै उण रौ विस्फोट हो सकै।

म्हैं भगवांन सूं अरज करी कै हे ईश्वर! गांव वाळां नैं सद्बुद्धि दै। भावुकता सूं बचा अर वां री मनगत इसी कर कै दो का पांच रै सिक्कां सूं बेसी उण री हथेळी पर कोई नीं धरै। राजियै नैं बचा म्हारा प्रभु! इणी अरज साथै अेकर तौ सोच्यौ कै भाज’र राजियै सूं पचास रौ नोट पाछौ झांप ल्यावूं। पण म्हैं नीं कर सक्यौ।

भींतां री छिंयां लांबी होयगी ही। सूरज गांव रै आथूंणै पासै आयग्यौ हौ। गांव फाग खेल’र धापग्यौ हौ। लोगां न्हा-धो’र गाभा बदळ लिया हा। गळियां रौ गीलौ रंग सूखण लागग्यौ हौ। इसै में गांव रै आथूंणै पासै बिणवाळां रै बास में डफ बाजै हौ। बंसरी री सुरीली तांन सुणीजै ही। धमाळ गाईजै ही। संगीत रै अण सुरीलै घुरळियै म्हनैं आप कांनी खींच लियौ।

म्हैं जाय’र देख्यौ, तौ म्हारा रूं फाटग्या। तीन डफ, अेक बंसरी अर सात-आठ धमाळियां पूरौ दंगल ठठा राख्यौ हौ। आं रै बिचाळै तीन मै’री अर अेक मजाकियौ। भौत फूठरा नाचै हा। देखणियां रौ मन मोवै हा।

...पण इतरा’क में देखण वाळी चीज अेक और आयगी। राजियौ मैतर। सिक्कां सूं ऊपर-नीचै री दोनूं जेब तंतूड़। फगत सिक्का सिक्का। अेक-दो अर पांच रा। निचली जेब री झाल सूं कुड़तै री गळबीणी बांकी होय रैयी ही, तौ ऊपरली जेब रै लोड सूं बटण खुल रैया हा।

वो आवतौ दंगल में घुसग्यौ अर डफ री थाप पर नौ-नौ ताळ नाचण लागग्यौ। ऊपरली जेब रा पीसा उछळ-उछळ खिंडण लाग्या। निचली जेब गेड़ चढगी। किलै नेड़ौ धातू भूं-भूं’र उण री साथळां कूटण लाग्यौ। राजियै आव देख्यौ ताव। नाचतै-नाचतै निचली जेब सूं मुट्ठौ भर्यौ अर मै’रियां पर ऊंवार’र उछाळ कर दी। देखतां-देखतां राजियौ हळकौ होयग्यौ। ऊपरली आपौ-आप रिगती अर तळली ऊंवार-ऊंवार’र फेंक दी। गांव रा टाबर ऊपर थळी होवता दंगल में घुस्या अर खिंड्योड़ै पीसां पर टिड्डी-दळ ज्यूं टूट पड़्या।

राजियै डफ झांप’र ऊंचै सुर में धमाळ गाई—

“हां रे भर दै मायरियौ

सांवरिया थारी

नानी बाई रौ

भर दै मांयरियौ...”

सुण’र सगळां री आंख्यां गीली होयगी। म्हैं भीड़ नैं चीरतै थकां दंगल में जाय’र राजियै रै बांथ भरली।”

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : रामस्वरूप किसान ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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