मे-अंधारी रात। डांफर चालै। कोढियो सीयाळै रो मास। रात-री आठ-ई वजी कोय नी पण किसो कोई मिनख-रो जायो गळी-में दीस जाय। घीसू धूजतो-धूजतो राम-राम करतो घर में बड़ियो। मोती-री मा बोली—आ-ई कोई आवण-री वेळा? ओढण-नै सरीर माथै पोळियो’र आ सरदी! टैम-सर घर में आय जाया करो। मोती रोंवतो-रोंवतो, काका-काका करतो, हणां-ई सूतो है।

 

घीसू बोलियो— कमठाणै-सूं तो टैमसर-ई छुट्टी हुयगी ही। पण अेक-दो जागां पईसड़ा लावण-नै गयो परो। रोजीना आजकाल-आजकाल करै। पईसड़ा हाथ आय जावै तो मोती-रै रुईदार कोट-सूथण कराय-दूं अर ओढणै सारू सीरख बणावण-रो कपड़ो आपणै वास्तै-ई लाअूं। अबकै तो सीयाळै-रो काम खराखरी है।

 

‘ओ फिकर छोड’र पैली रोटी-पाणी भेळा तो हुवो’— आ कै’र मोती-री मा उठी अर बाजरी-रा दो मोटा-मोटा सोगरा अर अेक कटोरी-में लूण-मिरचां-री चटणी ला’र आगै मेल दी। घासफूस बाळ’र थोडो सेक जगाय दियो। लाई खड़खड़ीजियोड़ो तो आयो-ई हो, सेक लागो जद जी-में-जी आयो। रोटी खांव़तो-खांव़तो बोलियो—
सियाळै कोढियै मास-नै कण मांग्यो हो? ओ तो भागव़ानां-रै-ई काम-रो है। कैव़त-में-ई कैव़ै है ‘सीयाळो सभागियां, दोरो दोजखियां।

 

रोटी खा’र घीसू गूदड़ां में बड़ग्यो। मोती-री मा जागां-जागां-सूं रुई भेळी हुयोडी, जाळी-झरोखां आळी झरझरकंथा ऊपर-सूं नाख दी। गोडा गळै-में घाल’र घीसू पड़ रयो।

 

मोती-री मा अेक फाटो सो पूर ओढ’र सेक खनै बैठी-बैठी ऊन कतरण लागी। भाग-री वात, चिमनी नै अबार-ई वैर काढणो हो। घीसू बोलियो—

 

चिमनी में दिन थका तेल भरा लांव़ती...........।

 

“भरा कठै-सूं’ लांव़ती। गट्टा माराज बोलिया— आगला पईसा दे जाव़ो’र तेल ले जाव़ो।”

 

“तो मीठै तेल-रो दियो-ई कर लेती।”

 

“मीठै तेल-री तो काळ पूड़ी वणाय ली।”

 

घीसू दुखी हो’र बोलियो—कांई करां, कांई नहीं करां? खनै फूटी कोडी कोयनी।

 

मोती-री मा कयो—मींडा माराज खनै-सूं खंधी कढाय लो।

 

“जाणती-बूझती कियां अणसमझ वणै है। गैली बातां करै है। माराज-री आगली खंधी तो चूकी-ई कोयनी। पचास-रै पेटै पांच-पांच-री सगळी पांच खंध्यां अबार तांई पूगी है।”

 

“तो चीठी फोराय लो। पाछी पचास-री लिख दो।”

 

“पण पल्लै कांई पड़सी? लारली व़ेळा ४०) दे’र ५०) रो चीठी लिखायी ही। अबकी भळै १०) अपूर १०) काट लेसी। रुपिया तो गिणती-रा १५) ई हाथ आसी।”

 

“परसूं’ मोतीड़ै-री बरसगांठ है। कांई घी-गुढ़ तो लाव़णो-ई पड़सी। माताजी-री पूजा हुसी। जतनां-रो काम है।”

 

“गरीबां-रा जतन रामजी करसी। तनै तो पूजा-री चिंता है पर मनै ओ फिकर है, कठै-ई माराज छाती माथै आय चढिया तो कांई करसूं।”

 

[२]

अठीनै सी दिन दूणो चमकण लागो बठा नै घीसू-नै सी-रखै कपड़ां-री चिंता चौगणी लागी पण खनै अखत-रा बीज-ओ नहीं। आज कमठाणै-री छुट्टी हुयी जद रामूड़ै कारीगर नै सागै ले’र मनजी माराज-रै घरै गयो अर खंधी ऊपर रूपिया मांगिया। मनजी माराज गोमुखी-में हाथ घालियां बैठा जप कर रया हा अर सागै-सागै खंधी चाळां-सूं रोड़-झोड़ करता जांव़ता हा। माळा-रा मिणिया-ई सागै सागै गुड़कता हा। घीसू-री बात सुण’र बोलिया—ना रे भाई! थां-सूं कुण पानो घालै? थां-रा रुपिया आव़णा वडा चीड़ा है।

 

आखर रामूड़ै-री सिफारस माथै कंईक ढळ’र बोलिया— देख भाई! गोथळी खोलाई-रो १), कबूतरां-रै दाणै रा ॥), अर चीठी लिखाई-रा।) लागैला। इस्टाम-रा पईसा न्यारा है।

 

घीसू बोलियो— माराज! गरीब हूं, मनै इयै तरै तो पोसा....

 

“जणै दौड़ जा सीधो-ई नाक-री डांडी। किण तनै पीळा चाव़ळ भेजिया हा। अरे रांड-रा काचा! धरम-री जड़ सदा हरी रैव है। धरम-रा पईसा काढतां जी ऊपर कियां आव़ै है? डूबग्यो सनातन धरम!”

 

‘ठीक माराज! आप फरमाव़ो ज्यूं’-ई मंजूर है।’

 

“पण हूं तो तनै जाणूं कोयनी। जामनी घलाव़णी पड़ैला।”

 

“जामनी रामूजी घाल देसी।”

 

२५) री चीडी लिखीजी जिकै में ५) काटै रा, १) गोथळी खोळाई-रो,॥) कबूतरां-रै दाणै-रा,।) चीठी लिखाई रा अर इस्टाम-रा पईसा काट’र कुल जमा १८) बीसू-रै पल्लै पड़िया।


 [३]

 

घीसू घणो-ई सोच-विचार’र खरच कर्‌यो पण तोई कपड़ां-लत्तां-रा १५) खर्च हुय ग्या। बाकी मोती-री बरसगांठ खातर गुड़-घी लाव़ण-में लाग ग्या। पाछा हुय ग्या बाबैजी-री जात।

 

मोती-री मा माताजी मांडी, पखाल करायी, छांटो घालियो, नारेळ वधार्‌यो, धूप-दीप कर’र लापसी-रो भोग धरियो। हाथ जोड’र अरदास करी—मा! मिनखां कुसळ राखै, छोरै नै सोरो राखै, अबकलै आयी जकै सूं— सव़ायी आयै। मोती-रै लिलाड़-में टीको काढियो अर घीसू-नै जीमण-रो कयो।

 

घीसू बोलियो— मनै तो अबार सी-कंपा लागै है। गूदड़ी नाख दे। थे जीम लो। म्हारै तो ताव़ उतरियां बात।

 

मोती-री मा घणी कैवा-सुणी करी जद माताजी नै छांटो घाल’र मूंडो अैंठण-नै बैठो-ई हो’क इत्तै में मींडा माराज आ’र घोटो घुमायो-ई। गरजना करी—
लारै घीसूडा! खंधी-रा रुपिया ला।

 

घीसू-रै हाथ-रो कव़ो हाथ-में-ई रैय ग्यो। लाचारी-सूं बोलियो— अबकलै माफी दो माराज! आगलै महीनै दोनूं खंधियां सागै-ई दे देसूं।

 

“देसी कठै-सूं? बाप-रै सिर-सूं! ठाकरद्वारो चवड़ो घणो! आगलो-फागलो तो हूं जाणूं कोयनी। दाव़ो ठरकाय दूंला। पछै माथै हाथ दे’र रोव़ैला। झख मारैला’र काकोजी-काकोजी कै’र रुपिया धरणा पड़ैला।

 

मोती-री मा बोली— माराज! हाथ जोडूं हूं, अबकलै माफी बगसो। आज टाबर-री बरसगांठ.....

 

“बळगी रांड बरसगांठ! बेटा माल उडाव़ै अर लैणायतां-नै अंगूठो बताव़ै है।”

 

“माराज! माल कठै पड़िया है। टुकड़ा मिळ जासी तो-ई घणा है।”

 

“ना भाई! कुंई होव़ो, हूं तो आज लाखां हाथां-अी टळूं कोयनी। रुपिया ले’र-ई जासूं।

 

घीसू माराज-रा पग झाल’र बोलियो—

 

माराज! अबकली बार माफी बगलाय दो। आगलै महीनै...

 

“माफ कुण करै कुट्टण! म्हारै तो आया गयां-ई काम चालै है। रांझट मत कर। बेगा रुपिया दे।”

 

“खनै होता माराज! तो आपरा अबार तांई कांय-नै राखता? खनै तो फूटी कोडी-ई कोयनी।”

 

“तो काई चीज झलाय दे। रुपिया दे’र पाछी ले जायीजै।” इयां कै’र माराज तीनां नै सिर-सूं पगां तांई देख्या पण कई-रै सरीर माथै चांदी-री तीब-ई को देखी नी। मोती-रै हाथां में दो कड़िया चांदी-रा देखिया।

 

“ला ला! बस अब मोड़ो मत कर।

 

“म्हारै खनै तो चीज न बस्त। आ काया पड़ी है, ले जाव़ो। आगलै महीनै आप-रा कंई भाव़-ई रुपिया राखूं कोयनी, अबकली बार माफ करो, फेर...

 

“फेर म्हारै करमां-रा, जद-ई तो तैं-सूं पानो पड़ियो। बेटो उळटो रंग जमाव़ै है। चीज-बस्त कियां कोयनी? साळै-री नींव़त-ई तांबो है। देव़ै कठै-सूं।”

 

आ कै’र झट मोती-रा हाथ पकड़िया-ईज। मोती मा-बाप सामो देख’र रोव़ण लागो। मा! मा! काका! काका! ओ... म्हारा कड़िया…ओ...कड़िया रे...ओ:मा... ओयरे...!

 

घीसू बैठो-बैठो देखतो रयो। मा मूंधो माथो कियां जमी माथै पड़ी ही।

स्रोत
  • पोथी : वरस गांठ ,
  • सिरजक : मुरलीधर व्यास ‘विशारद’ ,
  • प्रकाशक : सादूल राजस्थानी रिसर्च-इन्स्टीट्यूट (बीकानेर)
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