एक हो पंखेरुओं रो जोड़ो। पांच बरसां रो बाळक नीलू बैनै ‘लीलटांच’ कैया करतो हो। एक दिन आमली रै झाड़ ऊपर मादा ईंडा दिया। जद ईंडा मांय में छोटा छोटा बच्चा निकळ आया अर वै ‘चीं-चूं-चीं-चूं’ करण लागा तद नीलू रो मन नाच उठियो। बौ मनसूबा बांधण लागो—हूं इयां नै गोदी में लेऊंला नै सागै-सागै रमूंला। कमला म्हारै सूं लड़ै है, हूं उणनै इयां नै नहीं दिखाऊंला। इत्तै में बच्चा आपरी मां नै आवती देख’र चीपीं-चींपीं करण लागा।

नीलू नित झाड़रै नीचै बैठ’र हेलो पाड़तो—’लीलटांच लीलटांच’। बच्चा उण री बोली ओळख’र नीचै उतर आता अर बौ बानैं आपरै हाथ सूं चुग्गो चुगातो।

एक दिन मादा एक बच्चै रै सागै बाग री भींत ऊपर उतरी। नीलू नै देख’र बा उड़ आयी। पत्तां री खड़-खड़ सुण’र बियै बच्चै रै सामो तो एक मिनडी नै ताक लगायां बैठी देखी। बा फट्ट उड’र बठै गयी, पण बच्चै नै वंचावण री चेस्टा में आप मिनडी रो भख बणगी। मिनडी मादा नै मूंडै में घाल’र बीजी पासी फाळ मारगी। बच्चो मां रै लारै-लारै उड़’र गयो।

मादा रै बिछोडै में नर बच्चा रो पालण-पोसण करणो भूल गयो। चार दिनां छेड़ै बाप बेटा सागै रूंख रै नीचै मरियोड़ा लाधा।

नीलू नेम सूं नित से रूंख नीचै जाय’र हेला पाडतो—’लीलटांच, लीलाटाच, पण लीलटांच हुवै तो आवै।

थोड़ा दिनां रै बाद बैनै म्यादी ताव आवण लागो। एक दिन, दिनूंगै नीलू ताव रै जोर में आंख्यां फाड़-फाड़’र जोतां कैयो—’लीलटांच, मा! म्हारी लीलटांच।’ अर फेर सदा रै वास्तै आंख्यां मींचली।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कहानीकार ,
  • सिरजक : श्रीचन्द राय माथुर ,
  • संपादक : दीनदयाल ओझा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्थान, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय संस्करण
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