अेक ठाकर तिमंजली हवेली चुणाई। तिपड़ै अैड़ौ झिरोखौ झुकायौ के देख्यां ईं बणै। हवेली रौ नांघळ ठाकर घणी धूम-धांम सूं करायौ। गांव रै मोतबिरां नै निंवतिया अर घणा मोद सूं सगळी हवेली नै बताई। तिपड़ा रौ माळियौ देखनै गांव-चौधरी अचंभा सूं निस्कारौ न्हाकियौ। ठाकर पूछ्यौ—कांईं चौधरी हवेली कैड़ी'क दाय आई?

चौधरी दो तीन बार माथौ धूंणनै कह्यौ— हवेली तौ थुथकौ न्हाकै जैड़ी है, कठैई निजर नीं लाग जावै! पूरण कारीगरी अर चतराई सूं हवेली चुणाई पण अेक खांमी मोटी रखायदी। नीं आपरै निगै आई अर नीं कारीगरां रै।

ठाकर मुळकनै पूछ्यौ— वा कांई? थारै निगै आई तौ थूं ईं बतायदै। थूं ईं गांव-चौधरी है। किण सूं कम है।

तद गांव चौधरी टिचकारी देवतौ तिपड़ा री गोळ नाळ सांम्ही सांनी करनै कह्यौ— गजब रा घर कर दिया, मोटी खोड़ राखदी। जे इण मेड़ी में रावळै सूता-सूता फोत खेलग्या तौ आपरी सीढ़ी इण सांकड़ी अर गोळ नाळ सूं कीकर बारै निकळैला। म्हनै तौ इण बात रौ सोच आवै।

बात हंसै जैड़ी ही पण ठाकर रा डर सूं कोई हंसियौ कोनीं। चौधरी री कुलळी बात सुणतां ईं ठाकर रै अेडी सूं चोटी लग झाळ-झाळ फूटगी। नांघळ रौ सगळौ उच्छब किरकिरौ कर दियौ। काळजीभौ कैड़ी अजोगती खांमी काढ़ी। रीस में भळभट्ट होयनै ठाकर हाजरियां नै कह्यौ— इण गिंवार नै थड्डा देय काळौ मूंडौ करौ। जावौ इण नांढ़ नै भंवारा में न्हाक दौ। तीन दिन भूखौ अर तिरसौ रह्यां, मतै अकल ठांगै आय जावैला। घणा बरसां सूं चौधर करतां इणरौ मगज सुळग्यौ।

हाजरिया ठाकर रौ हुकम मिळतां चौधरी नै भंवारै दाखल कर दियौ। घणौ अबेळौ व्हियां ईं चौधरी घरै नीं पूगौ तौ उणरौ मोबी बेटौ बुलावण नै आयौ। पूछ्यां पतौ लागौ के चौधरी तौ भंवारा में न्हाकियोड़ौ है। वौ ठाकर गोडै जायनै अरदास करी। ठाकर सगळी बात बतायनै रिसां बळतै कह्यौ— उणरा लक्खण इज अैड़ा है। घणै बरसां सूं चौधर करतां उणरी अकल माथै काट चढ़ग्यौ।

चौधरी रौ मोबी बेटौ बात सुणनै बोल्यौ— पण भायजी तौ साव भोळा है। वांनै इण बात रौ कांईं सोच लागौ के रावळी लास कीकर बारै निकळैला! कोट री परधै लास छूंन-छूंननै बारै काढ़ै, वांनै इणरी कांईं पंचायती पड़ी। अकल रौ लवलेस व्हैतौ तौ वै इण बात रौ क्यूं सोच करता!

ठाकर नै बात उण सूं ईं वत्ती खारी लागी। वौ हाजरियां नै हुकम दियौ के बाप रै भेळौ इणनै भंवारा में पटकदौ। ठाकर नै कैतां जेज लागी अर हाजरिया तगतगायनै उणनै भंवारा में न्हाक दियौ।

घणी ताळ कोई खोज-खबर नीं आई तौ चौधरी रौ दूजोड़ौ बेटौ कोट में हाजर व्हियौ। सगळी बात सुणनै वौ ठाकर नै हाथ जोड़तौ अरदास करी— देखौ-देखौ, वांरी अकल माथै भाटौ पड़ियौ। म्हैं तौ पूछूं के भायजी नै इण सूं कांईं लेणौ-देणौ? रावळी लास है, इण मैड़ी में दाग दे देसी, जिणरौ वांनै कांईं सोच लागौ के लास कीकर बारै काढ़ैला? अठै दाग देतां कुण बरजै? जकी बात सूं वांनै तल्लौ-मल्लौ नीं उणरा दपूचा लेवण री वांनै कांई जरूत!

ठाकर री रीस में अेक आधण वळै लागौ। इणरी वैड़ी इज दुरगत व्ही। रीस रै पांण ठाकर रौ लोई उफणण लागौ।

मथारै दिन चढ्यौ अर चौधरी रा कीं बावड़ नीं व्हिया तौ उणरौ तीजौ बेटौ तेड़ै आयौ। ध्यांन सूं सगळी बात सुणनै वौ ठाकर नै कैवण लागौ— राम-रांम, देखौ वांरी अकल माथै भाटौ पड़ियौ, वारै बात समझ में नीं आवै के लास गोळ नाळ सूं धूड़ खावणनै बारै काढ़ैला। झिरोखा री बारी में बंधणौ बांधनै नीचै उतारणौ कित्तौ सैल कांम है! पण म्हैं तौ पूछूं के इत्ती लांबी चौड़ी परघै रै उपरांत रावळी लास रौ वांनै कांईं बळौ लागौ?

जगजगता खीरां माथै जांणै बारूद री पोट न्हाकी व्है। चौधरी रौ तीजौ बेटौ हांकरतां भंवारा में दाखल व्हियौ।

अबै चौधरी रौ चौथोड़ौ बेटौ ठाकर सांम्ही हाजर व्हियौ। कह्यौ— म्हारा भायजी कांईं कसूर करियौ जकौ आप वांनै भंवारा में न्हाकिया। ठाकर उणनै सगळी बात बताई तौ वौ लिलाड़ माथै हाथ लगायनै कह्यौ— म्हनै तौ समझ नीं आवै के वै आं फालतू बातां रा दपूचा क्यूं लेवै? रावळी लास रावळी मेड़ी में पड़ी सिड़ै, वांनै कांईं लेणौ-देणौ के इण गोळ नाळ सूं कीकर बारै काढ़ैला।

बळती लाय में जांणै पूछौ न्हाकियौ। ठाकर जांणियौ के तौ कूवै भांग पड़ी। किणरौ मगज ठांणै कोनीं। सगळां री अकल अेक-अेक सूं सवाई है। उणनै घरवाळां रै भेळौ भंवारा में जाय थरकायौ।

सेवट चौधरण रै कांनां सगळी बात पूगी। वा दिन वधियां चीपटा रौ भारौ लेयनै ठाकर सांम्ही हाजर व्ही। हाथ जोड़नै अरदास करी— आपरा भंवारा में म्हारा पांच बळद रोड़ियोड़ा है। वांरै चरण सारू चारौ लाई हूं। रावळी मया व्है तौ दो-तीन पूळा चराय दूं।

ठाकर इचरज सूं पूछ्यौ— थारा बळद तौ भंवारा में कोनीं, पण थारै घरवाळा पांचूं जणा अवस भंवारा में रोड़ियोड़ा है। वांनै तीन दिन तक नीं छोडूं।

चौधरण कह्यौ— अैड़ी कुलळी बातां करै जका मिनखां री गिणती में थोड़ा आवै, वै तौ बळदां समांन है। बळदां माथै आप कांईं कोप फरमायौ।

ठाकर चौधरण री बात सुणनै घणौ राजी व्हियौ। चौधरण री चतराई कांम काढ़्यौ। ठाकर तुरत उणरा घरवाळां नै बारै काढ़ण रौ हुकम दै दियौ। चौधरण हंसती-मुळकती रावळै गढ़ सूं वहीर व्ही।

पांचूं मरदां री अकल रै पांण हींग री गरज नीं सरी। पण गवाड़ी री धणियांणी अेक फटकारै धणी अर बेटां रौ फंद काट दियौ। तद वै सगळा कोडाया-कोडाया गढ़ रै परकोटा सूं बारै आया तौ ठिकांणा रौ चात्रंग कांमदार छोटकिया बेटा री बांह झाल उण सूं कीं सुरपुर करण लागौ। जोग री बात के चौधरण रै कांनां उण सुरपुर री थोड़ी भणक पूगी। वा लारै मुड़नै पूछ्यौ के अबै कांमदार वळै कांईं दपूचा लेवै?

छोटकियौ बेटौ मुळकतौ थकौ पड़त्तर दियौ के दही री आथणी सारू लालरिया लेवै।

चौधरण पाछी मुळकतां कह्यौ— इण में लालरिया जैड़ी कांईं बात! अबार साथै चालै तौ हाथौहाथ संभळाय दूं। म्हैं जांणूला के गिंडक खायग्या।

कांमदार आधी-पड़दी फीटी मुळक रै सागै वारै साथै टुरग्यौ।

स्रोत
  • पोथी : बातां री फुलवाड़ी (भाग-1) ,
  • सिरजक : विजयदान देथा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार प्रकाशक एवं वितरक ,
  • संस्करण : 2018
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