एक माघजी पंडित हा, जका रोजीना राजाजी नै काणी कैवा जावै अर राजाजी रोजीना एक सोना रो टक्को देवै। एक दिन काणी कैवा नै जावता हा। जदी रास्ता में एक फोक्सी ग्वाळ मिळ गयो नै पंडितजी सूं परणाम करनै पूछियो-‘महाराज आप कठै जाइरिया हो।’ पंडितजी कयो के राजाजी नै काणी कैवा।’
‘म्हाराज आप कैवो तौ म्है भी चालूं?’
पंडितजी कयो- ‘भले ही चाल।’ दोनों दरबार में हाजिर हुया। राजा नै आसीर्वाद दे’र पंडितजी आसण माथे बैठ गया। फोक्सी ग्वाळ भी रामा-श्यामा करनै दूर बैठ गयो। राजाजी क्यो-’कौ म्हारा पंडितजी बात। पंडित थोड़ा नैड़ा सरक नै बात कैवा लाग्या-
बात—गाय तो एक सींग बाकी, रूप बांकी गौरियां।
मरद तो एक मूंछ बांको फीच बांकी घोड़ियां॥
जदी फोक्सी ग्वाळ नैड़ो सरकियो नै हाथ जोड़ नै बोलियो कै म्हाराज आप आ बात उल्टी कई।’ जदी पंडितजी कयो—‘सूंदी तूं कहदे।’
फोक्सी ग्वाल— गाय तो एक दूध बांकी, कूंख बांकी गौरियां।
मरद तो ओसांण बांको तेज बांकी घोड़ियां॥
जदी राजा अर सरदारी लोग वाहवाहा कयो नै पंडितजी नै नीं देने सोना रौ टक्को फोक्सी ग्वाळ नै राजाजी देय दियो। पंडितजी उदास मन घरै आइ गया।
दूजै दिन फेर पंडितजी दरबार में जावण लागा नै फेर फोक्सी ग्वाळ मिळ गयो नै परणाम करी नै कयो कै म्हाराज म्है ई चालूं?’ पंडितजी नै मनमें तो बुरो लागियो पण ऊपर रा मन सै कयो-‘चाल भाई।’
दरबार में जा नै आसीर्वाद दे नै पंडितजी बात कैवा लाग गया।
पंडितजी—चालजे न सांझ, परणजे न बांझ।
डाकजे न कुओ, खेलजे न जुओ॥
फेर फोक्सी ग्वाळ बोल्यो के आ बात तो आप उल्टी कई। पंडितजी कयो-‘सूंदी तूं कहदे।’
फोक्सी ग्वाळ—काम पड़ियां चालै सांझ, बिना बेरै परणै बांझ।
दबो पड़ियो डाकै कुओ, लोब माथै खेलै जुओ॥
सब जणां वाहा-वाहा कयो नै वो सोना रो टक्को दूजे दिन भी फोक्सी ग्वाळ नै ही मिळ गयो।
पंडितजी मन में प्रण कर लियो के अबै आपा तो राजा नै बात कैवा नीं जांवा, घरै बैठ माळा फेरूंला। घरे बैठा पंडितजी रो जीव अमूजियो परो जद बाणिया री दूकान जायनै बैठ गया। बठै एक लुगाई सौदो लेवणनै आई। बा बाणियां नै पूछियो—‘जल जित्ता कै पवन पत्ता।’ बणियो कयो-‘रावण सीस मनोहर जित्ता।’ वा कयो- ‘मैं लेऊं हडमत पत्ता?’ बाणियो कयो-‘मैं देऊं कानजी जलमें जित्ता।’ पंडितजी कयो या कांई बात किदी? बाणिया कयो के आप पढ़िया-लिखिया होय नै इणनै ही नहीं समझिया। बाणियो कयो-इणरै जमाई आयो है जिणासारू आ चावळ लेवा आई है। भाव पूछियो जल जित्ता पवन पत्ता। मैं कयो रावण सीस मनोहर जित्ता, ग्यांरा सेर रा है, वा कयो मैं लेऊं हडमत पत्ता, बदका चावळ लेऊंला। जद मैं कयो में दैऊं कानजी जल में जित्ता-आठ सेर। पंडितजी बठा सूं भी सरंमिंदा होय नै पाछा घरै आइगया। पांच दस दिन फेर घर में बैठा रैया। फेर जीव अमूजियो जरै पिंणघट माथै जायने बैठिया। बठै चार छोरियां पाणी भरै ही। पंडितजी चारां नै बूजियो—‘थांरी कांई जात है?’ चारां जबाव दियो—
पहली— चीरी में सूं मीरी काढै, कंकर पत्थर रखन्ता।
सेर में सूं पाव काढै, जां घर पुत्री पंडिता॥
पंडितजी कयो- ‘मै तो नीं समझियो।’ जदै वा बोली— ‘बड़ बोल्या मूरख हीज है, मैं बाणिया री बेटी हूं।’
दूजी—रंज में सूं तंज काढै, तंज टांके तुलन्ता।
राजा परजा सब मानै, जां घर पुत्री पंडिता॥
पंडितजी नीं समझियो जरै वा बोली—
‘मैं सुनार री बेटी हूं।’
तीजी—हाथ में हथियार राखै, करै खंड बडन्ता।
माथा ऊपर सेल टांकै, जां घर पुत्री पंडिता॥
पंडितजी फेर नीं समझिया जद वा बोली—‘मैं दरजी री बेटी हूं।’
चौथी—लक्कड़ ऊपर टक्कर चालै, टक्कर ऊपर रेणका।
रेणका रा रतन निपजै, जां घर पुत्री पंडिता॥
पंडितजी तो फेर नीं समझिया। जरै वा बोली—‘मैं कुम्हार री बेटी हूं। पंडितजी हार नै आपरै घरै परा बैठा। जरै कहीं है—
‘भणिज्योड़ा सूं गुणिज्योड़ो बत्तो।’