फागण रो महीनो अर चांदणी धट्ट रात। नीलकंठ गांव माथै डोढ बोतल रो नसो चढ्योड़ो। रात पो’र डोढ पो’र बीतगी व्हैला। चंदरमा खासो ऊंचो चढग्यो हो। उणरा धवळ चांदणा में धुपीज’र गांव’र खेत सब ऊजळा बगला री पांख व्है जिसा व्हैग्या हा। पवन री ठंडी लैरां आवती अर खेतां में ऊभोड़ा गेहूं-चिणा मस्ती में झूमण लाग जावता। मोट्यार चंग ले’र गांव रै बारै गोर में जाय पूग्या अर लुगायां चांवटो माथै ले लियो।

गहणां में लड़ा-झूंब ह्योड़ी लगायां री लेण लूहर री ललकार में जिण टेम सांमी वाळी लेण नै जबाब देवणनै आगै बढती तो उणां रै पगां रै धम्मीड़ा सूं धरती धूजण लागती। चांदणा में वांरा मुखड़ा चमाचम चमकण लागता अर अेकूका धम्मीडा पर वांरो अंग-अंग थिरक जावतो।

धापूड़ी नै झेंपावण नै उणरी साथणियां अेक तरकीब सोची अर साथै गावती-गावती अेकदम चुप रैयगी। अेकली धापू रो इज झीणो सुर गूंज ऊठ्यो- “सवारै...... सवेळा आवै रे...पाछो....जा...परो...”

साथणियां खिळखिळाहट सूं चांवटा नै भर दियो अर वा साचांणी झेंपगी। अेक साथण हंसती-हंसती बोली- “किण नै पाछो भेजियो अे धापू?”

दूजोड़ी बोली- “थनै कांई मतळब, होसी कोई।” अर धापू रै पसवाड़ा चूंटियो भरियो।

धापू नाराज व्हैगी अर लूहर छोड़नै बिना बोल्यां घर कांनी रवांनै होयगी।

धापू टीकम चौधरी री अेकाअेक लाडकी बेटी ही अर बेटा रै ज्यूं लाडकोड सूं पाळ-पोसनै मोटी कियोड़ी ही। ब्याव इणरो टाबरपण में व्हैग्यो हो अर मुकळावो अबै चार छव महीनां में होवण वाळो हो।

टीकम गांव रो खावतो-पीवतो ठावो आदमी गिणीजतो। यूं तो सगळां रै ज्यूं टीकम नै छिनुआ दुकाळ में घर-बार छोडनै मजूरी माथै जावणो पड़्यो हो, पण अबकै जमानो चोखो पाको अर खेत सेंवज सूं भरिया ऊभा हा। सेंवज जिण बरस इण गांवां में पाकतो, मिनख निहाल व्है जावता। अठीनै होळी ढूकड़ी आवती अर उठी नै खेतां में साख पाकनै तैयार होय जावती। करसा दिन रा हरिया खेतां में होळा खावता, फाग गावता अर मौज करता। रात पड़तांई भादवा री कांठळ रै ज्यूं चंग गूंजण लागता अर लूहर रै धम्मीड़ा हूं जमीन धूजण लागती।

हां, तो जिण वखत लूहर छोड’र धापू घरै पूगी, उणरो बाप आंगणा रै सैं बीच मांचा माथै सूतो हो अर उणरी मां मांचा रै कनै बैठी परात में दूध ठारती ही।

धापू चुपचाप आपरो मांचो गवाड़ी में ढाळनै राली नाख’र सोयगी। उणै सुणियो के उणरा मां-बाप बातां करता हा—“आधी उमर दौड़ता-दौड़ता बिताय दी पण जीवण में कांई नहीं देख्यो। जोधपुर बतावणो तो थांरो धर्‌यो रह्यो पण जे कदेई रेलगाड़ी री सैर कराई होती तो हूंस तो मरतां-मरतां मन में नहीं रैवती।”

“कांई रेल-रेल करै है बेटी री बाप। अबकै सांवरियै राजी-खुसी राख्या तो भादवा में जरूर रांमदे बाबा रै जावणो है। ठेट छिनुआ में कमठा माथै म्हैं काम करतो जद अेकर मरतो-मरतो बच्यो हो। जद रो जुहार बोल्योड़ो है जो हालतांई बाकी है। भली करजो रुणेचा रा राव, म्हैं तो खड़ माणसिया हां।” सिरधा सूं हाथ जोड़तो-जोड़तो चौधरी बोल्यो।

“कांई धापू रा काका! रुणेचै जावां जद जोधपुर मारग में आवै?”

“ओ भोळी। थनै इतरोई ठा कोयनी। बड़ी ठेसण इज तो गाडी बदळणी पड़ै है। इणनै बापड़ी नै कांई ठा। थूं धीरप राख, म्हूं थनै सब बताय दूंला- जोधपुर, पपली-बाग, किलो, सरदारपुरा में बण्योड़ा म्हारै हाथ रा तीन बंगळा अर सिनेमा दूजा सब।”

“सिनेमा? सिनेमा फेर कांई व्है?” अचूंभा सूं चौधरण बोली।

हाथ सूं कुचमाद करतो चौधरी बोल्यो— “सिनेमा तो सागेड़ो घणो व्है है अे गैली!”

चौधरण आधी सरकती बोली- “यूं कांई करो हो बड़ा मिनखां! घर में टाबर परणावणो आयो तो थे तो हाल विसा रा विसा रह्या।”

चौधरण फेरूं बोली- “आपां जोधपुर जावांला जद ठैरांला कठै?”

“ठैरांला कठै? गैली कठैई री, ठैरवा री कांई कमी, चावै जठैई ठैर जावांला। धापू री मा! जोधपुर रो नाम लेवां जद म्हनै छिनुआ रा वे दोरा दिन याद आय जावै। हे भगवान! किसी’क कुटेम ही। ठौड़-ठौड़ ढोर इतरा मर्‌या हा के गांवां रै बारै हाडकां रा ढिग लाग्योड़ा हा। मिनख बापड़ा दाणा-दाणा खातर तरस रह्या हा। म्हैं थनै अर धापू नै अठै छोड़नै जोधपुर मजूरी करण नै गयो जरूर पर मन तो म्हारो अठै ईज भमतो। रात रा अंधारा में जिण वेळा सगळा मजूर जठै-तठै पड़्या रैवता, म्हनै घर याद आय जावतो अर कई बार तो रोवणो आय जावतो।

काम मजूरी रो पछै खरा-खरी रो हो। आखो दिन भाठां सूं बाथ्यां आवणो पड़तो। आठ आना रा पैसां में इतरो काम करणो पड़तो के रात रा हाड-हाड मूंदै बोलण लागतो। पैली-पैल म्हैं जिको बंगळो बणायो वो सेठ भागमलजी रो हो। ओहो... हो... हो... बेटी रै बाप रो कांई पछै बंगळो बण्यो है। थैं तो देख्यो व्है तो गैली व्है जावै। ओकूका कमरा नै म्हैं इसी कारीगरी अर सफाई सूं बणायो है के उन्हाळै में उणरा चीकणा अर ठंडा आंगणा पर गाल रगड़वा रो मन व्है जावै। नीचला कमरा री अलमारी बणावतां अेक भाठो धरती वखत म्हारी आंगळी बुरी तरै सूं चिगदीजगी ही। पण ठेकेदार फूसोजी लाखीणो आदमी हो, झट मंगायो घाव तेल अर आंगळी रै पट्टी बांध दी।

म्हारै माथै फुसोजी री बड़ी में‘रबानी ही। सब जगै काम व्हाली है, चाम व्हालो कठैई कोयनी। अेक दिन तो धापू री मा, मरतो-मरतो बच्यो।” विचारां रै दोट में चौधरी बैठो व्हैग्यो अर चौधरण थोड़ी नजीक सरकगी।

“उण दिन आज जिसी चांदणी रात ही अर म्हे मजदूर कमरा पर पट्टियां चढ़ावता हा। सांकळ घाल’र अेक मोटी पट्टी ऊपर खेंचण लाग्या। नीचै म्हे च्यार आदमी ऊभा हा। ज्यूं-ज्यूं पट्टी ऊपर उठती गई, दूजोड़ा तो सगळा उठा सूं खिसकग्या पण म्हूं तो पट्टी रै लकड़ी से सा’रो दियां ऊभो हो। इतरा में तो, मालूम कीकर सांकळ निकळगी अर हड़ङ़...ङ, धम्भीड़ करती पट्टी आंगणा पर। जे म्हूं फुरती सूं आगो नहीं सरकतो तो चरणी-चटणी......!”

“ओ मा!” चौधरण रा रूंगता ऊभा व्हैयगा अर उणै चौधरी रो गोडो काठो पकड़ लियो।

“महीना भर में वो बंगळो तो बण’र तैयार व्हैग्यो अर उणीज दिन सेठ भागमलजी मोटर में बैठ’र बंगळो देखण नै आया। म्हे सगळाई मजूर रामा-सामा करण नै दौड़्या। सेठ म्हारै पर बड़ा राजी हुया अर म्हारो नांम-ठाम पूछ्यो।

इण तरै बंगळो तो पूरो हुयो अर इणरै बाद दो बंगळां में कितरा दरवाजा है, कितरा आळा अळमारियां है, सो म्हनै सब आछी तरै सूं मालम है। बंगळा री भींत-भींत भाठो-भाठो म्हारी जाणकारी में है।”

उण दिन गांव में होळी रो रंग जम्योड़ो हो। गैर अर लूहर दोन्यूं जम्योड़ा हा। ढोल रो धम्मीड़ो, डीडियां रो कड़ाको अर चूड़ियां री खणक समवेत सुर सूं अेक अनोखो रस पैदा कर री ही। मोट्यार अर लुगायां सगळाई मस्त व्हियोड़ा- जाणै वा इज नसीली व्हैगी ही।

गांव रा मठ में अमल री पालड़ी हुई ही, इण वास्तै बूढा- ठाडा लोग उठै जाय जम्या। टीकम घर सूं निकळनै मठ कांनी जावतो हो के लुगायां री नजर उणरै ऊपर पड़गी अर उणनै आडै हाथां ले लियो। चौधरी ही-ही करनै दांत काढ दिया। उणरो तो बारै महीनां रो भार उतरग्यो।

मठ में बैठक खूब जमी। दुनियां भर री बातां व्हैगी। डोकरो कानोजी लुहार बोल्या-“आपांणै रावळै अबकै महल तो रूड़ो बणायो।”

“कानजी भाई, जद थे हाल देख्यो कांई। महल-मळिया देखो जोधपुर में जायनै-कांई तो सफाई नै कांई जाबतो। सियाळा में बारणा बंद कियां पछै जाणै गुफा में घुस्या अर उन्हाळै री जिकी ठंडी-ठंडी लैरां आवै के बैठा-बैठां नै नींद आय जावै। बरसात में भलेई सारी रात मेह झींक दो पण मांयनै छांट नीं पड़ै। मांयनै सूतोड़ा तो परभातै बारै आवै जद इज ठा पड़ै के रात रा बरसात हुई ही। आंपणो रावळो तो वां बंगळां रै आगै पाणी भरै।”

बंगळां री बखांण करवा रो टीकम रो सुभाव व्हैग्यो हो। वो जठै कठैई च्यार मिनखां में बैठतो, उठै इण तरै सूं बातां करतो जांणै बंगळा उणरा खुद रा है। उणनै इण बात रो बडो गरूर हो के वे उणरै हाथ सूं बणायोड़ा है। इणरै अलावा टीकम नै अेक मोटो फिकर हो, वो हो धापू रै मुकळावा रो।

उनाळो बातां करतां बीतग्यो अर वरसाळो बीतण माथै हो। भादवै री देव झूलणी अेकादसी रै दिन मुकळावा रो मुहरत हो, उणमें फगत च्यार दिन आडा रैग्या हा।

घर में व्है सकै जिसी तैयारी तो चौधरण घर में कर लीवी पण कपड़ो- लत्तो अर गांव में नीं मिलै जिकी चीज-वस्त शहर सूं लावणी जरूरी ही। टीकम आज जाऊं, काल जाऊं करतो नित दिन घोळतो। चौधरण नित उणरा कान खावती।

रात आधी ऊपर बीतगी अर चौधरी आपरै पड़वा में सूतो घोर खेंचतो हो के उणनै आपरा शरीर पर ठंडक मालम हुई। वो जाग्यो तो देख्यो के मेह बरसण लागग्यो है। उणनै याद आयो के सूतां री टेम तो तारा चमकता हा। आंख्यां मसळतां उणै मांचो दूजी कांनी खेंच्यो पण उठै उणसूं ज्यादा चुंवतो हो। चौधरण जागगी। जठै चुंवतो उण ठाया पर कठैई भरणको, कठैई थाळी नै कठैई कूंडियो मांड दियो। घट्टी माथै गूदड़ा नांख दिया अर सब रा मांचा ओरी में ले लिया। पण ओरी में वा छांट सूं गिरियां- गिरियां तक पाणी भरीजग्यो अर सामी सूं ठंडो टीप वायरो आवतो हो। बिजळी रा पळाका में चौधरण ओरी रो पाणी तासळियां भर भरनै बारै उळीच दियो अर राली ओढ’र मांचा पर बैठगी। चौधरी छाती में गोडा ले’र राली ओढ्यां पड़्यो हो।

उणरो मन तो ठेठ जोधपुर रा बंगळां में भमतो हो। उणां में सोवण वाळा मिनख किसाक आणंद सूं सूता व्हैला। गरम-गरम पथरणां में, छांट छपट रो कठैई नाम नीं, घोर खांचता व्हैला। उणरै मन में अेक तरै रो संतोख हुयो। पवन रो अेक दोट आयो अर उणरो मूंढो भींजग्यो। वो बैठो व्हैग्यो अर राली काठी लपेट ली।

चौधरण बोली- “अबै तो दो-च्यार दिन जमीन आली है जितरै निनाण तो व्है कोयनी सो थे शहर जायनै चीज-वस्त ले आओ नीं।”

“हूं!!”

“हूं-हूं कांई करो हो बेटी रा बापां, आठम तो आज बीतगी, दिन तो दो रह्या है।”

“हां-हां, पण दिन तो उगण देवैला के नहीं। मेह छांट नहीं हुवै तो परभातै जावणो है।”

अर दिनूंगै सांचाणी बादळ बिखरग्या अर चमचमाट करतो सूरज निकळ्यो। पछेवड़ी में सोगरा बांधती चौधरण बोली— “दो-च्यार जागा भाव-ताव पूछनै चीज लीजो, इसी नीं व्है के भोगनो भंगायनै आवो।”

“आज पैली वार शहर नीं जावूं हूं। बारै महीना भट्ट जोख्योड़ी है। अरे हां, अे धापू री मा! म्हारी पछैवड़ी रै पल्लै थोड़ी ग्वारफळियां, थोडी मूंगां-चवळां री फळियां बांध दीजै। सेठ भागमलजी मिळतां पूछैला- कांई रे टीकम, म्हारै वास्तै कांई लायो?”

चौधरण सब चीजां बांध दी अर चौधरी रवांनै व्हैग्यो। लारा सूं हाको सुण्यो-“अरे, कांबळ तो भूल ग्या। ओढोला कांई?”

“थनै केय तो दियो के रात सेठां रै बंगळै ठैरूंला। कमरा में सूतां पछै जांणै सात हाथ री सीरख में सूता। पछै कांबळ रो कांम कांई?”

“पर बेटी रा बापां, ऊंट नै पिलाण रो कांई भार? लेता जाओनीं कठैई रात का ज्यूं मेह आयग्यो अर पवन छूटग्यो तो सरदी लाग जावैला।” पण चौधरी नहीं मान्यो अर चौधरण हाथ में कांबळ लियोड़ी ऊभीज रैयगी।

चौधरी दौड़तां—भागतां टिगस करायनै गाडी तो पकड़ली पण डिब्बा में गरमी इसी ही के उणरो दम घुटण लागग्यो। किणी तरै सूं जोधपुर आयो। रात पो’र डोढ़ पो’र बीतगी ही अर मेह बरसण लागग्यो हो। वो थोड़ी देर तो मुसाफिरखाना में ऊभो रह्यो अर पछै सरदारपुरा वाळी सड़क पकड़ी। छांटा थोड़ा-थोड़ा हाल तक पड़ता हा, सड़क माथै ठौड़-ठौड़ पाणी भेळो व्हैग्यो हो।

लारै सूं अेक मोटर सरड़ाट करती आई अर चौधरी रा कपड़ा लथपथ करती चालती बणी। वो कठैई भूल्यो नहीं अर सीधो भागमलजी रै बंगळै पूगो। फाटक पर थोड़ो टैरनै आपरा कपड़ा निचोय लिया, हाथां में पकड़्योड़ी पगरखी नीची नांख’र पगां में घाल ली, माथै पर पोतिया रो चींथरो थोड़ो ठीक कर लियो अर पछैवड़ी में बंध्योड़ी फळियां अेक वार संभाळ ली।

मन में विचार करण लागो—रात खासी बीतगी है, सेठ ब्याळू री मनवार करैला, फिजूल तकलीफ देवैला। वो पाछो घिरग्यो। च्यार छव पांवड़ा चाल्यो के मेह जोर सूं गरज्यो, बिजळी चमकी अर वो ठैरग्यो। आपरा हाथ बणायोड़ा बंगळा कांनी उणरा पग आप सूं आप ऊठग्या।

पण फाटक में कदम धरतां अेक मोटोसीक कुत्तो टीकम री मनवार करण नै लपक्यो अर चौधरी नै भींत पर चढणो पड़्यो। कुत्ता नै भुसतो सुणनै सेठ बारै निकळ्या अर बोल्या—“कुण है रे?”

“ओ तो म्हैं हूं सा नीलकंठ गांव रो टीकम चौधरी!”

“अठै कांई लेवण नै आयो है?”

“म्हारै रातवासो लेवणो है, आप म्हनै ओळखियो नहीं सा?”

“म्हैं तो आछी तरै सूं ओळख लियो पण अठै कोई सराय है कांई, जो रातवासो लेवणो है?”

सेठां मांयनै घुस’र फटाक सूं कमरा रो दरवाजो बंद कर दियो।

चौधरी भींत सूं नीचो उतरनै दूजोड़ा बंगळा कांनी चाल्यो पण उठै भी उणनै ठरण नहीं दियो अर दुत्कारनै निकाळ दियो।

तीजोड़ो बंगळो ठेकेदार मोतीलालजी माळी रो हो। सांमनै मोटोड़ा कमरा में ठेकेदार अर उणां री लुगाई सोय रह्या हा अर कनलै कमरा में दो नौकर। बाकी तो सब नींद में हा पण ठेकेदार री लुगाई जागती ही।

चौधरी फाटक खोलनै मांयला कांनी आयनै देखै तो सुनसान। सोचण लाग्यो -कोई नै जगायनै कांई करणो। आपांणै तो रातवासो लेवणो है। बरंडा में पड़नै ईज रात बिताया दांला अर परभात रस्तो पकड़ांला। इणरै अलावा जगावण सूं डर हो के फेर दुत्कारनै बारै नीं निकाळ दे।

मोटोड़ा कमरा में बत्ती बळती ही अर उणरो थोड़ी-थोड़ो चांदणो बारै पड़तो हो। बाकी घोर अंधारो हो। चौधरी डरतो ऊपर चढ्यो, अठी-उठी देख्यो अर सोवण जोगी जगै देखण लाग्यो।

इतरै तो बंगळा रै मांयनै सूं जोर सूं हाको हुओ— “चोर! चोर!” वो भाग्यो जितरै तौ किणैई उणनै लारा सूं काठो पकड़ लियो अर तड़ाक करती अेक लकड़ी माथा पर पड़ी। हाको सुण’र निरा लोग आयग्या।

उकसियोडी भीड नीलकंठ गांव रा मातबर चौधरी टीकम नै मार-मारनै उणरी टाट पोली करदी। भीज्योड़ा कपड़ा री बेढंगी पोसाक में वो चोर व्है ज्यूं जंचतो हो। सगळी भीड़ उणरी दुस्मण व्हियोड़ी ही इण वास्तै उणरी सुणै कुण!

किणैई पुलिस नै फोन कर दियो अर थोड़ी देर में पुलिस री गाडी आय धमकी। चोर मौका पर पकड़जीग्यो सो पुलिस झट हथकड़ी पैरायदी। वो आपरी सफाई में बोलणो चावै हो पण उण पर कोई कांन नहीं दियो।

मामूली मजूरी पर कांम कर’र जिण मकान में अेक मजूर रातवासो लेणो चावै हो उणनै घेर्‌यां ऊभी ही लिछमीपतियां री टोळी अर कनै ऊभी ही वांरी आपरी पुलिस।

चोर नै मांयनै बिठा’र मोटर रवांना व्हैगी। हाथां में हथकड़ियां अर पीठ पर फळियां रो भार लियां चौधरी सोचतो हो— घर, गवाड़ी, धापू, मुकळावो अर मालम कांई-कांई!

मेह बरसातो हो रिमझिम अर बिजळी खिंवती ही पळाक-पळाक!

स्रोत
  • पोथी : कथेसर जनवरी-जून 2024 ,
  • सिरजक : नृसिंह राजपुरोहित ,
  • संपादक : रामस्वरूप किसान ,
  • संस्करण : तिमाही राजस्थानी अंक 48-49
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