पगोथियै माथै पग मेलते जबान रै काळजै सागै सगळो सरीर सगसगा-टग्यो। पग पाछो हेठै राख्यो। अठीनैं-बठीनैं झांक्यो। गरमी हाल पड़ती ही। गळी खाली ही। हां, पाटै माथै बैठ्यो देवो नाई एक टाबर रो माथो गोंडां बिचाळै घाल’र संवार करतो हो। गली रै दूजै छेडै सूं मूळियो माळी आपरै पांवलै ऊट माथै तड़-तड़ करती पखाल उभाणा पगां लावै हो। गळी री सूनवाड़ रै कारण जवान भाठै रो हुवै ज्यूं ऊभो रैयो। जद धूजणी मिटी, तो हीमत बटोरी अर हाथ जीवणी मूंछ माथै गयो। जवान री ऊमर पच्चीस बरस ही। कद रो ठीक, अर सरीर भी सावळ बण्योड़ो हो। साल दो साल पुलिस मैकमै में काम भी कर चुक्यो हो, केई बार जान जोखै में घाल’र हीमत रा करतब भी देखाळ्या, पण इण पगोथियै माथै पग टेकण री हीमत नईं हुवै।

अबकै जवान डावी मूंछ में बट घाल्यो घर दबादब तीन-च्यार पगोथियां चढग्यो। दो पगोथिया अर राणो बाकी हा। धीरै-धीरै राणै माथै पूगग्यो। विलाई रै हाथ तो लगायो, पण उणनैं हिलावण री हीमत नईं। पाछो उतरण लाग्यो, पण मा री बात रो ध्यान आयो—“बेटा, देख थारो बाबो बेमार है, सगत बेमार। अबै कित्ताक दिनां रो। जे पूछण नैं नईं जासी, तो लोग कैसी—बापड़ै नैं संभाळ्यो कोनी। एक बार पूछ’र पाछो आय जाए, घणी ताळ रुकण री जरूरत कोनी।”— इण रै सागै बीं विलाई खोली, अर घर में बड़ग्यो।

सामनै आंगण में धूड़-फूस रै सिवाय चिड्यां-कबूतरां री टींच्यां अर बोदा पूर खिंड्योडा हा। माचै माथै साठ बरसां रो एक डोकरो ऊमर रा दिन ओछा करै हो—माथै ऊपर आली पाटी, डील माथै आलो गमछो। सिराणै खंखारै रो कुलड़ो उघाड़ो पड़्यो हो, इण कारण माख्यां रो भणभणाट भी मोकळो हो।

बारणो खुलते बाबै जवान सामीं नस करी, अर उण नैं घूरनै देख्यो। जवान रा पग चिपग्या। वो पग घींसतो-घींसतो च्यार पांवड़ा आगै बध्यो। पगांथै कनैं टूट्‌योड़ी तिपाई माथै बैठग्यो।

बाबै बत्तीसी काठी भींची अर इस्ट नै सिंवर्‌यो। जे आगै आळी पूंच हुवै, तो अबार इण कमीण नैं कंठ मसळ’र मार नांखूं।

जवान पूछ्यो—“कियां है, बाबाजी?” बाबो लांबो सांस लियो—“हूं... पूछै है कियां है, थारी आंख्यां फूटगी, तनैं सूझै कोनी, नालायक, पाजी!”

डोकरै सूं आंख मिलावण री हीमत जवान में ही कोनी। वो बोल्यो—“मा पूछायो है।”

डोकरो कड़कनै बोल्यो—“अरै हराम रा पिल्ला, तो मनैं ठा है कै मा पूछायो है जद तूं आयो है, नईं तो तूं आपेई आवण आलो थोड़ो है। तूं देखै बाबो मरण आळो है, पण हूं इयां मरूं कोनी। माचै में पड़्यो हूं तो तनैं तो घणो—कुस्ती लड़ै तो कुस्ती में त्यार हूं, मुक्काबाजी करै तो मुक्काबाजी में आवरो, पंजो लड़ावै तो पंजै में भी कम कोनी, अर लकड़ी- तरवार री जे मन में है, तो वा भी काढ सकै।”

बाबै रो दम फूलग्यो। धांसी में कफ रा तीन डचका आयग्या। कुलड़ै में धूक्यां पछै डाढी-मूंछ साफ हुई कोनी। जवान आपरो रूमाल काढ’र नैड़ो बध्यो। बाबो सामों झांकण लाग्यो जित्तै जवान खंखारो पूंछ दियो। बाबो जवान रो हाथ झटकतो बोल्यो— “अळगो बळ, म्हारै अड़ मत तूं, भंगी!”

जवान रो माथो चकरावतो हो। सगळो घर बींनैं घूमतो दीखतो हो। बींनैं बीस बरसां पैली री वा घटणा याद आयगी जद चाळीस री ऊमर में भी बाबो आछो जवान हो अर एक दिन वो इण री विधवा मा रै लारै लकड़ी लेय’र भाग्यो हो। जे पाड़ोसी नईं पालता-झालता तो बाबो बटीड़ मेल्यां बिना मानतो कोनी। उण बगत जवान पांच बरसां रो नानियो हो, अर बाबै रो वो रूप हाल उण रै काचै-कंवळै काळजै माथै कोझी तरै हावी हुयोड़ो हो।

बाबै रो कंठ सूकण लागग्यो। जवान कूंडी री टूंटी सूं एक गिलास भरनै बाबै रै आगै करी। बाबै झटको दियो। गिलास रा टुकड़ा-टुकड़ा हुयग्या। “तूं बारै बळ अठै सूं, पाजी! मनै ठा है तूं अठै क्यूं आयो है। मन्त्रायोड़ो रूमाल म्हारै अड़ाय’र तूं टूणो करणनै बळ्यो है। निकळ नालायक, भाग, हराम रा हाड़” कैयो जित्त बाबो सागीड़ो हांफग्यो। बैठ्यां बिना खंखार थूक दियो अर माथै री पाटी सूं मूंडो पूंछ लियो।

आपरै साईनां री मंडळी में जवान सागीड़ो मजाकियो गिरणीजतो अर बोलारां में पग राखतो हो, पण बाबै रै आगै होठ खुलणा तो अळगा रैया, जीभ ताळवै चढण लागगी। लिपाई जाणै इत्ती लंबायगी कै पगां हेठली धरती निकळगी।

जवान टुरण लाग्या तो बाबो बोल्यो— “पाछो उखड़ै है तो अठै बळ्‌यो धूड़ खावण नै हो, पाजी! फेर कदेई जे थळी माथै पग राख दियो, तो हूं पग बाढ लूं लो। तनै तो इसी हालत में घणो।”

जवान पूछ्यो— “बाबाजी, थे जे हुकम करो तो हूं अर म्हारी मा अठै रैवण लाग जावां, थारी सेवा करां, दो काम उठावां।”

“अरै नालायक, मनैं भूल सूं मरणो कबूल, पण थारी मा अर थारै कनैं सेवा कराऊं कोनी। थे हित्यारा हो। हया-दया बायरा हो। जे मनैं जैर देय’र मार देवो, तो हूं तो गयो खत्ता खावतो, अर फेर थे अठै बैठा राजस करो। हूं जीवूं जित्तै थानैं अठै पग टेकण दूं कोनी।” इत्तो कैयां पछै दो-तीन बार हिचक्यां आयगी। बाबै रो बैम पक्को हुयग्यो कै छोरै रा टूणा काम करग्या। मन में रीस बधगी। मनैं तो मरणो है, पण ईं नैं भी ठंडो राख दूं तो जीव सोरो हू जावै।

बाबै च्यारूं मेर निजर दौड़ाई। बीस बरसां पैली आळी सागी लकड़ी कूणै में पड़ी ही। बाबो बैठ्‌यो हुवण लाग्यो, पण सरधा कठै ही? ना हुवो नईं ही तो, हियै री हेकड़ी तो ही। खाई किड़कड़ी, अर हुयो बाबो बैठ्यो। फेर आयगी घांसी। बाबै खंखारो आधो कुलड़ै में अर आधो बारै थूक दियो। ऊभो हुयो। पग डियै। पड़्या डिगो। मेल्या पग कूणै कानी। बधायो हाथ लकड़ी नैं। जवान री आंख्यां आगै तिरवाळो आयग्यो। वो तिपाई सूं उठ’र उभाणो पगोथियां सूं तिसळ्‌यो। पींडी सगळी छुलगी, साथळ रो हाड बड़कम्यो। बेहोसी छायगी अर सड़क माथै पड़्ग्यो।

ऊंतावळ में जवान रै खूंजै मांय सूं पेन आंगण में पड़ग्यो। बाबो घबरायो। फेर कोई टूणो छोड़ग्यो दीसै है। बारणै कानी डांग लेय’र बध्यो, तो जवान बेहोस पड़्यो दीख्यो। पेन नैं लकड़ी सूं मोखी रै नेड़ो सिरकायो अर टूंटी खोलदी, भई पेन मोखी में बैय जासी।

बाबो साव थकग्यो। माचै तईं पुग्यो जितै लकड़ी तिसळगी अर वो माचै माथै गुड़ग्यो। फेर दम उठग्यो। बांसी रै सागै खंखारो जरड़-जरड़ बोलै, पण बारै आवै नईं। बाबै जवान नैं सूगली-सूगली गाळ्यां काढी, पण कफ बारै आयो कोनी।

बेहोस जवान नैं उठाय’र लोग घर में लाया जित्तै बाबो जेवड़ी तोड़ायग्यो।

जवान नैं अस्पताल में भरती करायो अर बाबै री सीढी बंधी। सायद बाबै री आत्मा में संतोस हो कै म्हारै जावण सागै तनैं अस्पताळ तो भेज दियो, आगै देख दाता।

तीजै दिन जवान घरे आयग्यो। भद्दर हुय’र पोतियो बांध लियो अर बाबै री बैसक में बैठग्यो। अबै वो घर इण जवान रो है।

स्रोत
  • पोथी : आज रा कहाणीकार ,
  • सिरजक : श्रीलाल नथमल जोशी ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थान भासा प्रचार सभा ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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