पंडित जी! हूं हाथे लगावणी अ’र पगे बुझावणी जाणू को ‘नी इयै मन्दिर में आय’र हूं झूट को बोल सकूंनी। आ बात साची है— एकदम साची के इयै मन्दिर में आय’र हूँ पैली बार साची बोलण री कोसिस करूं हूँ। हूँ— म्हारी आतमा री सुद्धि करणी चावूं... पंडित जी! आप कंई फरमावो? हां, हां! हूं म्हारै पापां रो चिंतन करसूं, मनै पापां पर पछताओ है। हूं म्हारी करणी आपनै सुणांसूं। दुनियां में जीवण नै आतमा री सुद्धि मनै करणी पड़सी।
पंडित जी! आप तो सरव व्यापी हो। आप जाणो ही हो के म्है नगर रै करोड़पति सेठ रो अकलो बेटो हूं। हिन्दुस्थान रै लिछमी रै लाडलों में म्हारो नाम गिणीजै। हूं सेठां रो सिरमोड़, घर रो उजाळो, मां-बाप रै गळै रो हार अ’र रईसां में नामी रईस। तो हूं, आपने आइ’ज कैवणी चावूं के म्है धरम-करम रो नेमी हुवण रै कारण कोई पाप नीं करियो। पण फेर भी इयै कमीणै समाज म्हारै माथै पांच पाप मढ़ दिया है। उण पापां री काळी छियां सूं बचणनै हूं आपरी सेवा में हाजर हुयो हूं।
पंडित जी! पैलो पाप म्हारै माथै इयै समाज ओ लगाओ है के धन रै लोभ में आय’र म्है म्हारै बाप नै जहर दे दियो। पंडित जी! कित्ती बिना सींग पूंछ री है ऐ बात्यां। भला म्हारै सिवाय बै धन रो मालिक ई’ज कुण हो जकै वास्तै मनै काकासा नै जहर देवणो पड़ियो। साची बात तो आ है के अे सब बातां आभै पटक्योड़ी है। म्है काकासा नै जहर जरूर दियो, जिण सूं हूं इनकार नहीं, पण परमात्मा री सौगन म्है धन रै लोभ में आय’र काकासा नै जहर नीं दियो। म्है बांनै जहर दियो मांई-माँ रै कैवणै सूं। म्हारी मांई-माँ सोळै साल रा हा, अ’र काकासा इकसठ बरस रा भूढा डैण हा। सरीर री सारी नाड्यां चालती ही, पण ब्याव करण री रळी आवती ही। बींद बणन नै झट त्यार हुय जावता, पाछा को हटता नी। हूं जद इक्कीस बरस रो हो। काकासा नवी नवेली बहू लाय’र म्हारी मांई-मां बणाय’र बैठाय दी। सोळै साल री माँ रो लाचार हुय’र मनबैलाव मनै करणो पड्यो। काकासा नै म्हारा मांई-माँ गळियोड़ा ठूंठ हीज समझता हा। लाचार हुय’र म्है काकासा नै जहर दियो। ऊमर भी घणी हुयगी थी। फजूल बुढापै में भुगतणो पड़तो। म्हारै काकासा माथै मनै अ’रम्हारी मांई-माँ नै बौत दया आई। म्हां दोनू मिल’र बांरो उद्धार कर दियो। म्है जहर देतां बगत भी काकासा री आतमा रो पूरो ध्यान राखियो। दाग देवण रै दूजै दिन इ’ज छालोड़ै नै हरद्वार में लेजाय’र गंगा माता रै निरमळ जळ में बैवाय दियो। बांनै बैकुंठ में भेजण खातर बांरै लारे दो सराध किया अ’र 50000 रिपियां दखणा दिया। बीं उपरांत भी समाज मनै फटकारियो, जणै लाचार हुय’र म्है म्हारी मांई-मां नै घर सूं बारै काढ़ दी, ज्यों भगवान रामचन्द्रजी सीता-माता नै धोबी रै कैणे सुं देस-निकाळो दियो।
म्हारै समाने भगवान रो आदर्स हो। ज्यों जगत में रामजन्द्रजी री कथा गाई जावै, उण री तरह म्हारै कुळ री कथा भी गाइजणी चईजे। कवियां रो घाटो को’नी। रिपिया लारै भागता आवै। आज रा तुळसीदास राम रा चाकर को’नी, लिछमी रा चाकर है। राज लिछमी रो है। खैर!
जे काकासा रै मौत रो इलजाम म्हारै माथै है तो उण री मुगती करवावण रो जस भी मनै मिलणो चईजे। एक बात और पंडित जी। मौत रो दोस म्हारै माथे ब्रिथा है। सरासर अन्याव है अ’र लोगां में भरम फैलावण री तरकीवां है। जद गीता में जोगीराज किसन भगवान पन्नै पन्नै माथै ओ उपदेश दियो है के मरणो-जीवणो परमातमा रै आधीन है, बन्दे रो इण पर जोर नहीं चालै, तो फेर काकासा री मौत रो इलजाम बन्दे माथै क्यों, जोगीराज किसन भगवान माथै क्यो नीं? जद खुद जोगीराज आप रो कसूर मानै, तो फेर मिनखां नै मरणै जीवणै रा दोसी बणावणा परमातमा रो अनादर करणो है।
पंडित जी! दूजो दोस म्हारै माथै इयै पापी समाज ओ लगायो है के हूं कंवारो हुंवता थकां भी कंवारो को’नी। कारण के आपां रै म्हैल में घणा दिनां तक एक फूटरी रूप री रम्भा रैई थी। पण पंडत जी! मनै संभू रै तीसरै नैतर री सौगन! म्हैं बीं रूप री रम्भा नै म्हारी मांई-माँ री जागा राखी। समै आयो जद बीं रै एक बेटो भी हुयो, पण दुनिया पराये सुख दूबळी घणी। पराई बात मिले तो राम मिल ज्यावै। निंदा इस्तूती करणै री लोगां री आदत है। लाचार हुय’र बै रम्भा नै भी मनै घर सूं बारै काढणी पड़ी। इयै बात रो मनै कोई विसेस दुख कोनी। आपणो प्रेम तो रंग बदळतो ही रैवै है।
म्हारै सागै रैवण री छाप उण रम्भा माथै चोखी पड़ी। समाज बीं नै न्यात सूं बारै काढ़ दी, पण बा आज तक समाज री नाक काटै है, दांतां सूं नहीं एक इसै सस्तर सूं, जिकै रै बारै में आप हजारां काण्यां में पढ़ियो हुसी। कैवण रो मतळब है के बा कोठै पर बैठे, नाच-गाण करै, जठै समाज रा नामी नामी ठेकेदार आप री नाक उण री एडी रै नीचै रगड़ै। ह ह! जठै पंडित जी माफ करोला, एक बार म्है आप नै भी देख्या था। मनै भी समाज रै ठेकेदारां न्यात-बारै काढ़ण री सोची, पण लिछमी माता रै आगै बांरो जोर को चाल्यो नीं, नहीं तो हूं खुद कोठै माथै बैठ’र बांरो नाक काटतो। अबै हूं पारलमिंट मे ओ कानून जलदी बणवासूं के लुगायां री तरह आदम्यां नै भी कोठै माथै बैठण री छूट मिलणी चइजे, नहीं तो आ बात साफ दीखै है के आपां लुगायां री ईजत कमती करां हां। क्यो पंडित जी! किसी’क कैई? आ सुण’र लोगां री कानां री ठेठ्यां दूर हुय जासी।
पंडित जी! तीसरो दोस म्हारै माथै ओ मंढीजियो है के हूं काळै बजार रो व्यौपारी हूं। हूं आप नै दावै रै साथै अरज करूं के अे बात्यां हत्था मेलयोड़ी है, अर बिथा है। म्है इती बात तो जरूर की थी के काळै बजार में जितो भी माल थो, वो सारो खरीद लियो अ’र आपणै तहखाना में जमा कर लियो। जद लोगां ने बजार में माल नहीं मिलणै रै कारण फोड़ा पड़ण लाग्या, तो म्है खुलै आम मंहगो बेच्यो, पण बेच्यो खुलै आम, अ’र खुलै आम माल बेचणो काळो बजार करणो को’नी - क्यों पंडित जी?
चौथो इलजाम म्हारै माथै ओ लगाइजियो है के हूं चुनाव कपट सूं जीतियो हूं। पंडित जी! थे तो खुद जाणो हो के अगर हूं उण बिगड़योड़े छोकरै रै विरोध में लोगां नै रिपिया दे’र वोट मोल नहीं लेवतो तो वो छोकरो आपणै देस, जात अ’र धरम नै कित्तो बट्टो लगावतो। आ नेक सलाह तो मनै खुद आप ही दी थी पंडित जी! नहीं तो हूं तो देवाळियो हुय जावतो। थे म्हारै जसै लाखां लोगां रो भलो कियो है पंडित जी! थांरो भगवान भलो करसी।
पांचवों अपराध म्हारै ऊपर ओ लगाइजियो है पंडितजी! के हूं जोंक बण’र गरीबां से खून चूसूं हूं अ’र मजूरां रा आंसू पीवूं। पंडित जी! कित्ती बणावटी है ओ बात्यां। आप तो जाणो ही हो पंडित जी! के दिन नै तो हूं दाख्यां रो दारू चाखूं अं’र रात्यां नै अमरित पीवूं अधरां रो। मनै गरीबां रो खून भावै है क्या? मजूरां रा आंसू मैं पीवूं? जद भगवान म्हारै वास्तै इन्दर री अप्सरावां बणाई है तो फेर गरीबां रो बदबूदार खून कूण चूसै? पीवण नै जद संसार म्हारै वास्तै दाख्यां रो दारू बणावै तो मजूरां रा कीचड़ सूं भरियोड़ा आंसू कूण पीवै? राम, राम। पंडित जी। कित्ती बड़ी जाळसाजी है इण बातां में! जद हूं कोई गरीब नै देखूं तो मनै उलटी आवै अं’र हूं बां सूं कोसों दूर भागण री चेस्टा करूं। अेक दिन री री बात है-म्है एक गरीब नै खाली पांच बरसां सूं तनखा को दी ही नीं, बै दुस्ट म्हारै पगां में आपरी पागड़ी मेल दी। पागड़ी री दुरगन्ध सूं म्हारो तो जी निकळण लागग्यो। चपड़ासी नै कैय’र साळै नै धक्का दिरा’र बारै निकळवायो। फेर घरै जाय’र तीन बार न्हाय-धोय’र कपड़ा बदल्या। उण गरीबां रो खून किण सूं चूसीजै, अ’र कूण पी सकै छि छि छि।”
तो पंडित जी! म्है सारी राम-कथा आपनै सुणाई। मनै म्हारी आतमा री सुद्धि करणी है। आसा है कि आप मारग बतावण री किरपा करोला। क्या को पंडित जी। मन्नै मंजूर है। म्है आज सूं ही छव दिनां रो बिरत राख सूं अर तीन दिनां तक गंगाजळ ई पींवतो रह सुं। पण पीसूं दारू में घाल’र। दारू बिना गंगाजळ मन्नै भावै को’नी। आप कांई फरमायो? कोई हुसियार पंडित नै जोय’र सकती सारू दान देवू? - तो मंजूर है। पण आप सूं ज्यादा हुसियार पंडित कूण है? तो ओ लो पांच हजार रो चैक, पण पंडित जी! थे राजी को हुया नी! तो दस हजार से चैक ले लो। बा हंसी आई आपरै होठां पर। ठीक है पंडित जी, हूं तो कैवूं एकदम ठीक है। भारत रै पवित्तर गंगाजळ में हजारो गुण भरियोड़ा है। मरियोड़ां नै बैंकूठ अं’र जीवतां नै आतमसुद्धि देवण वाळै गंगाजळ री जै हो, जै हो। अबै म्हारै पापां रो ई निस्तार हुय जासी। म्है कोई खास पाप तो किया नहीं। अबै पंडित जी! म्है छव महीनां बाद आसूं। इतै दिनां में ओ नालायक समाज म्हारै माथै इत्ताई इलजाम लगाय देसी।
अंत में हूं आप रो अहसानमंद हू पंडित जी! आप हमेशा म्हारो साथ निभायो है, अ’र म्हारै विरोध में ही नहीं, म्हारी जात रै विरोध में लोगां री जबान रोकी है। भगवान थांरो भलो करसी। हूं आपरो उपकार कदै भूलूं कोनी जत्तै आप म्हारै सागै हो, मन्नै लाट सा’ब री भी परवा कोनी। हूं कित्ती रिसवत देय’र आपरै गुणां रो बदळो चुकावूं?
लो पंडित जी! आप रै वास्तै खास विलायती माल! हा- हा- हा बिल्कुल लुक’र रात नै पधारो। तेरह-तेरह बरसां री दो नुवीं ‘बायां’ रो ‘मुजरो’ आपणै रंग-महल में हुसी। बिलकुल विलायती माल है पण धीरज राखो म्हारा गुरू।
हूं रात नै आप रो इतंजार ‘गोरबाई’ रै अठै करसूं। अबै म्है जावूं हूं पंडित जी! धोक देवूं अ’र प्रणाम करूं!