गांव जिस्यो गांव। गांव रै घरां जिस्या घर। कीं री भीतं, कीं री पछींत। कीं रीं देहळी, कीं रो दरवाजो। कीं री छात, कीं रो आंगणो। म्हारै दरवाजै स्यूं मंगतू नाई री सगळी आंगणवाई दीखै; तो मंगतू नै भादर री साळ रो पूरो चित्राम। साळ-कोठा तो है मेह-तावड़ै, रीळ अर लुआं री ओट। तो घरां बिचाळै भींत? भींता रै पाण आख्या री सरम। सरम कितीक? मिनकी नै देख’र जिती कबूतर री। दीखै सगळां नै सो की है पण भींत री ओट मांय सै आप आपरी सरम नै पोखै है अर सरम पोखै है कांण नैं। कांण-सरम रै पाण इज दुनिया धिकै है। कांण रै पाण सरम, अर सरम री सींव भींत। बैठ्यै-बैठ्यै नै काम सूझ्यो। साळ री छात संभाळ लेवणी चाहिजै। आवण आळै चौमासै स्यूं पैलां निवांण अर तरेड़ा मांय माटी न्हाख देवां तो साळ टपकण रो डर नीं रेवेलो। मेह रो कांई भरोसो कद ही आ सकै है। रात-बिरात सेकौ मांड सकै है। म्हूं निसरणी लगा’र छात चढण लाग्यो। चार गाता चढ्यो तो लाग्यो जाणै सरम री सै सींव टूटै है। काळजै मांय धमीड़ उठ्यौ। म्हारी सरम इसी इज आगलै री सरम। छात चढताई तो सगळां रा घर आंगणां चौड़े दीखसी। राम जाणै कुण किंया बैठयो हुवै, किंया बतळावन्तौ हुवै। बहू-बेटी, लुगाई-पताई सगळां रै इज है। गाबां नीचै सै उघाड़ा। आप रो आप स्यूं कांई छानौ। सरम तो दूजै री इज होवै है। म्हानै लाग्यौ जाणै म्हूं दूसरै री सींव मांय पग मेलू हूं अर ओ आच्छो नीं घणो माड़ौ है। चोथै स्यूं पांचवै गातै कानी पग मेलणो दोरौ होग्यो। दूसरै री नीं सोचै बो कठै रो मिनख? आ सोच’र म्हूं पाछौ उतरन री तेवड़ी इतै पैली म्हारी दीठ म्हा स्यूं तीसरै घर माथै पड़ी अर म्हूं चढणो-उतरनो भूल’र निसरणी रै अधबिचाळै लटक्योड़ो सो रहग्यो जाणै। निसरणी साथै खाती रो घड़योड़ो होऊं।
म्हां स्यूं लागतौ घर परतै रौ अर परतै रै लागतो सीरू रो। सीरू स्यूं लागतो बाड़ौ अर बाड़ै स्यूं लागतौ घर तोखै रो। म्हारी दीठ अणजाणै अर अणचाणचकै सीरू माथै पड़ी। बो आपरै न्हाणघर मांय खड़्यो हो। न्हाणघर कांई बस बिना छात अर किवाड़ा रै मोढै सूधी भींत री ओट। इणी ओट मांय लुक’र खड़्यौ ओलै-छानै तोखै रै घरां तांक-झांक करै हो। सीरू कदै लपक’र भींत उपरांकर नाड़ कांढै हो तो कदै ताचक’र नीचो होय’र भींत री ओट लेवै हो। कदै-कदै आपरै लारै नीजर जमावै हो जाणै खुद नै कोई और तो नीं देखतो होवै। बस अै इज हाव-भाव हा जिस्यूं म्हानै लाग्यौ जाणै सीरू सींव लांघै है। सीरू म्हारो रस बणग्यो अर सीरू रो रस तोखै रो घर। तोखै नै सीरू नी दीखै अर सीरू नै म्हूं।
अबार म्हूं सै भूल भालग्यो। साळ री छात चढणो। छात मांय तरेड़ सोधणी। माटी न्हाखणी। तावडौ चढणो अर निसरणी स्यूं चिमट्यो रैवणो। फकत म्हानै दीसै सीरू अर बीं रीं हरकतां। म्हानैं कीं रै घरां ताक-झांक करनी नीं जचै पण कोई दूजो तीजै रै घरां तांक-झांक करै तो राम निकळता कांई देर। मन ही मन सोच्यो सीरू री अै हरकतां तोखै नै बता देवणी चाहिजै। माथौ चैतायौ। बतायां चुगली बजसी अर हो सकै लठ्ठ बाजज्या। तो चुप रहवणो ठीक। चुप रह्या सींव टूटै हैं। गुळजट बणगी। कीं समझ मांय नीं आई। छेकड़ भूत-भविस नै छोड़’र हाल माथै जी टिकायौ। घणी बातां मांय कांई पड़्यौ है स्यातेक मांय म्हूं इज सीरू बणग्यो। म्हारै मन मांय इज चोर बड़ग्यो। म्हूं इज दूजै-बींनै तकायौ। म्हानै कोई देखतो तो नीं होसी। सीरू कांनी देख्यो तो मन मांय डर पनप्यो। कदैई सीरू री नीजर म्हारै तांई नी पूग जावै। नीं तो सारौ खेल बिगड़ ज्यासी।
सकड़ेलो-उरळाई आप आपरी जिगां। नीजूं जीवण जीवणो आप री जिगां सकेड़लो-उरळाई छानौ नीं रहवैं। इं रो जिकर तो भीतां इज कर देवै है पण नीजूं जीवण तो छानौ राख्यों जा सकै है अर नीं रहवै तो इज छानौ राखण रा तरळा तो ले इज सकै है। आं ई तरळा रै तांण म्हूं मनां मांय मोदिज रेयो हो म्हाने कोई नीं देख्यो। ओ इज मोद स्यात सीरू रै हो अर ओ इज तोखै रै।
निसरणी रै चीपणै स्यूं म्हारै हाथ पल्लै कीं नीं हो। न म्हानै कीं दीखै हो न सुणीजै हो। फकत सीरू दीखै अर दीखै हा बीं रा हाव भाव। पण रस जबरो बण्यो हो। तावड़ौ आकरौ हो। भळै इज निसरणी छोड़नै मन नीं करैं हो। अबार बांचणियो थे इज अन्दाजौ लगा सकौ हो कै जै कोई म्हानै मतलब होवन्तो, कै कीं सुंणतो-दीखतौ होवन्तो तो रस रा कांई लेखा रेवन्ता? स्यात सीरू रै म्हारै स्यूं बेसी रस बणर्यो हो क्यूंकै कै तो बीनै कीं दीखै हो कै कीं सूणै हो, कै कोई उंडो सुवास्थ हो।
म्हूं रोटी खाया पछै घड़ी एक हरमेश सोऊं हूं। रोटियां रो नसो म्हारै दुआई-दारू स्यूं घणो। चळू करी नीं अर नींद आई नीं। पण आज नींद नैड़ै-तैडै नीं ही। माथै-माथै सीरू इज काबिज। सीरू तोखै रै घरां कांई देखै हो? क्यूं देखै हो? माथै मांय अनेकूं सवाल उपड़ै हा। जबाब किस्यै रो इज नीं हो। बस’ इतीसी’क बात नींद अर चैन हराम कर न्हाख्यौं। एक घड़ी सोवन्तो हो, आज दो घड़ी तांई पसवाड़ा फोरतो रह्यो। बिना नींद री उबासियां स्यूं जबाड़ौ जगां छोड़नै होग्यो। पगां मांय सड़फ चालगी पण नींद नैड़ै-तैड़ै इज नीं। हार’र माचौ छोड़्यो। ओजूं निसरणी रै च्यार गाता चढ्यो। सीरू रै न्हाणघर माथै नीजर जमाई। ठा हो क तपतै-तावड़ै मांय कुण खड़यौ रहवै हो। पण स्याव नीं नावड्यौ। पाछौ साळ मांय बड्यौ तो लाग्यौ जाणै ताव स्यू साळ तपै है। अबार साळ मांय जक नीं पड़ी। पड़छाया चैते आई।
रासखण्ड पड़छाया ढळतां इज मंगतू नाई आपरा सुंवार, करण रा राछ लेय’र, कळी भर’र बारनैं आगै हरमेस आ बैठे। बरसोदी पर सुंवार करावण आळा आवै तो ठीक नीं तो एकाध जणो कळी री घूंट मारनै अर बांता बतळावण आ ही बैठे। तर-तर और मिनख इज आ बैठै। म्हूं इज जा बैठ्यो।
“आ रै धरमा आज किंया फोरौ मिलग्यो?” मंगतू पूछ्यो।
मंगतू रै तानै नै म्हूं समझग्यो। म्हूं हथाईयां मांय कम ही भेळौ होवन्तो हो आ म्हारी कमी ही। ईं खातर ओळमो तो देवै ही। म्हूं बीं री सै’न कर’र बतायौ “साळ मांय उमस ही सोच्यो बारै पौन लागसी।”
“आ बात कोनी लाडी, डौळ ही बतावै है उंडौ सासौ है।” म्हारै माथै उंडी नीजर जमावन्तो मंगतू कह्यो। नीजर स्यूं नीजर भिड़ी। म्हारी नीजर मतै ही झुकगी। म्हारै डौळ म्हारी पोल खोल दी, चोरी पकड़ीजगी। म्हारो मुंह बन्धग्यो। कई मिनख डौळ स्यूं कतई पलमो नहीं पाटण दे। मनं रा भाव चोखटै माथै नहीं मण्डण देवै। आ कला म्हां कन्ने कदै स्यूं नीं हीं। आज ठा लाग्यौ कै बापू म्हानै हरमेश बेकळा क्यूं कह कहवन्ता हा। बीं छिण रो चित्राम आख्यां सामी मंडग्यो। तू सीधो है धरमा। सीधै मिनख रो धेलौ इज नी बन्टै। बन्टणो तो दूर पगीज इज नी लागैं। आज रै जमानै मांय चन्ट मिनख चाहीजै जकौ चालतै मिनख रै पगां री पगरखी काढ़ लै अर बांसण नीं दे। इस्यौ काग इज आज रै जमानै मांय बस सकै है। म्हानै अबोलो देख’र मंगतू एक जूत और फटकार दियो, “सगळै दिन मिनखां मांय रहवां हां। धौन नी चरावां। कुण न्योहरा काढै है नावड़ स्यूं रह ज्यासी जद आप ई गा देसी।”
ओ मंगतू रो म्हाने एक किस्म रो उकसावणो हो। एक दूजै री जाणकारी राखणी मिनख री जळम-जात विरती होवै है। इण विरती रै पांण इज सीरू तोखै रै धर्यै जासूसी करै हो। इण विरती रै पांण ही मंगतू म्हानै उकसावै हो पण म्हारै दुभरिया मंडग्या। जै मन आळी बताद्यूं तो चुगली अर नीं बताऊं तो घूनौ। मंगतू एक दीठ म्हारै कानी न्हाखी। स्यात म्हारै मांय की तन्त नीं लाग्यौ अर रछानी मांय स्यूं पाछणो अर सीली काढतौ भादर स्यूं बोल्यो, “अमरियौ मंसासी’क पगचम्पी कर’र एक ट्रक माथै खलासी जचयो पण दातूड़ै तिगड़म लगा’र विचारै रै पेट माथै लात मार दी।”
“तन्नै किंया ठा लाग्यो?”
“पड़-पड़ स्यूं काम कांई मण्डा स्यूं। दाड़ी सीलालै।”
दाड़ी सीलावन्तो भादर बोल्यो “तोखो धाप’र खा है पण परतै रै गडै है।
“बो बळोकड़ो है। मतैई भुजै है। पण तोखो इब घणा दिन नीं गडै।” “…………” भादर मंगतू रो मुंह तकायौ।
“तोखै रा टिंगर चीलां चालै है। सीरू चीलां उतारण रो जुगाड़ करै है।”
“आप आळौ सो खिण्डयौ पड्यौ है औरां री और उधारी लेवै है, बडगर पोस्त खावै है। लोहड़ियो इण कुसंगत मांय फंसरयो है। गिण्या दिनां मांय लातां री पड़तां म्हूं दिखा देस्यूं।”
म्हूं चिमक्यो। मंगतू रो ठीयो मंगतू रो रिजक इज नीं साथै इन्नै-बीन्नै करण रो अड्डो इज हो। म्हां स्यूं जरी नीं तो कह दियो “इन्नै-बीन्नै करणी चुगली होवै है।”
‘भोळा भाई! आ चुगली नीं बतळावण है। तेरै जिस्यै इकलखोरडै नैं चुगली लागै है। मिनख नै मिनख स्यूं बतळावण इज जोड़ै है।”
कीं हद तांई बात सही इज ही। वाणी रै पांण इज मिनख आपसरी मांय जुड़ै है। “बतळावण तो आपसरी मांय होवै है। इन्नै-बीन्नै करणी माड़ी होवै है।”
‘तू तो पादरी बेकळा है। लोग चांद माथै पूग रैया है अर तू बटोड़ै माथै घढ’र मन ही मन राजी होरयो है क देखो लोगो म्हूं कितो उंचो चढ्रयो हूं।”
“कांई मतलब?”
“म्हूं जाणूं हूं तूं तोखै रै घर्यै सीरू नै झांकता देख बावळो हो रयो है।” मंगतू कह्यौ।
म्हूं चिमक्यो ही नीं उछळ्यौ इज।
“उछळ ना अठै बिच्छू कोनी। म्हूं तोखै रै घर री एक-एक बात अठै बैठ्यो बताद्यूं। बीं रीं इज क्यूं? भादर री, परतै री, सीरू री अर थारीज। आधेक गांव रो पलमो जाणूं हूं तो आ इज जाणूं हूं कै म्हारी इज किस्यूं ई छानी नीं। थाने गुमान होसी कै म्हानै कणई देख्यो कोनी पण म्हांने ठा है कै बास मांय एक दूजै रै घरां सै ताक-झांक करै है। किस्यूं इज कीं री ही छानी नीं। लोग अठै तांई पूग रैया है क कुण रै मन मांय कद कांई है?”
मंगतू री सुण’र म्हूं चमगूंगो होग्यो। बैठ्यो रहवणो दोरौ होग्यो। पाछौ घर्यै बावड़यो। निसरणी नै देख’र सोच्यो दुनिया इती आगै निकळरी है तो अबार कांई सरम? म्हूं निसरणी चढण लाग्यो। दूजै गातै माथै पग धारण लाग्यो तो मन कांप उठ्यौ। खुद री सरम आडी आयगी अर छेकड़ नीसरणी नै इज आडी होवणी पड़ी।