“अे बाई, सुण जिंयां खुर बारै आवै, थूं म्हनैं बोल दीजै।” बापू कैयौ अर आपरी गुड़गुड़ी लेय’र पोळ कांनी टुरग्यौ।

दाखां अेक’र पोळ सूं निकळता बापू री पीठ तकी, पछै उडती-सी निजरां गाय कांनी झांक’र धम्म देणी-सी पीढै माथै बैठगी। घणी जेज सूं ऊभां-ऊभां वीं री टांगां दूखण लागगी ही।

गाय बुरी तरीकै छटपटावै ही। कदै बैठै, कदै ऊठै। वीं नैं चैन नीं पड़ै। वा बराबर ठांण में चक्कर काटै। डगमग कांपती टांगां सूं लड़खड़ा’र बैठण री जुगत करै, पण तद दरद रौ तीखौ हिलोरौ वीं नैं बुरी भांत तड़फड़ाय जावै अर वा फेरूं ठांण में चक्कर लगाबा लाग जावै। गाय अेक ठौड़ टिक नीं पावै। पीड़ स्यात बेसी होवण लागगी ही।

दाखां फेरूं अेकर गाय कांनी देख्यौ। गाय ठांण में पसर’र बैठी ही। गौर सूं देख्यां इंयां लागै जांणै वीं रै हूंकणी लाग रही होवै। ऊपर-नीचै होवतौ पेट। हळवै-हळवै धूजतौ आखौ डील। आंख्यां झांकती तीखी पीड़।

चांणचक गाय आगलै पगां पर जोर देयर ऊठण री जुगत करी पण लारला पग संभळ कोनी सक्या। वीं रौ डील धूज’र धड़ाम सूं भींत में जाय’र बाज्यौ— डांSS!

दाखां बेगी-सी लपक’र गाय रै नेड़ै गई। ठाह नीं गाय रै सांचोसांच लागी ही। डावौ पसवाड़ौ तेज रगड़क सूं छुलग्यौ। लाल खूंन रिसकै हौ। रगड़क सूं छुल्या पसवाड़ां नैं देखतां पांण दाखां गुमसुम-सी ऊभी रैयगी। मन कियां-किंयां होवण लाग्यौ। वा पाछी आय’र पीढै माथै बैठगी।

पोळ सूं बारै दोय आदमी बतळावै हा। वांरी बतळावण बापू री गुड़गुड़ी रै सहारै डूबै-उतरावै ही। पोळ कांनी कांन लगा’र दाखां घणी जुगत करी कै दूजौ आदमी कुण है अर बात किणरै बाबत है। पण साफ कीं नीं पल्लै पड़्यौ। “होवै कोई, म्हनैं कांई!” वा हार’र मन में कैयौ। गाय अब तांई ठांण में चक्कर लगावै ही। वीं नैं पल-घड़ी रौ चैन नीं। सारौ ठांण गाय रै खुरां सूं खूंदीज’र ओपरौ-ओपरौ लागै हौ।

मां होवती तौ वींनैं क्यूं बैठणौ पड़तौ। मां मतैई स्सौ कीं संभाळ लेवती। दाखां आपरै मन में विचार करै— मां होवती तौ वा खुलैखाळां कह देवती कै देख मावड़ी, और क्यूं कराय सकै पण आपां सूं दरसाव नीं देख्यौ जावै। निजरां फेरूं गाय कांनी गई। गाय सूनी-सूनी अर निढाळ-सी बैठी ही। वा घणी उदास निजर आवै ही। डील री रूंआळी छितरी-छितरी अर रंग काळौ-स्याह पड़ग्यौ हौ।

“देख, तूं आज घास री टाळ कर दै। गाय आज ढीली-ढीली लागै है। स्यात आज ब्यावै।” मां नैं घास तांई जावती देख’र बापू कैयौ हौ। पण वा किणरी मांनै। फेरूं नीं ठैरी। दाखां रै मन में मां तांई रीस रौ अेक हिलकोरौ ऊठ्यौ— जे आज नीं जावती तौ कांई बिगड़ जावतौ?

गाय ठांण रै बीचूंबीच ऊभी होय’र लारलै पगां झुकी। थोड़ौ-सो पोठौ कर्‌यौ, पण पोठौ तळै इण सूं पैलां वा तड़फ’र दूजै कांनी गई परी। वीं री लारली टांगां गोबर सूं सड़गी। खिणेक ढब’र गाय ठांण नैं सूंघ्यौ, पछै अेक चक्कर लगा’र फटाक देणी-सी बैठगी। मूंढौ धरती माथै टेक’र वा जोर-जोर सूं सांसां छोडै। आंख्यां दरद सूं फाटी पड़ै। लारलै हिस्सै में अेक धोळौ-धोळौ फूंकलौ-सो चिळक्यौ। दाखां जोर सूं बापू नैं हेलौ पाड़बाळी ही कै गाय झप देणी ऊभी होय’र भींत कांनी गई परी। गाय री तळमछ अर निमळी हालत देख’र वीं री आंख्यां में आसूं आयग्या। ठाह नीं क्यूं वीं नैं इंयां लागै जांणै स्सौ कीं गाय रै नीं होय’र वीं रै आपरै सागै होवतौ होवै।

धग-धग धूजती देही अर इतरी पीड़! अेक जीव रै जलम सूं मायड़ इतरी दुखी हुवै। च्च-च्च-च्च... दुनिया सांच कैवै कै बांझड़ी कांई जांणै जापै री पीड़। वीं रै चेतै खयाल आयौ, लुगायां रै जद टाबर होवतौ होवैला तद वै इतरौ दुख पावती होवैला। अर हां, परां जिकै दिन कैवै ही कै इण खातर ब्याह होवै।

वींरी आंख्यां आगै अतीत डोलग्यौ। पर री तौ बात है। सूंदरपुरा रा धनजी चौधरी आया हा। वीं रै ब्याह रौ जिकर हौ। वा ओसारै री भींत री ओट होय’र स्सौ कीं सुणै ही। बापू चौधरी री बात मांन ली ही। बिंयां हांकारौ तौ मां भर दियौ पण वा कैयौ कै और स्सौ कीं तौ ठीक है, पण म्हैं छोरौ आंख्यां सूं देखणौ चावूं। म्हारी चांद-सी बेटी तांई छैल-गबरू जवांन होवणौ चाईजै। दाखां लाजां मरती भाग’र कोठै में बड़गी। गुलाबी लाज ओढ्यां वा ठाह नीं कितरी जेज काच में आपरौ मूंढौ देखती रैयी।

“डांSS!” दाखां रै अेक झटकौ-सो लाग्यौ। धरती माथै पड़ी गाय पगां रा फटकारा मारती डांऽ-डांऽ करै ही।

“बापू!” दाखां जोर सूं हेलौ मार्‌यौ। गाय बुरी तरह छटपटावै ही। बापू लपक’र भीतर आयौ। हाथ री गुड़गुड़ी अेक्कानी गेर वो गाय रौ पेट सहलावण लाग्यौ। गाय अजै पग पीट-पीट’र जोर-जोर सूं डांऽ-डांऽ करै ही। गाय री हालत देख’र वींरी आंख्यां में आंसू आयग्या।

चांणचकां वींनैं खयाल आयौ— ओहSऽ तौ ब्याह रै पछै वींरी आपरी इज हालत होवैला। वा अेकरसी जोर सूं कांपगी। यूं लाग्यौ जांणै अबार रोवण ढूकैला। नीं-नीं बापू, थूं म्हारौ ब्याह मत करजै। हे भगवांन! म्हैं तौ मर जावूंली।

गाय धरती माथै पसरी पड़ी ही। लांबी जीभ बारै निकळ्योड़ी ही। नकतोड़ै झाग चिलकै हा। आंख्यां फाटी-फाटी-सी लागै ही। आखौ डील थर-थर धूजै हौ। खुर बारै आयग्या हा। बापू हाथां सूं पकड़’र खींचण री जुगत करै हौ। गाय अेकर जोर सूं रांभी। ऊठण री कोसीस करी, पण थोड़ी-सी ऊठ’र हेठै जाय पड़ी। दाखां हाथां सूं आपरी आंख्यां मींचली, “हे भगवान! म्हैं तौ मर जावूंली पण ब्याह नीं करावूं।”

बापू उतावळौ होय’र खुर खींचै हौ। गाय रौ डील मुरदै री भांत अवस-सो पड़्यौ हौ। आंख्यां री काळी टिकड़ी बारै निकळबाळी-सी लागै ही। लारलौ हिस्सौ जोर सूं हालै हौ। गाय अेकर फेरं रांभी —डांऽऽ! आगलै खिण खूंन अर ज्हैर सूं लिथड़्यौ अेक लोथड़ौ धरती माथै आय पड़्यौ। दाखां घिरणा-भाव सूं पच्च देणी थूक’र दूजै कांनी गई परी।

गाय ऊभी होय’र तेजी सूं हूंकारा भरती खूंन अर ज्हैर सूं सड़ी वीं लोथ नैं चाटबा लागगी। बापू घणी जेज वीं री सफाई-सो करतौ रैयौ। फेर हाथां रै माटी रगड़तौ कैवण लाग्यौ, “बाई, देखै कांई है। जा, पांणी ला। टोगड़िया नैं तेल देवणौ है। वीं रै मूंढै अेक संतोख भरी मुळक ही।

दिन चढतां-चढतां टोगड़ियौ खड़ौ होवण री कोसिस करण लाग्यौ। न्यारी बात ही कै वो जद-कद जाय पड़ै। पण फेरूं ऊठै, उछाळा भरै। भक्ख ऊजळौ रंग, सोवणा-ऊजळा खिरगोस रा बचिया जैड़ौ। बुगलै री पांखां-सा छोटा-छोटा कांनड़ा। प्यारौ मूंढौ। काळी टिकड़ी-सी नेन्ही-नेन्ही आंख्यां। वो घणौ फूटरौ लागै। गाय हरख-हरख वीं रौ डील चाटै। हूंकारा भरै। मुळकती आंख्यां अर पुळकतै मन दाखां मेथी-बाजरी रांधै।

दाखां री आंख्यां फेरूं अेक नवौ-निराळौ चितरांम ऊग्यौ। वीं रै सासरै रौ आंगणौ। नीमड़ी री छींया। पीढै माथै बैठ’र वा अेक सोवणै टाबर रा लाड-कोड करै।

दाखां मुळक’र गाय कांनी देख्यौ। गाय अजै टोगड़ियै नैं चाटै ही अर टोगड़ियौ आपरी थूथणी नैं गाय रै थणां में रगड़ै हौ।

दाखां रै रूं-रूं में अेक मीठी मुळक रंगरेळ करै। चांणचक वीं रै मन में आई कै वा मां नैं जाय’र पूछै— मावड़ी, थूं म्हारौ ब्याह कद करसी?

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : सवाईसिंह शेखावत ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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