तंगी जद मजाक पर ऊतरै तो धूड़ में मुट्ठी भरा देवै। बा इसी कर द्यै कै खा नीं कुत्ता खीर। समझ में ई कोनी आवै कै हांसै’क रोवै। भौत बेजोगतो काम कराय’र ताळी पीट खुद हांसै तंगी।
कदे-कदे लांठै कवि री भांत बा अभिधा में दुख नीं देय’र व्यंजना में देवै। जकै री ध्वनि लेधे सुख में बदळती रैवै। अठै दुख-सुख अेकमेक होंवता दीसै। कदे दुख, सुख री सींव लांघै तो कदे सुख, दुख री। उण टेम इत्ती दोगाचिंती में पड़ज्यै आदमी कै बो दुख-सुख री पिछाण ई नीं कर सकै।
सुख रै खोळ मांय पळेट’र दुख परोसणो गरीबी रो गजब हुनर। जकै नै पिछाणनों ओखो। आ बा ई कविता है जकी री ऊंडी व्यंजनां सजोरै पाठक री समझ सूं ईं बारै होवै।
गरीबी मल्लाजोरी सूं अमीरां जिसा चोचळा करा देवै। गरीब सूं गरीब नै मिरच-रोटी री जगां हलुवो खुवाय’र काळजै में मिरचां सूं बेसी झळलाट लगा देवै। गांवतरै सारू ल्यायोड़ा गाबा आडै दिन पै’राय’र गारै में बाड़ देवै गरीबी।
मटियै तेल री जगां घी रो दीयो जगवाणो, चा री जगां दूध रो गिलासियो प्याणों, गुड़ री जगां मिसरी बरतवा देणी, सोरम आळी साबण सूं गाबा धुवा देवणा, अै तो गरीबी री मामूली मजाक है, जकी गरीब साथै आयै दिन होंवती रैवै।
गरीबी रै हाथ में घोटो हुवै। बा चावै ज्यूं करवा देवै। साठ साल रै धोती-कुड़तै आळै डोकरै नै बेटै री पैंट-बुसर्ट पै’राय’र बेपिछाण कर देवै गरीबी। अठै तांई कै दुवाई सारू ल्यायोड़ा पीसां री दारू तकात प्याय देवै बैरण। जदी तो ईं री सगति रो बखाण करतै कबीर कैयो है-
है सब में सरदार गरीबी
है सब में सरदार
उलटि के देखो अदल गरीबी
जाकी पैनी धार।
इणी सरदार गरीबी री कटखाणी मजाक बीं साथै होगी। बा गळगळी होय’र बखाण करै ही। उण रो काळजो होळी लेवै हो। बा म्हारै घरां दूध लेवण आई। बे-टेम। हांडियां बगत रै लगै-टगै। इण टेम म्हे सगळो दूध बरत लेवां हां।
‘आथण ई मिल सकै इब तो दूध। ओ के टेम है दूध रो?’ म्हारी जोड़ायत बोली।
‘बटाऊ आयग्या। अर बै ई खास। नुंवां सग्गा। लारलै साल ब्याही ही उण छोरी रा जेठ-सुसरो। बगत पर चा-पाणी री सेवा नीं होयी तो तूड़ी ई हो ज्यासी।’
बा लेलड़ी काढती-सी बोली।
थोड़ो सो’क दूध चा खातर राख्योड़ो पड़्यो हो। बो गिलासियो उण नै पकड़ाय’र जोड़ायत बोली—
‘लै। इत्तो तो पड़्यो है। बटाऊवां री चा जोगो।’
बा गिलासियो झालतै थकां बोली—
‘न्ह्याल ई कर दिया। पण गरीबी तो किणी नै देवै ई नीं रामजी। अर म्हारै साथै जकी आज होयी है बा तो किणी साथै ई नीं करै।
आज म्हैं अेकली हूं घरां। बै बाप-बेटो काम पर गयोड़ा है। अर छोरी सासरै। बटाऊवां नै आवण सारू आज रो ई दिन लाध्यो। स्यात म्हारो हिमतान लेवण नै आया है।
म्हारो तो जी हालग्यो बां नै देखतां ई। बांरो डर नीं लाग्यो। डर लाग्यो बां सारू रोटी-पाणी रै जुगाड़ रो। धूजती-धूजती रामरमी कर’र ऊंतावळी-सी रसोई मांय बड़ी। बीं री सोय ली। सगळै समान नै आंख्यां मांकर काढ्यो। आटो अर लूण-मिरच पड़्या हा। काळजै में कीं ठंड-सी बापरी। चा-चीनी ई पड़्या हा। स्यांत-सी आयगी। झट दणी-सी देगची साम्ही। अर चा रो पाणी चूल्है पर टेक दियो। देगची चूल्है पर टिकतां ई काळजै में गदीड़-सो ऊपड्यो।... लकड़ी तो दांत कुचरण नै ई कोनी। चूल्है में अडा स्यूं के पग। सोच्यो, इब कठै जावूं लकड़ी मांगण नै। बाखळ में बटाऊ बैठ्या है। तो? ईं रै पडूत्तर में म्हनै खुद पर झुंझळ-सी आई। ओ ई कोई जमारो है रांड? किसी’क मानखा जूण मिली। ईं नाऊं तो कुतड़ी-बिलड़ी बणा देंवतो रामजी... कदे ई पूरो कारज नीं सर्यो।
आयै दिन ई अधखलोपणो। हर बगत उण मोडियाळी-सी होंवती रैवै-जको तूंबी चकै तो चींपियो पड़ ज्यावै अर चींपियो चकै तो तूंबी।
म्हैं डाफाचूक-सी होयोड़ी खूणां-खचूणां बळीतो सोधण लागी। कदे इण साळ में बडूं तो कदे उण में। बाळण आळी कोई चीज ढूंढणी चावूं। इसी चीज जकी लकड़ियां री गरज पाल सकै।
अेक खूणै मांय कागद पड़्या हा। हाथ घाल’र पाछा ई छोड़ दिया। सोच्यो, इत्तै कागदां सूं किसी पतीली बणै। अेक जगां बोदा पूर पड़्या हा। सुनमानी मांय बांरै ई हाथ घलग्यो। पण दूजै ई पल वै आपो-आप हाथ सूं छुटग्या।
अचाणचक म्हारो ध्यान छात कानी गयो। सोच्यो, पांच-च्यार बरंगा काढल्यूं। के फरक पड़ै। आथण रोटी पोवण सारू ई बळीतो चाइजसी। पण भीतर नीं मान्यो। बैम होयो, छात पड़ सकै। बरंगा तो आगै ई छीदा है।
छात सूं ध्यान हट्यो तो अेक खूणै में पागा पड़्या हा। रोहिड़ै रा नुंवां नकोर चीकणां-चीकणां पागा। जका पीढै सारू म्हैं म्हारै बाप रै घर स्यूं ल्यायी ही। अै पागा म्हनै म्हारी ज्यान सूं प्यारा हा। सालां सूं हूंस ही, पीढो बणाय स्यूं। फूटरो सो पीढो। पण होणी रै हजार हाथ होवै।
म्हैं अेक पागो हाथ मांय लेय’र देखण लागी। जीवड़ा, के सा’रो पड़ै। इसा फूटरा पागा बाळणा पड़सी। खुद नै मार’र बाळना पड़सी।
म्हैं दूसरो पागो ओरूं चक्यो। अर दोनूं पागां नै चूल्है मांय जचाय’र ऊपर सूं मटियो तेल ओज दियो। इब दियासळाई दिखांवतां ई दोनू पागा भक्क दणी आग पकड़ली। अर चलर-चलर जगण लागग्या। काळजै में हूक-सी उठी। जगतै पागां नै पाछा काढणा चाया। पण लाचारी हाथ पकड़ लियो।
म्हैं बां जगतै पागां पर चा टेक’र आई हूं। म्हनैं लागै, पागा म्हारै काळजै में जगै।’
बा दूध रो गिलासियो लेय’र आकळ-बाकळ-सी होयोड़ी म्हारी देळ्यां सूं निकळगी।