एक समै जेसलमेर रै भाटिपै जोर रो दुकाळ पड़ियो, बठै समैं में ही जद धान कम हुवै, फेरूँ काळ मैं तो अन्न मिलणो ही’ज कठै? सगळी मेदनी भूखों मरण लागी, अर देस-वास छोड़-छोड़ मऊ-माळवै जावण ने ढूकगी। एक भाटी सिरदार चोखै घराणे रो हुतो, उवै पैलड़ै साल ही ब्याव-करियो अर दूजे साल ही मुकलावो ल्याया, पिण घरे बाजरी नी, सगळी रंग-रळियां फीकी पड़गी।
ठुकराणी-सा कह्यो ‘के— ‘इंयां मरणो आछो कोयनी। कठै ही दूसरी जगां हालां तो दिन सो’रा निकळै।’
ठाकर-सा बोल्या— ‘बात तो ठीक है पिण बीजा लोग तो मौल-मजूरी कर ‘पेट भरलेसी पिण आपां तो मौल-मजूरी कर सका नहीं, सिरदारी से काम मिलणों मुसकल है, जिकै सूं तो अठै मरणो ही चोखो।’
ठुकराणी-सा बोल्या— ‘आप फुरमावौ जिका चोखी पिण हिम्मत हार’र बैठणो आछो कोयनी; बो कह्या करें; जियां—“फिरै जिका चरै बन्ध्या भूख मरै” आपा भी अठै सुं कंई दूर हालां तो जाणां हां कोई पटड़ी बैठ जावै। कह्यो है—
पान सुपारी सुगड़ नर, अण तोल्या ही’ज बिकाय।
ज्यूं परभोमी संचरै, त्यों मूंगैं मोल’ज थाय।
कितोही चोखो आदमी हुवै, पिण गांव में बैठां बैठां बैरी कदर नीं सो आपां नै भी अठै सूं हालणो आछो है। ठाकुर-सा मान गया। घोड़ै पर जीण कर ठुकराणी सा नै पड़ेछ उढाय’र ऊपर बैठाली अर आप पांचों सस्तर सज्ज’र होको हाथ में ले बहीर हुवा, घोड़ो खांचता ही डागळै ऊपर एक बायली ने छड़ाक देणी छींक की। ठाकरां मन मैं बिचारय्यो—
बांई ऊंची पीठ की, छींक कही सुख सार।
नीची सनमुख दाहिनी, अपणी छींक असार।
ठाकर बोल्या—‘सुगन तो भला हुया है। सैंग काम सिध चढसी।’ ठुकराणी सा कह्यो—‘दुरगा माजीसा री मरजी, आपां नै तो उणीरो’ज आसरो है!’
ठाकर आगै उंपाळा अर ठुकराणी-सा घोड़ै ऊपर चढियोड़ा। चालतां चालता जैपुर खनै एक गांव में पोंच्या। एक कुंभार रै घरै उतरिया। सींझावाजी। व्याळू कियो। इतै में राज री तरफ सूं बठै डूंढी पीटीज रही ‘के’—
‘आमेर नगरी में एक जबरघणू सिंघ हिळ गयो है वो मिनखा तथा ढोरा ने मिटावै है जिको कोइ इण सिंघ ने मार’र लावै उण ने राज री तरफ सूं सवा लाख रुपिया नकद चेरा साही तथा सिरेपाव मिळसी, ठाकर-सा सुण्यो। मन में राजी हुआ। ठुकराणी-सा सूं केवण लाग्या के—‘भगवती सामो जोयो, आपा लायक काम भेज्यो।’
ठुकराणी-सा बोल्या— ‘ओ धन्धो आपारै करणो कोयनीं। साबत नहीं आधी ही सही, मिळसी जिकै में ही’ज रै करस्यां। खतरै में जावणो आछोनी।
ठाकुर-सा बोल्या— ‘थारो सभाव डरोक है, राजपूत रै घराणे री लुगाई होय’र इतरो कायर पणो! आपां किसा बूझा खोदस्या के रेत ढोस्यां!!’ ठुकराणी-सा बोल्या— ‘तो आपरै जचे ज्यूं करो।’ ठाकर सा कह्यो— ‘पेछो में तमाखु अर आक वाळा कोयला घाल दीजियो अर अठै सांयती सूं बैठा रहिज्यो नै कई बात रो मन में बिचार ना लाइज्यो। हूं आज बै दुस्ट री खबर लेसूं।’
ठुकराणी-सा सगळी आछी तरै सूं तैयारी करदी, होकै रो सब सराजाम, अमल रो टेसरियो’र खावण-पीवण रो समान खड़ियै में घाल दियो। तरवार, बन्दूक, बरछी, कटारी’र ढाल लाय’र ठाकरां सामैं मेल दीया।
ठाकर अमल आरोग्या नै पाचूं ससतर बांध घोड़ै पर सवार हुवा। बात री बात में आमेर जा पोंच्या। सिंझ्या हो चाली, आरती, नगारां री धूम होवण लागी। ठाकर-सा घोड़ै सूं उतरिया अर तळाव पर जा’र हाथ पग धोया। जगत सिरोमणीजी तथा सिलादेवीजी रे मिंदर में जा’र हाथ जोड़ दरसण किया। मेलाखौ मिल्यौ। पुजारी लोग चालण लाग्या। केई पुजारी ठाकरां सूं भी बतळाया के—ठाकरां! आप भी अठै सूं चल्या चालो रात रो अठै सिंघ आवसी, बडो जबरजंग, खतरनाक है, वौ। आप तथा घोड़ै री खैर नी। ठाकरां कह्यो— ‘कुळदेवी भली कर है, उवे दुस्टी री खातर तो हूँ आयो’ज हूं।’
पंडा-पुजारी सब आप आपरै ओढेसर गया। सै’र में अण बोल्याळै सूं सुनसान होगई, इसै-बिसै आदमी नै तो आ काळी रात ही सिंघ आळी दाई डरावणी लागै, भळै सिंघ रो भो! तो इण बेळा अठै ठाकर अर घोड़ो दोय जीव रह्या का रह्या बिरछा ऊपर बापड़ा पंखेरू। रात फाटी’र अगूणै पासी सूं दीबी सुणीजी। ठाकर सचेत हुआ। सगळा ससतर संभाळ’र धरिया अर बन्दूक हाथ में ले घोड़ै रै पीछली खेजड़ी रे लारै उभा रह्या।
सेर नै आज नूई सिकार री वांस आई, मन में हरख’र चाल्यो ‘बिचार कियो आज घणा दिनां सूं घोड़ै तथा मिनख रो भख मिळसी, इण दिनां तो जंगळ रै जीवां सिवाय कंई न मिल्यो। आज भगवान री बड़ी किरपा हुई।’ आगे आंख दो मसाल री तरै ‘ठाकरां ने घोड़ै सामो आवंती दीसै नै लारिनै पूंछ अजगर सी लपेटा खावै। नासों सूं सांसरा फुंकारा बाजै। मतै सूं मतै होळै-होळै गुरर्-गुरर् कंठा सूं आवाज नीसरै। घोड़ै सूं सौ खंड पांवडा आ’गो रह्यो’र ठाकरां मन में जगदंबा रो सिमरण करियो, बन्दूक हाथ में काठी संभाळः सिंघ रै माथै रो निसाणो ताक’र खंखारो करियो, अर रिमाणा होर बोल्या रे ढांढी रा खावणवाळा आज थारी कजा आयगी करणो हुवै सो कर’ सिघ नै सुण्यो’र घुररायो नै हथळ हलावतो सामी आयो, उवे ही बखत जामकी बन्दूक माथे पड़ी। धमाक एक शबद हुयो, गोळी सेर रै माथै सूं लगा’र पूंछताणी छेकती आरूं पार निकळगी। सेर दोय चार बार तो कूद्यो, पच्छै गरणाटी खाय’र पड़ग्यो।’
ठांकरां सोच्यो—पापी रो पाप कट्यो, कळेस मिट्यो पिण इए दुष्ट नै लेजाईजै कींकर। भळे सोच्यो—पड़्यो बळण द्यो कुण खावै? दिनूगै राजा जी ने खुद ही अठै लाय’र बताय देसां, आ’जचा’र घोड़ै नै संभाळ्यो। आधी रात रै’तां रै’तां जाय कुंभार रो आडो खड़खड़ायो। ठुकराणी रै नीन्द तो नेड़ी ही नई थी, उठी अर आडो जा खोल्यो, ठाकरां ने देख’र हरी हुयगी, बोली—‘काम सिध चढियो!’ ठाकरां कह्यो—‘आज तो भगवती री किरपां सूं सफलता ही’ज मिळी।’ दोनों रे मन में मोकळो मोद बढ्यो अर बातां करता-करता नीन्द आय गई।
पो पीळी हुई। बठी नै लोग उठ-उठ दिसा-फरागत जावण लागा। एक राज रो सिरदार ही बठी नै जाय निकळ्यो, सेर नै पड्यो देख्यो’क झिझक्यो, हाथां बासण छूटग्यो, लोटो जमी माथै जा ढहग्यो। सांस एक सागै ऊंचो चढण लागग्यो। सोच्यो मोत आई। सिघ सूतो छे। उठियो’र खाधो—जिकै में फरक सार नीं। हे भगवती! हे राम उबारीज्यो। चाली जै हालीजै नीं। खड़ै-खड़ै ने सुध आई’के सिंघ जीवतो हुतो तो जरूर टांग पूंछ हिलातो, पिण, जरूर मर्योड़ो छै। खने जा’र देख्यो, सिंघ में ज्यान रो नांव ही नहीं है। बिचार कर्यो— जरूर रात को पेट दुख’र मर्यो छै’ पिण आपां राज रो इनाम क्यूं छोडां। तरवार काढी अर माथो काट माथै ले लियो। अर राजी हुवता-हुवता घरे पूग्या। हेलो करियो— ‘ठुकराणी-सा अत्योंही सूता छोके? उठ’र आडो खोलो, म्हे सिंघा री सिकार ल्याया छाँ’ ठुकराणी एकर तो आधी नीन्द में डर्या के चोर घर में घुसवा लाग्यो, पिण सचेत होय’र आडो खोल्यो। सिंघ रो माथो देख’र झिझक्या। ठाकरां कह्यो—मार’र ल्याया छां कांय ने डरो छो।’ ठुकराणी राजी हुया। ठाकरां ने डेढो दुणो मावो करायो। अर राज सूं इनाम मिलबा री खुसी मनाई।
उठीने ठाकरां रै रात रो ओजको थो, इये कारण थोड़ा मोड़ा उठ्या, दिसा-फरागत जाय’र निरवाळा हुवा। हाथ-मुंडो धोय, माताजी ने धोक दीवी अमल री गलनी चाढी, अमल पी राता हुवा। पछै सुध बपराई’ के राजाजी ने रात वाळी शिकार बताणी है’र इनाम लावणो है। उठ्या, घोड़ै पर जीण करी और चाल पड़या। सूरज उगतां-उगतां राज-दरबार में पोंच्या।
आगे दरबार में देखै है तो, सेर रो माथो पड़ियो है अर एक सिरदार खनै उभो कहै है ‘महाराज, बड़ी मुसकलां सूं आखी रात जागण रै बाद भखावटे जातां ओ बैरी आयो, केई गोलियां रा बार किया, पज्यो हो’ज नहीं, ऊपर आवा लाग्यो जद म्हें कटार काढ’र हाथ में लीधी’र दुस्ट रो माथो बाढ लीयो जो राज रै सामने पड़्यो छै’। अबै म्हानै इनाम दरावज्यो।
राजाजी साबास म्हारा, सिरदार...कैवता ही’ज था, जितै ने भाटी ठाकर आगै बढ’र बोल्या—
‘खंमा धणिया, ओ सिंघ तो राते म्हें मारियो है, ए थारा सिरदार तो सफा झूठ केवै’। राजाजी बोल्या—‘ई बात रो साखी कुण?’ भाटी ठाकर बोल्या—म्हारो तो कुळदेवी रै सिवा कोई साखी नहीं है।’
वै माथै वाळा सिरदार बोल्या—देखोजी महाराजा, इया को डोळ ही सेर मारबा जिसौ दीखै छै? क्यूं कूड़ मारो छो, इया मोफड़दानै में इनाम कोमिलै नीं थारै खनै कांई परमाण छै! म्हांकै खनै तो ओ माथो रह्यो। बताओ थां सेर कोंकर मार्यो?
भाटी ठाकर बोल्यो—भाई, सेर मार्यो म्हें हैं, कैवो थारी मरजी! और राजाजी खांनी ईसारो कर’र बोल्या’क धणियां। म्हारो न्याव हुणो चाहिजै, इनाम चाहे ना मिलै, पिण झूठी बदनामी होणै सूं तो बचे!
आ बात राजाजी रै भी जची। दरबार लगायो। सेर री बात चलाई। दोनों ठाकरां ने बुलाया। पूछ्यो तो दोनों ही जणा कह्यो, के सेर म्हा मार्यो है। एक खनै परमाण कंई नहीं, दूजै खनै माथो है। पिण भाटी ठाकर के ‘वै है’ के हूं गेलारधू हूं, म्हें जाण्यो दिनूगै आ’र राजाजी ने खुद ले जा’र सेर बताय देसूं, रात रात में कुण खावै है! कुण साचो है? राज-दरबार में तो कंई समझ में नहीं आवै।
तो राजाजी फरमायो’के—इया ने देदैजी चौधरी खने मेलो’र राजरा दो सिपाही साथे जावो अर एक रुक्को म्हारै हाथ रो ले जावो। जिको न्याव देदोजी करसी वो मंजूर छै। आ बात दोनों जणा मानली, राजाजी रो रुको ले राज रा सिपाही साथै ले लिया अर देदैजी चौधरी रै गांव चाल बहीर हुवा। दो घड़ी रो रास्तो हो, भातै बेळासी पोंचग्या। एक मिंदर माथै ठेर्या, तीन जणा तो उठै बैठा रह्या अर एक जणो देदैजी रो घर पूछतो-पूछतो गयो। देदोजी घर में बैठा हा। बारै एक देदैजी रो डावड़ो ऊभो हो। पूछय्यो—‘चौधरीजी घर में है?’ वो’ बोल्यो ‘हा’। तो वा, राजजी वाळो रुको डावड़ै रै हाथ में झलायो। उण उवै रुकै नै लेजा’र चौधरीजी नै बंचायो।
चौधरीजी बेटै नै कह्यो, के तूं जा’र कै ‘दे ‘के चौधरीजी ने हिड़कियो कुत्तो खाय गियो छै सो ऊपर सूता छै, थानै न्याव कराणू है तो घड़ी’क ठै’र कर आवो। सिपाही वांही पगा पाछो आयग्यो।
देदैजी आपरै बडोड़ै बेटै ने बुला’र कयो’के आज एक राजाजी रे अठै सूं न्याव करणू आयो छै सो मा’ळियै रे एक निसरणी लगा दो और कोई आवै जिकै नै ‘हिड़के’ उपड़ण रो के’य दीजो। बेटै नै बापरै कै’णे रै मुजब तैयारी करदी। घड़ी एक बाद बैं च्यारू जणा आया अर बोल्या—चौधरी जी कठै कांई है, म्हारै न्याव कराणू हैं, मोड़ो हुवै है।
बारैं बैठो जिको बेटो बोल्यो—बाबोजी तो हिड़कियो हुयोड़ो छै सो ऊपर मा ‘ळियै में ही ‘ज रै ‘वै छे केवो तो पूछ आवां? वे बोल्या जलदी पूछ कर आवो। बेटो ऊपर जाय’र पाछो आयो’र बोल्यो—एक जणौं ऊपर चालो, बुलावै है।’
सिंघ रै माथै वाळो सिरदार सिंघवाळो माथो साथै ले’र निसरणी सूं चौधरी सूतो हो जिकै मा’ळियै में गयो, आगै चौधरी मांचै माथै बैठो हो। एक वीजै रै सामी जोयो। जैराम री हुई। सिरदार बोल्यो—‘म्हैं सिंघ मार्यो छै, माथो म्हारे खनै छै पिण एक बटाऊ इनाम रो भूखो कै ‘वै छै के’ सिंघ म्हें मार्यो छै, सो आप म्हारो न्हाव चुका दो।’
चौधरी जी बोल्यो—थांरी बात साव साची छै, सिंघ तो जरूर थांही’ज मार्यो छै पिण म्हारो चेतो हिड़काव रै कारण ठीक कोयनी—लै’र ऊपड़ै जणां घर रो बा’रलो कांई सूझै नहीं, खावणरी ही’ज सूझै है, कैय’र उबासी ली— अंगाड़ी तोड़ी अर हिड़कीयै दांई हाऊ हाऊ करण लाग्यो। मुंडो फाड़’र सिरदार खानी दोड़्यो। सिरदार जाण्यो आफत आई, खासी जिकै में फरक नहीं। एक पलक ही लागी नी लारलै बारणै खानी कूदग्यो। नीचै राख रो ढिग पड़्यो हो तिकै सूं लागी तो नही; पिण राख में बभरूत जरूर होयग्यो।
चौधरी बेटै ने हेल्यो मारय्यो। के’ दूजोड़ै ने मे’ल। बेटै दूजोड़ै भाटी ठाकरां ने भी ऊंचो भेज दियो। ठांकरा जाय’र रामराम की अर सारी दुख कथा सुणाई।
दुख-कथा सुण’र चौधरी कह्यो ‘के’—आपरी बात सवा सोला आना ठीक है—सिंघ जरूर थांही’ज मार्यो है, पिण म्हारी अकल हिड़काव रै कारण काम देवै नही। लै’र उपड़िया पछै घर रै बा’र लै री नहीं सूझै, एक खावण री ही’ज जचै है। आ कै’र (पै लारी तरियां) उबासी खाय’र ‘हाऊ हाऊ’ कर’र ठाकरां खानी खावण ने चाल्यो। ठाकरा जाण्यो-आदमी तो देवता है पिण रोग भारी खोटो लाग्यो। चौधरी रो ‘जी’ सारू कोयनी। ठाकर निडोरा थाही’ज सामां गिया अर चौधरी रा कंठ झाल’र मांचै माथै पटक्यो अर बोल्या—ठै’र ठै’र मांटी। इयां की करै है, दवादारू करावहा, सारे ठीक हो जासी।’
चौधरी री आंख्या बा रैं निकळण लागी, बोल्यो—छोड़द्यो ठाकरां! छोड़द्यो!! हमें लै’र उतरगी। चौधरीजी राजाजी ने रुको लिख दियो के’—सिंघ, भाटी ठाकरां ही’ज मार्यो है, इनाम रा हकदार ऐ ही’ज है। इणां ने इनाम दिराय दईज्यो। बीजोड़ो सिरदार साव कूड़ो नै कपटी है, थोड़ी-सी डरावणी सूं ही जिको ज्यान बचावण ने कूदग्यो, वो सिंघ री झपट नहीं झेल सकै।
न्याव करावण ने आयोड़ा पाछा चाल्या, राज में अरज करी। भाटी ठाकरां ने इनाम मिलग्यौ। अर दूजोड़ो सिरदार राख में बभरूत होयोड़ो घरे गयो। घर में देखता ही’ज ठुकराणी सा बोल्या—‘ओ काई रूप बणायो छै?’ सिरदार बोल्या—‘नहीं जी, कांई नहीं छै होली का दिन छै, टाबरां पोटली फेंक’र होली रो खेल खेल्यो छै।’
खैर कोई वातनी, न्हा-धो’र ठीक हुया परा। अर भाटी ठाकर इनाम लेय’र ठुकराणी-सा खनै पोंच्या, सारी बात बताय’र चिन्ता की के—चौधरी देदोजी बड़ो न्यावकारी है, उणी रै परताप सूं आ मोटी रकम तथा सिरोपाव मिल्यो है; पिण बिचारै ने हिड़को उपड़्योड है जिको जीवणो मुसकल है। खैर।
राजाजी भाटी ठाकरां रो सा’स देखकर आपरै पड़धाना में राख लीया है। अर उण दोनों रै बिखै रा दिन सोरा निकळण लागा। कई दिन बाद चौधरीजी दरवार में आया, राम-राम की, तो ठाकर बोल्या—‘आप रै वो रोग ठीक हुयो’के नहीं?’ चौधरी बोल्यो’र हंस्यो—‘ठाकरा उण दिन सूं फेर हिड़काव उपड़्यो ही नहीं।’
ठाकर ने ग्यान आयो? आ तो म्हारे सा’स री परीछा करण री तजबीज ही। चौधरी हिड़कियो नहीं है। ठाकर आणद मगन हुय गिया—उवै सिरदार रो राख में बभूत होवण रै कारण रो आज ठा लागो। इयै ने कै ‘वे’ है—
‘हिये तणो उपाय’