सुबेदार रामरिखजी अर बां री जोड़ायत रै आवणै सूं उण घर में अेक सरणाटो-सो पसर गियो। ईयां लाग्यो जाणै इण घर में कोई सोग रो समचार आयग्यो हुवै। जदकै सोग आळी कीं बात नीं ही। सोग कदी हुयो हो कोई दोय बरसां पैली, जद सतनारायण मास्टर री बीनणी चालती रैयी ही। पण आज तो कोई नीं गुजर्‌यो। कीं री मौत नीं हुयी। फेरूं भी जियां-जियां घर रा मिनखां नै बां रै आवणै री खबर लागी, स्सै रा स्सै अेक उदासी री धुंध में डूबता चल्या गिया। लाग्यो जाणै ईं घर में कीं नाजोगो हुवण जा रैयो है।

स्सै सूं पैली बिमला री जेठाणी बां नैं आवता देख्या। बा दिन छिपणै सुं पैली हेली रै बारलै बरांडै में बुहारी देवण पोळ सूं निसरी ही। हाथ में बुहारी ही। बां दोनुआं नैं देख’र बा ठिठकगी। थोड़ो-सो औलो कर्‌यो। हाथ में बुहारी लियां बा बैठक रा बारला किंवाड़ खोल दिया। सुबेदारजी बैठक में दाखल हुयग्या। बां री जोड़ायत उण कन्नै ढब’र ऊभी होयगी।

बोली “राम-राम जी!”

सूबेदारणी बरस साठेक री रैयी हूली। उणरै हाथ में अेक थेलो हो। ठारी सूं बचवा नैं सूबेदारणी लुंकार ओढ राख्यो हो। रामरमी रो ऊथळो देणै रै बाद बा यूं ही बेरुखी सूं पूछ लियो “स्यात गाडी सूं आया हो?”

“भीतर पधारो…।”

अर बा उणनैं साथै लेय’र हेली रै आंगण में आयगी। सासूजी कूणै आळै कोठै में हा। बा सूबेदारणी नैं आपरी सासू कन्नै पुगाय दी। ईं रै बाद बा बिमला कन्नै गयी, जकी रसोई में खाणो बणावै ही। आज जेठाणी रा हाथ चोखा कोनी हा, ईं वास्तै वा बुहारी अेक कानी मेल’र रसोई री चोखट पकड़’र ऊभी हुयगी। बिमला सूं बोली “सूबेदारजी अर बां री जोड़ायत आया है।”

जेठाणी रै मूं सूं सुणतां ही बिमला रै काळजै धक्को-सो लाग्यो। बीं रै हाथ सूं चमचो छूटग्यो। चमचो फर्श माथै बाज्यो... छन्नन...। बा पथरायोड़ी आंख्यां सूं आपरी जेठाणी कानी देखती रैयगी। मांयली पीड़ नैं अेक-अेक दिन परै धकेलती बिमला तांई संदेस उण बजराक बगत रै हड़देणी साम्हीं जावणै जिसो हो। बेबसी अर हियै रो संताप ओकै साथै बिमला रै चैरै माथै आय’र चिपग्यो।

गैस माथै सब्जी खदबदावै ही। चमचो रोड़णै री सुबुध बा खो बैठी। उणरी हालत देख’र जेठाणी बोली “सब्जी संभाळ...।”

बिमला फर्श माथै पड़ियो चमचो उठायो। सिंक री टूंटी खोल’र धोयो। अेकर सब्जी में रोड़’र पूठो पासै ही राख दियो। जेठाणी अब भी चोखट रो स्सारो लियां ऊभी ही। बिमला उणरै कन्नै आयी। स्यात आं कन्नै कोई उपाय हुवै। उणरी आंख्यां सूं आंसू टपकै लाग्या। दोन्यूं अबोली खड़ी रैयी। बिमला री लाचारी अर आंसू देखनै जेठाणी री आंख्यां भी डबडबाईजगी। जेठाणी पल्लै सूं आंसू पूंछती बोली “चा बणा लै...” अर बुहारी लेय’र बारै चली गयी।

बिमला चा पाणी चढा दियो। सब्जी सीजै ही खदबद...। दूजै कानी उणरै हिड़्दै में मचरी ही अेक न्यारी खदबद। ...अब तो सोनू सूं विछोह हुयां ही सरसी। दोय बरस बा जियां-तियां करनै निसार दिया। ...सोनू रो दादो सूबेदार रामरिखजी केई बर आया। पण हर बार उणरो धणी सतनारायण अर जेठजी हरिराम बां नै ठंडा छांटा देयनै पूठा खिनावता रैया। छेवट पिछली बार जद सूबेदारजी आया तद बै करड़ी बात कैय नाखी “थे लोग बात सूं मतना फुरो। जद सारी लिखा-पढ़ी हुयोड़ी है तो थे उजर क्यूं कर रैया हो? म्हैं बिमला रै बाप सूं केई बार मिल लियो हूं। अबकाळै जे थे सोनू नैं नीं दियो तो म्हैं बिमला रै बाप नै बुलाय’र पंचायत करूंला। मिनखां नैं भेळा करूंला।” उण बगत बैठक रै कूणै कन्नै ऊभी सासूजी बोल पड़्या हा “...अैड़ी कोई बात कोनी सूबेदारजी, सोनू थारो है। म्हे तो देखै हा कै टाबर सावळसिर पळ जावै। अबी सोनू री उमर कांई है... बिमला रो जी तूटे…, काळजो बळै। खैर कीं भी हो म्हे बिमला नै समझासां। ...थानै समचार दिराय देसां..., थे आज्याइज्यो। बळी पंचायत री कांईं दरकार है..।” ईं रै बाद बिमला रै बापू रो भी फोन आयो। बै भी कैयो कै थे और टेम मतना निसारो। आपां नैं काम करणो पड़सी, जको कीं करकरा’र नचीत हुवो।

इण घर में सोनू नैं टाळ’र च्यार टाबर और है। दोय हरिराम रा अर दोय सतनारायण रा। हरिराम रै दोय छोरा है अर सतनारायण रै अेक छोरी-अेक छोरो। आज सगळा टाबर इणां दोनूं ओपरै मिनखां नै भाळै। बै कीं समझ को सकै नीं कै डैण अठै आय’र कोई बात करनै जावै। आज फेरूं आयो है। अेक लुगाई रै साथै!

बिमला चा बणा ली। अेक कप बा जेठूतै संजू रै हाथ बैठक में भिजवा दियो अर दोय कप बा खुद लेय’र सासूजी रै कोठै में गयी। बठै बै हाथ में ट्रे झाल्यां, पैलपोत सूबेदारणी रै पगां में धोक लगाई। सुबेदारणी कांई आसीस देवती। ...बड़सुहागण तो कियां कैवै। ...छेवट बोली “रामजी सुख पावो... राजी रैवो। सूबेदारणी री आंख्यां गीली हुय आयी। बिमला नैं देख’र उणनै आपरो बेटो याद हो आयो। बिमला चा री ट्रे सासूजी साम्हीं मेल’र चली गयी। अेकबर कोठै में अबोलोपण भरग्यो। सासूजी ट्रे सूं कप उठा’र सूबेदारणी नैं दियो। सूबेदारणी डबडबाया नैणां नै पूंछ्या अर चा पीवै लागी। चा पीवती वेळा बा पूछ्यो “सोनू कठे है?”

“अठै हुवैला…।”

“बुलावो देखाण…।”

सासूजी आपरै बडोड़ै पोतै नैं हेलो मार्‌यो “संजिया... संजिया!” बरस तेरा-चवदा रो संजय तावळो-सो आयो “हां दादी!”

“जा, सोनू नैं लेय’र ऊपर हुवैला।” संजय रै जाणै रै बाद सासूजी बोल्या “कांई बतावां सगीजी थानै... सोनू सगळां रै हाड हील रैयो है। म्हारै तो स्सै टाबरां रो खेलणियो है।”

“साची कैवो थे। पण महारै कानी भी देखो। म्हां दोनूं बूढा-बूढी रै तो ईं बिण जाबक अंधारो है।”

“तीन बरस रो जिलफ है। छोरै नैं आवड़ैलो कोनी ओ..!” सासूजी निसकारो नाख्यो। “म्हारो स्सै रो जीव बळैलो।”

डैणती कीं कोनी बोली। चुपचाप चा पीवती रैयी। फेरूं बात रो मुहाणो फोरती बोली “आजकालै सरदी देखो, कतरी पड़ै। ...थे तो हीटर लगा राख्यो है। म्हानै तो सिगड़ी रो ही स्सायरो है।”

उणी ताळ संजय सोनू नैं गोदी चक’र ले आयो। सोनू रै आवता ही सूबेदारणी लंफ’र बीं नैं आपरी खोळी में लेय लीन्यो। “आव रे बेटा सोनू...”

सोनू उण ओपरी डैणती कानी भाळ्यो। बो कसमसायो अर फेरूं छटपटाय’र खुद नैं छुडा’र तावळो-सो साम्हीं बैठी दादी री गोदी में जाय बड़्यो। दादी बीं नैं केवट’र आपरै शॉल में लपेट लियो। दादी री गीली आंख्यां कठैई दूर देखै... थिर अर सूनी-सूनी।

सूबेदारणी थेलै सूं सोनू तांई लायोड़ा बिस्कुट अर गोळी निकाळ्या। “लै बेटा, लै। म्हैं तेरै खातर लाई हूं, लै-लै, खा लै।” पण सोनू उण कानी देख्यो कोनी। “ले लै बेटा, म्हैं तेरी दादी हूं।”

सोनू रो बाळमन इण झमेलै नैं कियां समझै? ...उणरी दादी तो आई है, जिकी री गोद्‌यां में बो बैठ्यो है। बो जिलफ इण जगत री वंश परम्परा नैं कांईं समझै!

सिंझ्या नैं पैली सतनारायण आयो फेर हरिराम। दोनूं रामरिरखजी सूं मिल्या। उपरचंटी री दोयेक बात करनै आयग्या। रात नै स्सै जीम-जूठ’र आप-आपरै कोठां में बड़ग्या। सतनारायण ऊपरलै कमरां में रैवै। बडोड़ै भाई हरिराम रा टाबर नीचै रैवै। अेक जूनी चौकबंद हेली है, जिणमें ऊपर-नीचै केई कोठा है। पुराणै जमानै रा ढोला डाट’र बणायोड़ा कोठा। उण बगत आम घरां में जंगळा-मोरी राखणै री चल कोनी ही। बस हेली डब्बी री जात बणवा लेवता। हरिराम अर सतनारायण रा जी सा आसाम में कपड़ै री दुकान करता। सस्तो जमानो हो, कन्नै दो पीसा हुयग्या, सो हेली बणवा मेली।

नीचै हरिराम रै कोठै में आज टेलीविजन बंद हो। संजय अर छोटकियो अनिल आपरै मम्मी-पापा रा चैरां कानी देखै। सुस्त अर सूंतियोड़ा-सा। निजरां बचावता हुया। हरिराम रिजाई ओढ्यां सूत्यो हो। उणरी घरआळी अर दोनू टाबर अेक रिजाई में पग दियां बैठ्या हा।

“मम्मी, सोनू नैं अै डैण-डैणती ले जासी..? संजय रो सुर कोठै में कांप्यो।

“हां बेटा।”

“पण क्यूं..? आपां कोनी लेजावण द्‌यां।”

“बेटा, आपणो कांई जोर चालै। ...सोनू आं रो है। आपणो कोनी।”

“सोनू तो आपणो है। ...आं रो कियां हुयो?” संजय रो बाळमन विरोध करै। काचै दिमाग में मम्मी री बात समझ सूं बारै ही।

मम्मी उथळो कोनी दियो। उणरा सबद कोठै री अमूंजती चुप्पी में तिरता रैया। कोठै में अेक अबोलपण भरीजग्यो।

छेवट हरिराम दोनूं टाबरां सूं बोल्यो “...जाओ सोवो थारै कमरै में जाय’र। दोनूं टाबरां आपरै पापा कानी देख्यो। पापा रो सगत चैरो देखनै बै अणमणा-सा उठ’र आपरै कमरै में चल्या गया।

इणी तरै रो सरणाटो ऊपर सतनारायण रै कमरै में भी फैल्योड़ो हो। सतनारायण रा दोनूं टाबर भी इज सवाल आपरी मम्मी सूं करै हा। सतनारायण रै पैलड़ी सूं सात बरस री छोरी अर पांच बरस रो छोरो है। छोरी पिंकी तो सोनू रा घणा कोड करती रैयी है। कीं तो छोरी री जात नैं नानो टाबर आछो भी लागै, कीं सोनू है भी घणो फूटरो, बबुओ-सो। पिंकी थोड़ी ताळ पैली बिमला रै कन्नै आय’र बोली ही मम्मी म्हैं सोनू नैं को लेजावण दूं ली। बड़ी मम्मी कैवै हा कै अै डैण-डैणती सोनू नैं लेवण आया है।” तद बिमला की नीं बोल’र पिंकी रै सिर माथै हाथ फेर्‌यो। उणरी आंख्यां भरीजगी। आंसू पूंछ’र बोली “कोनी देवां बेटा सोनू नैं। अपणै माचै पर सोज्या।” छोरी चली गई।

सतनारायण अजै नीचै हो। टाबर सोयग्या हा, पण बिमला री आंख्यां में कठै नींद। सिंझ्या नैं बा रोटी भी नीं जीमी। काळजै में अेक ढीमड़ो-सो बंधेड़ो हो उणरै। बा सोनू नैं आपरै पासै सुवाण्यां ऊपर छात कानी पथरायोड़ी आंख्यां सूं ताकै ही। इत्तै में सतनारायण आयो। आवता बोल्यो “सूबेदारजी कोनी मानै। म्हैं घणो समझायो... कै अठै छोरो सावळसिर पढ लेयसी। थे कीं बडो हुज्या तद ले जाइज्यो... सोनू थांरो है...। पण बै टस सूं मस नीं हुया।”

बिमला फगत सूनी-सूनी आंख्यां सूं बीं कानी देखती रैयी। सतनारायण कपड़ा बदळ्या अर चुपचाप पिलंग रै अेक पासै रिजाई लेय’र लेटग्यो। ...बो बिमला नैं कांई हिमळास देवै, उणरै माथै कोनी ढुक रैयी। बो हिड़दै सूं चावै कै बिमला रो जीव किणी बात नैं लेय’र नीं दुखै। पण उणरो परवार सूबेदारजी सूं हुयोड़ा कोल-बचन कियां तोड़ै? बो कैवणो चावै हो कै बै सुंवारै सोनू नै पक्कायत लेय जासी। पण बो कीं नीं बोल्यो। बो जाणतो हो कै कैवण सूं बिमला नैं तकलीफ हूसी। रात री टेम क्यूं कैवूं सुंवारै आप ठाह लाग जासी। ...फेरूं भी तो जाणै है।

दोनूं चुपचाप आप-आपरी रिजाइयां में लेट्या रैया। बिमला सोनू रै सिर माथै हाथ फिरावै। बा आपरो आखो हिड़दो उळीच’र उणनै पोखणो चावै। उणरै काळजै में अेक उकळती डीक उठै। ...अरे रामजी ...म्हारी कुख सूं तो जलम्यो... अर अब बिराणो हुय जासी... म्हनैं दोय जलम दिखा दिया। ...जद-कद भी बा सोनू नैं लडावै बीं रै रोहताश चेतै खड़्यो हुवै! रोहताश! उणरो पैलड़ो धणी! ...कितरो लाड-कोड सूं ब्याव करियो हो उणरा मां-बापू। कैवता कै छोरो घणो फूटरो अर गबरू जवान है। सीआरपीएफ में रंगरूट है। सगाजी रामरिखजी रै घर कीं बात री कमी कोनी। ...अर साच्यांई जद बिमला सासरै पूगी, उणरो हियो घणो हरखीज्यो। रोहताश अर उणरो घर उणनै सुरग-सो लाग्यो। रोहताश जैड़ो भरतार अर लाडां-कोडां बा अेकली बीनणी। रोहताश तीन बैनां पाछै जाम्योड़ो लाडको बेटो हो सूबेदारजी रो। गाय-भैंस्यां रै धीणै में पळ्यो सुपुठो मोटियार। कितरो प्रेम करतो बो उणनै! जद भी छुट्टियां माथै घरै आवतो, उणरै तांई भांत-भांत री चीजां लावतो। ...फेरूं जद बो नौकरी तांई बावड़तो तद उण रात बै दोनूं सोवता नीं। बा कैवत्ती, आप नौकरी क्यूं करो? छोड़द्‌यो! अठै आपणै जमीं है, धीणो है, बापजी री पैंसन आवै... क्यां री कमी है? अठै रैयनै भी तो आप कमाय सको। आपां दोनूं खेती कर लेयस्यां। पण रोहताश हंस’र कैवतो, जद तांई पैंसन रो हकदार नीं हुय जाऊं, तद तांई तो नौकरी करणी पड़सी। बिचाळै छोड़ियां कांई फायदो। फेरूं अठै थनै किण बात री कमी है।

...दोय बरस कितरा सुरंगा गुजर्‌या! जद सोनू गोद में आयो तद सूबेदारजी अर सूबेदारणीजी आंगण में नाचै लाग्या। उणरै हियै दाई-माई री दिरीजी बधाई मावै कोनी ही। ...रोहताश नैं फोन करवा’र छुट्टियां माथै बुलायो। इणरै बाद दसोटण रो ठाडो-सो जीमण हुयो गांव में। उणरी तीनूं नणदां नैं अेक-अेक सोनै रो हारियो दिरायो सूबेदारजी। घर में जाणै गणपत-गौरजा आयोड़ा हुवै। आखो घर इण उच्छब में हळाडोब हुयोड़ो रैयो। सोनू रा कितरा कोड करिया कुणबै री भुवा-भतीज्यां-नणदां। पीरै रो आखो कुणबो छुछक लेयनै आयो... बाजा बाजिया। स्सै नेगचार संपूरण हुवणै रै बाद रोहताश ड्यूटी माथै जावण री तियारी करै लाग्यो। ...अबकाळै वा रोहताश नैं नीं कैवी कै आप नौकरी छोडदो। बा जाणै अपण आप में पूरण हुयगी हुवै। बा रोहताश रै अंस नै गोदी में लेय’र मोद में बिलम्योड़ी रैयी। बस इत्तो कैयो

“तावळा आवज्यो।” तद रोहताश उणनै छाती सूं लगा ली ही। फेरूं बो सोनू रै सिर माथै हाथ फेरियो, चूमियो। बोल्यो “म्हैं चालूं... नानकियै री ख्यांत राखजै...।”

रोहताश चल्यो गयो। बा दिन-रात सोनू उपरां मोरणी-सी मंडी रैवती। जद बा उणनैं आपरो दूध चूंघावती तद बा आणंद रै अेक सागर में जाणै डुबकी लगा रैयी हुवै। पोखण रो सुख कोई मां जाण सकै। स्यात किणी मां रे तांई ईज बरमानंद हुवै।

पण नीं जाणै किणरी निजर लागी या रामजी नै उणरै परवार रो सुख नी सुहायो। सोनू छव म्हीना रो हुयो हो कै उणरो सारो सुख-चैन अेक तोफाणी फटकार सागै फूस-पानड़ां री दांई बिखरग्यो। रोहताश री ड्यूटी झारखंड मांय नक्सल प्रभावित खेतर में लाग्योड़ी ही। रोहताश री ट्रुप कठै जावै ही। नक्सलियां री लगायोड़ी बारूदी सुरंग री फेट में बां रो ट्रक आयग्यो। उण विस्फोट में रोहताश री मौत हुयगी। साथै और भी कई जुवान शहीद हुया।

बिजळी पड़ै जद केई-केई दूर तांई धमीड़ सुणीजै। पण जठै बा पड़ै बठै उणरो कोप जाणीजै। रोहताश री मौत रो समचार सूबेदारजी रै घरै अेक गाढी दमघोटू बजराक री तरियां आयो। समचार भाई-बंध अर गांव रै मिनखां रो सैकारो निसारतो हुयो सूबेदारजी रै घरां बड़्यो। आखी गुवाड़ी मिनखां सूं भरीजगी। अेक गाढै मून में चिणियोड़ा लोग... कांई हुयो... अेक छोरो हो सूबेदार रै... ओऽऽह...!

सूबेदारजी अर बां री जोड़ायत पाथर बणग्या अेक हबकै साथै। अर बिमला? उणरी दुनिया में तो जाबक अंधारो हुयग्यो। रोहताश री ल्हास तीन दिनां सूं गांव पूगी। इण बिचाळै सूरज तीन बार उगियो अर आथम्यो। पण उणरै तांई तो बो अेक साबत अतूट बगत हो, जिणमें अेक गाढो सरद कर देवण आळो धुंधळको भरियोड़ो हो अकास सूं बां रै हियै तांई पसरतो हुयो।

रोहताश री ल्हास अेक ताबूत में बंद आयी। स्यात ल्हास बिडरूप हुवणै सूं खोलीजी कोनी। बिमला उण बक्सै उपरां गिर’र ढां-ढां रोई। लुगाइयां उणनै मुस्कल सूं संभाळी। ...म्हनै अेकबर मूंढो दिखाद्‌यो...। पण उणरी चिरळाटी अकास बिलो’र रैयगी। जिको तय हो बो हुयो। साथै आया रंगरूट-सारजेंट ताबूत माथै तिरंगो बिछायो। बिमला री चूड़ियां साथै उणरै हाथ सूं ताबूत माथै फूल चढवाया गया। उण बगत बठै अेक हाहाकार मचग्यो जद छव महीनां रै सोनू रै माथै सफेद चंदण रो टीको पिंडत कर्‌यो। स्यात तद बठै मौजूद लोग-लुगाई नीं आभो भी रो पड़्यो हुवैला। भोळै सुसियै-सो सोनू इण दुनिया नैं नी जाणै किण ढब देखी हुवैला। फेरूं अेक जणो सोनू नैं गोदी लियां रोहताश रै दाग वास्तै साथै लेयग्यो...।

इणरै बाद गीली-सूकी आंख्यां सूं बगत बतीत हुवै लाग्यो। बिमला रै तांई अब रोहताश रो अंस सोनू फगत स्हारो हो। सोनू उणरी दुनिया ही। उणरी क्यूं सूबेदारजी अर सुबेदारणी रै खातर भी जीवणै रो बहानो फगत सोनू हो। बगत तो बगत हुवै। बो कांई-कांई दिखावै मिनख नै देखणो पड़ै। बिमला बो दिन भी देख्यो जद बा पन्द्रह दिनां बाद आपरै पीरै गयी। जिण घर सूं सुहाग रो चूड़ो पैर’र गयी, बठै बिमला रै डंडा हाथां में चांदी रा बिलिया हा। किणी डीकरी रो विधवा हुय’र आपरै पीरै बावड़णो स्सै सूं बड़ो दुख हुवै उण घर खातर। विधवा बेटी नैं देख’र मिनख नीं घर री भींतां भी रो पड़ै। मोटियार तो चुपचाप रोवै, पण लुगायां आपो खो देवै। बिमला रै फेरूं रोहताश री ल्हास आवण रो चित्तराम आंख्यां साम्हीं घूमै लाग्यो। संगी-साथण्यां जकी ब्याव री टेम उणसूं गळै मिळी, उण साथण्यां रै कांधां माथै बा बाड़्योड़ै बिरछ-सी पड़गी।

बिमला दोय बर महीनै-बीस दिनां रै फेर सूं पीर-सासरै आयी गयी। अब उणरै पीरै में दबी-दबी ठस्स जबान सूं उणरै भविस री चिंताभरी चरचा हुवै लागी। सुबेदारजी रै कडूंबै में कोई कुंवारो छोरो कोनी हो, नींतर बै उणनै खोळै लेय लेवता। बां री रिस्तेदारी में भी कोई गोद लेवण जैड़ो छोरो निजर नीं आयो।

इण चिंतावां सूं दूर बिमला आपरो जीवण सासू-सुसरा री सेवा में बतीत करणै रो पक्को इरादो कर लियो। ...लै जीवड़ा, जकी हुई सो हुई, अब आं बुढै-बुढिया नैं कळपता क्यूं छोडूं। ...सोनू कदी तो मोटियार हुवै लो। इण घर रो चिराग है। म्हैं ईं नाजोगै बगत नैं छाती माथै सिल धर’र गुजार देसूं...।

पण तीजीबर बा जद पीरै गयी तो उणरो बापू उणनै काठी करली। सूबेदारजी कीं दिनां पाछै लेवण आया। बापू उणनै साव नटग्या। बोल्या “म्हैं म्हारी बेटी नैं आखो जीवण यूं बैठी नै नीं काटणै द्‌यूं। अबार इणरी उमर कित्ती है? थारै कन्नै मोटियार कोनी, ...पण म्हैं ढूंढसूं।” सुण’र सूबेदारजी री आंख्यां भरीजगी। बिमला भी आपरै सुसरे री हालत देख’र गळगळी हुयगी। बा कोठै सूं निसर’र बापू नैं कैवणो चावै ही कै बापू थे आं री आत्मा मती दुखावो। म्हैं इज्जत सूं टेम गुजार देसूं। पण बा बापू रे साम्हीं बोल नीं सकी। बा कोठै रै अेक कुणै में जाय’र रोवै लागी। अेक कानी उणरो घर हो अर अेक कानी उणरै मां-बाप रो निरणै।

बा गतागम में उळझी दोनुआं रै बिचाळै मून मूरत बण’र रैयगी।

बगत बीत्यो। बगत स्सै घाव भर देवै। छेवट दोनूं पखां रै बिचाळै राजीनांवो लिख्यो गयो। रोहताश रै नांव मिळी मोटी रकम अर पेंसन रा हकदार सूबेदारजी बण्या। बिमला रो गैणो-गांठो भी बां रै सुपरद कर दीन्यो। इण फैसलै री भी लिखत हुई कै सोनू रोहताश री संतान है, ईं वास्तै उण माथै सूबेदारजी रो हक है। उण बगत बिमला सूबेदारजी रा पग पकड़’र भीख मांगी कै सोनू नान्हो जिलफ है, आप की बगत बाद इणनै ले जाइज्यो। बठै हाजर पंचां भी सुबेदारजी सूं मिनखीचारै रै पेटै अरज करी। सूबेदारजी मानग्या।

बगत रो पईयो घूम्यो। घर में कीं सुगबुगाट हुवै लागी। बापू मां नैं की बतावता। बापू री भागादौड़ी बधगी ही। बै केईबर गामतरो करता। आवता-जावता, कदी अेकला, कदी कीं रै साथै। छेवट अेक दिन मां उणनै पासै बिठा’र कैयो “देख बिमला, थांरो बापू सीकर में अेक मोट्यार देख्यो है। दूजबर है, पण उमर में तीसेक बरस रो है। मास्टर है। सरकारी नौकरी है। अबार लारलै दिनां उणरी लुगाई चालती रैयी। आछो कमावतो-खावतो घर है। चोखी हेली है। मास्टर रो बडो भाई बजार में दुकान करै। ...बस अेक कमी है। मास्टर रो ओपरेसन करवायोड़ो है। अब थूं सोच लै...। म्हे तो चावां थूं सुखी-सौरी रैवै।”

बिमला कीं नीं बोली। सोच्यो, म्हैं कांई कैवूं? जो करणो है थानै करणो है। बा टुकर-टुकर आपरी मां कानी भाळती रैयी। बापू कोई बात कर’र आया हुवैला। उणी हिसाब सूं दूजै दिन अेक सलीकै आळो मोट्यार आयो। बो मास्टर हो जिणरो जिकर मां कर रैयी ही। बा चाय लेय’र उण कन्नै बैठक में गयी। दोनूं अेक-दूजै नैं देख लिया। चाय पीवती बरियां बो कैयो “म्हारै अठै बानै कीं तरै री तकलीफ नीं हुवैला।” बो आपरै साथै कीं फळ-मिठाई भी लायो हो।

...अर अेक दिन आछा दिनबाड़ी देख’र अेक सांझ उणरो गांठ रो नेग हुयो अर बा कार में बैठ’र सोनू रै साथै मास्टर सतनारायण रै घरै आयगी। अेक अणजाण घर! सासू, जेठ, जिठाणी अर बां रा टाबर...। उण बगत टाबर उणनै अचूंमै सूं ओळखै हा। परींडै में धोक लगाय’र बीं नै आंगणैं बिचाळै पीढै बिठाई गयी। नूंवी सासू अर जेठाणी उणनैं मूं दिखाई दीवी। उणरा घणा कोड कर्‌या। सोनू उणरै काळजै सूं चिप्यो कबूतर री दांई टुकर-टुकर देखै-नूंवी लुगाइयां... नूंवा टाबर... नूंवा आदमी...।

देर रात नैं जेठाणी उणनै ऊपर लेयगी। सोनू सोयग्यो हो। बा सोनू नै आपरै कांधै चिपायां पेडकालै चढी। बा जाणती ही कै उणनै अपणै नूंवै मोट्यार कन्नै जावणो है। ऊपर कमरै री चौखट तांई पूगा’र जेठाणी नीचै गयी परी। भीतर कमरै में सतनारायण पिलंग माथै लेट रैयो हो। उणरै भीतर आवतां बो उठ बैठियो। बा सोनू नैं पिलंग रै अेक पासै सुवाण दीन्यो।

अै गरमी रा दिन हा। छात ऊपरां पंखो चालै हो। बै दोनू पिलंग माथै लेट्योड़ा जाबक मून हा। फगत पंखै री फर्र-फर्र कमरै में सुणीजै ही। ...अेक लाम्बो अबोलोपण...।

सतनारायण रै दिमाग में कांई चाल रैयो हो, इणरो तो बिमला नैं मालूम नीं, पण उणरो हियो तर-तर भीजै हो। ...आ क्यां री सुहागरात है रे रामजी...? लुगाई री सुहागरात तो अेक हुवै। बा हुई ही रोहताश रै साथै। ...रोहताश! ...अर यादां रा भंवर! उणरी छाती में अेक धीमड़ो-सो बंधग्यो अर बो छाती सूं उठ’र उणरै कंठां में आय अटक्यो। बा पूठ फोर ली। साड़ी रो पल्लो मूं रै आगै लगा’र रोवै लागी... रोहताश थूं क्यूं चल्यो गयो रे... आज म्हारो अदब दूजो मरद उघाड़सी। ...लोक ब्योहार में रोहताश थांरो घर छूटियो... म्हैं मां-बाप रो दुख मेटण तांई औड़ी में आयगी। ...अरे रामजी! थूं म्हनै दूजो जलम दिखा दियो...। बा टूट-टूट’र रोवै लागी।

सतनारायण तावळो-सो उणरै कन्नै सरक्यो अर बिमला रो मूंढो आपरै कानी करनै बोल्यो

“औ कांई बिमला..! …थूं रोवै क्यूं है! ...बिमला, समझ सूं काम लै... ईयां नीं कर्‌या करै बावळी।” बो उणरा आंसू पूंछ्या, “थूं मेरै घरै आयी, थांरो अहसान है। ...म्हैं थानै फूलां सूं तोली राखूंला। थनै किणी तरै री खिंख्या कोनी झेलणी पड़ेली अठै। थारो सोनू भी म्हारो है। जे थूं समझै कै म्हारा दोनूं टाबर थारै गळै घलग्या, तो थूं बेफिकर रैयी...। म्हारी मां आं नैं राख लेयसी। ...थूं रो मत।” इतरो कैय’र सतनारायण उणनै आपरी छाती तूं लगा लीनी। बिमला उणरी छाती में मूंढो दियां कैयी ताळ सुबकती रैयी। सतनारायण आपरी समझ सूं बीं नैं धीजो दिरायो, पण बिमला रै अंतस री पीड़ बो कियां जाणतो।

दूजै दिन सूं बगत रा पांवडा आगै बधै लाग्या। इण घर में उणरो घणो मान राख्यो जावण लाग्यो। सासू अर जेठाणी रो सुभाव सळियो हो। हळवां-हळवां स्सै टाबर उण कन्नै हीलग्या। जेठ रा टाबर उणनै चाची अर सतनारायण रा टाबर उणनै मम्मी कैवै लागग्या। ...अर उणरो सोनू! सोनू तो स्सै रो लाडलो बणग्यो। सोनू उण स्सै टाबरां सूं फूटरो हो। स्सै बाळकिया उणनै गोदी चक्यां डोलता। बिमला इण नूंवै जीवण में बिलमगी। सतनारायण रो सुभाव सधीरो हो। बस बिमला री छाती में फगत सूबेदारजी रो बो करार सेल री दांई चुभतो रैवतो।

...बै महारै सोनू नैं लेय जासी। इण भै सूं बा कदी-कदी रात नै चिमक’र उठ जावती। फेरुं उणनैं नींद नीं आवती। सूती-सूती टाबर री चिंता रै अळुझाड़ में फंसी रैवती। लारली बार जद सूबेदारजी रिसाणां हुय’र गया हा, उणरै पाछै अेक रात उणनै सपनो आयो। ...जाणै सोनू अेक ऊंडी खदान में जाय पड़ियो, अर बो हेलो मारै... मम्मी-मम्मी, म्हनै निसार मम्मी। बा खदान रै ढावै ऊभी बेबस कुरळावै.... सतनारायण उणनै गथोळ’र जगावै बिमला... चेतो कर। बा जागी। सतनारायण बोल्यो “ईयां कियां बरड़ावै ही...।” बा कीं नीं बोली। फगत सोनू नै आपरै कन्नै सिरका’र छाती सूं चेप लियो।

सूबेदारजी दिनुगै तावळा उठ गिया हा। नितकर्म सूं फारिग होय’र बै आपरी जोड़ायत नैं भी जल्दी तियार हुवण रो कैयो। बै रवानै हुवण री जल्दी करै लाग्या।

आज इण हवेली रो सूरज उदास-सो उग्यो। सवेरै री ठंड में स्सै गरम शॉल-सुटर पैर्‌यां हा। पण स्सै चुपचाप। जाणै स्सै नैं सांप सूंघ गियो हुवै। उठतां टाबर आप-आपरी मावां नैं पूछै “मम्मी, सोनू अठै रैयसी नीं?” मावां रो छोटो-सो जवाब “हां बेटा।” बिमला मांय मांय कळपै। ...ले रामजी, थूं दोय जलम तो दिखा दिया। आज तीजो जलम बाकी है। म्हारी कूख रो जायोड़ो मेरो लाल अब बिछड़सी।

हरिराम अर सतनारायण दोनूं भाई तय करी कै टाबरां नैं स्कूल चल्या जावण द्‌यो। नीतर टाबरां माथै माड़ो असर हुसी। सूबेदारजी नैं हरिराम समझाया। बठीनै सोनू नै आपरै जीवण में आवण वाळै इण मोड़ रो अंगैई ठाह कोनी हो। बो रोजदिन री तरियां दूध पीय’र फुदकतो फिरै हो। कदी दादी कन्नै, कदी बड़ी मम्मी कन्नै। ...बडोड़ै टाबरां साथै नास्तो कर्‌यो। स्कूल जावता नैं टाटा, बाय-बाय करी। टाबरां रै स्कूल जावण रै बाद बिमला सोनू नै नुहाबा नै बाथरूम में लेयगी। ...तातो पाणी... साबण। ...सोच्यो, आज आखरी, सिनान...। आंसू चाल पड़्या। सोनू बोल्यो “मम्मी, तूं लोवै क्यूं है...?” सोनू रै इण सबदां साथै बा और घणी फाटी। बा सिनानघर रा किंवाड़ जड़ लिया।

स्सै तियार हुयग्या। सतनारायण बजार जाय’र सोनू वास्तै नूंवा गाबा सूट-सुटर, बिस्कुट, टॉफी, रामतिया ल्यायो। सोनू नैं बधका कपड़ा पैनाया। उणरै नूंवा-पुराणा कपड़ा अर दूजी चीजां सूं अेक बडो-सो बेग भरीजग्यो। सोनू घणो राजी। पण बिमला, जेठाणी अर उणरी सासू आंसू पूंछै। सोनू भोळी-भाळी निजरां सूं स्सै नैं देखै। उणरै कीं समझ नीं ढूकै। पण जद सूबेदारजी उणनै गोदी लेयर चालण लाग्या तो बो अरड़ावै लाग्यो। उणरी गोदी सूं जोरामरदी छिटक’र आपरी मम्मी कनै आयग्यो।

सोनू नैं भुळाणै री चेष्टा हुयी, पण बो नीं मान्यो। वो दूणो चौसार हुवै। छेवट हरिराम कैयो

“बिमला, “थूं अर सतनारायण सागै चल्या जावो। टाबर है, कोनी मानैलो। सतनारायण स्कूल में फोन करनै छुट्टी लीनी। फेरूं सोनू नै गोदी लेय’र बिमला साथै ठेसण कानी भीर हुयग्या। जावती टेम बडी मम्मी सोनू नै सौ रिपिया दिया। दादीजी भी उणनै पचास रो नोट दियो। दोनूं जणी झरती आंख्यां सोनू रो सिर पळूंस्यो।

टेसण पूगणै रै बाद बिमला सतनारायण नैं बोली, “आपां जद सोनू नै गाडी चाढ देवांला तो हु सकै पूठो कूद पड़ै। सूबेदारजी नै भी संका हुयी। बै बोल्या, थे नूंवां तांई साथै चालो। छेवट उणनै नूंवां तांणी छोडणो तय हुयो।

सीकर सूं नूंवां री टिगट कटा’र बै च्यारूं जणां गाडी में बैठग्या। बिमला ओलो काढ राख्यो हो। ईं सूं उणरी झरती चुरड़ आंख्यां दूजां नै निगै कोनी आवै ही। सोनू घणो राजी हो। बो समझे हो कै आज मम्मी-पापा उणनै घुमावै है।

डोडै’क घंटा मांय नूंवां टेसण आयगी। सगळा गाडी सूं उतरग्या। घंटाभर पछै अठै सूं सीकर खातर वापसी री गाडी आवणी ही। इण वास्तै सतनारायण सुबेदारजी नैं कैयो कै म्हे अठै बैठ्या हां, आप पधारो। सूबेदारजी सोनू रो बेग कांधै चक’र बीं नैं गोदी लियो। “जा बेटा” कैय’र सतनारायण उणरै सिर उपरां हाय धर्‌यो। इत्तै में सोनू सूबेदारजी री बूढी गोद सूं उछळ’र आपरी मम्मी कन्नै भाज्यो। बिमला बां सूं की परै आपरो जीव लियां ऊभी ही। सोनू आपरी मम्मी री टांगां सूं जाय’र चिपग्यो। बो उणनै काठी पकड़ली।

मजबूरी में सूबेदारजी अर सूबेदारणी टेसण माथै बैठा रैया। अब लुहारू कानी सूं आवणवाळी पैसेंजर री उडीक ही। सोनू रो बाळमन अणजाण खतरै री गंध मैसूस करै लाग्यो। टेसण रो ओपरो वातावरण, ओपरा लोग, मम्मी-पापा रो अबोलोपण अर बै दोनूं बिराणा डैण-डैणती..। बो डरियोडो कबूतर दांई इन्नै-बिन्नै देखै। फेरूं बो सैंग-बैंग हुयोड़ो आपरी मम्मी रै पल्लै नै खींचै... मम्मी, घलै चालां... मम्मी घलै चालां....ऊं...ऊं...। बिमला कांईं बोलै!

छेवट बिछोह री घड़ी आयगी। अगूण कानी सूं गाडी धड़धड़ावती टेसण माथै आयी। बै खड़्या हुयग्या। गाडी रुकी। अठीनै सोनू आपरी मम्मी नैं नीं छोडै। बा बीं सूं बच’र गाडी चढणी चावै, पण बो उणनै नीं छोडै। स्यात आगत रै संकट नैं बो समझग्यो हो। गाडी कीं ताळ ढबी रैयी। इंजण सीटी मारी। सतनारायण गेट माथै चढ’र बिमला नैं आवणै रो कैयो। बिमला सोनू नै गोदी लियां डब्बै रै नजीक गयी। गाडी सरकी, अतरै में सूबेदारजी झपटो मार’र सोनू नैं आपरी कोळी में ठाडो भींच लियो। सतनारायण बिमला नैं हाथ पकड़’र चढाई। गाडी भीर हुयगी। सोनू बेतरां हाथ-पग मारै... “मम्मी... म्हैं कोनी जाऊं.... मम्मी... मम्मी!” मां री ममता गाडी रै बारै उलाळी खावै। उणरो काळजो उबळै। सतनारायण उणनै थाम’र भीतर लेवै। गाडी री स्पीड बधगी। बा सतनारायण री छाती में मूंढो गडा’र गाय री तरियां डिडावै...। घणी ताळ तांई उणनै लागै जाणै सोनू “मम्मी-मम्मी” करतो गाडी रै लारै भाज्यो आवै है।

स्रोत
  • पोथी : सनागत ,
  • सिरजक : श्याम जांगिड़ ,
  • संपादक : जितेंद्र कुमार सोनी ,
  • प्रकाशक : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
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