घर रै मांय स्यात् म्हूं’ई इसो हो जिको चकराइज्योड़ो सो’क देखतौ हौ कै कांई खेल है।

रात रा इग्यारै-साढ़ी इग्यारै बज्या हा, अर सिगळा लाम्बी ताण’र खूं-खूं सूता हा। कमरै रै बांडै सूं रमतौ तीन बरसां रौ टाबर कोई जूंनी बात जिकी उणरी मां कदेई उणनै कैई ही, घड़ी- घड़ी याद करतौ जावतौ हो।

मानखै रौ मोल ओईज है। नातो-रिस्तौ, प्यार-मोबत सिगळो अठै तांई है। कितरी तड़फण, कितरौ दरद, कितरी चेस्टा, कितरी भगदड़, कितरौ उतावळोपण, कितरी अरदासां, मानता, कितरा खरचा, कितरी सिसक्यां बुसका, कितरी आह अर दुआवां एकै सागै सिगळा बोपार चालता हा-एक जीव नै बचाण खातर।

असपतीळ सूं घर तांई साईकळ, तांगा, भाड़ै री मोटरां अर कितराई पग न्हांसता हा। घड़ी-घड़ी री खबर आवती ही। बेमार रै थोड़ै थोड़ै हालै-डोलै माथै आसा रा पुळ बंधता हा। फलाणी बाई आज तौ नाड़ कीं’क मोड़ी ही, डोळाई फोरिया। कुटम रै एक एक पिराणी रै जी में हरख अर मुळक दौड़ जावती ही—कै कीं तौ फायदौ है।

पिण आज भोर होवतां’ई डाकधरजी बुलाय’र कैयौ—‘भई, इन्हैं आप घर लेजाइये। बचने की कोई आशा नहीं है।’

सिगळां रा सांस एकै सागै ऊंचा चढग्या। बचण री आस नीं।

फेर उणनै घरै लेजावण री ऊंतावळ। फुरती करौ भई, कठैई, इसी नीं होवै कै बेमार असपताळ में दम तोड़ दै। गजब हुय जासी। एम्बुलेंस गाड़ी रै आवण में दो-एक मिनट री ढील हुई। बाई लोकां नै दोरी लागण लागगी। लोकां रा ख्याल बदळियोड़ा हा। मरणौ निस्चै’ई हो। फेर असपताळ में क्यूं मरै। घरै पग पसारै जठै जनमी। कुटम-कबीले आळां सूं चोखी तरियां भेट मुलाकात कर’र बिदा हुवै।

एम्बुलेंस गाड़ी आई। बेमार नै मांय सुंआणी। बुसका सागै दो-चार आंसूड़ा नैणां सूं ढळक पड्या। सिगळां सूं नैडौ तो उणरौ मोटियार’ई हो, बोल्यौ—किणीं बात रो सोच मत करजै म्हारी साथण, थारौ मरणो निरथक कोनी जाण दूं।’ सिगळां री आंखां सूं आंसूड़ा टर्रटर्र टपकण लागा।

सिगळै घर में हल्लौ मचग्यौ। नाना टाबरिया’र लुगायां सिगळी रोवण लागगी। किण रै’ई धीरज नीं पाळीपोसी, परणायोड़ी पतायोड़ी छोरी घर सूं जावती ही। अेण सिगळां नै धीरज बंधा है। बेमार नै दोरफ नीं होणी चाइजै।

फेर पास-पाड़ोस रा बूढ़ा-बडेरा आया। नाड़ री परीख्या होण लागी। सांस हाल तांई तौ सूंडी सूं चालै। नाड़ मन्द तौ है पण ठीकठाक चालै है। एक धींगाणै री आस फेर मूंडै माथै आयगी। कदास छोरी बंच जावै।’

डाकधर ऊतर दियौ—‘बैदां नै बुलाऔ।’

बैद एक रै लारै एक-एक तांतौ सो’क बंधग्यौ। पण अेक चोखौ उथलौ नीं दियौ कैवे—देखौ, करण-धरण आळौ तौ सांवरियौ है, ओखद दौ।’

ओखद सिगळां’ई बैदा री दी। पण किसौ फरक आवै।

नाड़ री चाल फेर मन्द होयर ठबकै री अर सांस हिचकी री चालण लागी। अबै बचण री आस टूटगी। घंटे-आध घंटै री पांवणी। घर री लुगायां इन्तकाळ री चीजांबस्तां धीरै सैक काढ़ली, लालचूडौ, रेसमी साड़ी, ओढ़ाण नै बढ़िया चादरौ। खफण अर दाग रै खरच सारू रिपियाट’ई न्यारा काढ़राख दिया। अबै तो सांस टूटण री ढील ही।

रोवण कूकण नै दो चार लुगायां सिंज्यां सूं’ई आयोड़ी ही। सियाळै री रातां। ओढण नै दो चार कामळ्ल्यां मंगाय ली। मरण आळी मरै पण उणरै सागै नीं मरीजै।

रात रा दस बजतां-बजतां सांस टूटगी। सिगळै घर में रोवणो-पीटणौ मचग्यौ। टाबरिया चिल्ला उठ्या। मरणवाळी री मां पछाड़ी खाय’र पड़ी।

पण होवणो हो जिको हुयौ। किण रौ’ई जोर नीं। सांवरियै री आई मरजी। आज तौ इण बुरी बेळा री दिन्नूगै सूं’ई अड़ीक ही। फेर रोवणौ-कूकणौ तौ आखी जिनगी चालसी। अबार तो बीतियोड़ै सरीर नै ठिकाणै लगाण री फिकर करौ। उणरां लारला कारज सांगौपांग होवणा चाइजै।

आंगणै माथै गोबर गऊमूंत रौ पोतौ दियौ अर उण माथै सदासुआगण नै सिनान कराय सुआणी। पुरो बेस पैराय’र ऊपर रेसमी चादरौ ओढायौ अर अड़ीकण लागा—हमै कद भोर हुए।

रात रा इग्यारै-साढी इग्यारा बज्या हा। सूनी रात, दूर माथै कोई कुतियौ रोवतौ हो, जिण री हिन्यारी कूक सुणीजती ही। पण इसै कड़डीजतै सी में मिनख रौ तो जायोड़ो’ई को दीसतौ नीं।

घर रा सिगळा’ई बेमार री खातर न्हांसता दौड़ता, थाकग्या हा। आज निचीता होयग्या हा। सफळता अथवा असफळता जिकी मिळणी ही आज मिळगी। इण खातर सिगळा’ई लाम्बी ताण’र सूता हा। दिन ऊगण नै तो हाल खासी ताळ ही।

पण म्हारै नैणां में नींद नीं। हूं तो आंखडल्यां फाड़तौ हो लाम्बी तांण’र सूतोड्यां खानी, सोचतौ हो बिधना रै बिधान माथै अर मानखै रै मोल माथै।

मरण आळी रौ तीन बरसां रो छोरौ अबार तांई सोयौ नीं हौ अर बा बात जिकी किणी सोवणी रात नै उण री सरगवासिणी मां उण नै कदेई कई होसी, याद करतौ जावतौ हो—

‘चाल म्हारी ढोलकी ढमाक ढम

किसका झीटिया किसका तम।’

म्हूं जी में घणौ दुखी हौ। सांची रे, सेंसार तो उण ढोलकी दई आपरै मारग बगतौ रैसी, ना तौ झीटियै री ग्यान-गिणती ना किणी और री।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कहानीकार ,
  • सिरजक : भगवानदत्त गोस्वामी ,
  • संपादक : दीनदयाल ओझा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्थान, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय संस्करण
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