जद कदै आंधी या तोफान आवै कै पतझड़ री रुत, तद रूंखां रा पान सगळा झर जाया करै। बै पान जिका पाक’र खिरणै री तैयारी में हुवै, बां नैं पाछा हर्या करणै री आस, कदै कर सकां हां भला? हां, नूंवां पानां री तैयारी चालू हो सकै है। बापड़ा पाका पानां नैं रूंख भी आंतरै कर देवै अर बै अठी-उठी उडता सूख’र मार्या-मार्या फिर्या करै है— बां नैं कोई लालसा नीं होवै अर नीं कोई इसी आस ई।
ठीक इसी ई दसा मांय प्रमदा रो जीवण आवै है। अेक इसो तोफान आवै, जिकै रै कारण उण रै जीवण रूपी रूंखड़ै रा सगळा पान खिर जावै। बा लाख कोसीसां करी, पाछी हरी-भरी बणन री, पण बा नीं हुयी सो नीं ज हुयी। अबै जद उण रो जूझतो जीवण सरू हुयो तद बा हार चुकी है। फेर भी मांयनैं अेक आसा री चिनगारी बळै है। अेक कानी बा प्लेटफारम माथै ऊभी महेन्द्र कानी न्हाळ री है। गाडी आ’र अबै-अबै रुकी ईज है। महेन्द्र अबार उतर्यो ईज है। बींनैं याद है—उण दिन री भीड़ जद बा इणी ईज प्लेटफारम पै की नैं पुगाणै आई ही। उण दिन बा घणा आंसू टळकाया हा। आज बो ईज बखत पाछो आग्यो जद बा उण नै ‘रिसीव’ करण ऊभी है, पण बीं रो बिसवास हो—बा आज आंसू नीं टळकावैली—खुसी रो टेम आयो है। महेन्द्र उणरै कनैं आ रैयो है, पण ओ काईं
बीं री जिनगाणी री पोथी रा सरू रा पाना जाणै कोई फाड़ दिया हुवै, लारली कहाणी बीं री जाणै आधी रहगी, रूंख रा पान जाणै कोई झाड़ दिया हुवै।
बीं री आंख्या रै सामैं आज तीन बरस पैलां री जिनगाणी घूम री है, बा देख रयी है— उण नैं कॉलेज मांय कविता री होड़ में पहलो इनाम मिल्यो हो। आचार्य—प्राध्यापक सगळा बीं सूं राजी हा। बा कोई सूं धिरणा नीं करती ही, बस अेक, फगत अेक विद्यार्थी ही इसो हो जिको बींरी निजरां मांय खटक्या करै हो।
‘जीतू’ कैवता हा जितेन्द्र नैं कॉलेज में। बो सगळा विद्यार्थियों रो ‘रिंग-लीडर’ हो। विद्यार्थी भी बींनैं ‘जीतू-दादा’ कह’र हेलो पाड़ता हा। छोर्यां तो माथो झुकावती निकळ जाया करती ही। प्राध्यापकगण बीं सू खुस नीं हा। कित्ती ई सिकायतां आचार्यजी कनैं पूगगी ही। अेक बार ‘स्टाफ’ री मीटिंग मांय सुवाल भी उठ्यो—कै बीं नैं कालेज सू काढ दियो जावणो चाईजै, पण बो पूरो नीं हो सक्यो। कारण बो हॉकी रो कप्तान ई नीं बातां रो बागलो भी हो। इण कारण सूं कालेज रो नांव ऊंचो हो, चाये बो क्यूं ई नीं अेक बदचळन असभ्य विद्यार्थी रैयो है? बीं में थोड़ी योग्यतावां भी ही, ईं सूं बो पूज्य भी हो। बो प्रान्तीय कालेजां री भासण री होड में अेक ट्राफी जीत लायो अर हाकी रै आल इण्डिया कॉलेज टूरनामेंट में तो टीम उण सूं ईज जीती ही। प्रमदा नैं याद है— बो हाई स्कूल में उण रो असफल प्रेमी रह चुक्यो हो। दोनूं कॉलेज में आमैं-सामैं आवता तो झैंपता कट जावता हा।
ओय! बां दोनुवां री बा रोमांस सूं भर्योड़ी गाथा। बां रो अन्दरूणी प्रेम कित्तो गंगाजळ ज्यं ऊजळो हो। अेक दूजै नैं नेह रो पतो नीं लागण देता। जित्तू बीं नै जित्ती ई बार गैलै चालतां छेड़ी ही, तद बींरी आंख्या लाल हो जाती ही। कित्ती ई बार प्रमदा उण रै सामी सिकायत करणै री सोची पण हिवड़ो नीं मानतो हो। अेक दो बार तो बा आचार्यजी रै आफिस रै बारणै ताईं आ’र पाछी फिरगी ही। बीं रै हिवड़ै मांय थोड़ो घणो प्रेम हो, उण रै वास्तै जगां ही—जदी तो बा सिकायत करती-करती ढबगी। क्यूं ढबी ही? ओ तो उण रो खुद रो हिवड़ो ईज जाणतो होसी।
बीं नैं याद है कालेज री पिकनिक। सहर सूं अढ़ाई कोस आंतरै अेक सोवणी जगां बै गया हा। उण घोघाटती नदी रो बहाव कित्तो जोर रो हो, बीं नैं आज भी याद है—बा कळ-कळ करतोड़ी खाळी। दिरस जित्तो सोबणो हो, उत्तो ई डरावणो भी हो। बो टूटीज्योड़ो पुळ जिण माथै हो’र आवणो कित्तो दोरो हो? पण जियां-कियां पैली कानी तो जावणो ई पड़तो हो। प्रमदा बीचै भी नीं पूगी ही, कै अेक पग फिसळग्यो अर बा नदी री तेज धार में बहगी। इसी बहगी कै कोई री हिम्मत ईज नीं पड़ी काढ़णै री। कुण आपरा प्राणां नैं खतरै मांय नाखतो। सगळां रै बीच जित्तू, ओ सब देख रयो हो। बो आपरा प्राणां री परवा नीं कर कूद पड़्यो धार में। दोनूं बैवता-बैवता आंख्यां सूं अदीठ होग्या। पिकनिक रोक’र सगळा बठै सूं दरदनाक घटना ले’र पाछा आया।
जित्तू तैराक हो—बो तेज धार रै मांय भी प्रमदा नैं सोधली अर अळगी अधकोस आगै जा’र जियां-कियां कोर माथै लायो। प्रमदा बेहोस ही—जित्तू निरास होग्यो—पण प्रभू री किरपा सूं बीं नैं होस आयग्यो, घंटा भर पछै। अर बा कीं तरह सूं बी री छाती सूं चिपी रयी जिकी अब तक उण नैं याद है। बीं टेम बीं नैं कित्ती सान्ति मिली ही अर मिल्यो रो अेक नुंवो जीवण। दूजै दिन कालेज में ईं बात रो पतो लाग्यो कै प्रमदा नैं जित्तू बचा लीनी तो सगळा बीं रै साहस री प्रसंसा करण लागग्या। प्राध्यापकां अर आचार्य तो बीं नैं घणो धिनवाद दियो। प्रमदा रै हिवड़ै में उण दिन सूं बीं रै वास्तै जगां बणगी ही।
उण ईज दिनां चीणियां रो पैलो हमलो ‘उपूसी’ मांय हुयो। जित्तू पढ़ण आळा साथ्यां अर काकै रै लड़कै रै सागै फोज मांय भरती होग्यो। जब बै जाबा नैं हा तद वां नैं कालेज री ओर सूं बधाई दी गई, बिदाई समारोह मनावतां। बां नैं साचा देसभगत बताया जावै हा। बां नैं सींवाड़ै भेजण वास्तै ठैसण माथै अणगिणत विद्यार्थी आया। उण दिन कित्ती भीड़ ही इण प्लेटफार्म पै, आ भी चोखी तरह सूं बीं नैं याद है। अर उण दिन भीड़ रै सागै माळा सूं लद्योड़ा जोस सूं भर्या फोजी हा—सींवाड़ै जावण वास्तै। बां रा चेहरा मुळकै हा, विधार्थी नारां सूं अंबर गुंजावै हा। गाडी आई अर आचार्य, प्राध्यापक अर सगळा विधार्थी बां नैं आसीस देवतां रवानै किया। गाडी चालगी, सगळां रा रूमाल हाथा मांय हिलण लाग्या। पण जित्तू अेक चहरै नैं बीं भीड़ मांय तीखी निजरां सूं खोजै हो। प्रमदा नैं डूबतां बचाणै रै दिन पछै, बै पाछा कदे नीं बोल्या हा। हां! मांयली संवेदनावां अेक-दूजै रै घणी नजीक ही। जित्तू नैं आसा ही—विसवास हो, वीं री मून प्रेमिका आवैली अर जरूर आवैली। बस बो आखरी दरसण करणा चावै हो। गाडी चालगी, ईं वास्तै बीं रो हिवड़ो छोटो हुवतो जावै हो, पण आंख्यां नीं मानै ही।
अचाणचक प्लेटफारम रै आखरी कोर पै बीं नै आंसू झरती गीली पापण्यां आळी मून प्रेमिका दीसी।
गाडी आगै बढ़ती जावै ही, बीं रो कम्पार्टमेन्ट प्रमदा रै नजीक सूं सरकणै ई वाळो हो कै प्रमदा आगै बढती बीनैं अेक छोटो सो डब्बो हाथ में ढबा दियो। डब्बो देवती टेम बीं रै हाथ रो रूमाल पतो नीं, बा कियां खींच लियो? दोनूं कीं भी नीं बोल सक्या। आंख्यां सूं बिरखा चालू होगी ही। गाडी आगै सरकती गई। अेक ई झपकै मांय। प्रमदा उठै ईज ऊभी ही। डब्बो खोलणै रो मन कियो। बीं नैं अब धीरज कठै हो। बो तो बीं नैं खोल ईज लियो, मांय नैं थोड़ी मिठाई रै सागै अेक रूमाल अर रूमाल रै बीच अेक चिट्ठी निकळी। चिट्ठी यूं लिखीजी ही—
“सायव”!
काईं लिखूं? सबद ई नीं ठावा होवै। कास! घड़ी भर दो प्रेम री बातां करता। मन री बात कैवती-सुणती अर थांनैं प्रेम री निजरां सूं निरखती। म्हारा आंसू नीं ढब रैया है— ढलता ईज जावै है—पतझड़ रा पानड़ा ज्यूं कै मेह री बूंदा ज्यूं झरता जावै है। म्हारा सायब! हमैं मनैं लाग रैयो है कै म्हारै जीवण रूपी रूंखड़ै रै पाछा पानड़ा नीं आवैला! नीं आवैला! कदे नीं!!! प्रेम कित्तो पवित्र होवै—ईं नैं आपां निभायो है। म्हैं आपनैं स्वीकार कर लीना हिवड़ै सूं। थे आवोला जठै ताईं उडीक रैवैली अर जद थे ‘हां’ कैवोला तद ईज आपरै हाथां सूं सजती बीनणी बणूंला—नींतर ओ सरीर समझ लीज्यो कदे ई लीलै रूंख ज्यूं नीं पावोला; हूं सूख’र मर जावूंली।
सीख लेवूं हू! थारी सोवणी ओळ्यूं, सायब!!
थारी मरवण
‘—प्रमदा’
चिट्ठी नैं पढ़’र बींरी आंख्यां गीली होगी अर आंसूं टपटप मोती ज्यूं टपकण लाग्या। बो सोचै हो—आ गाडी अबार री अबार जंजीर खींच रोक दूं अर अबार री अबार प्रमदा नैं सजा बीनणी बणाय दूं। हाथ ऊपर उठ्यो, जंजीर खींच ई रैयो हो कै हिवड़ो ठसकण लाग्यो। बो ढबग्यो—नईं! हू देस री रक्षा रै वास्तै जा रैयो हूं—आज नईं फेर कदी। साथीड़ा कारण पूछ्यो—बो टाळ दियो। पण बींरो काकै रो बेटो भाई महेन्द्र बीं पवित्र प्रेम री कहाणी बीरैं मूंडै सूं उगळवा लीनी, जिकी बो मन में जाणतो भी हो।
तीन बरस बीतग्या बातां-बांतां मांय अर ट्रेनिंग खतम हुवतां ई सगळा न्यारा-न्यारा भेज दिया गया। भाग सूं उण रो भाई महेन्द्र ई उण रै सागै रैयो। बां नैं ‘चाइना-बोर्डर’ पै भेज दिया गया। जित्तू हमैं सैकिण्ड लेफ्टिनेन्ट बण गयो हो। महेन्द्र भी सूबेदार हो। अचाणचक अेक दिन चीणियां कानी सूं गोळ्यां चाली। इसी चाली कै फेर बन्द नीं हुई तीन दिन तक। चोथै दिन रात दस बज्यां पचै गोळ्यां ओर भी नजीक सूं चालण लागी। दोनूं खूब हुंसियारी सूं बटालियन नैं हुकम देवता गोळ्यां चलावै हा। मुकाबलो बराबर हो, दुसमण रा सिपाई अणगिणत मरै हा। अचाणचक अेक गोळी जित्तू री छाती में लागी, लगती ई दो ओर गोळी कान्धै पै। हेठै पड़तां ईज महेन्द्र बींनै संभाल लियो। जित्तू बींनै रूमाल देवतो बोल्यो—भाई! महेन्द्र भाई!! ओ रूमाल तूं थारै कनैं राख। जिन्दो रैवै तो प्रमदा नैं पूगा दीजे; पण बींनैं यूं मत कहजे कै हूं मरग्यो हूं...। तूं बीं सूं ब्याव कर लीजे, बड़ी सूधी लड़की है...मनैं...वचन दे म... ऽ ऽ महेन्द्र!” अर वचन लेवणै सूं पैलां ईज बो सहीद होग्यो। देस रै वास्तै आपरो सगळो निछावर कर, बळिदान होग्यो। जित्तू अमर होग्यो देस रै खातर। उफ! ओ देस पै मर मिटणै आळां रो उदाहरण!
महेन्द्र री आंख्यां में आंसू नीं थम्या—सो नीं थम्या। उठी नैं लड़ाई तेज होवै ही। बो पीठ फेरी भी नीं ही कै उणरै संगीन गडगी जोर सूं अर निजर घूमी तो देख्यो, चारूंमेर चीणी फोजी ऊभा हा। दस-पन्द्रा बंदी बणा लिया गया। चीणी सैनिक बां नैं बंदी तम्बू में लेग्या जठै उण रै सागै निर्दयता रो बर्ताव कियो गयो।
छेवट पेकिंग रेडियो री घोसणा मुजब बींनैं ‘कोलम्बो-प्रस्ताव’ रै तहत चोथी टुकड़ी मांय छोड्यो। महेन्द्र अर उण रा साथी फोजियां नैं भारतीय रेडकास सैनिक समिति रै सुपुर्द कर दिया गया अर बो छूटग्यो चीणियां रै पंजै सूं।
अबै भी बो रूमाल जित्तू रो दियोड़ो जाबतै सूं राख्योड़ो हो। प्रमदा नैं बो चिट्ठी लिखी घर आवण री अर आज साढी तीन बरस पछै प्रमदा फेर ठेसण पै त्यार हुय नै आई ही। उण दिन री नाईं आज प्लेटफारम पै भीड़ नीं ही। आज उण रो प्रेमी कित्ता ई मीनां सूं आयर्यो हो। गाडी रो सिंगल हुयो, गाडी खड़खड़ाट करती आ पूगी। अेक डब्बै सूं फोजी वर्दी मांय कोई उतर्यो। धूप-चस्मा लगायोड़ा हा। बो थोड़ो रुक्यो, अठीनैं-बठीनैं देख प्रमदा रै कानी देख्यो। रुमाल ठीक बियां ई समेट्योड़ो हो जियां बा दियो हो।
प्रमदा रूमाल नैं खोल्यो—बा डगमग हुयगी। ओ काईं? म्हारै रूमाल पै अै सैंदाण काईं रा? नईं! ओ कदे नईं हो सकै। काईं बै?—....नईं, ओ रूमाल गोळी सूं छिद्योड़ो कियां है? लोयी री अै बूंदां? बा महेन्द्र नैं पूछयो—जित्तू नीं आयो?’ महेन्द्र छानो हो। अचाणचक उण नैं याद आयो—अेक चिट्ठी जित्तू री आखरी आयी ही, “प्रमदा! मैं नीं बावड़ सकूं तो रूमाल पूग जावैलो। जिको रूमाल तनैं देवैलो उणनैं ईज तनैं म्हारो प्रतिरूप मानणो पड़सी। ओ हाथ तनैं थामणो होसी...तनैं ओ भी घणो प्रेम करै है। अठै लड़ाई छिड़ री है जोरदार—काईं पतो मैं आऊं या बो? थारो भाग...पण म्हारी बात टाळजे मत। पसीनै री बूंदा उण रै माथे सूं टपकै ही। बींरो सिर चकरार्यो हो। धरती, अकास अेक साथै बडी जोर सूं घूम रया हा, जाणै कोई बींनैं घणी ऊंचाई सूं धक्को दे दियो हुवै—नै...नै...साढ़ी तीन बरस रै बीच री कहाणी उण रै दिमाग मांय घूमणी। बा पूछ्यो—“तो...तो...आपनैं ओ रूमाल दियो है? काईं कैयो हो बै?”
महेन्द्र री आंख्यां री पापण्यां भीग चाली ही, बोल्यो—“जिका वचन दिया है बै तो निभा सकूंला या नईं क्यूंकै म्हारै बस री बात कोनी, पण हां, ओ रूमाल तनैं देवण आयो हूं। ओ रूमाल तकलीफ मांय सावचेती सूं संभाळ’र लायो हूं। जिको तो—ओ हूं ई ज जाणू हूं—म्हारी जिनगाणी रो आसरो। तू मनैं पिछाणै क्यूं नीं? नै बो चसमा आंख्यां सूं हटाया।
“महेन्द्र?” अचाणचक प्रमदा रै मूंडै सूं निकळ्यो।
“हां महेन्द्र! थारो सहपाठी, बो ईज साढी तीन बरस पली को छात्र! जिको थारै सूं ब्याव करण सूं नटग्यो हो। हूं ईज तनैं ठुकरायी ही, आ म्हारी भूल ही। पण आ बात दिल सूं भी नईं ही क्यूंकै अेक भाई रै वास्तै मजबूरी भी ही। उण री चीज मैं कियां खोस सकतो? बोल मनैं माफ करैली?”
प्रमदा घबरागी। आज साची उण रा जीवण रूपी पान झरग्या हा। बा सूखै रूंखड़ै सी लागै ही। उण नैं काईं भी समझ नीं पड़ री ही। काईं करै आखर बा? महेन्द्र मुड़तो बस इत्तो सो कह बहीर होग्यो—“प्रमदा! माफ करजे, हूं चालूं हूं। म्हारो काम खतम हुयो”।
प्रमदा रै सामैं ऊंडी समस्या ही जिणरो समाधान उण रै कनैं हो। आंख्यां रै सामैं अंधारो सो छायग्यो। उण रा पुराणा पान आज साची ई झरग्या हा। बो मित्र हो, अेक भाई रो वचन पूरो करण आयो हो। पण प्रमदा रो मांयलो प्रतिसोध लेवण जाग उठ्यो? पण प्रतिसोध अेक वीर फोजी सूं काईं ले सकै ही बा? तो काईं बा उणनैं रोक’र कह देवै—“हूं अबै थांसूं ब्याव करूंला? तू जित्तू रो प्रतिरूप है, उण रो म्हारै सूं वचन लियोड़ो है!”
गाडी दूजी छूटणै आळी ही, महेन्द्र टिकट ले’र पाछो जावण रै वास्तै गाडी मांय जढ़ ई रयो हो कै उण री आंख्यां रै सामैं अंधारो। दोनूं थांभा ज्यूं ऊभा हा—बिछड़णै रै वास्तै। उण ईज टेम प्लेटफारम पै अेक जोर रो भतूळ्यो आयो; सब री आंख्यां मिचगी। बै दोनूं उण अन्धड़ रै बीच में आर्या हा, नै अेक जोर रै झौंकै रै सामैं सूं अेक दूसरै रो सहारो लेवण भाग्या नै एक दूजै री बांवां में कसग्या।
अबै बै पुराणा पान भतूळ्यो उड़ा’र लेग्यो, जिका दोनुंवां रा खिर्योड़ा हा।